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रविवार, 19 दिसंबर 2021

जिंदगी के झरोखे से। समाजवादी पार्टी की स्थापना

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#समाजवादी_पार्टी_की_स्थापना -

1992 की बात है मुलायम सिंह यादव जी 1991 की भयानक हार से उबर कर कभी कभी दिल्ली जाने लगे थे । चन्द्रशेखर जी की सरकार के जाते जाते मेरी सलाह पर अयोध्या काण्ड को आधार बना कर खतरे के आधार पर मुलायम सिंह यादव के उस वक्त बहुत करीबी और दिल्ली मे मीडिया सलाहकार डा बागची ने प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी टाइप करवाया और चन्द्रशेखर जी ने भी बिना देरी के मुलायम सिंह यादव जी के लिये एन एस जी जो एस पी जी के गठन से पूर्व उस बक्त तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा देखती थी के ब्लैक कैट कमांडो की स्वीकृत कर दिया पर उस वक्त तक पूर्व मुख्यमंत्री सुरक्षा के लिये सरकारी वाहन नही मिलता था तो डा बागची ने मुझसे पूछा की सुरक्षा तो हो गयी अब गाडी की व्यवस्था कैसे होगी और मैने जिम्मेदारी ले लिये कि हो जायेगी । उसके बाद मैं अपने एक मित्र जो गृह मंत्रालय मे राजभाषा अधिकारी थे और टेनिस कोर्ट के सामने वाले आर के पुरम के सरकारी क्वार्टर मे रहते थे उनके घर गया क्योकी उनके घर के पास मैने एक टैक्सी स्टैंड देखा था ।हम दोनो वहा गये और स्टैंड के मालिक सरदार जी से तीन गाड़ियो के बारे मे गाड़ियो की क्वालिटी और रेट के बारे मे तय किया इस शर्त के साथ कि जब भी फोन किया जायेगा हमे तीन गाडी अवश्य मिलेगी जिसमे से तय समय पर दो एन एस जी कैम्प जायेगी कमांडो को लेने और एक मुलायम सिंह यादव जी के लिये तय समय पर एयरपोर्ट पर वी आई पी लाउंज पहुचेगी । सब तय हो गया ।
यहा यह बताना जरूरी नही है की सत्ता से सीधे 29 सीट पर आकर मुलायम सिंह जी बहुत निराश थे (यद्द्पि चुनाव के बीच ही जब मैं दिल्ली से सुब्रमण्यम स्वामी जो उस वक्त वाणिज्य और कपडा मंत्री थे के यहा से कुछ सामान लेकर लखनऊ वापस जा रहा था क्योकी स्वामी जी के एक व्यक्ति के अलावा मैं ही लखनऊ के दफ्तर मे बैठता था और रास्ते मे शिवपाल जी के घर पर मुलाकात मे बता चुका था कि मुझे 40 से ज्यादा आती नही दिख रही है ) तथा विचलित भी और एक साल तक कुछ भी करने को तैयार नही थे पर कैसे चुनाव के बाद तुरन्त चुनाव लड़े हुये लोगो की बैठक क्यो बुलाया ,फिर कुछ ही समय बाद मेरे द्वारा आयोजित आगरा मे विशाल मन्ड्लीय सम्मेलन के आयोजन मे क्यो आने को तैयार हो गये जिसमे 14 लाख की थैली भेंट की गयी तथा 50 ग्राम सोना या शायद मैं अलग अलग एपिसोड मे बताऊंगा ।
ये भी क्यो बताया जाये की एक साल तक घर से नही निकलने की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव जी दिल्ली क्यो आये । दिल्ली मे रुकने की जगह सिर्फ यू पी भवन था जो विधायक के नाते मिलता पर मैं नही चाहता था की वो यू पी भवन मे रुके ।तब डा बागची ने हल निकाला और किसी से बात कर के सम्राट होटल मे उनके लिये सूईट बुक करवाया और यू पी भवन का कमरा मेरे लिये तय हो गया क्योकी जब भी उन्हे दिल्ली आना होता मुझे लखनऊ से फोन आ जाता था ,फिर मैं सरदार जी को गाडी के लिये फोन करता और खुद भी दिल्ली पहुच जाता था और यू पी भवन मे सामान रख कर समय पर एयरपोर्ट जाकर रिसीव करना ,रोज सुबह से शाम तक साथ रहना और फिर वापसी पर एयरपोर्ट विदा कर वापस जाना ये अगली सत्ता आने तक चलता रहा । पहली बार आने पर मैने कुछ लोगो से मिलवाया जिनके नामो की जरूरत नही है । शाम को वापस होटल मे आने पर मुलायम सिंह जी बोले कि अरे आप को तो दिल्ली मे बहुत लोग जानते है ,आप तो यहा बहुत काम के रहेंगे ,मैं आप को दिल्ली मे रखुँगा जो कभी भी नही हुआ क्योकी प्राथमिकता मे परिवार और खास जातियां आ गयी ।
खैर सम्राट होटल के बाद आशोका होटल का सूईट बुक होने लगा । एक दिन सूईट के कमरे मे खिडकी के किनारे दो कुर्सियो पर बैठे हम लोग चाय पी रहे थे वही जो मेरे मन मे काफी दिन से घूम रहा यहा मैने उनसे कहा कि फिर से समाजवादी पार्टी की स्थापना किया जाये तब तक हम लोग सजपा मे थे जिनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी थे और मुलायम सिंह यादव जी प्रदेश अध्यक्ष थे तथा मैं प्रदेश का महामंत्री और प्रवक्ता था । मेरी बात पर उन्होने असहमती व्यक्त किया की मेरा तो केवल 2/4 जिलो मे असर है ,चन्द्रशेखर जी बड़े नेता है उनके साथ रहना ही ठीक है । उसपर मैने कहा की सजपा की जगह समाजवादी पार्टी कर दिया जाये क्योकी वो अजादी की लडाई के समय से एक वैचारिक आन्दोलन रहा है और उससे भावनात्मक रूप से देश भर मे काफी लोग जुडे है चाहे संगठन का स्वरूप यही रहे और चन्द्रशेखर जी रास्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे ,पर आप राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे तो वो एक बडा सन्देश होगा और पहली बार कोई पिछड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा ,आगे आप की मर्जी आप जो तय करिये ।पर उन्होने इस विचार को पूरी तरह से खारिज कर दिया लेकिन मन मे एक सपना तो मैने जगा ही दिया था ।
हम राज नारायणजी के लोगो का स्थायी अड्डा जनेश्वर जी का घर होता था ,बाकी दिनो मे वही नाश्ता खाना ,वही रुक जाना ,बल्कि देश भर के समाजवादीयो के लिये उनका घर सराय था इसलिये घर के बाहर ही लिख दिया गया था बाद मे लोहिया के लोग । थोडे ही दिन बाद मैं वहा था और बिहार वाले कपिलदेव बाबू भी वहा आये थे । हम तीनो जब साथ बैठे थे तो मैने अपना विचार बताया की मैने मुलायम सिंह जी से ये कहा है पर वो मान नही रहे है ।जनेश्वर जी बोले की ये तो अच्छा विचार है और देश भर मे खाली बैठे सभी समाजवादी साथ आ जायेंगे । कपिलदेव बाबू बोले की मुलायम से हमारी मुलाकात करवाइये हम भी कहेंगे और हमे कुछ नही चाहिए हमारे पास स्वतंत्रता सेनानी का भी पास और पेशन है और विधायक का भी और रहने को जनेश्वर का घर है ,अगर पार्टी बनेगी तो हम पूरा समय देंगे ।फिर जनेश्वर जी और कपिलदेव बाबू की भी बात हुयी और रमाशंकर कौशिक ,भगवती सिंह तथा रामसरन दास से भी चर्चा करने के बाद मुलायम सिंह यादव जी तैयार हो गये और तैयारी शुरू हो गयी । सवाल ये आया की देश भर मे सूचना कैसे हो तो अखबारो मे विज्ञापन दिया गया और मुलायम सिंह जी का फोन नंबर दे दिया गया ।देश भर से फोन आने लगे जगजीवन फोन उठाता था और फिर जिसका भी फोन आया होता था उनका नाम और फोन नंबर मुझे भी लिखवा देता था ।
आखिर 4/5 नवम्बर आ ही गया और बेगम हजरत महल पार्क मे स्थापना सम्मेलन हुआ जिसमे असम केरल बंगाल महाराष्ट्र बिहार मध्यप्रदेश,हरियाणा दिल्ली कश्मीर सहित कई प्रदेशो के लोग शामिल हुये जिसमे असम के पूर्व मुख्यमंत्री गोलप बोरबोरा , हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह ,बंगाल की सोशलिश्ट पार्टी जिसके मंत्री प्रबाल चन्द्र सिन्हा और किरणमय नन्दा सहित विधायक ,बिहार से बड़े नाम वाले कई समाजवादी शामिल हुये ।पार्टी का स्वरूप राष्ट्रीय उसी दिन दिखने लगा ।ये अलग से लिखूंगा कि किसके और किन कारणो से आगे चल कर सब बड़े नेता साथ छोड़ गये ।
स्थापन सम्मेलन मेरी व्यस्तता का ये आलम था की मैं सिर्फ दो बार मंच पर गया एक बार राजनीतिक प्रस्तांव पर बोलने और दुबारा मुलायम सिंह जी के सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर । 5 को  सम्मेलन खत्म हुआ तो मुलायम सिंह जी बाहर से आये नेताओं से मिलने स्टेट गेस्ट हाउस आये तो सबसे मिलते हुये मेरे कमरा नंबर 47 मे पहुचे ।मैं कुर्सी पर ही बेसुध पड़ा था ।उन्होने धीरे से जगाया और बोले की चाय मगाइये ।दोनो ने चाय पिया तो बोले मैं जानता हूँ कि आप बाहर से आये लोगो की अगवानी और ब्यवस्था मे 3 दिन से ठीक से सोये नही है पर आज से जब तक सबको विदा करना है वो कर के खूब सो लीजियेगा फिर मेरे पास आइएगा तब समीक्षा किया जायेगा और आप का ही ये विचार था तो आगे की बात भी किया जायेगा ।
बाकी सब इतिहास मे दर्ज है और छूटा हुआ सब बाद के एपिसोड मे ।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

जिंदगी के झरोखे से

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

#1991_मंडलीय_सम्मेलन_और_14_लाख_की_थैली 

बात 1991 के चुनाव के बाद की है पता नही वो घटना अभी तक मैने लिखा या नही जब रात भर चुनाव परिणाम देखने के बाद मैं सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी के घर पहुचा था और इतने बुरे परिणाम से वो बेचैन थे ,जबकी पहले ही दिल्ली से लौटते हुये शिवपाल जी कर घर पर उन्हे मैं ऐसे परिणाम की आशंका जाता चुका था प्रदेश का चुनाव देखने के कारण पर सारे अधिकारी और इंटेलीजेंस एजेंसियां उन्हे 125 से 150 तक की रिपोर्ट दे रही थी ।
केवल 29 एम एल ए और चंद्रशेखर जी समेत केवल 4 एम पी सीट सत्ता मे रहते उनको विचलित कर गई थी ।
मिलते ही बोले कि अयोध्या के कारण ये तो सारी जनता नाराज हो गई है इत्यादि । मैने कहा कि छोटा हूँ पर एक बात कहना चाहता हूँ कि अब हमे इसी स्टैंड पर कायम रहना चाहिये । आप ने कुछ बुरा नही किया बल्की मुख्यमंत्री होने के कारण संविधान की रक्षा किया है और उस पर आप को गर्व होना चाहिये । ये ठीक है की संघ अभी जहरीला प्रचार कर कामयाब हो गया पर कल जब लोग समझेंगे की देश तो संविधान और कानून से ही चल सकता है न कि दंगो से तो यही प्रदेश आप को फिर वापस लाएगा ,और हम दोनो चाय पीने बैठ गये और उसी समय ये भी तय हुआ की मात्र 7 दिन मे चुनाव लड़े विधनसभा के 425 और लोक सभा के 85 लोगो की बैठक बुला लिया जाये (इसका किस्सा अलग से ) ।कल्याण सिंह की सरकार बन गई थी ।
पर सरकार जाने के बाद बडा संकट था और पार्टी चलाने मे दिक्कत हो रही थी क्योकि इस मुख्यमंत्री काल मे मुलायम सिंह जी ने पैसे के बारे मे सोचा ही नही था और जहा तक मुझे पता है सिर्फ एक मामले मे ओम प्रकाश चौटाला ने कुछ दिया था जो दिल्ली से टी सीरीज कैसेट के डिब्बो मे ले जाया गया था और जो आया भी वो चुनाव मे खर्च हो गया था । दो बार तो त्योहार के मौके पर भी हम दफ्तर के स्टाफ को तन्ख्वाह नही दे पाये तब मैने तपन दादा को कुछ रुपए दिये की वो जगजीवन और शरमा इत्यादि बराबर बराबर बांट ले और त्योहार मना ले ,तपन अब बुजर्ग हो गये है पर है और जगजीवन तो आज बहुत रईस भी है और एम एल सी भी । इसी तरह मुलायम सिंह जी के घर का फ़ोन कट गया और कई दिन बाद जुड़ा तब एक दिन मैने महामंत्री के रूप मे लोगो का आह्वान कर दिया की जितना मन हो चाहे 5/10 रुपया ही सही मुलायम सिंह यादव जी को मनी ऑर्डर करे ।जो भी पहुचा मैने पूछा नही ।
2 महीने बाद ही मुलायम सिंह यादव जी एक सामाजिक कार्यक्रम के लिये आगरा आये और जैसा की हमेशा होता था कि अन्त मे प्रेस से मुलाकात मेरे निवास पर होती थी । उस दिन भी हुयी ।
प्रेस के बाद इटावा जाना था तो बोले की आप भी चलिये रास्ते मे बात करते चलेंगे और आज ही ट्रेन पकड़ कर लखनऊ जाना है तो आप उसके बाद वापस आ जाईयेगा ,ऐसा अक्सर ही होता था उस दौर मे । मुझे ऐसा याद आता है कि उस दिन देश के जाने माने कवि और हमारे सांसद उदय प्रताप जी भी साथ थे जिन्होने बाद मे मुझसे शिकायत किया था कि रास्ते भर आप दोनो ही बात करते रहे और मैं तो महज श्रोता बना रहा ।
हम लोग इटावा सिचाई विभाग के डाक बंगला पहुचे जहा शायद मुलायम सिंह यादव जी के आने की खबर नही दी गई थी तो जिस सुईट मे ये रुकते थे पुलिस के किसी डी आई जी को आवंटित हो गया था । मैने वहा के व्यवस्थापक को हड़काया कि आवंटन किसी का हो पर जब प्रोटोकोल मे बडा व्यक्ति आ जाता है तो वो आवंटन अपने आप निरस्त हो जाता है ।खैर डरते डरते की साहब मेरे खिलाफ कुछ न हो जाये उसने कमरा खोल दिया ।मुलायम सिंह जी अंदर गये और बस बाथरूम होकर बाहर आ गये कि अच्छा मौसम है ,बाहर पार्क के चबूतरे पर बैठते है जबकी जून आखिर या जुलाई का आरम्भ था और तेज गर्मी थी ।
खैर हम लोग वही बैठ गये । मुलायम सिंह यादव जी का मानना था को कम से कम एक साल चुपचाप आराम किया जाये और राजनीतिक गतिविधिया बंद रखा जाये क्योकि अभी कही भी निकलने पर जनता का गुस्सा झेलना पड़ सकता है ।
मैने कहा की मैं इस बात से सहमत नही हूँ और वही मैने बीजेपी तथा आरएसएस के गढ आगरा से ही तत्काल कार्यक्रम शुरु करने को आमंत्रित किया । वो सहमत नही थे पर मेरे जोर देने पर मान गये की प्रदेश कार्यकारिणी और वरिष्ठ नेताओ की बैठक कर इसपर बिचार हो जाये तो मैने कहा की देर क्यो हो तत्काल बुला लिया जाये और शायद एक हफ्ते बाद ही वो बैठक बुला ली गई लोहिया ट्रस्ट के हाल मे ।वहां मैने सबसे पहले अपनी बात रखा और तर्क की क्यो तत्काल बाहर निकल कर सक्रिय हुआ जाये और आगरा से ही क्यो । तब कुछ लोगो ने कहा की आगरा मे पार्टी नही है और पार्टी का कोर वोटर नही है कार्यक्रम फ़ेल हो सकता है तब मैने आश्वस्त किया कि आगरा मंडल का कार्यकर्ता सम्मेलन रखा जाये और बाकी सब मुझ पर छोड दिया जाये और उसी मे मैने प्रस्ताव रख दिया कि पार्टी चलाने के लिये 5 से 10 लाख तक की थैली भेंट करने की कोशिश भी की जाये और कार्यक्रम तय हो गया सम्भवतः अगस्त की कोई तारीख तय हुयी ,हम लोग मई अन्त मे चुनाव हारे थे ।
मैं वापस आगरा आया और सबसे पहले कागज पर योजना और अनुमानित बजट तथा अपना कार्यक्रम बनाया और दूसरे दिन ही आगरा का सर्किट हाउस तथा सूर सदन हाल बुक कर दिया तथा बाहर पार्किंग मे लगाने के लिये पंडाल और बैठने का इन्तजाम की भीड ज्यादा हो तो अव्यवस्था न हो और अपने एक दोस्त के बात कर गैलरी से बाहर के पंडाल तक देश के किसी भी कार्यक्रम मे पहली बार क्लोस सर्किट टीवी का इस्तेमाल की व्यव्स्था भी । शाम को आगरा मे जो थोडी बहुत पार्टी थी जनता दल टूटने के बाद जिसमे अधिकतर मेरे द्वारा जोड़े गये 8/10 लडके थे उनकी मीटिंग किया और सबको काम अभी से बता दिया । अपने एक दोस्त के होटल मे आने वाले लोगो के लिये 5000 पैकेट खाना बनाने की बात तय कर दिया ।
आगरा के अन्य नेताओ से कह दिया की मुलायम सिंह के आगरा आने से लेकर जाने तक ठहरना , पूरे सम्मेलन का खाना, शहर भर मे स्वागत द्वार और स्वागत , वाल राइटिंग, गाडियाँ इत्यादि सब मेरी जिम्मेदारी और बाकी लोग थैली के लिये धन एकत्र करे ।
इसके बाद मैं मंडल भर के सभी जिलो के दौरे पर निकल गया सभी जिला अध्यक्षो को बता कर और तब तक मंडल बटा नही था अलीगढ़ भी इसी मे था । सभी जिलो मे मैं सम्मेलन और थैली के लिये माहौल बनाने मे कामयाब रहा ।
सम्मेलन से दो दिन पहले से पूरे महात्मा गांधी मार्ग पर वाल राइटिंग मैने खुद भी किया ,खम्भो पर चढ़ चढ़ कर झंडे और बैनर मैने खुद भी बाधे ताकी कार्यकर्ताओ मे उत्साह रहे क्योकि वो धन का नही जन का जमाना था और राजनीती के ये सब काम कार्यकर्ता ही करते थे और हम जैसे लोग तो छात्र राजनीति से ही करते आ रहे थे ।
कार्यक्रम के एक दिन पहले कई दिनो से आता मुलायम सिंह जी का फ़ोन फिर आया कि अभी भी कार्यक्रम रद्द कर दीजिये फेल जो जायेगा और मैने कहा की आप ट्रेन पकड़ लो रात को सुबह मैं स्टेशन पर मिलूंगा ।
उस दिन सुबह 4 बजे मैने कार्यक्रम स्थल की व्यवस्थाये देखा और खुद मंच के पीछे का बडा बैनर टंगवाया और फिर स्टेशन रवाना हो गया । मुलायम सिंह जी और साथ मे आज़म खान साहब आये थे । अपनी योजना के अनुसार पहले स्टेशन के सामने किले के गेट पर अम्बेडकर मैदान मे बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्ति पर इन लोगो से माल्यार्पण करवाया और फिर सर्किट हाऊस पहुचा कर ये कह कर घर आ गया कि आप लोग तैयार हो जाइये और लोगो से मिलिये 10 बजे  निकलेंगे हम लोग ।
घर आया थोडी देर लेटा पर नीद कहा तो उठ कर नहा धोकर तैयार हो गया और 9,45 पर फिर सर्किट हाऊस पहुच गया ।
हम लोग बड़े काफिले के साथ वहाँ से निकले और महत्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषो की मूर्तियो पर माल्यार्पण करते हुये काफिला महात्मा गांधी मार्ग पर निकला जिसपर समाज के सभी समाजो तथा धर्मो की तरफ से अलग अलग चौराहो पर स्वागत द्वार पर स्वागत हुआ तथा दो स्थानो पर मुलायम सिंह जी को सिक्को से तौला भी गया और जब हम लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुचे तो बाहर ही बडा हुजूम था । अंदर गये तो एक एक सीट पर किसी तरह अटक कर दो दो लोग बैठे थे और सारी सीढियां ही नही बल्की मंच के सामने का खाली स्थान भी भरा था और मंच पर भी तिल रखने को जगह नही थी क्योकि सारे पूर्व और वर्तमान सांसद , विधायक , सभी प्रमुख पदाधिकारी तथा अध्यक्ष इत्यादि मंच पर आ गये थे और मेरे तथा पड़ोस मे रहने वालो के बच्चे भी जबकी मेरे प्रोफेसर पिता तथा पत्नी इत्यादि भी नीचे कार्यकर्ताओ मे बैठे थे ।
दो बात का जरूर उल्लेख करना चाहूँगा कि  मैने अपने कार्यकर्ताओ से कहा था कि जिसकी जहा जिम्मेदारी है वही रहेगा यहा तक की मुलायम सिंह भी सामने आ जाये तो नही हिलना है और बाद मे मैं सबको मिलवाउंगा और साथ फोटो भी करवाउंगा , दूसरा मैने ऐसी व्यव्स्था किया था कि पानी के लिये बस इशारा करिए आप तक पहुच जायेगा और खाने के समय भी सब अपनी जगह ही रहे वही अधिक से अधिक 15 मिनट मे सबको खाना और पानी मिल जायेगा और वही हुआ भी किसी कार्यक्रता ने अपना काम नही छोडा और सारा वितरण मेरी योजना अनुसार ही हो गया ।
मुलायम सिंह जी चाहते थे की अपने स्वागत भाषण और राजनैतिक भाषण के बाद कार्यक्रम का संचालन मैं ही करू पर मेरी ये कमी है की कोई जिम्मेदारी लेने के बाद उसके हर पहलू पर निगाह रखना तथा समय पर व्यवस्थित रूप से चीजो करवा लेना मेरी बेचैनी मे शामिल रहता है इसलिए भाषण के बाद और पूरे कार्यक्रम का ब्योरा देने के बाद मैने पूर्व सिचाई मंत्री बाबू राम यादव से संचालन का आग्रह किया और फिर बाकी सब व्यवस्थित करने मे लग गया जिसका जिक्र ही अखबारो ने किया की सी पी राय मंच पर रहने के बजाय लगातार भाग दौड करते रहे ,करता भी क्यो नही कोई बडी और प्रशिक्षित तथा संपन्न पार्टी तो थी नही ,साधन विहीन ,कमजोर पार्टी थी और आगरा मे सब नये नौजवान थे मेरे जोड़े हुये तो लगता था कही परेशान न हो जाये ।
हा दो दिन पहले लगातार 2/3 घंटे बैठ कर मैने राजनीतिक प्रस्ताव , आर्थिक प्रस्ताव इत्यादि लिख कर प्रिंट करने भेज दिया था और फ़ाईल और कार्यक्रम के पहले वाली रात कई लोग फाइल बनाने मे लगे रहे मेरे घर के बाहर बनी झोपड़ी मे बैठ कर जिसमे कुछ लोग बाद मे बहुत महत्वपूर्ण हो गये और मेरे प्रोफेसर पिता रात को उन सभी को बना बना कर ट्रे भर भर चाय पिलाते रहे और साथ बैठ काम भी करवाते रहे और घर के अंदर मेरी पत्नी और बच्चे भी क्योकि 5000 फाइल बननी थी ।
कार्यक्रम के प्रारंभिक औपचारिकताओ के बाद थैली भेंट होनी शुरु हुयी । वादा किया था कि 10 लाख की कोशिश होगी पर 5 तो होगा ही और भेट किया सब लोगो ने मिल कर 14 लाख जिसके लिये मैने पहले खरीदी अटैची जिसकी दुकान पास ही थी वापस भेज कर बडी अटैची मंगवाया और मथुरा के पंडित राधेश्याम शर्मा ने 50 ग्राम सोना भेट किया ।
दिनभर तमाम नेताओ का भाषण हुआ और अन्त मे मुलायम सिंह जी का नम्बर आया ।वो बहुत भावुक हो गये थे ऐसे स्वागत और कार्यक्रम से तो बोले कि मैं पहले भी कई बार आगरा आया हूँ , चौ चरण सिंह के साथ भी आया जब तीन विधायक थे तो कार्यक्रम रतन मुनी जैन इंटर कालेज मे हुआ था । मैं कल तक सी पी राय से कहता रहा की कैन्सिल कर दीजिये पर इनका आत्मविश्वास था और बोले की बस आप आ जाइये और आज सर्किट हाऊस से यहा तक हर चौराहे पर स्वागत हुआ । यहा भी इतनी भीड हो गई है को अंदर ,बाहर गैलरी और उसके बाहर का पंडाल भरा है और पहली बार मै ये देख रहा हूँ की बाहर वाले लोग भी सब लोग बाहर लगे टीवी पर सब कुछ देख और सुन रहे है । सी पी राय ने उतने अच्छे सब प्रस्ताव लिखे है और बहुत अच्छा सारा इन्तजाम किया है और अनुशासन के साथ सारा इन्तजाम ।
मेरी निगाह मे  यह कार्यकम भीड से ,प्रस्ताव से अनुशासन से , व्यव्स्था से और राजनीती के लिये सर्वश्रेष्ठ कार्यक्रम है और इसका श्रेय केवल सी पी राय को जाता है ।मैने सोचा था 5 लाख नही तो कुछ तो मिलेगा ही पार्टी चलाने को पर यहा तो 5 क्या 14 लाख रुपया और सोना भी मिला है । सी पी राय ने ये कैसे सम्भव किया इनसे बाद मे पूछूंगा पर पार्टी आज से फिर चल गयी और इसके लिये सी पी राय को याद रखा जायेगा ।
नेता के सामने भीड हो और सब अच्छा हो तो जोश तो आ ही जाता है ।जबरदस्त भाषण दिया मुलायम सिंह जी ने और उनके पहले आज़म खान साहब ने भी । काफी बडी संख्या मे नेता लोग बोले ।
सम्मेलन के बाद मैने सूर सदन के बाहर पोर्च से सार्वजनिक सभा को संबोधित करने का इन्तजाम पहले से ही कर रखा था तो मुलायम सिंह को पोर्च पर ले गया । ये बात उनको पहले से नही बताया था ।शाम करीब 5 बज रहा था एम जी रोड पर भीड का समय था और सभा के कारण बडा जाम लग गया ।
सभा के बाद मेरे निवास पर प्रेस से वार्ता और भोजन था । अपने निवास पर मैने कार्यकर्ताओ से उनको मिलवाया ।मुलायम सिंह जी गदगद थे और मेरे सभी कार्यकर्ता भी पर जब स्टेशन उनको छोड़ने गया अपने निवास से तब तक मेरे गले की आवाज मेरा साथ छोड चुकी थी पर तसल्ली इतनी थी की पार्टी को मैने फिर से रफ्तार दे दिया था धन से भी और आत्मविश्वास से भी और खासकर मुलायम सिंह जी का आत्मविश्वास लौट आया था जो बहुत जरूरी था और फिर हम लोग निकल लिये पूरे प्रदेश मे ।
मैने तो बस इमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया था ।
कुछ छूट गया होगा तो वो आत्मकथा मे मिलेगा ।

बहस किसान बनाम पूंजीपति की

गाँव किसान का दर्द और बहस खेती बनाम पूंजी की ---- 
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार 

इस समय किसान के खेत का आलू और सब्ज़ियाँ आने लगी तो कितना सस्ता मिल रहा है सब । उससे पहले व्यापारी के गोदाम का था तो आलू ही 50/60 मिल रहा था जिसे गरीब की सब्ज़ी कहते है । यही हाल सब चीज़ का है । किसान पूरी मेहनत से पैदा करता है पर उसके पास भंडारण की क्षमता नही है और 80 प्रतिशत किसान छोटे या सीमान्त किसान है जो सिर्फ उतना ही पैदा कर पाते है की वो खा ले और बाकी बेच कर उसे तत्काल कर्ज चुकाना होता है ,इलाज करवाना होता है जो वो रोके होता है फसल तक ,जरूरी कपडा हो या खेती का सामान या फिर गाय भैस सब उसी मे से आगे पीछे करना होता है ।बच्चो की किताब हो या बेटी को शादी सब करना होता है कुछ नकद और कछ उधार जो उसे गाँव या पास के व्यापारी से मिल पाता है खेत और फसल की गारन्टी पर पैसे की सीमा के अनुसार ।इन्ही तत्कालिक जरूरतो के कारण उसे खाने लायक रोक कर अपनी फसल तत्काल बेचना होता है और इसी बात का फायदा उठाता है व्यापारी ।
एक बार मैने प्रैक्टिकल करने के बाद लिखा था जब मैं आगरा की  मंडी के पास एक कालेज मे गया था तो सोचा की जरा सेब का भाव देखा जाये तो वहाँ 5 किलो या ज्यादा लेने पर सेब 40 रुपया किलो मिल रहा था । मंडी के बाहर की ठेल वाले से पूछा तो 60 हो गया था । फिर केवल 1 किलोमीटर दूर सिकंदरा पर खड़ी ठेल से पूछा तो 80 हो गया ।जब और आगे खन्दारी पर पूछा तो 90 और 100 था और जब शहर के अंदर हरी पर्वत चौराहा पर पूछा तो 120 से कम करने को तैयार नही था ।जिस समय आलू पैदा होता है किसान के खेत से 2 रुपए किलो तक चला जाता है और कभी कभी बोरे की कीमत मे ।कभी तो ये हाल हो जाता है कि किसान वही बाहर आलू फेंक देता है की जो ले जाना चाहे वो ले जाये ।गन्ने के साथ भी हम अक्सर देखते है की गन्ना खेत मे ही जला देते है और टमाटर सड़क पर फेंकते दृश्य भी देखे है ।
पर कभी बिस्किट , कोक ,या फैकट्री की चीजे फेंकते तो नही देखा न दवाई केचप या चिप्स ।और अगर कोई कारण फेकने का आया तो मालिक खुद फैक्ट्री मे आग लगवा कर उससे ज्यादा इन्शीरेंस वसूल लेता है पर किसान के मामले मे इन्श्योरेन्स वाला 10 हजार करोड़ कमाता है और हजारो किसान आत्महत्या करते है क्योकि उनका इन्श्योरेन्स उनका वाजिब मुवावजा देता ही नही है ।
नेता बड़े बड़े वादे किसानो से करते है पर विपक्ष मे और सत्ता मे आते ही पूंजीपतियों के पाले मे खड़े हो जाते है इसलिए किसान बदहाल है वर्ना एक समय तक तो पूरा भारत इसी खेती से ही जिन्दा था और सोने की चिडिया था ।तब कहा थे कारखाने और पूंजीपति । 
यहा तक की लाक डाउन मे भी जब सब बंद था होटल कारखाने जहाज कारे और कपडे भी आल्मारी मे थे तो जरूरत सिर्फ खाने का अन्न , सब्जी दूध सभी को और जो बीमार थे उनको दवाई की पड़ी और किसान ने कोई चीज कम नही होने दिया ।जब मंदी का असर भी कही आता है तो कल कारखाने और दफ्तर लडखडाते है पर खेती उस समय भी देश और समाज को सहारा देती है थामती है और देश को डूबने नही देती ।पर इसका उतना ही उपेक्षित रखा गया और रखा जा रहा है जबकी अमरीका इंग्लॅण्ड जैसे देश खेती को भारी आर्थिक सहयता देते है ।

एक सवाल हमेशा से कचोटता है की जो लोग हमारे सामने जमीन पर रख कर थोडा सा सामान बेच रहे थे या साइकिल पर बेच रहे थे या छोटा मोटा लकडी का खोखा लगाकर बेच रहे थे वो देखते देखते बडी पक्की दुकान के मालिक हो गये ,बडी बडी कोठियो के मालिक हो गये या तक की फैक्ट्री और होटलो के मालिक हो गये और उनके परिवारो मे जितने लडके होते गये उनके उतने करोबार और कोठिया बढती गई ।जब सवाल करो तो कहा जाता है की उसने पैसा लगाया और मेहनत की ।पर किसान भी तो पैसा लगाये बैठा है और अधिकतर मामलो मे इन व्यापारियों से ज्यादा क्योकि किसान का खेत लाखो का है ।उसमें वो खर्च भी करता है बीज पानी खाद पर और दिन रात जाड़ा गर्मी बरसात उसमे पसीना बहाता है ।बिना जान की परवाह किये उसकी रखवाली करता है और कभी बाढ तथा कभी सूखा और कभी फसल तथा पशु की बीमारियो का सबसे ज्यादा रिस्क भी लेता है तो किस मामले मे वो व्यापारी से पीछे है ये सवाल सत्ताओ से भी है और समाज से भी ।उसकी फसल प्राकृतिक आपदा का शिकार होती है तो उसे नाम मात्र का मिलता है ।और बडा सवाल है की व्य्पारी के बच्चे बढे तो व्यापार और घर बढ़ जाते है पर किसान के खेत और मकान छोटे होते जाते है क्यो ? 
किसी किसान को बड़ा होते नही देखा अगर उसके परिवार के कुछ लोग नौकरी या किसी व्यापार मे लग गये तभी उसका जीवन थोडा ठीक होता है वर्ना उसका बेटा फौज मे जाकर जान हथेली पर लिये सिर्फ इसलिए खड़ा रहता है किसी भी परिस्थिती मे सीमा पर ताकी साल के अन्त मे वो कुछ पैसे बचा कर गाँव ले जाये जिससे घर की कुछ जरूरते पूरी हो सके ।
जाह तक फसल कही भी बेचने का सवाल है वो नियम पहले से है पर ८० % से ज़्यादा किसान अपने ब्लॉक या पास की मंडी के बाहर कभी नही जाते क्योंकि उतना उत्पादन ही नही है । 
उनके निकट मंडी बना और हर हाल में उनकी उपज ख़रीद कर और स्वामीनाथन आयोग के अनुसार मूल्य देकर तथा उद्योग की तरह सुरक्षा और इंश्योरेंस देकर ही उसका भला किया जा सकता है तथा उसे कृषि में और गाव में रोका जा सकता है 
गांधी जी की दृष्टि आज भी ठीक है की आसपास के २० गाँव अपनी ज़रूरतें वही से पूरा करे इसके उनका मतलब उन सब चीज़ को भी वही डेवलप करने से था जिनकी ज़रूरत पड़ती है स्कूल कालेज अस्पताल तथा स्थानीय उपज से जुड़े छोटे उद्योग भी ।
नौकरी वालो की तन्ख्वाह पिछ्ले 25सालो मे 250 गुना तक बढी और पूंजीपतियों की संपत्ति तो हजारो गुना पर किसान के फसल की कीमत 19या 20भी मुश्किल से कुछ चीजो की ।
व्यापारी का लाखो करोड़ का कर्जा सरकार माफ कर देती है या बट्टे खाते मे डाल देती तो किसान को भी उतनी ही मदद क्यो नही देती ।नौकरी बाले के बच्चो को अगर पढाई का मिलता है, घर मिलता है उसका मेन्टीनेंस मिलता है, फ़्री बिजली मिलती है ,मेडिकल मिलता है घूमने का पैसा मिलता है तो किसान के बच्चे की पढाई और उसका इलाज क्यो न मिले ? उसको फ़्री नही तो सस्ती बिजली और डीजल क्यो न मिले , उसकी बेटी की शादी की सहयता क्यो न मिले ? उसको चाहे 10 साल मे एक बार ही सही घर ठीक कराने के पैसे क्यो न मिले और प्राकृतिक आपदा आने पर उसका कर्जो माफ क्यो न हो ? 
भारत का मूल गाँव , किसान और खेती है उसे मजबूत करना ही होगा  गांव को शहरो की बराबरी पर विकसित करना ही होगा ।क्या ये तय नही हो सकता कि जो शहर मे एक स्कूल कालेज ,अस्पताल और फैक्ट्री बना रहे है उन्हे उस जिले के गाँव मे भी बनाना ही होगा और उसके लिये लाल फीताशाही खत्म कर , पुलिस का आतंक और शोषण खत्म कर उसे गाँव मे लोगो को सुरक्षा का एहसास कराने की मूल जिम्मेदारी देकर तैयार करना होगा जिससे ये सब खोलने वाले तथा उसमे काम करने वाले शौक से गांवो मे जाने को तैयार हो ।
बहस बडी है पर समय भी बडा है तो कोई तो होगा जो बडा सोचेगा महात्मा गांधी के संदेश समझेगा और भारत को कर्जो से लड़े तथा जनता के पैसे से बडा आदमी बने लोगो का देश नही बल्की खुशहाल गाँव और खुशहाल लोग वाला भारत बनाएगा ।
पर पहले उन सवालो का जवाब ढूढना होगा और सत्ता को जवाबदेह होना होगा जो ऊपर उठे है ।

राज नारायणजी

संघर्ष को समर्पित एक कबीर की फकीरी जिंदगी का नाम था  ;;राजनारायण ;

                           

नेताजी के नाम से प्रसिद्द राजनारायण जी वही जिन्होंने देश का इतिहास बदला अजेय प्रधानमंत्री को पहले कोर्ट में हरा कर और फिर वोट से हरा कर ,वाही राजनारायण जिनको पढ़े बिना कानून की पढाई पूरी नहीं हो सकती ,वाही राजनारायण जिनको जाने बिना समझा ही नहीं जा सकता है लोक तंत्र के सही मायने को ,वाही राजनारायण जिन्होंने देश में लोकतंत्र के विपक्ष को मायने दिया बल्कि एक समय खुद प्रतीक बन गए थे विपक्ष के ,वाही राजनारायण जिन्होंने एक समय सरकारों को अपने हिसाब से उल्टा पुलटा | वे हर वक्त केवल जन और जनतंत्र की सोचते थे जागते हुए और मुझे लगता है की सोते हुए भी । लखनऊ की दो घटनाये उनके आम जन की चिंता और उसकी लड़ाई को दर्शाने के लिए काफी है । पहली -एक समय तक लखनऊ रेलवे स्टेशन के अन्दर रिक्शा नहीं जा सकता था । नेताजी अन्दर रिक्शे से जाने की जिद कर बैठे और मना होने पर उसी रिक्शे पर खड़े होकर भाषण देने लगे । मजमा जुटने लगा हजारो की भीड़ लग गयी रास्ते  बंद हो गए ,लोगो की ट्रेन छूटने लगी पर नेताजी कहा मानने वाले थे । जब सरकार ने रिक्शे को अन्दर जाने की इजाजत दे दिया तभी उनका वो तात्कालिक आन्दोलन समाप्त हुआ और आज सभी स्टेशन में रिक्शे से जा सकते है ।दूसरा - ऐसा ही उनका रिक्शा आन्दोलन राजभवन में प्रवेश को लेकर हुआ और फिर सरकार को झुकना पड़ा तथा वे राजभवन में रिक्शे से ही गए ।

इस तरह के आन्दोलनों के वर्णन से पूरा ग्रन्थ तैयार हो सकता है ।उन्हें आज की तरह अच्छाई ,बुराई ,फायदा ,नुक्सान सोचने की आदत नहीं थी । जहा भी जन तकलीफ में दिखा या कोई बात जन के खिलाफ दिखी ,जहा भी जनतंत्र को खतरा दिखा या कोई कमजोरी दिखी राजनारायण जी वहा स्वतः मौजूद दिखते थे और जहा वो खड़े हो जाते थे वही आन्दोलन अपने आप पैदा हो जाता था ।

गडवाल का बहुगुणा जी का चुनाव हो या बाबू  बनारसी दास जी का  ,माया त्यागी कांड हो या चौधरी चरण सिंह जी के खिलाफ उनका चुनाव ,पंडित कमलापति त्रिपाठी जी के खिलाफ उनका बनारस का चुनाव हो या इंदिरा जी के खिलाफ रायबरेली का चुनाव राजनारायण जी की संघर्ष क्षमता ,नेतृत्व क्षमता ,आदर्श राजनैतिक सोच ,विरोधी के प्रति भी मर्यादा का पालन ,जीत और हार को सहज भाव से स्वीकार करने का गुण ,तमाम ऐसी बाते है जिनका आज अभाव दीखता है और लोग उनसे बहुत कुछ सीख सकते है ।

वे केंद्र सरकार के मंत्री बने तो सादगी की मिसाल ही नहीं पेश किया बल्कि ऐसा काम किया की रूस के प्रावदा ने लिखा की भारत में एक ही मंत्री है जो सचमुच समाजवादी फैसले कर रहा है । बेयर फूट डॉक्टर की उनकी योजना के द्वारा दूरस्त गाँवो में प्रारंभिक चिकत्सा की सुविधा पहुचाने के साथ लाखो को रोजगार देने का काम भी हुआ । चलते फिरते पूर्ण अस्पताल वाली गाड़ियाँ भी उनकी गरीबो और गाँवो को चिकित्सा सुविधा देने के उनकी चिंता और चिंतन को दर्शाती है ।

पंजाब के बटवारे के समय संसद में दिया गया उनका भाषण और उसमे आने वाले समय में आतंकवाद और अलगाववाद के सर उठाने की चिंता उनके दूर तक देख सकने वाली क्षमता  दिखती है ।जनता सरकार बन जाने पर इंदिरा जी को पूर्व प्रधानमंत्री होने और स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते उचित सम्मान और निवास तथा सुरक्षा देने के बारे में मंत्रिमंडल में कही गयी बातें उनके बड़े दिल और लोकतंत्र के प्रति आस्था को को दिखाती है जब उन्होंने कहा की न्यायलय इंदिरा जी के साथ क्या करेगा ये उसका काम है पर हमारी सरकार को उनके साथ वो करना चाहिए जो हम अपने लिए सही समझते है । उन्होंने यहाँ तक कह दिया था की यदि उन्हें दिल्ली में निवास नहीं दिया तो उन्हें तो केवल एक कमरे की जरूरत है ,वे अपना मंत्री वाला बाकी  घर इंदिरा जी को दे देंगे । ये एक बडा सोचने और आगे का राजनीतिक व्यव्हार तय करने वाले नेता का वक्तव्य था ।उनकी बात नहीं मानी गयी और तत्कालीन गृहमंत्री अपने काम पर ध्यान देने के स्थान पर केवल इंदिरा जी के पीछे पड़  गए और उसका जो परिणाम सामने आना था आया ,वर्ना जानने वाले जानते है की राजनीती की दशा और दिशा कुछ और होती ।

एक किसान नेता और सचमुच जनाधार वाले नेता को प्रधानमंत्री बनाने का उनका सपना और संकल्प जूनून तक चला गया जब बिना जनधार वालो ने जनधार वालो को अपमानित करना शुरू किया और देश अपने तरीके से हांकने का प्रयास किया । उनका विद्रोही स्वाभाव और उग्र हो गया जब षड़यंत्र द्वारा गरीबो के नेतृत्व को प्रदेशो में पदस्थ करने की मुहीम चली । उन्होंने आगे आने वाले समय की गुप्त चुनौतियों को देखा उसकी जड़ पर हमला करना शुरू कर दिया जब आधे लोग सत्ता में आये और दल में आये आधो को आने वाले षड़यंत्र के लिए अलग छोड़ दिया गया ।

क्या क्या लिखूं ? क्या लिखूं की कैसे उनको जरा सा बीमार जान कर इंदिरा जी पैदल ही उनके घर तक चली आई थी प्रधानमत्री होते हुए ,क्या लिखूं की संजय गाँधी को उन्होंने संघर्ष का क्या मंत्र दिया ,क्या लिखूं की उन्होंने ऐसे तमाम लोग जिन्होंने अपने शहर नहीं देखे थे उन्हें प्रदेश और देश की राजधानी दिखा दिया ,क्या लिखूं की देश के कानून की पढाई करने वाले और अदालत में जाने वाले राजनारायण जी को पढ़े बिना काम नहीं चला पाएंगे ? क्या लिखूं की अपने को संसदीय दल का नेता चुन लिए जाने के बाद एक दिन पहले तक उनकी लानत मलानत करने वाले को उन्होंने नेता चुनवाया और प्रधानमंत्री बनवा दिया ? क्या ये लिखूं की उनकी बात मान ली गयी होती और इस्तीफ़ा नहीं देकर सदन चलाया गया होता तो राजनीती कुछ और होती ? क्या ये लिखू की वो भी जाति की राजनीती कर रहे होते तो जिंदगी भर संसद में रहे होते पर इतिहास नहीं रचा होता । क्या ये लिखूं की इतने बड़े नेता जिसने दिल्ली को पलटा  ,प्रदेशो के नेतृत्व तय किया उनके बच्चो को कोई नहीं जानता  था ,या ये लिखू की जब उनका दल कमजोर हो गया था और उनके एक बेटे ने मनीराम बागड़ी से कहलवाया की टाइप और फोटोस्टेट मशीन उसे दे दिया जाये तो उसका खर्च चल जायेगा तो नेताजी ने जवाब दिया की पार्टी का है पैसा जमा कर दो ले जाओ ,क्या क्या बताऊ ?

जहा तक व्यक्तिगत अनुभव का सवाल है तो नेताजी की केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद बिना स्थानीय प्रशासन की जानकारी के मुझ जैसे किसी भी कार्यकर्ता के घर अचानक पहुँच जाते थे की चाय पिलाओ और चलो कही चलना है । आन्दोलन में 20 जानवरों को लाठी चार्ज होता है शाम को जेल जाते है और 21 जनवरी को सुबह 10 बजे नेता जी दिल्ली से चल कर आगरा की जेल में हाजिर है ।104 बुखार में दवाई लेकर मेरी शादी की पार्टी में खड़े है और लोगो से मिल रहे है । मेरी बेटी के पैदा होने पर निमत्रण देने पर कहते है की मै  व्यस्त हूँ कर्पूरी ठाकुर और सतेन्द्र नारायण सिन्हा की पंचायत की जिम्मेदारी चंद्रशेखर जी मुझे दिया है और पार्टी वाले दिन केवल आधे घंटे के लिए दलबल को लेकर वो पहुँच जाते है । कभी नहीं लगा की उनसे कोई पद मांगे ,वैसे ही बड़ी ताकत महसूस होती थी । देश में कही भी हो लगता था की राजनारायण जी साथ खड़े है किसी से डरने की जरूरत नहीं है । ऐसा हुआ भी जब हैदराबाद में कोई दिक्कत आई पर बस एक फ़ोन किया और समस्या ख़त्म । इतने बड़े संबल ,इतने बड़े लड़ाके  ,इतने बड़े और सच्चे समाजवादी ,इतने बड़े दिल वाले ,इतने बड़े राजनैतिक भविष्यवक्ता ,लोकतंत्र और सिधान्तो के इतने समर्पित इंसान और भारत के लोकतंत्र को मायने देने वाले महामानव को मेरा शत शत नमन ।