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गुरुवार, 24 जुलाई 2014

कुछ साथियों का कहना है कि उन्होंने तय किया है की वे समाजवादी पार्टी में और नेता जी के साथ तो जिंदगी भर रहेंगे पर समाजवाद शब्द को अलविदा कह कर ।
ये जान कर बहुत दुःख हुआ ।पर हो सकता है इन लोगो के मन में कोई दर्द हो या द्वन्द हो समाजवाद और समाजवादी शब्दों को लेकर ।
असली समाजवादी तो लड़ाकू होता है और जहा जुल्म ज्यादती और इंसानियत पर हमला देखता है तन कर खडा हो जाता है ।वो चापलूस और चुगलखोर नहीं हो सकता ।वो गरीबी अमीरी की खायी पाटने और समतामूलक समाज बनाने की बात तो कर सकता है और इस लड़ाई में समाज के वंचितों के साथ खड़ा हो सकता है पर जातिवादी नहीं हो सकता और अगर जातिवादी है तो समाजवादी नहीं हो सकता ।
असली समाजवादी व्यवस्था का पोषक नहीं हो सकता ।वो दलाल और ठेकेदार नहीं हो सकता ।
पर इन लोगो का नेता जी के लम्बे संघर्ष के प्रति सम्मान भाव और उनके साथ जिंदगी भर रहने की प्रतिबद्धता भी काबिले तारीफ़ है और संघर्ष के योद्धा का साथ न छोड़ना जब तक की कुछ स्वार्थी ताकते खुद न निकलवा दे अपने आप में सद्धान्तिक प्रतिबद्धता का ही एक रूप है और ऐसे लोगो की मानसिक ईमानदारी पर मुहर ।
पर एक सिद्धांत के प्रति ये नाराजगी की कुछ लोगो में शुरुवात कही पतन का सबब न बन जाये ।इसलिए इस पर तुरंत बहस जरूरी हो गयी ।पर अब बहस का युग ही खत्म हो गया है और उसका स्थान जबरदस्त चापलूसी और चुगली ने ले लिया है ।सभी तरह की बुराइयों के कीचड में सर तक भैंसे की तरह धंसे हुए लोग ही आसमान पर झंडा पहरा रहे है तो समाजवाद और समाजवादी शब्द का द्वन्द खासकर शुरू से समाजवादी आन्दोलन से निकले लोगो को ग्रस रहा हो ये स्वाभाविक ही है ।
सिधान्तो से विचलन सभी दलों में विचलन पैदा करता रहा है ।ज्यो ही कांग्रेस विचलित हुयी की शाहबानो या मंदिर का ताला या दोनों लोगो ने उसका हश्र देखा ।अपने मजबूत लोगो को कमजोर कर प्यादो को आगे करने का खामियाजा भूतो न भविष्यते इस बार भुगता ।
जनसंघ से बीजेपी तक के नारे से विचलंन ने बीजेपी और संघ को ठिकाने लगाया संघ की शाखाये तिहाई हो गयी और लम्बे समय तक रणनीत बना कर लाया हुआ नया नारा और नेतृत्व और  कांग्रेस में नेता विहीन सत्ता और अल्पसंख्यक समुदाय का अंतर्द्वंद उन्हें सत्ता में तो ले आई लेकिन फिर इनके नारे और समय की मांग का द्वन्द उनके विचलन का कारण बनेगा और वो दिखने लगा है की चौबीस घंटे दिखने और बोलने वालो की बोलती भी बंद है और दर्शन भी सम्पादित होकर हो रहा है ।नारे भाषण और हकीकत का फर्क तमाम लोगो को बेताज और बेनूर बनाता रहा है ।
1967,77,89 से लेकर आज तक ये कहानी जारी है ।
केवल शब्द असर तो करते है पर कुछ क्षण में असर विहीन भी हो जाते है ।जनता चमत्कार नहीं चाहती पर प्रतिबद्धता और शब्दों के इर्द गिर्द अपने नेतृत्व के मन का उछाल और कलम की स्याही जरूर देखना चाहती है ।अगर नेतृत्व इसके आसपास भी दीखता है तो जनता और संगठन दोनों ही विचलित नहीं होते है ।पर किसी अप्राप्य देवता को जिसपर चढ़ावा तो खूब आता हो पर जनता और भक्तो को कुछ न मिलता हो बल्कि बिचौलिया ही सब हड़प का रहा हो ये न जनता को स्वीकार है और न भक्तो को ।
इसलिए देवताओ का गाहे बगाहे दर्शन और चढ़ावे का जनता में समान और इमानदार वितरण बहुत आवश्यक है स्थायी रूप से बने रहने के लिए ।
खैर बात कुछ समाजवादी साथियों के विचलन से शुरू हुयी थी इसलिए औरो को उनके हाल पर छोड़ कर अपनी परवाह करते है और कोशिश करे की ये द्वन्द समाप्त हो क्योंकि लोग तो आते जाते रहते है पर देश समाज और संगठन चलता रहता है और सिधान्तो के आधार पर चलने वाली लड़ाइयाँ अनंत काल तक अपने उद्देश्यों में संशोधनो के साथ चलती रहती है ।व्यक्ति ख़त्म हो जाता है पर सिधांत कोई भी हो जिन्दा रहता है और ये भी सच है की बड़े बड़े सत्ताधारी चले गए पर सिधांत गढ़ने वाले कलमकार शास्वत सत्य की तरह किताबो और बहसो जिन्दा है ।इसलिए अपेक्षा की जा सकती है ऐसे दोस्तों से की कुछ भी छोड़ दो पर सिद्धांत मत छोड़ो और उसके लिए सामर्थ्य भर लड़ते रहो ।अगर प्रेरणा लेनी है तो समाजवादी आन्दोलन का इतिहास फिर से पढ़ डालो की किस तरह अपनी ही थानु पिल्लै की सरकार गिरा दिया था डॉ लोहिया ने जनता पर गोली चलाने के कारण ।बस जनता के साथ खड़े रहोगे तो असली समाजवादी रहोगे ।कुछ भी गलत हो जनता की तरफ से खड़े हो जाओ और ऐसा देख कर नेता जी भी आप के साथ ही खड़े मिलेंगे ।
लोकतंत्र और समाजवादी आन्दोलन में संगठन और कार्यकर्ता सत्ता के द्वारा धकेले जाने वाला धकेल संगठन नहीं होता बल्कि सत्ता पर जनता की नकेल कसने वाला नकेल संगठन होता है ।
ये एक बहस है परिणाम जो भी निकले ।शायद मेरी बात ये साथी भी समझ सकेंगे और जिमसे इन्हें शिकायत है वे लोग भो ।

शनिवार, 12 जुलाई 2014

बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी जी ने जिस दिन बीजेपी के लोगो ने विधानसभा के सामने पुलिस पर हमला किया था उस दिन कहा था की ये लोग गाँधी के मानने वाले नहीं है बल्कि भगत सिंह और आज़ाद के मानने वाले है तो क्या निहत्था होकर चले |
गाँधी के बारे में क्या विचार है और उनके साथ क्या किया है ये तो दुनिया जानती है पर आप ने अपने मुह से ही फिर एक बार स्वीकार कर लिया |
जहा तक भगत सिंह और उनके साथियों को सवाल है तो आप उनके भी मानने वाले कभी नहीं रहे वाजपेयी जी बल्कि आप ने भगत सिंह को गलत समझा और गलत चीज के लिए उद्धृत किया है | भगत सिंह आतंकी और हमलावर नहीं थे बल्कि २३ साल में प्राण न्योछावर करने वाले क्रन्तिकारी थे जो समता और समाजवादी व्यवस्था में यकीन करते थे और इंसान इन्सान के फर्क को वो चाहे जिस तरह का हो गलत मानते थे |
माफ़ी मांग लेते तो --- पर आप की तरह उन्होंने आज़ादी की लड़ाई की पीठ में चुरा नहीं भोका और न दूसरी लड़ाई में ही माफ़ी मांगी |
अब आप किसके समर्थक है ये मैं क्या बताऊँ |
आज बीजेपी अध्यक्ष श्री लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे वरिष्ट नेता ने कहा की नागिन की तरह उन् लोगो ने फोटो आंख में खींच लिया है और चाहे जो करना पड़े बदला लेकर रहेंगे | ये हमारे साथ साथ जनता को नयी जानकारी मिली की बीजेपी के लोगो में नाग और नागिन के गुण है | हम तो इंसान समझाते थे और आप की कुछ नीतियों से असहमत थे और कार्यो से भी पर ये नहीं पता था की इतना जहर क्यों भरा है |
आज खुद इतने वरिष्ठ नेता ने ही कह दिया है की ये लोग नाग और नागिन है तो हमे आश्चर्य के साथ दुःख भी है की राजनीति में नागिन और नाग भी आ गए | जनता को राजनीतिक नाग और नागिनो से सावधान रहना चाहिए | १९९१ से बहुत मुश्किल से उबर था प्रदेश की मुजफ्फर नगर कर दिया और जीत लिया और केवल जीतने और सरकार बनाने के लिए आप ये जारी रखना चाहते है तो याद रखिये की काठ की हांड़ी केवल एक बार चढ़ती है |