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मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

आगरा की सड़को से स्कूटर रिक्शा हटा दिए गए है ।जनता को बहुत राहत हो गयी है चौबीसों घंटे जाम से राहत । ये स्कूटर वालो ने नर्क बना रखा था शहर को । 1 की जगह चार बिना लाइसेंस के चलते थे और चौराहों को घेर कर लोगो का समय और पेट्रोल बर्बाद करते थे ।प्रशासन को अच्छा फैसला है ।बधाई ।

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

प्रधानमंत्री जी की बातो पर भरोसा करना चाहिए और उन्हें समय तथा विश्वास भी देना चाहिए ।1991 यदि उन्होंने दोहराया तो निश्चित ही देश हित में चमत्कार होगा ।ऐसा लगता है की उनमे इतिहास के प्रति जवाबदेही का जबरदस्त अहसास पैदा हो गया है । जब किसी में इतिहास के प्रति ये अहसास पैदा होता है तो वो इतिहास बनाता है ऐसा इतिहास बताता है ।

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

क्या भारत की संसद को एक सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कर बापू यानि महात्मा गाँधी को नेताजी द्वारा दिया गया रास्ट्रपिता का दर्जा दे देना चाहिए । दुनिया ने जो मान लिया उसे सांवैधानिक स्वरुप देना क्या अपने देश को गौरवान्वित करना नहीं होगा । वैसे कुछ नासमझ भी यहाँ बोलने की कोशिश करेंगे । उचित ये है की वे दुनिया के महानतम को मान न दे सके तो यहाँ कुछ न कहे ,अन्यथा मै उन सभी को ब्लोक कर दूंगा । ये मेरे सहित दुनिया के करोडो लोगो की भावना का सवाल है ।

बुधवार, 5 सितंबर 2012

आगरा प्राइवेट कंपनी टोरंट के खिलाफ उसके वादा खिलाफी और इस्ट इंडिया कंपनी जैसी उत्पीडन और लूट वाली हरकतों के कारण आंदोलित है । जो विपक्ष में रहता है  वो इस कंपनी के खिलाफ बोलता है और सत्ता में आते ही इस कंपनी के साथ हो जाता है । बिजली व्यवस्था इस कम्पनी को देने से लगा था की इससे प्रदेश को भी फायदा होगा और जनता को भी । परन्तु प्रदेश को करोडो का चूना लग रहा है ये विभागीय औडिट से सामने आया और जनता को जो  सपने दिखाए गए थे वे पूरी तरह झूठे साबित हुए । जिनके बिल आते थे 100 रूपया उनके 150 से 200 तक हो गए । वादा किया गया था की जेनरेटर ,इन्वेर्टर और स्टेब्लायिजर की जरूरत ख़त्म हो जाएगी पर सब कुछ ज्यो का त्यों है ,कुछ नहीं बदला । बल्कि बिजली ज्यादा जाती है ,और कंपनी का एकमात्र उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा पैसे वसूलना है न की कोई सुविधा देना और सुधारना ।
इसलिए जनता आंदोलित है । अब देखना है की जनता जीतती है या कंपनी ? सरकार जनता के साथ खड़ी  होती है या गोपनीय कारणों से कंपनी के साथ ?पर जनता में भारी रोष है कटौती से ,ज्यादा बिल से ,उत्पीडन से और कंपनी के लोगो के दुर्व्यवहार से और नेताओ के बदलते हुए आचरण से ।
देखते है की जनता का ये गुस्सा कहा तक जाता है और क्या गुल खिलाता है ?/??????

रविवार, 26 अगस्त 2012

देश के सबसे बड़े घोटाले --ब्रेकिंग न्यूज़ ----- अगर भारत का कारगिल नहीं होता तो 2 लाख करोड़ बचाता ,ब्रेकिंग न्यूज़ ,बड़ा घोटाला ,अगर बंगला देश का युद्ध नहीं होता तो तीन लाख करोड़ बचाता ,अगर 1965 का युद्ध नहीं होता तो चार लाख करोड़ बचता ,,ब्रेकिंग न्यूज़ बड़ा घोटाला ,अगर देश में स्कूल ,अस्पताल ,दफ्तर सड़के ,पुल बेराज बिजलीघर और सभी कुछ प्रधानमंत्री खुद खड़े होकर बनवाते और सारे मंत्री ,एम् पी ,एम् एल ए सारे अधिकारी और कर्मचारी खुद खड़े होकर बनवाते और खुद भी मजदूरी करते तो करोडो ख़रब बच सकते थे ,,ब्रेकिंग न्यूज़ ,देश का सबसे बड़ा घोटाला ,सब चोर है हम भी और आप भी और बाकी सब भी ---- चलो रामलीला मैदान या जंतर मंतर
वैसे आज मै सिकंदरा { आगरा } शहर का ही हिस्सा गया था वहा से सेब खरीदा 50 रुपये किलो ,थोडा और शहर के अन्दर आया तो 100 और थोडा और अन्दर 120 से 150 हो गया आज ही ,ये भ्स्ताचार है या नहीं ? लडके और लड़की में फर्क भ्रस्ताचार है या नहीं है ? औरत आदमी का फर्क भ्स्ताचार है या नहीं ? जाती के आधार पर धर्म के आधार पर नफ़रत भ्स्ताचार है या नहीं ? अपने बच्चो को केवल घूस वाली नौकरी दिलाने की कोशिश भ्रस्ताचार है या नहीं है ? बिना दहेज़ के शादी नहीं करना भ्रस्ताचार है या नहीं है ,टीचर द्वारा नम्बर बढ़ाना ,या गुस्से में फेल कर देना ,डॉ द्वारा महँगी दवाई लिखाना ,महंगे जाँच करवाना ,कमीशन खाना भ्स्ताचार है नहीं ,व्यापारी द्वरा लूट और मिलावट ,जमाखोरी ,मुनाफाखोरी भ्स्ताचार है या नहीं ?गलत तरीके से सड़क पर चलन ,कानूनों का पालन नहीं करना ,कही भी थूक देना और कुछ भी करने खड़ा हो जाना ,कूड़ा कही भी फेंक देना ,दूसरो की बहन बेटियों को छेदना और मौका लगता ही कुछ भी कर बैठना ,रिश्तों को गन्दा करना क्या भ्स्ताचार है नहीं ? दोस्तों बहस पूरी करे । जरा अपने गिरेबान में झांक कर देखें की आप खुद कितने इमानदार है और देश के लिए समाज के लिए सचमुच क्या करते है है और जब वोट डालने जाते है तो क्या सोच कर वोट डालते है बस फिर तय हो जायेगा की लड़ाई कहा से शुरू हो यदि सचमुच हम देश और समाज बदलना चाहते है ।बाकि जिसके जो चस्मा चमड़ी में ही चिपक गया है तो कोई बात नही गाली गाली खेलते रहे और देश और समाज जाये भाड़  में ।

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

क्या सचमुच कभी आगरा करवट लेगा

                            न जाने कितने करोडो खर्च होने के बाद भी आगरा में जब बरसात होती है तो तमाम प्रमुख चौराहे औए अच्छी कालोनी से लेकर बस्तियों तक बाढ़ जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है । जीवन नरक हो जाता है । इससे पहले गर्मी तेज होने पर पीने का पानी या तो नहीं मिलना या बहुत गन्दा बीमार करने वाला मिलता है । रोजमर्रा सड़क पर जाम की स्थिति है । जब बच्चो की छुट्टी होती है तो वे भी घंटों फंसे होते है ,दिल्ली की तरह उस समय कही भी ट्रैफिक पुलिस वाला व्यवस्था करता नहीं दीखता है । सडकों पर खड़े ट्रैफिक पुलिस वाले सड़क पर निर्बाध लोग चलते रहे इसके बजाय  थोड़े से रुपये के लिए खुद जाम लगवा देते है ।उनकी रूचि ट्रैफिक को चंलने से ज्यादा किसी गाड़ी को पकड़ने में होती है जाम लगी सड़क पर । दुनिया में अन्य स्थानों पर टूरिस्ट प्लेस पर बाहर से आये लोगो से अच्छा व्यव्हार करना उन्हें मदद करना व्यवस्था का कर्त्तव्य होता है पर आगरा के पुलिस वाले से लेकर तरह तरह के दलाल टूरिस्ट को रुला देते है । बच्चे औरते परेशान  हो या किसी को उसी दिन घूम कर कही और जाना हो पर जब तक वसूली पूरी नहीं हो जाती यहाँ का पुलिस वाला गाड़ी रोके रहता है ।बिजली करोडो रूपया लेकर प्राइवेट कंपनी को दे दी गयी पर वो पहले से ज्यादा रुला रही है बिल से भी और अनुपस्थिति से भी ।आप अगल बगल किसी बड़े शहर में चले जाइये चीजें सस्ती है पर आगरा का व्यापारी सभी को और उनके पैसे को अपना मानते हुए प्यार से खूब मुनाफा कमाता है और आगरा की जनता बड़े दिल से मानते हुए की आखिर ये मुनाफा हमारे ही किसी भाई के घर में जा रहा है ,कोई बहस नहीं करता । सहर्ष स्वीकार कर लेता है सब कुछ ।
                             नेता बयान देकर या एकाध दिन प्रदर्शन कर सौदा पट जाने पर मस्त है । एम् पी ,एम् एल ए ,किसी के पास आगरा के लिए न तो दूरगामी सोच है न योजना है और न सपने है और जब ये सब नहीं है तो संकल्प की तो कल्पना ही नहीं की सकती है ।मेरे एक मित्र कहते है की आगरा की जनता बत--द है और उसका नेता बनना है तो गंभीर न तो बाते करो और न प्रयास बल्कि विशुद्ध बत --दे बनो । अब ऐसा लगता है इतने सालो में की यही सच है । बड़ी बात ये है आगरा कभी गुस्सा नहीं होता है अपने जरूरी मसलों पर हाँ होता है गुस्सा किसी धार्मिक मामले पर ,जातिगत मामले पर ,कुछ खास नाम वालों की मूर्तियों या तस्वीरों को कुछ हो जाये तो देखिये गुस्सा । थोड़ी ज्यादा हो जाये फिर देखिये गुस्सा ,सड़क पर कोई छू जाये फिर देखिये गुस्सा । बस इंसानी जरूरतों पर ,विकास के अधिकार पर अपने पैसे के हिसाब पर ,नेताओं ,अधिकारीयों ,कर्मचारियों के दुर्व्यवहार और बेईमानी पर उसे गुस्सा नहीं आता । आगरा बड़ी ख़ुशी से इन सबको झेलता ही नहीं है बल्कि इन सबका रोज स्वागत करता है ,माला पहनाता है ,दावते देता है और फोटो खिंचवा कर गौरवान्वित होता है ।
                              बिजली नहीं आती कोई बात नहीं अपनी व्यवस्था के अनुसार ,हाथ का पंखा ,जेनरेटर ,इन्वेर्टर इत्यादि लगाव लेता है ,पानी नहीं या गन्दा आत्ता है तो हैण्ड पम्प ,जेट ,आर ओ लगवा लेता है या पानी के बोतल लेने लगता है ।अपनी सुरक्षा के लिए या तो गार्ड रख लेता है नहीं तो कट्टा खरीद लेता है और ये भी नहीं तो घर की छत पर बोतले और इंटें इकट्ठी कर लेता है । कितनी सहनशक्ति है आगरा में ।जी हाँ आगरा में जो अधिकारी गलती से भी आ जाता है वो इस शहर से इतना प्यार कर बैठता है की फिर जाना ही नहीं चाहता ।आगरा के लोग भी उसके प्यार में अभिभूत हो जाते है और उसका गुणगान करते है । नेता कुछ न करे बस मन की बात करता रहे वो सर पर बिठा लेते है उसको । है न मेरा आगरा महान ?
                               क्या मेरा आगरा कभी सचमुच अंतरास्ट्रीय शहर बन पायेगा ? क्या कभी यहाँ के एम् पी ,एम् एल ए ,जिला परिषद के अध्यक्ष ,मेयर ,अन्य ऐसे लोग जो विभिन्न समाजों और वर्गों या संस्थानों  के ठेकेदार है अपनी पार्टी ,जाती धर्म ,अहंकार सब छोड़ कर इकट्ठे होकर आगरा के लिए खड़े हो पाएंगे ? क्या कभी आगरा सर उठा कर कह सकेगा ;मै आगरा हूँ जो सम्पूर्ण भारत की राजधानी रहा हूँ ,मै आगरा हूँ जहा दुनिया का एक आश्चर्य ताजमहल है ,मै आगरा हूँ बड़े बड़े शायरों ,लेखको,कवियों को पैदा करने वाला ,मै आगरा हूँ दुनिया में भारत की एक मजबूत पहचान ,जी हाँ मै आगरा हूँ और मुझे अपने होने पर गर्व है । मेरे शहर के नेता और अफसर और हम भी केवल बत --दी नहीं करते है बल्कि देखो हमने कर के दिखा दिया ,आगरा के अधिकारों को छीन  कर दिखा दिया ,हमने आगरा को अंतररास्ट्रीय शहर बना कर दिखा दिया । देखो इसके चारो  ओर हरियाली से घिरा हुआ चौड़ा रिंग रोड ,देखो स्वच्छ पानी की व्यवस्था ,देखो अनुशासन से बिना रुके चलता हुआ ट्रैफिक ,चारो ओर सफाई खूब सारी हरियाली । कोई लूट नहीं बस सबमे सुरक्षा का अहसास ।बाजार में लूट के बजाय  सही दामो पर बिकता सामान ,शहर के बाहर बड़ी बड़ी बिल्डिंगे जिनमे तमाम अंतररास्ट्रीय कम्पनियाँ है और उनसे मिला  हुआ लाखो को रोजगार । अब आगरा के लोग पढ़ने और नौकरी के लिए बाहर नहीं जाते बल्कि प्रतिभाएं आगरा आ रही है । जी हाँ ये देखो सर उठा कर बोलता हुआ मै हूँ आगरा ।

गुरुवार, 14 जून 2012

क्या किसी ऐसे व्यक्ति को महान हिन्दुस्तान का राष्ट्रपति होना चाहिए जिसे पूरी दुनिया में लोकप्रिय  कहा जाये ,ये माना जाये की पूरी दुनिया उसे जानती है और उसकी इज्जत करती है और उस व्यक्ति को अमरीका में दो बार जाँच के नाम पर जलील किया जाये और वो बेशर्मी से अमरीका में फिर भी चला जाये बजाय इसके की भारत की प्रतिष्ठा के नाम पर एयर पोर्ट से ही वापस आ जाते । क्या कहता है हिंदुस्तान ?

शनिवार, 9 जून 2012

पी डी टंडन के बाद सबसे शानदार जीत के लिए मुलायम सिंह जी ,अखिलेश और डिम्पल को हार्दिक बधाई ,उत्तर प्रदेश को बदलने और सही दिशा में बदलने के सपने देखते चलो ,सपनो को सिद्धांतों की कसौटी पर कसते चलो ,और सपनो को पूरा करने का संकल्प करते चलो फिर भविष्य आपका है । यदि विचलित हुए ,कान के कच्चे हुए ,चापलूसी पसंद हुए ,साथियों पर अविश्वाश करने का रोग पाल लिया ,सारा कुछ अपने ही कंधो पर ले लिया ,सारी  जिम्मेदारियां अकेले कंधे पर उठाने का अवगुण पाल लिया ,,गलत लोगो से घिरे ,गलत सलाहे मानी ,सही लोगो को पहचान कर सही स्थानों पर प्रयोग नहीं किया ,अपने साथियों के बजाय नौकरशाही पर ज्यादा विश्वाश करने का कम किया तो फिर अंधकार  ही अंधकार है .।पर मेरी स्वर्णिम भविष्य के लिए शुभकामनाये ।

शनिवार, 26 मई 2012

 आज कृष्ण को फिर से आना ही होगा| अब कब आयेंगे कृष्ण ?.वो कब मानेंगे की पाप का घड़ा भर गया ?कब मानेंगे की समाज व्यवस्था को गालियों  की संख्या सौ नही करोडो से ज्यादा हो चुकी है ?कब मानेंगे की एक द्रोपदी नही बल्कि रोज कही ना कही हजारो द्रोपदियों का चीरहरण हो रहा  है ?अब कब मानेंगे की चारो तरफ केवल पाँच  भाइयों का नही बल्कि करोडो  का अधिकार छीना जा रहा है ?केवल एक अभिमन्यू नही करोडो अभिमन्यू घेर कर धोखे से मारे जा रहे है |कब मानोगे कृष्ण की जमुना का पानी फिर जहरीला  हो गया है |तुम्हारे लोग उतने आजाद नही रहे की कही भी कुञ्ज गलियों में या उन खेतो और बागो में जब चाहे भ्रमण कर सके ,उन पेड़ो पर या उसके नीचे वैसे ही जा सके जैसें तुम्हारे साथ जाते थे  |तुम्हारी प्यारी नदी जिसके जहरीली हो जाने पर तुमने काली नाग का बध किया था ,वह और ज्यादा  जहरीली हो गयी है ,आदमी क्या पशु भी उसका पानी नही पी सकते है |तुम्हारा प्यारा दूध और मक्खन,उसमे भी लोग जहर मिलाने  लगे है |तुम तों सर्वज्ञ  हो तब तों निश्चित ही तुम्हे यह सब पता ही होगा |फिर भी संकट में घिरी द्रौपदी की तरह ही मै तुम्हे आवाज लगा रहा हूँ की अब तों आओ ना कृष्ण  |तुम सब जानते हो फिर भी आर्द्र स्वर पुकारेगा तों कुछ तों कहेगा ना ,कुछ तों शिकायत करेगा ना ,कुछ तों बताएगा ना और कुछ तों रूठेगा ना |कब आ रहे हो कृष्ण ?क्या तुम देख रहे हो उन लाखो लोगो को जो किसी भी उम्र के है ,पर तुम्हे बुलाने के लिए मीलो लम्बी परिक्रमा करते है ,कभी गोवर्धन की तों कभी वृन्दाबन और कभी बरसाने की |कुछ लोग तों पूरे ब्रज की परिक्रमा कर डालते है |ऐसे भी तों है लाखो जो तुम्हे बुलाने को जमीन पे लेटे लेटे ही पूरी परिक्रमा कर डालते है मीलो की |जो चलते है छाले तों उन सबके पैरो में भी पड़ते है ,पर कभी सोचा की वह छोटा सा बच्चा ,वह कमजोर या भारी  भरकम औरत या आदमी जो ठीक से चल भी नही पाते है ,जब जब वे लेटे लेटे ही पलटी मारते हुए तुम्हे बुलाने के लिए यह मीलो लम्बी परिक्रमा करते है तों उनका बदन कितना छिलता है और कितना दुखता है ?तुमने ही तों उस महाभारत के  मैदान में अपना विराट स्वरुप दिखया था और कही दूर आती हुई तुम्हारी आवाज ने कहा था की दुनिया में जो भी है  वह तुम हो या वह सब तुममे  ही समाहित है |सब तुम ही कर रहे हो |सब तुम ही हो तों जब इन सबके शरीर घायल होते है तों तुम भी तों घायल होते होगे |वह सारा दर्द तुम भी तों महसूस करते होगे फिर भी ???और कृष्ण  जब सब तुम्ही हो और तुम्ही करते हो तों तों यह बिलकुल अबोध बच्चो का अपहरण ,हत्या ?द्रौपदियो का केवल चीरहरण ही नही बल्कि बलात्कार ?ये सारी मिलावट ,जमाखोरी ,अन्याय ,जुल्म ,शोषण ,गैर बराबरी क्या यह सब तुम्ही करते हो ?नही तों तुम्हे अब  इन सब कृत्यों पर  क्रोध नही आता ?क्या तुम्हारा न्याय का संकल्प कुछ कमजोर हुआ है या तुमने उस युग में इतनी मेहनत कर दी की इस कलयुग में लम्बे विश्राम का फैसला कर रखा है |जरा एक बार देखो तों अपने ही विराट स्वरुप के इन हिस्सों को भी | अगर कही ऊपर रहते हो तों एक बार झांक कर देखो अगर नीचे रहते हो तों उठ कर देखो और अगर हर जगह रहते हो तों जाग कर देखो आँखें खोल कर देखो तुम्हारा भारत बिना तुम्हारे चाहे और रचे ही महाभारत में तब्दील हो चुका है |देखो हर घर  में महाभारत ,हर गाँव में महाभारत ,हर जाति  और धर्म में महाभारत |पहले एक महाभारत हुई था तों सब ख़त्म  हो गया था और युधिस्ठिर रोये थे की ऐसा राज्य लेकर क्या करूंगा ,तुम भी जरूर अन्दर अन्दर बहुत रोये होगे ,क्योकि चारो तरफ कटे फटे ,टुकड़े टुकड़े मरे और घायल तुम्ही तों पड़े थे |पर अब तुम्हारे भारत में चारो तरफ महाभारत हो रही है ,की चाहे कितने भी मर जाये पर राज हमारा हो ,चाहे कितने  भी मर जाये नकली दवाई  से लेकर तमाम तरह की चीजे खा  पी कर पर सारी दौलत हमारी हो |कितना बदल गया ना तुम्हारा भारत कृष्ण ?क्या तुम आओगे या आज के कंसो  ,आज के दुर्योधनो से तुम  भी डरने लगे हो ?कुछ तों बोलो कृष्ण !तुमने कहा था की मनुष्य केवल चोला बदलता रहता है और बदल कर फिर पृथ्वी पर जन्म लेता है |देखो जरा गौर से देखो कही तुम्हारी सबसे ज्यादा प्रिय राधा भी तों कही किसी रूप जन्म लेकर किसी मुसीबत में तों नही है ,कही उसके साथ कुछ बुरा तों नही हो रहा है |तुम्हारी जोगन मीरा ,तुम्हारा दोस्त जिसे उस युग में तुमने सब दे दिया था ,इस युग में किस हालत में है |देखो वह द्रोणाचार्य ,कृपाचार्य अपनी भूमिकाये बदल तों नही चुके |अर्जुन रक्षा के स्थान पर कुछ और तों नही कर रहे ?भीम की ताकत कही लोगो की मुसीबत तों नही बन गयी है ?उस युग में जूए में सब हर जाने वाले राजपाट और पत्नी तक वो युधिस्ठिर कही तुम्हारे भारत की पीठ में छुरा तों नही घोंप रहे है ?तुम्हे तों सब याद होगा कृष्ण क्योकि जब सब तुम्ही से आते है और सब तुम्ही में विलीन हो जाते है तों तुम तों हर समय सबको देखते ही रहते होगे कृष्ण ?कुछ तों बोलो कृष्ण ,एक बार फिर वही विराट स्वरुप  दिखाओ और बताओ की अब क्या होने वाला है ?ये सब जो हो रहा है ,इसका क्या मतलब है ?व्याख्या  तों करो कृष्ण !तुम्हारा गीता का उपदेश बहुत पुराना पड़ चुका है |वह अब भारत को दिशा नही दिखा पा रहा है कृष्ण |देखो सभी तुम्हारे तुमसे रूठ जायेंगे और तुम भी कैसे हो गए हो ?उस समय तों छोटी छोटी बातो पर प्रकट हो जाते थे कही भी ,किसी की भी मदद करने को किसी को भी उबारने  को |तों अब क्या हो गया है? कोई नाराजगी है तों वह बताओ ना !देखो सब अधीर है तुम्हारे लिए की तुम कब आओगे ,कब उबारोगे भारत को इन ना ख़त्म होने वाली महाभारतो से |तब तों एक दो मौको पर ही झूठ और छल का सहारा लिया गया था ,अब तों केवल झूठ और छल से ही सब हो रहा है |ऐसा लगता है कि तुम्हारे   बारे में  नई दृष्टि से देखने तथा नए ढंग  से सोचने की जरूरत  है . क्योकि  कृष्ण तुम्हारा  मतलब तों था की  वो जो सदैव दूसरो का था ,दूसरो के लिए था .जिसकी जन्म देने वाली माँ पीछे छूट गयी  और पालने वाली बाजी मार  ले गई  ,जिसके दोस्त की चर्चा कही बहुत ज्यादा हुई  और भाई पीछे छूट गया था ,जिसकी पत्नी या पत्नियों को उनकी दोस्त राधा  से बड़ी जलन हुई थी  और हो सकता है आज भी हो रही हो ,जो एक साथ सोलह हजार को अपना लेने की क्षमता  रखता था  ,जो सत्ता को चुनौती देने की क्षमता   रखता था  और जिसने उस युग में एक युद्ध छेड़ दिया था  की जो खा नही सकता उस भगवान को क्यों खिलाते हो ,शायद सूघ भी नही सकता ,इसलिए लाओ मै खा सकता  हूँ मुझे खिलाओ और उन सब को खिलाओ जिन्हें भूख लगती है .केवल चुनौती ही नही दिया था  वरन जब मुसीबत आई थी तों सभी की रक्षा में आगे आकर खड़ा हो गया था यह तुम्ही तों थे कृष्ण  | .मै सोचता हूँ की इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए तुमने  कैसे अपनी छोटी सी उंगली पर इतना बड़ा पहाड़ उठाया होगा ,तुम्हारी  उंगली दुखी तों जरूर होगी और शायद आज भी दुख रही है कही इसोलिये तों नही तुम नही  आ रहे हो की उंगली पर पट्टी बांध कर बैठे हो  .लेकिन ऐसा लगता है की  उस पहाड़ के उठाने से ज्यादा तुम्हारे  नाम पर किये जा रहे पापो के बोझ से तुम्हारा  सर और पूरा शरीर दुख रहा है .कितना पैदल  चले थे तुम  कृष्ण ,नाप दिया पूरब से पश्छिम तक भारत को ओर दो छोरो को जोड़ दिया ,परिचय करा दिया इतने बड़े हिस्से का एक दूसरे से.कभी सोचता हूँ की यदि जूआ नही होता रहा होता तों क्या होता ,यदि द्रौपदी की साड़ी  भरी सभा में नही खींची गई होती तों क्या होता ,इतिहास कौन सी करवट लेता.भारत ,महाभारत होता या फिर भी भारत में तब भी  महाभारत होता ,सवाल बड़ा है जवाब आसान नही है .लेकिन कृष्ण तुम  आज मंदिरों में  फूल मालाओ ,भारी भारी  कपड़ो और बड़े बड़े मुकुटों के नीचे दब कर कराह रहे हो ऐसा लगता है कभी कभी | .कृष्ण तुम्हारा मतलब ही था  बड़े दिल वाला ,दूसरो को अपनाने वाला ,हर अन्याय से संघर्ष करने वाला आज अपने अस्तित्व के लिए कही तुम्ही  जूझ रहे हो कृष्ण |तुम्हे इस  संघर्ष से निकलना ही होगा और आकर फिर से कहना ही  होगा ;रे दुर्योधन मै जाता हूँ ,तुझको संकल्प सुनाता हूँ ,याचना नही अब रण होगा .जीवन जय या की मरण होगा ;तुम्ही बताओ की   कैसे तुम्हारी  दुखती उंगली का दर्द घटे ,कैसे तुम्हारे  सर और शरीर का बोझ हटे और सम्पूर्ण कलाओं का मालिक कृष्ण ,संघर्ष और न्याय का प्रतीक कृष्ण स्वतंत्र होकर फिर हमारे  सामने हो |विराट स्वरुप दिखाता हुआ ,आज के सन्दर्भ में गीता का ज्ञान देता  हुआ ,और इस सभी  तरह की महाभारतों से निकाल कर फिर से भारत को भारत बनता हुआ |अब तों आ रहे हो ना कृष्ण ,कृष्ण तुम आओ ना ,देखो सुनो मीरा कही अब भी गा रही है  और मीरा क्या उसके स्वर में स्वर मिला कर सब गा रहे है :मेरे तों गिरधर गोपाल दूजो ना कोय :

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

अखिलेश जी को मायावती के बनाये पार्कों के बारे में कुछ इस तरह के निर्णय लेने चाहिए ---१- ये सभी पार्क ऊतर प्रदेश की जनता की जमीन पर और जनता के पैसों से बने है अतः जहा मुख्यमंत्री पत्थरों के रूप में पर्स लटकाए खड़ी है वहा वर्तमान मुख्यमंत्री नहीं पर सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों की मूर्तियाँ लगवाने का अधिकार उनके परिवारों और दलों को दे देना चाहिए और उन सभी के लिए वरिष्ठता के क्रम में स्थान निर्धारित कर देना चाहिए । २-- जहा काशीराम की मूर्ती लगी है उस हर जगह पर सभी दलों के अब तक के अध्यक्षों की मूर्तियों के लिए स्थान वरिष्ठता के क्रम में निर्धारित कर उनके परिवारों और दलों को अधिकार दे देना चाहिए । ३-- जहा जहा अन्य महापुरुषों की मूर्तियाँ लगी है वहा उत्तर प्रदेश के सभी महापुरुषों और उत्तर प्रदेश में रहने वाले सभी समाजों और धर्मों के महापुरुषों के लिए स्थान तय करते हुए उन महापुरुषों को मानाने वालों को लगाने का अधिकार दे देना चाहिए । ४-- महात्मा गाँधी की बड़ी और साथ ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोष ,भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,रामप्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खान इत्यादि की मूर्तियाँ सरकार को अपने खर्चे पर लगा देना चाहिए । ५-- इसके बाद बची हजारों एकड़ जमीन और वहा बने भवनों में विश्वविद्धालय ,मेडिकल कॉलेज ,हॉस्पिटल ,खेल विश्वविधालय . कृषि शोध विश्वविद्धालय ,जनता लाइब्रेरी ,महिला अस्पताल ,और फुटपाथ पर सोने वालो को आसरा इत्यादि बनवा देना चाहिए । पर ये सारे फैसले तुरंत लेकर जमीन निर्धारित कर उसकी दीवारें बनवा देना चाहिए जिससे जिन लोगो को अपनों की मूर्तियाँ लगवानी हो वो लगवा सके जैसे बिजली पासी ,झलकारी बाई महर्षि बाल्मीकी इत्यादि इत्यादि और अन्य जो जिन वर्गों के लिए हो । हा जो लोग भी मूर्तियाँ लगवाएं वे उनके स्थापना के समय अखिलेश जी और मुलायम सिंह जी को जरूर बुलाएँ । जहा तक लोहिया पार्क का सवाल है तो वो तो सचमुच ही केवल पार्क है जहा हजारों लोग रोज टहलने और स्वास्थ्य लाभ करने आते है । इस पार्क में तो केवल कुछ फुट में डॉ लोहिया जो स्वतंत्रता सेनानी थे ,जो चिन्तक थे ,जिन्होंने गरीबों को जगाया ,जिन्होंने सरकार में शामिल होना कबूल नहीं किया ,जिन्होंने जाती तोड़ो अभियान के लिए जीवन लगाया ,जिन्होंने सत्ता के विकेंद्रीकरण का पहला चिंतन दिया चौखंभा राज की अवधारणा द्वारा ,जिन्होंने पहली बार पिछड़ें मांगें सौ में साठ की अवधारणा दिया जिसमे दलित पिछड़े और सभी समाज की औरतों को न्याय देने की बात किया उनकी एक बहुत साधारण मूर्ति लगी है ।इस पार्क को बनवाने में हजारो करोड़ का घूस भी नहीं खाया गया है और शहंशाह बनने और दिखने की सनक भी नहीं दिखती । जब लगने लगेंगी सभी समाज के महापुरुषों की मूर्तियाँ तब मायावती का विरोध और देश में आग लग जाने का भाषण सुनने का इंतजार रहेगा मुझे भी और उत्तर प्रदेश की जनता को भी । जब इन जमीनों का उपयोग होने लगेगा आम आदमी की खुशहाली के लिए ,उनके बच्चों की पढाई के लिए या सभी  के इलाज के लिए तब क्या कह कर विरोध करेंगी विकास से और जनता से दुशमनी रखने वाली मायावती ये देखना और सुनना दिलचस्प रहेगा । जय हिंद ।

बुधवार, 28 मार्च 2012

                                        कांग्रेस क्यों हारी और समाजवादी पार्टी क्यों जीती                                                                                                                                                                  ( डॉ सी पी राय )                                                                                                                             राजनैतिक चिन्तक और स्तंभकार 
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                पांच राज्यों में चुनाव हुए जिसमे गोवा ,मणिपुर की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं था सिवाय उन प्रदेशों के लोगो के लेकिन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही थी या कम से कम ये तो मान ही रही थी की दलितों के घर रुकने और खाना खाने से राहुल गाँधी बहुजन समाज पार्टी के प्रति उनके जातिगत रुझान को बदल देंगे। शायद ये भी उम्मीद थी कि केवल राहुल गाँधी की शक्ल पर सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या बन जाएगी । उत्तराखंड और पंजाब के बारे में भी आश्वस्त थी कि हर पांच साल बाद सरकार बदलने वाला फार्मूला जारी रहेगा और कई नेता अपनी पीठ ठोंक सकेंगे ।पर पंजाब ने जहाँ  नए तरीके से सोचा वही उत्तराखंड ने भी कांग्रेस पर पूरा भरोसा नहीं दिखाया या अपनी पुरानी परंपरा को मजबूती से पकडे हुए कांग्रेसी नेताओं ने एक दूसरे को हराने के लिए पूरी शिद्दत के साथ काम किया और अपने नेता और पार्टी के प्रति पूरी वफ़ादारी का परिचय दिया ।ले देकर खुश होने को एक उत्तराखंड मिला था पर तथाकथित हाई कमान और योग्य पर्यवेक्षकों के कारण ,किसी सचमुच जमीनी नेता को न पनपने देने कि परंपरा और आसमान से आदेश और नेता देने कि परम्परा ने खुश होने और अपनी पीठ ठोकने का मौका ही नहीं दिया । ये अलग बात है कि जमीनी नेता का जमीर विद्रोह तक जाने को तैयार नहीं हुआ और सरकार बन गयी ।पर बहुत दिनों बाद एक नेता ने हाई कमान और पर्यवेक्षकों को आइना दिखाने का काम कर दिखाया ।
                                           पर मै उत्तर प्रदेश पर सीमित करना चाहता हूँ जो भारत का ह्रदय प्रदेश है और जो रोगग्रस्त हो गया है । इस प्रदेश में मायावती जी की सरकार पार्कों और पर्तिमाओं में दलित विमर्श ढूढती रह गयी दलितों कि झोपड़ियों में अँधेरा ही रह गया ,उसका बच्चा स्कूल भी नहीं जा पाया और दवा से भी वंचित रह गया ।गर्रीबों कि बस्तिया और गाँव विकास के उजाले को तरसते ही रह गए पर वह रे जाति के गौरव का जूनून ,पूरी ताकत से फिर भी जातियां कड़ी रह गयी अपने को छलने वालों के साथ पर निर्णय केवल एक जाति नहीं करती है बल्कि तठस्थ लोग करते है जो लगातार अच्छे कि तलाश में है ।बहन जी  बेईमान अधिकारीयों की कठपुतली बन कर रह गयी । अधिकारीयों ने बर्खास्त हुए यादव सिपाहियों के डर का ऐसा हौवा दिखाया कि मुख्यमंत्री परछाइयों से भी डरने लगी और कल्पना लोक में विचरण ,किसी तानशाह की तरह की सनक और नवाबों ,राजाओं की तरह जीने और भव्यता दिखाने इच्छा ने उन्हें जनमानस से दूर कर दिया । ये तो पूरी तरह तय हो गया था कि वो जा रही है और सौ का आंकड़ा नहीं छू पायेंगी ।मायावती भी उसी सिद्धांत का शिकार हो चुकी थी कि किसी नेता या दल का एक चेहरा और पहचान होती है और उससे थोडा बहुत विचलन तो कार्यकर्ता और समर्थक तथा तठस्थ लोग पचा लेते है पर १८० डिग्री पर उनका बदल जाना कभी भी नहीं पचा है और किसी का नहीं पचा है ,वो चाहे कांग्रेस हो ,भा ज पा हो या सपा, सभी ने इसका खामियाजा भुगता है और इस बार मायावती की बारी थी ।नेता सत्ता पाते ही पता नहीं क्यों भोल जाते है कि राजनीती पहाड़ कि चढ़ाई है जो झुक कर चढ़ी जाति है ,चढाने के बाद पैर जमा कर ही पहाड़ पर टिका जा सकता है वर्ना फिर बर्फ कि फिसलन है जिसे कोई नारा कोई सहारा खाई में जाने से रोक नहीं सकता और बर्फ कि फिसलन का शिकार नेता होते रहते है अपने अपने कार्डों से पर सबक से दूरी बना कर रखना उनकी फितरत है ।  मुझे लगता है कि केवल मायावती और उनके कुछ अधिकारीयों को छोड़ कर कोई ऐसा नहीं था जो ये नहीं जानता हो कि जनता में उनकी सरकार के खिलाफ जबरदस्त अंडर करेंट है ये अलग बात है की कांग्रेस के कुछ हवाई नेता बसपा नामक डूबते हुए जहाज की सवारी करने की बात कर राहुल गाँधी के मिशन को पलीता लगा रहे थे ।
                           सवाल ये है की कुछ साल पहले जिस सपा को जनता ने बुरी तरह हरा कर हटाया था उसी को भारी बहुमत से जिताया क्यों और नयी छवि और नयी राजनीति की बात करने वाले राहुल गाँधी की पार्टी कांग्रेस को हराया क्यों ? ये भी देखना होगा की भाजपा का तमाम हथकंडों के बाद भी और कुशवाहा वोटो के लालच में बाबुराम कुशवाहा को गले लगाने और फिर से राम मंदिर को मुद्दा बनाने ,उमा भारती को आयात करने के बाद भी पहले से भी बुरा हाल क्यों हुआ ? जब ये सवाल चिंतन के धरातल पर खड़े होते है तो कोई शोध करने की जरूरत महसूस नहीं होती बल्कि सब कुछ किसी गाँव में बैठे हुए आदमी को भी साफ़ दिख रहा होता है दिल्ली में बैठे लोगो को दिखे या नहीं और वे आंकड़ों में कारण ढूढते रहे ।कांग्रेस ने एक दो नहीं कई गलतियाँ किया और कई लोगो के स्तर पर गलतियाँ हुयी ।सबसे पहले जिनके जिम्मे संगठन बनाने का काम था वे जीतने के लिए संगठन बनाने के स्थान पर पूरा संगठन या तो बेच रहे थे या अपने पैर दबाने वाले ,दरबान गिरी करने वाले जैसे तत्वों को भर रहे थे ।वे प्रधानमंत्री पद त्यागने वाली सोनिया गाँधी का खुद को सिपाही कह रहे थे पर जमीन और जमीर दोनों लगातार बेंच भी रहे थे ।वे राहुल के सिपाही थे पर उनके कुरते पर लगी धुल का सौदा कर अपने खजाने को भरना छह रहे थे ।
                                    जब चुनाव के लिए टिकेट देने का सवाल आया तब फिर यही कहानी दोहराई गयी .फिर टिकेट या तो बेंचे गए या चमचो को बांटे गए । बेनीप्रसाद वर्मा जैसे लोग जो कांग्रेस में आने के पहले विधान सभा चुनाव में जमानत जब्त करा चुके थे और किसी तरह कांग्रेस के टिकेट पर लोक सभा चुनाव जीत गए थे गाँधी परिवार सहित कुछ नेताओं को बहकाने में कामयाब हो गए कि वो चुनाव जिताऊ काम कर सकते है और हर तरह का फायदा उठाने में कामयाब रहे ,परिणाम सबके सामने आ गया कांग्रेस में ही चर्चा होने लगी कि बेनी बाबू बेईमान भी है और जनाधार विहीन भी । ऐसा ही काम अन्य नेताओ ने भी किया और खूब फायद उठाया । चुनाव के या संगठन बनाने के तीन नियम होते है कि १- जहा आप चुनाव में जा रहे है वहा हर स्तर के दर्द का पता होना चाहिए और उनको ध्यान में रख कर ही दोनों काम हो सकते है ।२-जिनके मुकाबले में आप को जाना है उनके सभी कमजोर पहलू पता भी होना चाहिए और उनपर केन्द्रित पूरा फैसलाकुन  हमला होना चाहियें ।३-अगर आपके पास वहा के लोगो को हर स्तर पर दिखानेके लिए कसौटी पर कसे हुए सपने नहीं है तो भी आप सफल नहीं हो सकते और इसी के साथ जरूरी ये भी है कि आप वहा कि मिटटी कि सुगंध में रचे बसे दिखे और वहा के लोगो कि भाषा में बात करते हुए  दिखे ।                                        
                                                    इन सभी मोर्चों पर कांग्रेस और भा ० जा ० पा ० फिसड्डी दिखाई पड़ी जहा अटल बिहारी वाजपयी जैसे नेताओं के आभाव में हवा हवाई बन गयी  भा जा पा २० साल पुराने मुद्दों और तरीकों के साथ आत्मविश्वास के आभाव से जूझती दिखलाई पड़ी और नेता ,नीति और सिद्धांतों पर बंटी हुयी दिखलाई पड़ी , वही कांग्रेस के रणनीतिकार भी द्वन्द ,अविश्वाश ,और एक दूसरे को परखनी देने के लिए जूझते दिखलाई पड़े । उनका जबरदस्त अहंकार ,आत्मप्रलाप ,मुद्दाविहीन और चिंतनविहीन सोच अंग्रेजी भाषा और विचार तथा दिल्ली के कमरों की शेख्चील्ली सोच ,इवेंट मैनेजमेंट और कार्यकर्ताओं के बजाय किराये के लोगो और पैसे से चुनाव जीतने या हर वक्त कुछ कमा लेने कि चिंता में दुबले होते लोग ही कांग्रेस के सेनापति थे । जहा सबसे बड़े नेता ने खुद को दाव पर लगा दिया पर ये हिम्मत नहीं कर पाए की सीधे दाव पर लगते और कह देते की चुनाव जिताओ तो मै खुद मुख्यमंत्री बनूँगा ये बुरा भी नहीं था की इतने बड़े प्रदेश का मुख्यमंत्री पद सम्हाल कर फिर कुछ अनुभव के साथ दिल्ली जाते पर समझाने वालों ने समझा दिया होगा की छोटे हो जायेंगे । उनको भाषण की राय देने वाले उन्हें पूरे चुनाव में केवल इंडिया शाइनिंग के आस पास और अडवाणी जी के पीछे घुमाते रहे और उन्हें फिल्मों का एंग्री यंग मैन बनाते रहे जो फिल्मों में चलता है असल जिंदगी में नहीं । जहा वो जनता से कुछ साफ़ साफ़ कहने के बजाय चीखते रहे और कागज फाड़ते रहे वही अखिलेश यादव ने केवल इतना कहा की पहले बाहें चढ़ाई ,फिर कागज फाड़ा ,देखना अगली बार कही मंच से न कूद जाये और उन्हें बहुत बौना कर दिया और खुद को उनसे बड़ा बना दिया ।
                                           जहाँ कांग्रेस के नेता किसे समर्थन देंगे ,किसकी सरकार बनवायेंगे या राष्ट्रपति शासन लगवाएंगे में उलझे रहे वही मुलायम सिंह और अखिलेश यादव केंद्र के घोटालों ,मंहगाई और उत्तर प्रदेश की सरकार के भ्रस्ताचार पर कुछ शब्द बोल कर बाकी पूरे समय जनता के दर्द को सहलाते और फिर समाज के किस वर्ग के लिए क्या करेंगे ये सधे शब्दों में बताते रहे ,उन्हें जीतना ही था । जहा कांग्रेस इवेंट मैनेजमेंट की तरह काम करती रही और हर चीज को हल्के से लेती रही वही मुलायम सिंह अपने अनुभव और तमाम लोगो की राय को महत्व देते हुए तत्काल फैसले लेते रहे और अपने कार्यकर्ताओं को उतसाहित कर रहे थे ।जहा कांग्रेस में कोई किसी से बात करने में हेठी समझता है वाही मुलायम सिंह दूर हो गए साथियों सहित सभी काम के लोगो को जोड़ रहे थे । किसी भी तरह अपने सबसे मजबूत साथी रहे आज़म खान को वापस लेन का उन्होंने जो प्रयास किया वो रंग भी लाया और आज़म कि घर वापसी के साथ ही समाजवादी पार्टी एक बार फिर सत्ता के करीब दिखाने लगी थी और परिणामों ने उनकी उपयोगिता सिद्ध भी कर दिया । जहा कांग्रेस एक के बाद एक पर्यवेक्षक भेज रिपोट मंगाना ,फिर कई तरह की कमेटियों में कई हफ़्तों कसरत करती रही( जिससे अच्छा टिकेट वितरण शायद तब हो जाता जब कांग्रेस हर सीट के उम्मीदवारों कि पर्ची किसी डिब्बे में डाल कर एक एक निकाल कर टिकेट बाँट देती ),  मुलायम सिंह यादव अपने ज्ञान से लखनऊ में बैठे बैठे संगठन और टिकेट बांटना दोनों काम करते रहे क्योकि वो हर जिले और शहर में कई दर्जन लोगो को सीधे नाम और काम से जानते है जबकि कांग्रेस में नेता कोटरी से बाहर निकलना ही नहीं चाहते और स्वयं को सर्वज्ञानी समझ बैठे है ।मुझे तो लगता है कि यदि कांग्रेस बदली नहीं ,बड़े लोग अपने बाड़े से बाहर नहीं निकले और बेनी ,रीता जैसे सैकड़ों लोगो को ऊपर से नीचे तक बाहर कर नए सिरे से संगठन, संगठन की तरह  नहीं बनाया गया ,पर्यवेक्षक प्रणाली के बजाय सीधे जिलों को जानने और कार्यकर्ताओं को जानने और उनसे सीधे संपर्क रखने की व्यवस्था नहीं बनाई गयी तो कांग्रेस का लगातार पतन होना है और मृदुभाषी अखिलेश हो या नितीश कुमार उनके नेतृत्व में उनके दल बढ़ते जायेंगे ।अगले लोक सभा चुनाव में मेरी बात सही साबित हो जाएगी ।चाहे तो बदल जाये नहीं तो जनता बदल जाने को मजबूर कर देगी पर तब तक बहुत कुछ ख़त्म हो चूका होगा ।
                              पिछले चुनावों ने कुछ  बातें साफ़ कर दिया है की १- जनता अब किसी एक को पूर्ण बहुमत देना चाहती है ,२-जनता नेता की छवि और भाषा तथा भूषा को ध्यान से देख रही है ३- जनता नेता और उसकी छवि को देख रही है जो  मुलायम सिंह ने अखिलेश को आगे कर कर दिखाया ४-जनता किसी से चमत्कार की उम्मीद नहीं करती पर ये जरूर चाहती है कि नेता या दल जो कहे वो करते दिखलाई दे और प्रयास करते दिखे की वो करना चाहते है ये विश्वास मुलायम सिंह ने जीता है ५- जनता घमंड ,अहकार को बर्दाश्त नहीं करती है बल्कि कोई राजनीती में रहना चाहता है तो उसको सौम्य और विनम्र होना ही पड़ेगा ।6- कुछ नया कहना है या करना है तो चुनाव से ठीक पहले कहने और करने पर विश्वास नहीं होता ,कुछ पहले कहे और करें । क्या कांग्रेस और कांग्रेसी नेता ये समझ पाएंगे ? क्या अखिलेश अपनी विनम्रता और सौम्यता को बरक़रार रख पाएंगे ? क्या पहले दिन शपथ लेते ही सभी का  एक बड़े व्यवसायी के यहाँ चले जाने क्या पुरानी छवि बदल पाएंगे ? क्या खुद को नया उत्तर प्रदेश बनाने वाला सिद्ध कर पाएंगे ? क्या समाजवादी पार्टी को पुराने तरीकों से निकाल पाएंगे ? ऐसे पहाड़ जैसे सवाल मुह बाये हुए खड़े है जिनका उत्तर समय देगा और अखिलेश तथा उनकी पार्टी को भी देना पड़ेगा । बहुमत नशा न बन जाये इसके लिए हर वक्त चौकन्ना भी रहना होगा और हर वक्त कुछ करने ,नया करने के लिए चैतन्य  भी रहना होगा चाहे इसके लिए कुछ टोकने वालों  को बर्दाश्त क्यों न करना पड़े ।वर्ना पहली बार ही छवि बिगड़ गयी तो ============= ।राजनीति और वक्त सबका हिसाब करते है ।
                                    
                                                                                                                             डॉ ० सी ० पी ० राय 
                                                                                                           राजनैतिक चिन्तक और स्तंभकार 
                                                                                                                     
                                                                                                                              
                                                                                                                     

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

भा ज पा का ये चेहरा क्या किसी ने सपने में भी सोचा था ? खुद को अलग चाल ,चरित्र और चेहरे वाली पार्टी कहने वाली भा ज पा ,खुद को संघ के पता नहीं किन आदर्शों में तली भुनी कहने वाली भा ज पा का ये चेहरा और ऐसे चेहरे ? १-पहले रास्ट्रीय अध्यक्ष का बंगारू लक्ष्मण का कैमरे के सामने पैसा लेना ,२-फिर दिलीप जूदेव का ये कहते हुए दिखाना की पैसा भगवान तो नहीं है पर भगवान से कम भी नहीं है और इसी सिद्धांत को मन कर भगवान को धोखा देना ,३-फिर एक संगठन मंत्री का नंगा एम् एम् एस ,४- फिर उत्तराखंड में भ्रस्ताचार के कारण बार बार मुख्यमंत्री बदलना ,४- फिर आखिरी तक बचाते हुए भी यदुरप्पा नामक मुख्यमंत्री का जेल जाना और उसकी सरकार पर तरह तरह के आरोप ,५-और राम को छोड़ कर उसी बाबु राम कुशवाहा को माला पहना कर पार्टी में लेना जिस पर सरे आरोप इन्होने लगाये थे ,और सबसे पवित्र कम अब कर दिया जब पार्टी में महान आदर्शवादी मंत्री विधान सभा के पवित्र सदन में महान पवित्र काम करते हुए और धार्मिक [ इनके अनुसार ] फिल्म देखते हुए पूरे देश ने देखा । शायद मुह छुपा कर कुछ दिन तक चुप रहना चाहिए था इनके नेताओं को पर वाह रे आदर्शवादी मित्रो सीना तन कर खड़े है देश के सामने अपने आदर्श का वर्णन करने को ।क्या संघ ने शाखाओं में यहिओ सिखाया है ? क्या कुछ लोगो के सवाल और आरोप सही है ? इन सूरमाओं को जवाब जरूर देना चाहिए ।देश भूला नहीं होगा की इन्होने सेना के जहाज से सबसे बड़े आतंकवादी को कहा पहुचाया था ,देश भूला नहीं होगा की पाकिस्तानी सेना घर में घुस आई और ये सत्ता के नशे में चूर थे ,देश भूला नहीं होगा की चार छोकरे तमंचे लेकर संसद में चले आये और ये सोते रहे और दोनों ही मौको पर देश के उन गरीब परिवारों के नौजवानों ने जान देकर देश और संसद को बचाया जिनके ये विरोधी है ,क्योकि ये सिर्फ जमाखोर ,मुनाफाखोर और मिलावटखोरों के साथ खड़े दिखाते है और उन्ही के लिए लड़ते है । अब देश तय करे की इनकी असलियत क्या है ? इनका भविष्य क्या होना चाहिए ?
उत्तर प्रदेश में चुनाव हो रहा है अब फैसला आप का की आप को ऐसे पवित्र लोगो के साथ क्या सलूक करना है ? फैसला आप का की आप सिर्फ बड़ी बड़ी बातें करते है सचंमुच जातिवाद ,धर्मवाद ,गुंडागर्दी .सम्पूर्ण चोरी करने वालों के साथ क्या करंगे ? जय हिंद ।

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

दोस्तों बी जे पी खुद को पार्टी विद डिफरेंस या अलग चाल ,चरित्र और चहरे की पार्टी कहती है | पर आजकल उसका चरित्रं सारी जनता देख रही है ,पहले सुखराम को कांग्रेस ने निकला था तो बी जे पी ने गले लगा लिया था | पिछले कुछ दिनों से जिन्हें यह पार्टी अपराधी और महाभ्रस्ट कह रही थी दो दिनों में उन्हें ही गले लगा लिया और कहना ये है की बी जे पी तो गंगा है जो सबको पवित्र कर देती है | बाबू सिंह कुशवाहा से लेकर पता नहीं कौन कौन | अभी पता नहीं कौन कौन और पवित्र किया जायेगा ? आप जानते है न की ये वाही लोग है जो भ्रस्ताचार के खिलाफ लड़ाई का भाषण देते है रेड्डी ,यदुरप्पा ,जूदेव और बंगारू लक्ष्मन के साये तले,यही लोग है जिनके सबसे बड़े आका यानि संघ के प्रमुख और बाकी लोग अन्ना साहब को आन्दोलन शुरू करवाने का श्रेय भी ले रहे है और और सारे इंतजाम के साथ भीड़ जुटाने का भी | उनका दोहरा चरित्र तो फिर से चार दिन में ही सामने आ गया | अब देश की जनता और उत्तर प्रदेश की जनता इनके बारे में फैसला करे और इनके संगठनों में मौजूद वे लोग भी जो इन्हें सिद्धांतवादी और किसी तरह का विचारवादी समझ कर इनसे जुड़े है ,उन्हें भी रुक कर सोचना चाहिये ,विचार करना चाहिए और इनका साथ देने और इनके साथ होने पर मंथन करना चाहिए | सत्य सामने है | हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फारसी क्या ? जय हो अलग चल चरित्र और चहरे की | जय हो ऐसी भ्रस्ताचार विरोधी लड़ाई की | जय हिंद |