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रविवार, 23 जुलाई 2017

कौन उबरेगा मेरे शहर को इस श्राप से इन्तजार है आगरा को भी और मुझे भी |

कुछ लोग श्रापित होते है जैसे मैं वैसे ही लगता है की कुछ समाज ,देश और कुछ शहर भी श्रापित होते है | उसी में एक शहर है आगरा यानि मेरा शहर इतना ज्यादा श्रापित की कुछ भी कर लो इसका श्राप मिटता ही नहीं है | सालो हो गए पानी के लिए तरसते हुए ,एक अदद हवाई अड्डे के लिए तरसते ,किसी कारखाने के लिए तरसते ,तो कभी पासपोर्ट ऑफिस और कभी हाई कोर्ट के लिए लड़ते पर क्या करे श्राप आड़े आ जाता है |
वो श्राप ही शायद कारन है की आगरा के द्वारा बनाये गए सभी प्रतिनिधि को बढ़ाते और फलते फूलते जाते है पर आगरा सूखता जाता है |
श्राप जो है
कौन उबरेगा मेरे शहर को इस श्राप से
इन्तजार है आगरा को भी और मुझे भी | 

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

असंम में फिर बढ़ और लाखो लोग परेशानी में | हर वर्ष ही करेब करीब देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में आता है वो चाहे बंगला देश की नदियों के कारन हो या अपने देश की नदियों के कारन ,वो भरी बारिश के कारन हो या बांधो के पानी छोड़ने के कारन पर तबाह तो हर साल vaइ लोग होते हैं |
कितने करोड़ लोग कुछ फिन बेघर हो जाते है तो कितने बंधो ,ऊचैयियो और सड़को पर प्लास्टिक के टेंट लगाकर कर तब तक की जिंदगी गिअरते है जब तक बाढ़ ख़त्म नहीं हो जाती है | बढ़ के बाढ़ यही लोग महामारियो और बीमारियों के शिकस होते है |
कभी कोइं जाकर तो देखे की कितनी मुश्किल और तबाह जिंदगी जीती है देश की ही बड़ी आबादी और इसमें बड़ी संख्या हिन्दू की ही होती है | ये अलग बात है की बाढ ही,आगजनी हो या कोई और आपदा मरता तो देश का गरीब ही है और ये आपदाए जाति और धर्म देख कर भी नही आती पर जाती और धर्म के गौरव का एहसास कर जबी वोट मिल जाता हो और पांच साल की सरकार बन जाती हो तो उनकी समस्याओ और जिंदगी के लिये कुछ करने की जरूरत भी क्या है |
आज़ादी के इतने साल बाद भी हम इन आपदाओ से अपनी जा नता को बचाने का रास्ता नहीं तलाश कर सके है | हमें फुर्सत ही नहीं है बड़े शहरो को और संवारने से और बड़ो को बनाने तथा बचने और बढाने से |
वक्त बहुत ध्यान से देख रहा है की ये उंच नीच की खाई ,उनसे ये दोहरा व्यवहार ,सत्तावो का ये दोहरा चरित्र ,कब तक चलेगा और देश सम्पूर्ण रूप से करवट कब लेगा जब उंच नीच की खाई कुछ कम हो सके और न्याय तथा सत्ता और सम्पत्ति तथा संसधानो बटवारा समानता से होगा |
फिलहाल तो मैं उन करोडो के प्रति संवेदना उअर दुःख ही व्यक्त कर सकता हूँ |
जय हिन्द |

मंगलवार, 27 जून 2017

कल अपने मित्र प्रोफ डॉ आर सी मिश्र नयूरो सर्जन जिन्हें मैं अपने क्षेत्र का जीनियस मानता हूँ से काफी दिन बाद मिलने गया | बहुत व्यस्त रहते है वर्ना तय तो ये था की वो मेरे घर आयेंगे और कुछ लम्बी चर्चा होगी बिना बाधा के |
पर उनकी मजबूरी है की उनका असमय उनका रहा ही नहीं | अच्छा भी रहा बहुत कुछ ज्ञान मिला और कभी मन में पीड़ा आ जाती है कई तरह की तो मैं लोगो से कहता रहां हूँ की कुछ देर किसी खतरनाक बीमारी के अस्पताल में बैठ जाओ और लोगो को देखो शायद अपनी पीड़ा बहुत छोटी लगने लगेगी |
यही मेरे साथ हुआ उन दो घंटो में जब तक वो मरीज देखते रहे और मैं तरह की मर्ज और पीडाएं देखता रहा |
और
सोचता रहा की इश्वर ने खुद मनुष्य को बनाया है अपनी कारीगरी से और पैदा किया है माँ पिता को माध्यम बना कर फिर सही सलामत क्यों नहीं पैदा किया है इतनी बीमारियाँ क्यों दे दिया है इन्सान को |
या तो पैदा ही मत करो इश्वर या फिर पूर्ण स्वस्थ ,पूर्ण सुखी ,सिर्फ अच्छाइयों के साथ सब पापा और बुराइयों से दूर क्यों अनहि रखते सभी इंसानों को ? क्यों दे दिए इतनी तरह के कष्ट की कष्ट भी शायद जार जार रो पड़ता होगा देख कर |
मुझे तो कुछ ऐसा ही लगा |
और मुझे अपनी दिक्कते बहुत छोटी लगने लगी फिर कुछ समय उनके साथ चाय पर अकेले थोड़ी सी अन्य चीजो पर चर्चा हुयी |
उनकी दी गयी जानकारियां और मेरी जानकारियां तथा वर्षो से बनी मेरी धरना बिलकुल विपरीत थी |
मुझे लगता है उसके लिए उनके साथ कुछ अधिक समय बैठने की जरूरत है |
क्योकि जरूरी नहीं की जो हम जानते है वही सत्य हो और वो नहीं सत्य कुछ और है तो स्वीकार कर लेने में बुराई भी क्या है |
देखते है क्या निकलता है और क्या होता है |
पर एक सच्चाई जरूर बता दूँ की उनकी कही काफी बाते सत्य साबित हुयी है पूर्व में |
ना ना ज्योतिष नहीं ज्ञान ,अनुभव और हजारो लोगो से मिलकर प्राप्त जानकारियों के कारण और इसके लिए उन्हें सलाम |

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

बहुत चिंतित हूँ कि क्या होगा भारत के लोकतंत्र का । जिस विचारधारा का भारत की आज़ादी की लड़ाई से कोई सम्बंध नहीं , जिनकी लोकतंत्र ,इंसान की आज़ादी और संविधान में आस्था नहीं वो जुमलों और अफ़वाह के दम पर लगातार मज़बूत होते जा रहे है और दूसरी तरफ़ अन्य राजनीतिक ताकते या तो व्यक्तिगत का शिकार हो या परिवार वाद का शिकार हो और नितांत निजी स्वार्थों में लिप्त हो सीमित दायरों  में क़ैद होती जा रही है या सीमित सोच में क़ैद है या अपने इन्हीं कारणों से अयोग्यता ,अदूरदर्शिता और अल्पज्ञानता  के बोझ तले दम तोड़ रही है और भविष्य का न तो चिंतन है उनके पास न ही वैकल्पिक संघर्ष का माद्दा ही ।
राष्ट्रीय आंदोलन से निकली कांग्रेस भी पहले ही अहंकार तले छिननभिन्न होती दिख रही  है और लगातार उसके स्तम्भ गिरते जा रहे है । जबरन अयोग्य नेतृत्व को थोपने की कोशिश और नितांत असुरक्षित लोगों का उसी को सुरक्षा कवच की तरह प्रयोग आत्मघाती बनता जा रहा है । दशकों से कांग्रेसी रहे लोग उसे छोड़ते जा रहे है और उन्हें सत्ता में बैठे  लोग लोग तो लपक ले रहे है पर कांग्रेस को कोई चिंता नहीं । कश्मीर से कन्यकुमारी तक , बंगाल से लेकर पंजाब तक और सुदूर पूर्व से लेकर गुजरात तक मजबूर मजबूर कांग्रेसियों को भगाया गया है कंफ्यूसिया कांग्रेसियों द्वारा ।
ऐसा लगता है की शतरंज के खिलाड़ी की कहानी दोहरायी जा रही है कांग्रेस में भी और बाक़ी कुछ अन्य वैसे ही नेताओं के यहाँ जिनकी आत्मप्रशंसा और सनक देश के प्रति कर्तव्यों पर भारी पड़ रही है ।
कुछ दिन पहले ही कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस छोड़ और आज पता चला की गिरधर गोमांग भी सत्ता दल में है तो मैं हिल गया । कुछ और नामो के बारे में सुन रहा हूँ ।
पूर्व में ममता बनर्जी हो या मुफ़्ती मोहम्मद सईद या शरद पवार पूरे देश में अनगिनत लोगों को कांग्रेस ने खोया जो ख़ुद को साबित कर बड़े नेता सिद्ध हुए और उनके प्रदेश में उन्हें भगाने वाले बौने साबित हुए ।
पर लगता है की किसी आत्मचिंतन की ज़रूरत हीं नहीं समझती है कांग्रेस और आज़ादी के लिए तथा उसके बाद देश के लिए क़ुरबानी देने वाले अब देश ,लोकतंत्र , संविधान और आज़ादी की क़ुरबानी करने पर उतारू है ।
यही हालत अन्य नौजवान नेताओं की भी दिख रही है जो देश के पैमाने पर खड़े हो सकते थे ख़ुद भी और खड़ा कर सकते थे विकल्प भी लेकिन अयोग्यता या हीन भावना और प्रारम्भ में ही बुराइयों का शिकार होकर एक अंधेरे रास्ते पर चल पड़े है ।
समझ नहीं आता क्या होगा मेरे देश का ? क्या इसी सब को देखने के लिए लाखों लोगों ने क़ुरबानी दिया था ?
मन बेचैन है । क्या कोई बदलाव आएगा ? क्या कोई रास्ता निकलेगा ? क्या कोई विकल्प बनेगा ? 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

बड़े भाई
हां छोटे भाई
ये क्या कर रहे हो ? काम की बाते और विकास की बाते ?
क्या छोटे क्या ये ठीक नहीं
अरे क्या गजब कर रहे हो लोग गाँव घर के बाहर और अन्दर झांक कर देख रहे है और पिचले चुनाव के वादों को भी याद कर रहे है | हम दोनों कही के नहीं रहेंगे | क्या जवाब देंगे ?
तब क्या करें भाई ?
ये फालतू की बातें छोड़ो और कुछ और सोचो जिससे लोग गाँव और पड़ोस की सड़क ,नाली ,पानी ,सफाई ,नौकरी ,महंगाई ,देश के जवानों की हत्या १५ लाख ,काला  धन , नोट्बंदी सब भूल जाये | न आप का कुछ याद रहे और न मेरा |
बही तुमने तो चिंता में डाल दिया | ये तो जनता हम दोनों को सबक सिखा देगी और कोई विकल्प ढूढ़ लेगी |
कही ऐसा न हो की बिना पैसा खर्च करने वाले निर्दलीय इम्नादार लोगो को वोट देना सीखा जाये और हम लोगो की राजशाही ख़त्म हो जाये |
हां भाई बहुत बुरा हो जायेगा |
फिर
फिर क्या
वही पुँराना शुरू करते है | जातियों में जाती और गोत्र के गौरव का भाव जगाते है |
धर्म को धर्म का डर दिखाते है | धर्मस्थलो का सवाल उठाते है | धर्म की घृणा बांटते है |
हो गया काम
लेकिन ये हथकंडे तो जनता जानती है ,कही नहीं फंसी जाल में तो फेल हो जायेगा फार्मूला
तो नया शुरू करते है
कुछ नए शब्दों निकालते है की मजबूरी हो जाये लोग उसी के इर्द गिर्द चर्चा करने को |
अच्छा क्या ?
गदहा
आतंकवादी
चोर
गुंडा
जितनी गन्दी से गन्दी बात हो सके नहीं तो भद्दी भद्दी गलिया देने लगेंगे हम दोनों जोर जोर से दोनों एक दूसरे को
और इतना शोर करेंगे और करते ही रहेंगे की जनता बस तमाशबीन हो जाये
बस
इसी में वोट का टाइम निकल जायेगा
अच्छे लोग भी इस शोर में खो जायेंगे
और हम लोगो को गलियों की पसंद और नापसंद में एक बार और जनता को लामबंद करने में कामयाब हो जायेंगे ,
हम दोनों में से ही कोई जीतेगा |
हाथ मिलाओ
हां हां हां हां हां हां हां
जनता क्या हमसे ज्यादा दिमाग रखती है
जनता कही की
अरे पूरा पांच साल बचा है ,अपराध ,नाली ,पानी सड़क ,बिजली रोजगार विकास की चर्चा के लिए ,देश की सुरक्षा ,जवानों की हत्या ,आतंकवाद ,काला धन ,नोट ,रोजगार इत्यादि
कम से कम चुनाव में तो ये बाते जनता को भूल ही जाना चाहिए
बड़े बतमीज है ये जनता के लोग की एक डेढ़ महीना ये सब भूल कर केवल हम लोगो के जुमलो और झटको को सुनना चाहिए
चुनाव ख़त्म हो जाये तो फिर अपनी बैठक और चाय की दुकान और काफी हाउस में बैठ कर ,चौपाल पर खूब चर्चा करना इन  मुद्दों की और हमें खूब गालियाँ दे देना ,
वहा सुन ही कौन रहा है | तुम ही बोल रहे हो और तुम ही सुन रहे हो
सा ;;; चुनाव में याद करने लगते है | ये भी कोई तरीका है
जहा सी तमीज नहीं है इन कीड़ो मकोडो में
जाने दो भाई नाराज मत हो | अभी तो गधो को बाप बनाने का वक्त है \
एक महीना बना लो फिर इन गधो पर राज करो
अच्छा पैग बनाओ
इस नए झकास आइडिया पर ; चियर्स .
किसी ने हमें मिलते देखा तो नहीं
या बात करते सुना तो नहीं
तो तय रहा
यहाँ से निकलते ही एक दूसरे को गन्दी से गन्दी गलिया देनी है ,बिना संकोच ,बिना लिहाज
हां हां हां हां हां हा
लोकतंत्र की जय .भीडतंत्र जिंदाबाद |
इति कथा सम्पन्नम |