कल से दिल्ली की तरफ । क्या करूँ ५० दिन से ज्यादा हो गया तो गंगाराम अस्पताल की शरण में जा रहा हूँ । जिम्मेदारियां हैं वरना जीवन का कोई मतलब नहीं है । एक समय आता है कुछ लोगो के जीवन में की जीवन बेमतलब हो जाता है और आप अनुपयोगी और अपराधी भी हो जाते है सभी के लिए । आप नितांत अकेले हो जाते है और केवल दिन और पल गिनते है ।
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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बुधवार, 18 सितंबर 2013

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