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गुरुवार, 7 जुलाई 2016

ये लिखना मजबूरी हो गया

आज बहुत मजबूर होकर ये उन लोगो के लिए लिख रहा हूँ और उन बड़ी संख्या में अति उत्साही लोगो के लिए लिख रहा हूँ जिन्होंने कोई संघर्ष और तकलीफ देखा ही नहीं ।समाज के उंच नीच को झेला ही नहीं और इस तरक्की तथा वैज्ञानिक युग में पैदा होने के नाते जिनसे अपेक्षा होती है की वो जातियो को तोड़ेंगे तथा जातियो की बात करने से भी घृणा करेंगे पर जो पिछली शताब्दियों से भी ज्यादा जहरीले जातिवादी होते दिख रहे है । ऐसा लग रहा है कि कट्टरवादी आतंकवादी मुसलमानो की तरह कोई कट्टरवादी जातिवादी जेहाद छेड़ा जा रहा हो ।

हम तो बचपन से लड़ रहे थे की वंचितो को न्याय मिले पर किसी के साथ अन्याय न हो । वंचित में सभी जाति और धर्म की महिलाओ को भी शामिल किया डॉ लोहिया ने और हम लोगो से नारा लगवाया : संसोपा ने बांधी गांठ ,पिछड़े मांगे सौ में साठ : और इस साठ में सम्पूर्ण स्त्री समाज को शामिल किया गया ।

हमने सीखा की घृणा नहीं करना है किसी से पर जो आगे बढ़ गए है उनसे कहा जाय की थोडा धीरे चलो, पर पूरी तरह रुक जाने और मृतप्राय हो जाने को नहीं कहा और जो पीछे छूट गए है उन्हें रफ़्तार दिया जाये और सम्भव समानता लायी जाए ,पर समानता उन समाजो और जातियो तथा धर्मो के अंदर भी लायी जाये ।
पड़ी खड़ी लकीर को पड़ी लकीर बनाना केवल अगड़ी और वंचित जातियो के लिए नहीं सोचा गया था बल्कि वंचितो में भी सभी को और वंचित जातियो में भी सभी को सामान भाव से अवसर मिले ये चिंतन था ।ऊच नीच की खायी को कम किया जाए ये चिंतन था ।

पर घृणा किया जाए और अन्य को खत्म किया जाए या बिलकुल पीछे कर दिया जाए ये चिंतन की बुनियाद नहीं थी ।
पर अब तो दिख रहा है की सबको खत्म कर दिया जाए और हम कुछ लोग सब पा जाये ,सब कुछ पर कब्ज़ा कर ले । ये चर्चा बंद कमरो में होती रणनीति बनाने को तो भी अलग था ,खुले आम एलान देकर चट्टी चौराहे और हर सार्वजानिक फोरम पर डुगडुगी पीट कर हो रही है ।

ये तब है जब आज जो पहले दबंग थे अब डरे रहते है ,जो पहले शासक थे अब शोषण के शिकार और याचक बने है और समाज की प्रकृति पूरी तरह उलट चुकी है ।

क्या हम जैसे लोग छले गए ? क्या हमने अपने पैरो पर खुद कुल्हाड़ी दे मारी ?क्या हम सिद्धांतो की आड़ में लोगो का हथियार बन गए सिद्धांतो के ही खिलाफ नहीं बल्कि मानव जाती और सम्पूर्ण समाज के खिलाफ ? बहुत से प्रश्न यक्षप्रश्न बन कर खड़े है ।

और इस सच्चाई से भी नकारने और सिर्फ जाती के नाम पर बाकि सबसे घृणा करने की आत्मघाती कोशिश नहीं करनी चाहिए की समानता और वंचितो के लिए लड़ने वाले सभी महापुरुष अगड़े और सुविधा सम्पन्न लोग थे ,पुराने इतिहास में देखे या नए में महात्मा गांधी से लेकर  डॉ लोहिया,जयप्रकाश ,आचार्य नरेन्द्र देव राजनारायण मधु लिमये सहित सैकड़ो लोग ।इन लोगों ने समाज में चेतना फ़ैलाने के लिए और वंचितो को जगाने के लिए अपने को दाव पर लगा दिया ।
इस देश में राजनारायण जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने जोतने वालो को खुद अपने खेत दे दिया और वही पहले थे जो हजारो दलितों को लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर में घुसे और उसके से संघियो ,पंडो और पुलिस ने उन्हें मिल कर पीटा था पर वो रुके नहीं और जिंदगी के अंतिम दिन तक लड़ते रहे सिद्धान्तों के लिए । पर आज उनको साल में एक माला और उनके लोगो को गाली तथा उपेक्षा ।उनके लोगो को ठोकर मारी जा रही है और उनसे घृणा करते हुए खत्म किया जा रहां है तो मानव स्वाभाव का चिंतन का भाव और आत्मरक्षा तथा स्वाभिमान की रक्षा के प्रति चैतन्य हो जाना स्वभाविक ही है और आत्मरक्षा तथा आत्मसम्मान की रक्षा का अधिकार तो सनातन काल से दिया गया है ।

खैर भारतीय समाज की बड़ी विशेषता है की जब भी किसी ने भी समाज का संतुलन बिगाड़ा और अपनी मर्यादाये पार किया या तानाशाही और अहंकार पूर्ण व्यवहार शुरू किया इस सम्पूर्ण समाज ने उसे सबक देने और किनारे लगाने का काम किया ।ये कल भी हुआ था ,ये आज भी होगा और कल भी होता रहेगा ।

शायद कुछ लोग खुले आम गालिया देना और घृणा करना बंद करे ,शायद कुछ लोग सार्वजानिक तौर पर जातिगत जेहाद छेदना बंद करे इस उम्मीद के साथ ।

या फिर मुझे भी खुलेआम गाली दें जो वो कर ही रहे है सबके साथ ।