मैंने
आगरा की आर्काइव लाइब्रेरी से कुछ कागज निकले थे अटल बिहारी वाजपेयी की
आजादी के समाय की भूमिका के बारे में पर कभी सार्वजानिक नहीं किया क्योकि
वो कुछ बदले बदले से दिख रहे थे पर अहंकार का प्रतिमूर्ति ,जिसकी आँखों में
हिंसा झांकती हो और जिसका इतिहास खून से भरा हो उसके बारे में तो कलम
अंतिम सांस तक देश को आगाह करेगी की जागते रहो ,देखो हिटलर शक्ल बदल कर
प्यारे हिंदुस्तान को बर्बाद न कर दे |
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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खोज नतीजे
बुधवार, 25 सितंबर 2013
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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