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बुधवार, 2 दिसंबर 2015

क्या मिला है किसी भी देश के चरमपंथियों को आजतक कुछ बेगुनाहो की हत्या कर के और देशो को युद्धों से ही क्या हासिल।हुआ है तबाही के सिवाय ।इतिहास और अनुभव तो यही बताता है की कुछ भी हासिल नहीं हुआ है तो फिर ये सब क्यों जारी है लगातार ।
बहुत हो गया अब बंद होना चाहिए शैतानियत का ये तमाशा ,मौत का खेल और खून की ये होली ।

शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

भारत का लोकतंत्र सबसे असफलतम प्रधानमन्त्री के नीचे कराह रहा है |इतनी दिन में ही मोदी जी की असफलता ,अज्ञानता और हीन भावना तथा अल्पदृष्टि सामने आ चुकी है जिसे ढकने के लिए इनका थिंक टैंक और संघ मिल कर नए नए सस्ती लोकप्रियता के आयोजन कर और इवेंट मैनेजमेंट कर जनता का ध्यान इनकी असफलतावो और वादा खिलाफी से हटाना चाहते है ,,पर अगले ६ महीने में ये सभी चीजें जनता में नफ़रत पैदा करने लगेगी |
इसलिए बस जरूरी ये है की हर वक्त सिद्धांतो ,,पर खास कर ,भारत के इतिहास और अस्मिता से जोड़ कर इन्हें कठघरे में खड़ा किया जाये | तब ये बौखालायेंगे और और बड़ी गलतियाँ करेंगे तथा लोकतंत्र पर हमला करने की कोशिश करेंगे और वही अवसर लोकतान्त्रिक शक्तियों के खड़े होने का होगा |
देखे कौन कौन क्या करता है ?? ये भी मेरा राजनीती शास्त्र के विद्यार्थी के रूप में व्यक्तिगत बयांन है |
फर्जी आंकड़े और हवाबाजी तथा उसकी आड़ में मोटा घोटाला करने में प्रशासन तंत्र को महारत हासिल है ।रोज करते है और कल भी ऐसा ही कुछ करेंगे ।
इनका राज जानना है की ये हर प्रधान मंत्री ,मुख्यमंत्री और मंत्री को कब्जे में कैसे ले लेते है और फिर हारने के दिन तक नहीं निकलने देते है ।
हारने के बाद पहचांनते ही नहीं है ।
आप इनसे जायज काम भी बिना घूस दिए नहीं करवा सकते । आप दे दो तो कानून और नियम की दूसरी व्याख्या और न दो तो बिलकुल उलट व्याख्या ।
या फिर इनका बड़ा नुक्सान करने की ताकत हो आप में ।
देश की आज़ादी इन्ही के लिए आई और राजा खत्म हो गए पर लोकतन्त्र में ये नए उनसे ज्यादा आततायी और मजबूत तथा उनसे ज्यादा बुराइयो से युक्त राजा पैदा हो गए है और भारत इनके जुल्मो से और भरस्टाचार से कराहने लगा है ।
नेहरू जी ने सबसे बड़ा पाप इनको 1947 में 15 अगस्त को ज्यो का त्यों स्वीकार कर के किया था और वो आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी भूल थी जिसका खामियाज़ा देश पता नहीं कब तक भुगतेगा ।
पता नहीं कब कोई पैदा होगा इंदिरा गांधी की तरह जिसने राजाओ की हैसियत को खत्म किया था और बो इन राजाओ को खत्म करेगा ।
राजनैतिक आकाओ की अपने प्रति हींन भावना तथा इन लोगो के प्रति कॉम्लेक्स कब ख़त्म होगा ।
#OROP जींद की सैनिको की रैली ने मोदी के पक्ष में पहला माहौल बनाया था और वहा साहेब ने वन रैंक वन पेंशन की बात कहा था और सरकार बनते ही कर देने का वादा किया था |
पर आज डेढ़ साल से अधिक हो गया और साहेब भूल ही नहीं गए बल्कि इदेश के लिए जिंदगी देने वाले लोग महीनो से जंतर मंतर पर बैठे है चाहे मौसम कैसा भी हो और सरकार के पास इनके लिए समय नहीं है |
कितना शर्मनाक है की देश के लिए ]बहादुरी से लड़ने वालो पर घूसखोर कायरो से लाठियां चलवाई गयी |
अपने सैनिको की इज्जत न करने वाली सरकार को धिक्कार है |
कुछ देश के साथ द्रोह तथा जनता के साथ वादा द्रोह करने वालो के कर्मो और संकुचित विचारो के विरोध को हिन्दू विरोध बता कर इनके कुकर्मो को ढकने की भरपूर कोशिश हो रही है |
इन मुट्ठी भर का विरोध १२०.९९ करोड़ महान हिन्दुओ का जो इनके विचारो के खिलाफ है और इंसानियत तथा हिंदुस्तानियत में में यकीन करते है उनका विरोध कैसे हो जाता है |
अब ऐसा भी मजाक मत करो भाई लोग |

सोमवार, 21 सितंबर 2015

कृपया महान नेता जी सुभाषचंद्र बोष को बदनाम मत करिये और उनको कायर तो किसी हालात में मत सिद्ध करिये ।

जो व्यक्ति इतनी बड़ी ब्रितानिया सरकार से नहीं डरा बल्कि बिना साधनो के फ़ौज खड़ी कर दी और इतने राष्ट्रों को साथ खड़ा कर लिया तथा भारत की भूमि पर झंडा फहरा दिया , जो भारतीयो के दिलो पर राज करता था ।

अगर वो जीवित होते तो छुपते नहीं बल्कि देश के किसी कोने से भी आवाज लगा देते की मैं यहाँ हूँ तो करोडो देशवासी उधर ही दौड़ पड़ते और पूरा देश उन्हें सर पर उठा लेता ।

और किस देश की आज़ादी के बाद आज़ादी के लिए लड़ने वालो को युद्ध अपराधी कह कर किसी देश को सौपा गया है कि ये मुद्दा जेरे बहस हो ।

बल्कि मेरा विश्वास है की तत्कालीन सभी नेता भी उनकी अगवानी में खड़े हो गए होते क्योकि वो आदर्शो का युग था और संघर्ष का साथ खून के रिश्तों से भी पक्का और मजबूत होता है ।

इसलिए मेरी विनती है की अपने को नेताजी का कहने वाले या उनको बिलकुल नहीं जानने वालो दोनों लोग ही मेरी जिंदगी के पहले आदर्श और नेता को बदनाम न करे और कायर सिद्ध न करे ।

देश ,समाज और जनता को इतिहास और आदिकाल के मुद्दों पर उलझा कर रखो और उन्ही पर विवाद चलाते रहो ताकि वर्तमान पर चर्चा न हो और भविष्य की चिंता न हो और आप जो चाहे निर्द्वंद करते रहे।

किसी हालात में भूख ,गरीबी ,अशिक्षा ,बेकारी और बीमारी सहित किसान ,मजदूर और बेरोजगार नौजवान पर बात न हो ।

बल्कि इनका गुस्सा न फुट पड़े इसलिए इन सभी को इतिहास में अपने अपने गौरव तलाशने को मजबूर करते रहो और आपस में बांटते रहो

पर कब तक ? कभी तो ये सभी समझ जायेंगे इस चाल को और मिलकर खड़े हो जायेंगे सरोकारों पर सरकारो को सोचने और करने के लिए ।

बुधवार, 2 सितंबर 2015

मैं वर्षो से कह रहा हूँ की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारत के संविधान को नहीं मानता तथा लोकतंत्र को नहीं मानता बल्कि हिटलर के शासन को आदर्श मान वही स्थापित करना चाहता है ।

आज फिर सिद्ध हो गया ।

वर्तमान केंद्र सरकार देश की जनता के भावनात्मक वोट से बनी है और सरकार की जवाबदेही केवल भारत और इसकी जनता के प्रति है ।

ये संघ के प्रति जवाबदेही देश का देश के स्वतन्त्रता संग्राम का जिसमे संघ ने गद्दारी किया था तथा भारत के संविधान का और भारत की महान जनता का अपमान है ।

क्या सोचता है भारत ?

कृपया संघी जवाब नहीं दे ।

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

आर एस एस पूरी तरह मौका पाते ही अपने भविष्य की रणनीति पर लग गया है ।

जहा बाकी दल कुछ लोगो या जातियो के चक्कर में पड़े है संघ लोकतंत्र के हर खम्भे में अपने लोगों को भेजने ने लगा है ।

1977 में मीडिया में अपने लोगो को घुसाया तो आज पूरा मिडिया संघी हो गया ।

राज्यपाल से कुलपति तक और शिक्षा नीति निर्धारक  से शिक्षक तक बनाया तो वहां पौधशाला तैयार हो गयी ।

सरकार बनाते ही सभी मंत्रियो को जबरन ओ एस डी से लेकर ए पी एस तक संघ के स्वयं सेवक थमा दिए गए तो इतिहास ,संस्कृति और साहित्य से लेकर शिक्षा और फ़िल्म तक संघी बैठाये जा रहे है ।

अब नयी बात पता लगी -

संघ ने कोचिंग खोल दिया है संकल्प के नाम से जहा आई ए एस से लेकर हर तरह के नौकरशाह तैयार किये जा रहे है ,जज तैयार किये जा रहे है ।

और

शारीरिक मेहनत के साथ तैयारी करवा कर संघी फ़ौज की तीनो शाखाओ और पुलिस में जहा संभव है भेजे जा रहे है ।

वाकी नेता और दल केवल देश बचाने का भाषण दे रहे है और फासीवाद अपनी जडे ज़माने में पूरी ताकत से लगा है।

मैं तो लोकतंत्र का चौकिदार हूँ इसलिए आवाज लगा दे रहा हूँ की जागते रहो ।

जागो या मत जागो आप की मर्जी ।

बुधवार, 19 अगस्त 2015

पुराने ज़माने से हमें सिखाया गया की राजनीती और शासन में लोकलाज बहुत महत्वपूर्ण है और ये भी की जनभावना का आदर किये बिना नहीं चला जा सकता ।
जनभावना वाले सवाल पर मेरा एतराज था की लीडर को लीड कर करना चाहिए और चाहे जितना नुकसान हो जाये समाज के साथ भावना में बहने लगने के स्थान पर सही स्टैंड पर कायम रहना चाहिए ।

पर लोकलाज का मैं समर्थक हूँ ।

लेकिन बहुत अफ़सोस के साथ लिख रहा हूँ की बहुत से बड़े लोगो ने ही लोकलाज को ताक पर रख देने का जैसे बीड़ा ही उठा लिया है और वो समझ ही नहीं रहे है की आज का समाज कहा पहुँच गया है और उनका कदम और वक्तव्य आत्मघाती है ।

पर मुझे क्या । अदना सा आदमी हूँ । लिख कर कर्तव्य पूरा कर दे रहा हूँ ।

कोई खास सन्दर्भ नहीं बस यूँ ही ।

अंधभक्त कैसे भी हो राजनीतिक जातिगत धार्मिक या सामाजिक और किसी के भी हो वो लोकतन्त्र को बर्बाद करते है और विकास के रस्ते को भी अवरुद्ध करते है ।
सबकी बात कर रहा हूँ ।स्वस्थ और खुली बहस और गलत के खिलाफ जब चुनौतीपूर्ण अलीचना बंद हो जाती है तो आप जिसके भी भक्त है उसे तानाशाही पूर्ण व्यवहार करने की तरफ खुद धकेल रहे होते है ।
(आज के चिंतन से और चिंता से )

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

हमें पता है भक्त अंधे है और नहीं होते तो आज़ादी की लड़ाई के खिलाफ गद्दारी ही क्यों किया होता ।

हमें पता है की अन्धो को आईना दिखाने का कोई फायदा नहीं पर सच और इन्साफ के लिए तथा इंसानियत और हिन्दुस्तानियत बचाने के लिए, लोकतन्त्र और संविधान की रक्षा के लिए हम चीखते भी रहेंगे और व्यवस्था के मेज पर हथौड़े भी पटकते रहेंगे ।

शायद अन्धो को एहसास हो ही जाये की वो गलत है ।

सोमवार, 17 अगस्त 2015

#मोदी साहेब आप #पाकिस्तान से #युद्ध करेंगे पर #चुनाव के फायदे के लिए ठीक उसके पहले और मैं आज ही निर्णायक युद्ध चाहता हूँ ।

मेरे जवान यूँ ही खड़े खड़े शहीद हो जाये मुझे मंजूर नहीं बल्कि वो लड़ कर शहीद हो और 100 /100 को मार कर शहीद हो ये मैं भी चाहता हूँ और देश भी चाहता है ।

पर आप जवानो को खड़े खड़े मारने दोगे और चुनाव का इन्तजार करोगे मैं जानता हूँ ।

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

आर एस एस वाले डींग हांकते है की अगर वो अच्छे नहीं है तो नेहरू जी ने उन्हें 26 जनवरी में क्यों बुलाया ।

आज़ादी ली लड़ाई में गद्दारी गांधी जी की हत्या का जख्म बहुत गहरा था पर नेहरू जी प्रगतिशील डेमोक्रेट और बड़े दिल के आदमी थे ।

उन्होंने प्रयास किया की शायद संघ आज़ादी का और देश का अर्थ समझ सके और 26 जनवरी को देख कर उनका दिल बदल सके और वो अपना पुराना सोच और रास्ता छोड़ कर मुख्य धारा में शामिल हो जाये ।

पर अफ़सोस नेहरू की आत्मा आज रो रही होगी

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

हिंदुस्तान क्या सचमुच तमाशे का देश है । लोगो से कहो की चलो बिजली पानी भुखमरी गरीबी नौकरी और हक़ के लिए लड़ें । कोई नहीं आता ।आपातकाल लगा लाखो बंद हो गए पर एक कुत्ता नहीं भूंका ।
तमाशे के लिए घंटो खड़े रहते है हजारो ।क्रिकेट मैच में देश भर में कर्फ्यू लग जाता है ।कई टीवी सीरियल में भी कर्फ्यू लगता रहा है । फ़िल्मी तमाशो को देखने को लोग सर फट जाये पर लाइन में लगे रहते है ।
कुछ लोग ये समझ गए है की इस देश में कोई गंभीर विमर्श पर बात मत करो , गंभीरता से कुछ मत करो बस तमाशे करो लोग भी खुश और हम भी खुश ।
कल भी होगा एक तमाशा और चुनाव से पहले एक सीमा पर भी होगा ।उसका खामियाजा गरीब उठाएगा तो उसके लिए दस लाख ,कुछ मालाये और फ़िल्मी डायलोग और देशभक्ति के फ़िल्मी गाने मौजूद है ।
हमने तो सुना था की भारत विश्व गुरु था । किस चीज का तमाशो का ??
अज़ब बौद्धिक दिवलिया हो गया है देश और गंवार को  कोई शक शुबहा नहीं सब ग़लतफ़हमी और आँखों पर चश्मे विद्वानों के ही है ।
हे मर्यादापुरुषोत्तम राम जिसने बाप के आदेश पर देश छोड़ दिया और एक देश जीत कर भी कब्ज़ा नहीं किया बल्कि वही के उचिट व्यक्ति को सौंप दिया ,हे बड़े दिन और दिमाग वाले कृष्ण जिसने कुछ अपने लिए नहीं किया सब दूसरो के लिए किया और बडी सत्ताओ से टकरा गया और जो समपूर्ण प्रेम का प्रतीक था और हे शिव शकर जिसका न आदि है न अंत है और जिसने प्रेम किये तो परवाह नहीं किया और क्रोध किया तो परवाह नहीं किया बल्कि हर चीज से सम्पूर्ण न्याय किया आप तीनो बताओ मैं इस हालात में मैं क्या करूँ ?
समझने वाले ही कमेंट करे प्लीज़ ।
पापियो से भगवांन भी डरने लगा है । उन्हें जमीन पर सजा नहीं और नर्क में भी उनके लिए हाउसफुल का बोर्ड लगाये है । अच्छे लोग इन्हें झेल कर परेशांन है ।
अपने आसपास देख लीजिये ।
कबीलों और जंगल के कानून को छोड़ दें तो दुनिया के किसी भी कानून में दादा परदादा के द्वारा किये गए अपराधो या उनके अन्य कर्मो का दोषारोपण पोते और परपोते पर नहीं किया जाता और न उसके लिए उन्हें सजा दी जाती है ।
तो फिर पता नही मेरे दादा और परदादा ने कुछ गलत किया भी था नहीं पर मुझे दोषी ठहरा कर उन दोषों की सजा क्यों दी जाये आज जबकि मैं तो कुछ भी गलत नहीं कर रहा हूँ ।
क्या इसी तरह सभी राजाओ के वारिसो और जिस जिस ने कुछ भी कभी गलत किया था उनके वारिसो को ढूढ़ कर उन्हें सजा देने का भी कभी मांग और अभियान चलेगा मेरे देश में पढाई का स्तर बढ़ने के साथ और सत्ता तथा प्रशासन में ताकत मिलने के साथ ।
किसी भी भ्रस्ताचार से बड़ा धर्म और जाति के आधार पर घृणा और नफरत तथा उपेक्षा का भ्रस्ताचार है क्योकि ये मानवता पर और मानव की स्वाभाविक स्वतन्त्रता पर जबरदस्त हमला है ।
हम अपना वोट आप को नहीं देंगे क्योकि आप हमारे धर्म या हमारी जाति के नहीं हो ।

आप शिक्षित हो ,ज्ञानी हो ,गुणी हो ,कोई गलत काम नहीं करते बल्कि केवल अच्छे काम ही करते हो और अपने गुणों के कारण हमारा ,समाज का और देश का बहुत भला कर सकते हो पर --

वाह रे लोकतंत्र और वाह रे आज़ादी । शायद भगत सिंह फांसी सिखों के लिए चढ़े और आज़ाद तथा बिस्मिल ब्राह्मणों के लिए शहीद हुए ।सुभाष कायस्थो के लिए और गाँधी जी बनियों के लिए लडे ।
क्यों न संविधान में संशोधन कर के सभी को जाति परिवर्तन करने की छूट दे दिया जाये अथवा पूरे देश को दलित घोसित कर दिया जाये ऊँच नीच और जातिवाद ख़त्म हो जायेगा ।नाम के आगे जातिसूचक शब्द लगाने पर पाबन्दी हो जाये और नाम के आगे अगर लगाना चाहे तो केवल हिंदुस्तानी लिखे ।
क्या इससे समस्या का हल हो सकता है । और एस सी एस टी एक्ट का आतंक भी खत्म हो जायेगा ।
देश के दलित समाज को इस विचार पर आपत्ति तो नहीं है ।
क्या रास्त्रगान गाते हुए बचपन से आजतक कभी आप के दिमाग में आया की उसके शब्द क्या है और अर्थ क्या है और इसी तरह से बहुत से धर्म ग्रंथो को पढ़ते हुए भी |
सर्वोच्च नयायालय में हलफनामा देकर उससे मुकरने वाला और देश भर में दंगे करवाने और लोगो की हत्याओ का जिम्मेदार आज़ादी के इतने दिन बाद आज संवैधानिक पद पर बैठ कर उस पर सवाल उठा रहा है |
मतलब तो आप लोग भी समझ रहे होंगे |
सरकार फेल तो देखो नए नए खेल |
बनारस में 100000000 रूपये पानी में धुल गए क्या ?

बड़ी महंगी धुलाई है उनके सूट और कपड़ो की तरह ।

माँ गंगा कुपित है असत्य और फेंकने से इसलिए आने नहीं दे रही है और आसमान वाला भी उनका ताकत से साथ दे रहा है ।

आत्मचिंतन करिए हुजूर ।

इसीलिए लिख दिया ।
60 साल तक लोगो की उपेक्षा ,अंहकार से चूर और केवल लूट में मस्त रहने वाले ये अफसर अवकाश प्राप्त करते ही फिर आयोगों का अध्यक्ष क्यों बना दिए जाते है ?

60 साल में भी पेट नहीं भरा की फिर नया चारागाह तलाश लिया और उनकी तलाश राजनीतिक तकते पूरी करती है ।

जबकि राजनीतिक लोगो में भी बहुत से बहुत ज्यादा योग्य और ईमानदार लोग भी है जो तथाकथित सिद्धांतो के लिए जीवन दाव पर लगा कर बैठे है ।

पता नहीं राजनीतिक नेताओ में से अपने और अपनों के प्रति हीनता का भाव कब निकलेगा और सिद्ध चोरो के मुकाबले अपनों की ईमानदारी पर विश्वास कब पैदा होगा ?~
किसी विद्वान साथी ने टिप्पणी किया कि यकीन मानिये कि आज के दौर में स्वामी विवेकानंद ,सर्वपल्ली राधाकृष्णन से लेकर ए पी जे कलाम तक अगर किसी राजनीतिक दल के बाकायदा सदस्य बन जाये तो रसीद कटाने के अगले पल ही उनकी औकात चपरासी से भी कम हो जाएगी ।

वो खुद राजनीती में नहीं है फिर इस टिप्पणी का क्या मतलब है ?

इस टिप्पणी पर क्या जवाब दूँ ? क्या सचमुच इतनी गिरावट आ गयी है ? क्या ये सभी दलों पर लागू होता है ?
क्या आप लोगो को याद है की अन्ना ,केजरीवाल और बेदी इत्यादि किसी लोकपाल ,सड़क पर कानून बनाने  ,सब सरकारी काम बेपर्दा करने इत्यादि के लिए लड़ रहे थे और आरएसएस तथा  बीजेपी इनके पीछे खड़ी थी ।

इन सब को सांप सूंघ गया और जनता भी भूल गयी ।

वाह रे देश और हम सब ।
केंद्र के अपराध के रिकार्ड बताते है की दिल्ली में रोज 5 महिलाओ के साथ बलात्कार होते है ।

 पर कैसे मान ले ? देश के टीवी उस पर चर्चा नहीं कर रहे और अखबार छाप नहीं रहे तो कैसे मान ले इसे सच ?

हा नहीं तो ।
अब ये भगवांन की गलती तो नहीं है की आप उनकी चौखट पर वर्षो से माथा रगड़ रहे हो और वो पत्थर ही बने हुए है ।
उन्होंने कब कहा माथा रगड़ने और हाजिरी देने को और ये भी कब कहा की वो पत्थर नहीं बल्कि दिल दिमाग वाले जीव है ।
बाकी भक्तो की मर्जी ।
मैं ये बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकता । किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं कर सकता । तत्काल गूगल को प्रतिबंधित कर दूँ क्या ?

कैसे बर्दाश्त कर लूँ भारत के नागरिक के रूप में ?

देखिये गूगल की हिमाकत ----दो बाते लिख दिया -

1- मोदी जी को दुनिया के 10 टॉप अपराधियों में शामिल कर दिया ।

2- मोदी जी को दुनिया के 10 स्टुपिड प्रधानमंत्रियो में शामिल कर दिया ।

कोई भी भारतीय ये बर्दाश्त कर सकता है क्या ?
मुझे तो आज ही पता चला वर्ना कब का गूगल को @

सच में मैं सच बोल रहा हूँ कोई कटाक्ष नहीं कर रहा हूँ ।
वैसे एक बात तो मानना पड़ेगा की मीडिया में बैठे हुए कुछ संवेदनशील साथियों की वजह से भी बहुत लोगो को न्याय मिल जाता है ।

ऐसा देखा जाता है की जब मीडिया के किसी ऐसे संवेदनशील साथी की निगाह ऐसे लोगो पर पड़ती है जिन्हें कोई सुन नहीं रहा या जिन्हें वो लग नहीं जानते जो न्याय करने और सुनने के लिए है और उनके मुद्दे को वो साथी मीडिया में ठीक से जगह दे देते है तो अक्सर मजबूरन उस पीड़ित को तत्काल का न्याय देना ही पड़ जाता है व्यवस्था को ।

ऐसे संवेदनशील साथियों को मेरा और सभी का सलाम जो सरोकारों से सरोकार रखते है और सीने में दिल को इस चूहा दौड़ के युग में भी मरने नहीं दिया है ।
अब जान लीजिये की नेताओ को खलनायक बनाने का संगठित प्रयास क्यों हो रहा है ।

ऐसी तकते जो लोकतंत्र को खत्म का फसीवादी व्यवस्था कायम करना चाहती है वो धीमे जहर की तरह और हनेश जी को दूध पिलाने वाली रणनीति से यह फिजा बनाने में लगी है की लोकतंत्र बुरा है और लोकतंत्र चलाने वाले बुरे है ताकि जब लोकतंत्र को खत्म करना हो तो जनता मान चुकी हो की लोकतंत्र और नेता बुरे है और उस वक्त विरोध का सामना न करना पड़े ।

जबकि सभी तंत्रो को दुनिया आज़मा कर इस निष्कर्ष पे पहुच चुकी है की लोकतंत्र सर्वश्रेष्ठ है और जनता इसी में अपना फैसला जब चाहे खुद कर लेती है ।

केवल नेता वो जीव है जो जनता के साथ हर सुख दुःख में खड़ा रहता है तथा केवल नेता है की उसकी पिता की लाश भी सामने हो तो भी वह लोगो की सुनता और पहले उनका काम करता है ।

बाकी  लोगो से आप सभी का क्या अनुभव है सोच कर देखिये ।

और भ्रस्ताचार की बात है तो खुद अध्ययन कर के देखिये की कर्मचारी ,ठेकेदार ,,इंजीनियर ,व्यापारी सहित सभी में कितने प्रतिशत राजनैतिक कार्यकर्ता क्या और कितने सम्पन्न हुए और उसके मुकाबले बाकी लोगो की क्या स्थिति है ।

फिर अपने दिन पर हाथ रख कर खुद से पूछिए और सोचिये इस बड़ी साजिश के बारे में ।
नेताओ से इतनी नफरत होती तो नोप वाले बटन सैकड़ा तो छू लेते पर अफसोस अभी तक वो तकते अपना काम कर नहीं पाई ।

अब मेरी पोस्ट पढ़ कर समग्रता से सोच कर देखिएगा की क्या मैंने गलत लिखा है ?
दूसरा --

लगातार कहा जाता है की संसद में 168 अपराधी है ।
तो दोस्तों आप के लिए बिजली पानी या अन्य लड़ाइयाँ लड़ते हुए कौन पिटता है और कौन जेल जाता है ।

एक प्रस्ताव हो जाये की देश में कोई धरना प्रदर्शन और आन्दोलन नहीं होगा या कानून में व्यवस्था हो जाये की आन्दोलन के मुकदमे आई पी सी में नहीं लिखे जायेंगे क्योकि आई पी सी में आप अपराधी हो ही जायेंगे ।

यदि इन मुकदमो में ब्रैकिट में आन्दोलन लिखा जाता या कोई और कानून होता तो आन्दोलनकारी और छात्र नेता अपराधी नहीं कहलाते ।

और अपराधियों को तो आप पहचानते है की कौन कौन है ।

या आप ने इतनी बड़ी तादात में अपराधियों को चुन दिया या फिर आप के वोट को और चयन को अपराधी बता कर आप सब को अपराधी बताया जा रहा है ।

बिचार जरूर करियेगा । या सरकार को कानून को बदलने को कहिये की आन्दोलनकारियो के लिए अलग कानून बने ।

समझ गए न ।
कितने भी जवान शहीद हो जाये हम जवाब नहीं देंगे बल्कि बातचीत ,बिरयानी और भेट का आदान प्रदान जारी रहेगा ।

जवाब देंगे जब हमारा जनता की अदालत में इम्तहान होना होगा या शरीफ जी का फ़ौज की अदालत में ।

अभी नहीं समझ में आएगी मेरी बात !
जापान में सुनामी आई लाइट तो क्या बहुत कुछ उजड़ गया पर १ - वहा कोई छाती पर हाथ मार कर दहाड़ मार कर रोता नहीं दिखा ,२ - वहा कोई बुराई करता नहीं दिखा -३ - वहा के दुकानदारो और रेस्टोरेंट वालो ने कीमतें कम कर दिया -४- वहा लोग खुद पानी नहीं होने पर कम खर्च कर एक दूसरे की मदद करते दिखलाई पड़े -५- वहा लोग सरकार या व्यवस्था को कोसने के स्थान पर जो खुद कर सकते थे देश के लिए वो कर रहे थे -६- वहा मीडिया न तो बुराई कर रहा था ,न किसी को कोस रहा था न कोई अप्रिय दृश्य दिखा रहा था -७ - वहा सिस्टम फेल होने पर लोग पैदल या साईकिल पर चल रहे थे और एक दूसरे को सहारा दे रहे थे ,जिनकी गाड़ियाँ ठीक थी वो लोगो को उनके स्थानों पर पहुंचा रहे थे -8- दुकानों में लाइट चली गयी तो लोग सामान लेकर भागने के स्थान पर सामान वही छोड़ कर बाहर आ गए और फिर लाइन में लग गए -9-परमाणु संयत्र पर बीस लोग रुक गए बाकी सबको भेज कर ये जानते हुए की वे नहीं बचेंगे पर दिमाग में ये था की वे शायद देश को और लोगो को बचा लेंगे -१०- वहा की व्यवस्था लोगो की मदद में अपनी किसी नयी कोठी की जुगाड़ नहीं देखा रही थी। और जापान फिर खड़ा हो गया और पता नहीं कितनी बार बर्बाद हुआ और खड़ा हुआ । हम टीवी पर और देशो में भी तबाही आते और बिजली जाते देखते है वो भी जापान जैसा ही व्यव्हार करते है । ये सभी देश महान कहलाते है । कोई देश नहीं वहा की जनता और उसका चरित्र ,व्यव्हार और कार्य महान होता है । जरा सोचिये हम क्या करते है ???? क्या हम केवल भारत के निवासी है जैसे कोई किसी सराय या होटल का निवासी होता है या हम भारत के सचमुच नागरिक भी है । क्या हम सब दिल पर हाथ रख कर सोच सकते है और फैसला कर सकते है ?/ जरा सोचिये जरूर ???????????? ????????????????????/
# कितने लोगो को याद है की जिस दिन पिछले लोकसभा का परिणाम घोसित हो रहा था और मैं भाग नही बल्कि लगातार 13 घण्टे तक मुकाबला करता रहा उस मैंने लाइव कार्यक्रम में टीवी पर क्या कहा था ?

याद दिला देता हूँ ----

1- ये राजनीती शास्त्र के विद्यार्थी के रूप में देश को बता रहा हूँ न की किसी दल के नेता के रूप में कि अगर अहंकार अहमदाबाद से दिल्ली आ रहा है तो --देश अब तक का असफलतं और अयोग्यतम प्रधानंमंत्री देखने जा रहा है ।

2- ये सरकार महंगाई कम नहीं कर पायेगी बल्कि बढ़ेगी क्योकि सारे मुनाफाखोर , जमाखोर और मिलावटखोर इनके कार्यकर्ता है और शाखा में जाते है तो सरकार उन पर लगाम नहीं लगा पायेगी बल्कि उनका फायदा देखेगी ---
इनके सामने दूसरी दिक्कत ये होगी की ये जिन लोगो ने इनके चुनाव पर हजारो करोड़ खर्च किया उनका हित देखे या जिस जनता ने वोट दिया उनका ?

3-- विदेश नीति इनके लिए अज्ञानता की चीज है क्योकि इनकी सोच वैसी नहीं है । ये तो हजारो साल पहले की सोचते रहते है जबकि जरूरत काफी आगे देखने की है ।

जिन्होंने सुना हो वो क्या कहते है आज और जिन्होंने नहीं सुना वो आज इन बातो पर क्या कहेंगे ।

मैं किसी पर व्यक्तिगत हमला नहीं कर रहा हूँ बस यूँ ही उस दिन की याद दिला रहा हूँ ।
यूँ ही ।
# Indian politics
दाल से लेकर प्याज आलू सब कई गुना महंगा हो गया ( एक महीने में महंगाई कम करने वालो के राज में ),, दुनिया से कच्चा तेल आधी से कम कीमत पर आ रहा है और मनमोहन सिंह के ज़माने से महंगा बिक रहा है ( पेट्रोल 40 से कम पर बिकने की बात करने वालो की सरकार में )डॉलर ने मोदी जी की उम्र पार कर लिया है ( कुछ ऐसा ही शक किया था इन्होंने सरकार बनाने से पहले ) सीमा से रोज शहीदों की लाशे आ रही है ( एक सर के बदले 10 लाने की बात करने वालो के समय में ) ।

आज के लिए काफी है ?
मैं राम और कृष्ण को अवतार और काव्य पुरुष दोनों मानता रहा हूँ और मानता रहा हूँ की वो दोनों सबके है और कण कण में है ।

पर संघ और बीजेपी ने बताया की वो केवल उनके है और कुछ वर्ग मीटर जमीन तक सीमित है ।

तो

कुछ जातियां बता रही है की वो तो केवल उनकी जाति के है । खबरदार जो किसी ने अपना कहा ।

बहुत भ्रम फ़ैल गया भाई । इस पर भी या तो कोई आयोग बने या फिर उन्हें ही दे दिया जाये उनका पेटेंट कर के ।

क्या विचार है ?????
जिस दिन मोदी ने संसद की सीढ़ियों पर सर झुकाया था मैंने कहा था की ये जिन के सामने सर झुकाते रहे जो उनके साथ किया वही संसद के साथ करेंगे ।
भक्त से लेकर मीडिया भक्त तक अलाप रहे है की जो कभी नहीं हुआ वो हो गया एक समझौते में ।

या तो नए है या अज्ञानी नादान है ।

लालड़ेंगा और लोंगवाल शब्द सुना ही नहीं होगा ।ऐसे कई समझौते इतिहास में हुए है और उन लोगो से जिनसे संभव नहीं दीखता था और वहां जहा जीवन दूभर था ।

सोचा दुन्नो का थोड़ा ज्ञान बढ़ा ही दे ।

हो सके की भोंपू बंद हो जाये । पर संघी भोंपू तो बस एक सुर में लगातार बजना जानता है जब तक नागपुर से ट्रैक न बदला जाये ।
समाज का असली चरित्र ----------

आप के बहुत ख़ास अपनी जाति के सम्मलेन या किसी आयोजन में लाखो खर्च कर देते है ।

किसी धार्मिक आयोजन या स्थल के लिए 25 लाख से करोडो तक दे देते है ।

पर ---आप के लिए और आप की तकलीफ के लिए वो गरीब बन जाते है या खुद परेशानी में पड़ जाते है ।

सड़क पर कोई इंसान मर रहा हो तो बगल से निकल जाते है पर जाती धर्म या गाय सुवर के लिए मारने मरने पर उतारू हो जाते है ।

पार्टी में लाखो की दारु बहा देते है और लाखो का खाना फेंक देते पर प्यासे को एक बोतल पानी देने के बजाय दुत्कार देते है और भूखे को भगा देते है ।
धर्म स्थल पर केवल फूल चढाने पर लाखो खर्च कर देते है पर मंदिर के बाहर हाथ फैलाये खड़े लोगो को अपशब्द कहते है ।

रेस्टोरेन्ट में वेटर को सैकड़ो टिप देते है पर मोची से चार आने के लिए लड़ते है ।

क्या क्या लिखूं ? पोथी लिखना पड़ेगा ।

ऐसी ही कुछ बाते जानकारी में आई और कुछ बातो से प्रभावित हुआ और संबंधो का मोल इसी कसौटी पर जाना तो लिख दिया ।

दोस्तियां झूठ और फरेब का पुलंदा है बस अभिनय देखो और अभिनय करो ।
पता नहीं भारतीय राजनीती का क्या दुर्भाग्य है की भारी जन समर्थन प्राप्त हर नायक और बड़ा बनने या युगांतकारी परिवर्तन करने का अवसर खो देता है अल्प दृष्टि और छोटे सोच के लोगों के चक्कर में ।

पता नहीं जनता के साथ ये छल कब तक होता रहेगा और कार्यकर्ताओ के साथ भी ।

मंगलवार, 2 जून 2015

कभी नहीं भुलाई जा सकती है ये वाणी ------------ कबीर जिन्दा खड़े है अपने क्रान्तिकारी विचारो के साथ और उस युग की असंभव वैचारिक और सामाजिक क्रांति के साथ हमारे अन्तः में चाहे हम अभी स्वीकारे या कल स्वीकारे पर आइये आज उस फ़कीर को सर झुका कर सलाम करे ----------------- बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लगत अति दूर । कांकर पाथर जोर के मस्जिद लयी बनाय ता चढ़ी मुल्ला बांग दे बहिरा हुआ खुदाय । माला फेरत जग फिरा फिरा न मन का फेर कर का मनका डार दे मन का मनका फेर । ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय औरहु को शीतल करे आपहु शीतल होय । माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोय एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूंगी तोय । गुरु गोविन्द दोवू खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो बताय। साई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाए ।


रविवार, 31 मई 2015

एक लघु कथा (सच्ची घटना का कहानीकरण )----- :;;काम हो गया ;; बहुत परेशान थे सब ।कितनी बड़ी विपदा आ गयी थी ।पडोसी था की झुकने को तैयार ही नहीं था ।वकील साहब चाहे तो कोई तो रास्ता जरूर निकल जायेगा । वो एक बुजुर्ग था नाम रामू ही रख लेते है और उसके साथ उसका दामाद हरी सिंह ,विवाहिरा बेटी रामप्यारी और दूसरी बेटी जिसकी शादी अभी नहीं हुयी थी रामबेटी भी आई थी कचाहरी में पहली बार ये सोच कर की बाबा का भी काम हो जायेगा और शहर में चाट पकौडी भी खा लेंगे ,सिनेमा भी देख लेंगे और त्यौहार आने वाला है तो उसकी खरीददारी भी बाबा करवा देंगे । पर सिनेमा और बाजार तथा त्यौहार से बड़ा मुद्दा वकील साहब से जिरह में था की पडोसी अपने को पता नहीं क्या समझता है सा:::ल::; उसकी नाक कैसे नीची हो । घंटो हो गए वकील साहब जो राय देते उसे रामू काट देता और रामू जो कहता उसमे वकील साहब कानून का छेद बता देते । अचानक रामू की आँखे चमक उठी अपनी कुँवारी बेटी को देख कर और वो बोला की रामबेटी तू चाहे तो पडोसी से जन्म जन्म का बदला पूरा हो जतेगा ।रामबेटी बहुत खुश की उसकी भी कोई वकत है वर्ना तो बाबा कोसते ही रहते है की नाशपीटी ताड़ जैसी होती जा रही है और ब्याह नहीं हो पा रहा । घर में पडी रहती है और बदसूरत नहीं होती तो मांग लेता या भगा ही ले जाता पर मुसीबत घर से चली गयी होती । पूरा गाँव बाते बनाता है पता नहीं क्या क्या ।मैं कचहरी के और खेत के काम से चला जाता हूँ तो पता नहीं कहा कहा जाती है और क्या क्या करती है की पता नहीं क्या क्या सुनने को मिलता है करमजली कही की पैदा होते ही क्यों नहीं मर गयी । वो शादी को तैयार था उसके इतना खेत भी है बस थोड़ी उम्र ही तो ज्यादा थी पर नाटक कर दिया और शादी तय नहीं हो पाई ।देख रामप्यारी ने भी तो बड़ी उम्र वाले से शादी कर ली आज क्या तकलीफ है । अचांनक वो जाग गयी क्या क्या याद कर लिया उसने । अरे बाबा ने उसकी वकत भी समझा । बाबा बुरे नहीं है थोड़े परेशांन रहते है इसलिए बक देते है । क्यों रामबेटी का कह रही है कुछ कहूँ तो मानेगी परिवार की इज्जत के लिए और रामप्यारी तुझे भी साथ देना होगा । हां बाबा जो कहो परिवार की इज्जत के लिए जान भी दे दूंगीं । दोनों एक साथ बोल पड़ी ।रामू धीरे से वकील साहब की तरफ देख कर फुसफुसाया वकील साहब अगर मेरी बेटी छत पर सो रही हो और पडोसी गलत कर दे तब तो बात बन जाएगी । उसकी इज्जत भी जाएगी और जेल भी पक्की हो जाएगी न ।कोई पास भी नहीं बैठायेगा गाँव में तब देखूंगा की कैसे अकड़ता है । वकील भौचक्का समझ नहीं पाया इसलिए बस उसकी तरफ निहारता रहा ।सन्नाटाछा गया था कहा ।सब चुप ।वकील ने इंतजार किया की रामू कुछ और बोले और रामू मंद मंद विजयी मुस्कान के साथ कभी हरी सिंह को देखता तो कभी बेतियो को तो कभी वकील साहब को और सभी को देख रहा था तथा शायद महसूस करना चाहता था की वकील से भी ज्यादा तेज चले उसके दिमाग का क्या असर है सब पर । वकील का धैर्य जवाब दे गया तो झुंझला गया की रामू की क्या पहेली बुझा रहे साफ साफ़ क्यों नहीं बोलते की क्या कह रहे हो ।पडोसी क्यों तुम्हारे छत पर आएगा और क्यों ऐसा करेगा इज्जतदार आदमी है । कोई और बात करो । रामू फूटा मान लो वकील साहब रामबेटी के साथ मेरा दामाद हरी सिंह ही कांड कर दे और फिर रपट करवा दे की पडोसी ने मौका देख कर मेरी कुवारी बेटी से बलात्कार किया तो तुम्हे क्या दिक्कत है । तुम्हे फीस पूरी मिलेगी बस सा ** को जेल भिजवा दो और झुका दो ।क्यों रामप्यारी तोय तो दिक्कत ना ने । का फरक पडेगो एक बार में । परिवार की इज्जत की बात है । वहां सन्नाटा फ़ैल गया । वकील चुप और आँखे फटी रामबेटी की सांस रुक गयी हरी सिंह मुस्करा कर सहमती दे रहा था और रामप्यारी समझ ही नहीं पा रही थी की क्या कहे बस अपने पति की तरफ देखे जा रही थी और याद कर रही थी की कितनी बार साली से मजाक की आड़ में इसने रामप्यारी से क्या क्या हरकत की थी ।और हरी सिंह मानो किला जीत चूका हो । वकील शर्मा जी ने थूक निगला और किसी तरह अपनी कमाई का हिसाब लगाते हुए बोले कि रामू ये फैसला तो तुम्हारे परिवार को करना है पर केस तो मजबूत बनेगा और दुनिया की कोई ताकत उसे जेल जाने से नहीं रोक पायेगी ये गारंटी मेरी है ।अब इतने साल कचहरी में घास तो नहीं छीला है ।तुम लोग आपस में तय कर बता देना । कब किस रात को करना है सब बता देना क्योकि सुबह होते ही केस लिखाना पड़ेगा और दरोगा जी को भी सेट करना होगा तथा जिला अस्पताल में भी खर्च होगा मेडिकल में ताकि रपट पक्की बने फिर समझो गिरफ़्तारी और जेल क्या सजा भी पक्की । रामू ने रामबेटी की तरफ पहली बार कातर निगाह से देखा और पहली बार शायद आवाज में शहद घोल कर बोला बेटी अब घर की इज्जत तेरे हाथ में है ।रामप्यारी बोली बाबा मेरा ब्याह कैसे होगा जब बदनामी हो जाएगी तो ।पहले ही काली होने से नहीं हो रहा ।मानो रामू सब सोच कर बैठा था ।बोला की यहाँ शहर में एक चपरासी है बिरादरी का है उसकी बीबी मर गयी जहर खाकर और दो बच्चे छोड़ गयी है वो शादी कर लेगा और कुछ पैसे भी मेरे पास जमा कर देगा अच्छे बुरे वक्त के लिए । सन्नाटा ही सन्नाटा था और वकील साहब को खबर देने की कह कर बिना सिनेमा देखे बिना चाट खाए और बिना कुछ खरीदे रामू के साथ सब गाँव की तरफ चल पड़े । चार दिन बाद अख़बार में छपा की रामू की बेटी रामवेटी से छत पर बलात्कार और मेडिकल में सही भी पाया गया । पिता से बड़ी उम्र का तथाकथित कुकर्मी जो वहुत सभ्य बनता था गिरफ्तार कर जेल भेजा गया । रामू खुश वकील खुश हरी सिंह खुश पर रामप्यारी और रामबेटी दिखलाई नहीं पड़ी तब से की कौन खुश है ।रामु ने भी गाँव छोड़ दिया सबके साथ कुछ दिन के लिए की इज्जत को भी खतरा और जान को भी इसलिए बच्चो की सुरक्षा का इंतजाम कर ही घर लौटेगा फिर जान रहे या जाये पर मुकदमा पूरा अंत तक लेड़गा । पडोसी के परिवार में अधेरा हो गया और शर्म से उसकी बेटी ने आत्महत्या कर लिया ।रामू मूछो पर ताव दे कर घूम रहा है की जैसी करनी वैसी भरनी ।बाकी जांच जब आयेगी तब किसी को न्याय मिलेगा पर अभी तो रामू जीत गया । जो हुआ सो हुआ पर काम हो गया ।


समय भी क्या चीज है न्याय भी करता है और अति के साथ अन्याय भी । पता नहीं किसके साथ कब न्याय कर दे और कब किसी के अन्याय के लिए उसे रसातल में पहुंचा दे ।
इतिहास ने सभी को समान भाव से सिखाया है और सुरक्षित रहकर दस्तावेजो में ये मौका भी सुरक्षित रखा है की सभी उससे सबक ले । पर
देखते हैं कौन सा इतिहास कब उड़ान ले लेता है और कौन सा द्वारका में पैबस्त हो जाता है । इंतजार मुझे भी है और इन्तजार और लोगो को भी करना ही चाहिए क्योकि इतिहास तो बनना भी है और बदलना भी ।
इतिहास हो या समय कभी एक जैसा न रहा है और न रहेगा न मेरा न तेरा और न उसका ।
चलो आँखे बंद कर चिंतन करे की इतिहास की करवट अबकी कैसी होगी और क्या होगी ।
अभी इतिहासबोध को छोड़ ही देता हूँ ।उसका बोध भी करवाऊंगा जब बोधित हो जाऊंगा मैं इतिहास के अगले कदम से ।

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

1-लोग मुझे याद करेंगे मेरे मर जाने के बाद
2-जिन्दा कॉमें पाँच साल इन्तजार नहीं करती
3-जिस तरह आप तवे पर रोटी को तब तक उलटते पुलतते हो जब तक ठीक से पक न जाये ।नहीं पलटोगे तो एक तरफ से जल जायेगी ।वैसे ही सत्ता को तब तक पलटते रहो जब तक वो सबको न्याय देने वाली ,गैर बराबरी खत्म करने वाली न हो जाये ।
4-तालाब का पानी नहीं बदलोगे तो सड़ जायेगा पीने लायक नहीं रहेगा उसी तरह सत्ता को बदलते रहो वर्ना सत्ता भी सड़ जायेगी ।
5-जो बड़े है उनसे कहो थोडा धीरे चले और जो बहुत पीछे छूट गए है उन्हें विशेस अवसर देकर उनकी रफ़्तार बढ़ा दो एक दिन ये दूरी खत्म हो जायेगी और ये उंच नीच की खायी खत्म हो जायेगी ।
6 -इंसानो को बचाना है तो नदियो को बचाओ ,पहाड़ो को बचाओ गंगा यमुना को बचाओ और हिमालय को बचाओ तथा जंगल को बचाना बचाओ ।
7-गोवा की लड़ाई के बाद तिब्बत की लड़ाई भो भारत की जिम्मेदारी है तथा भारत के लिए जरूरी है ।
8-अंग्रेजी सहित सभी भाषाओ को जानो पर स्वदेशी भाषा को मजबूत करना जरूरी है राष्ट्र के आत्मसम्मान और तरक्की के लिए ।
9-देश केवल संसद को गर्म करने से नहीं बदलेगा उसके लिए खेत खलिहान और चौराहो को गरमाना होगा ।
10-राम और कृष्ण को मैं काव्य पुरुष मानता हूँ पर ये तो मानना पड़ेगा की भारत की एकता में दोनों का बड़ा योगदान है ।जहा राम ने उत्तर का दक्षिण से परिचय करवाया वही कृष्ण ने पच्छिम से पूरब का परिचय करवाया और इनको जोड़ने का काम किया ।
11-राम की मर्यादा ,कृष्ण का ह्रदय और शिव का न्याय अगर आ जाये तो बहुत बड़ा काम हो जाये ।
12-जितने पैसे कुछ लोगो के एक कुत्ते पर खर्च होते है यहाँ करोडो परिवार उतने में पूरा महीना जीवन यापन करते है ।कैसे कह दे की देश में सबको आज़ादी मिल गयी है ।
13-राम घर से चले थे तो केवल तीन थे पर लौटे तो एक साम्राज्य बदल कर लौटे ।इरादे न्याय के हो और संकल्प हो तो सब कुछ मुमकिन है ।
14-कृष्ण ने इंद्रा को चुनौती दिया की इसे भूख नहीं लगती ये तो केवल सूंघने वाला देव है इसलिए क्यों खिलाते हो जिसको भूख लगती है जो सुगंध नहीं स्वाद जनता है जिसके पेट है उसे खिलाओ तो उन्होंने भविष्य के न्याय अन्याय और उंच नीच के खिलाफ लड़ाई की इबारत ही तो लिख दिया था चाहे उसके लिए उन्हें अपनी छोटी सी उंगली पर जिम्मेदारियो और लोगो को सरक्षण का पहाड़ ही क्यों नहीं उठाना पड़ा ।
15-मैं जानता हूँ की नेहरू से टकरा कर मैं इस पहाड़ को गिरा नहीं सकता पर टकराते टकराते मैं दरार तो पैदा कर ही दूंगा की कमजोर होकर कल ये पहाड़ भी गिर जायेगा ।
16-इस बड़े देश के लिए जरूरी है चौखम्भा राज जिसमे गांव से दिल्ली तक अधिकार और निर्णय की ताकत बटी हो ।केंद्र केवल सुरक्षा विदेश निति और संचार का सञ्चालन करे ।प्रदेश शिक्ष स्वस्थ्य विकास सहित तमाम चीजो का और जिले तथा गांव की योजनाये उसी स्तर पर बने ।
17-दुनिया को सात क्रांतियों की जरूरत है जिसमे सभी तरह की गैरबराबरी खत्म होती हो वो चाहे रंग के आधार पर हो नर नारी के आधार पर हो उंच नीच और जातीयता के आधार पर या धर्म के आधार पर हो चमड़ी के आधार पर हो ।
18-आसपास के देशो का एक महासंघ बनाना चाहिए जिससे फ़ौज पर खर्च होने वाला पैसा लोगो की खुशहाली पर खर्च हो ।
(आज और अभी के लिए इतना ही )
कोई राजनीती बदलने की बात करता हो और रामलीला मैदान में सब फैसले करने तथा सब कानून बनाने की बात करता हो जनता से पूछ कर और मुख्यमंत्री बन जाये तो उसके मुह से साल कमीना जैसा शब्द और वो भी अपने क्षेत्रो में प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए क्या जनता को मंजूर हो सकते है ??
आप देश से गद्दारी करना चाहें तो कर लीजिये | वक्त उसे धुंधला कर देगा और आप देश के सर्वोच्च सम्मानित व्यक्ति हो जायेंगे | बस जरूरी ये है की सत्ता प्रमुख बन जाइये |
हिन्दुस्तान में आप जाति को नहीं झुठला सकते है क्योकि इसकी जडें पाताल से भी ज्यादा गहरी है और ये लहू के कतरे कतरे में ही नहीं बल्कि चिंतन और विवेक में परत दर परत पैबस्त है चेतन में भी और अवचेतन में भी । ये शास्वत सत्य बन चुकी है और बिना वजह हम आदिम काल और अनपढ़ता को कोसते है ये तो शिक्षा और आधुनिकता के साथ आक्रामक भी होती जा रही है ।ऐसा लगता है कि सारा ज्ञान जाति व्यवस्था को मजबूत करने के लिये है ।धार्मिक कट्टरता को बहुत पीछे छोड़ दिया है जातिगत कट्टरता ने ।आदिकाल में कर्म आधारित विभाजन कब घृणा ,उंच नीच और सोच आधारित जाति व्यवस्था में तब्दील हो गया ये गहन शोध का विषय है ।आज अगर कर्म के आधार पर फिर जातियों का निर्धारण करना हो तो शायद बहुत कुछ बदल भी जाये और युगांतकारी परिवर्तनकारी साबित हो समाज के लिए पर मानसिक जड़ता और उसकी समंदर के समान गहराई परिवर्तन होने नहीं देगी ।समाज के ठेकेदारों को भी इसे बनाये रखने में ज्यादा सहूलियत है और स्वार्थ भी ।
जातिगत आत्ममुग्धता जब तक नहीं दरकेगी तब तक इसके पतन की सोचना भी फिजूल है ।बस यूँ ही ।
( आज के चिंतन से )
1--आप दुनिया की लडाइयां जीत सकते है ,आप दुनिया भर के शासक बन सकते है ,आप बहुत बहादुर हो सकते है पर यदि आप बेटियों के पिता है तो आप बहुत कमजोर और मजबूर व्यक्ति होते हैं ।
2--आप बहुत अच्छे ,सच्चे और सिद्धांतवादी हो सकते है पर समाज आप की कोठी की लम्बाई चौडाई और भव्यता तथा गाडियों और नौकरों की संख्या से ही आप को तौलता है ।
3--कोई काम बताइयेगा कहने वाले तो बहुत होते है पर गलती से बता मत दीजियेगा वर्ना आप अकेले रह जायेंगे ।
4--अपनी आदते मत बदलिए और उस कहावत को याद रखिये की खुद मरे ही स्वर्ग दिखता है । इसलिए अपना काम खुद ही करिए तथा किसी का सहयोग हो जाये तो इश्वर की कृपा ।
5--पैदल सफ़र करने पर रिश्ते जुड़े रहते है असली हो या नकली और आसमान पर उड़ रहे है तो पैसा या आफत बरसाने की ताकत ही काम आएगी ।
6--किसी भी रिश्ते को आप टेकिंग फॉर ग्रांटेड लेने की भूल मत कर बैठिएगा बहुत तकलीफ होगी ।
7--जीवन में अपनी बीमारी और अपने फायदे को छोड़ कर किसी भी चीज को गंभीरता से मत लीजिये वर्ना कभी सुखी तथा निश्चित होने की कल्पना भी मत कीजिये ।
8--जो अपने आप हो जाये उसका श्रेय लीजिये और जो न हो या बुरा हो जाये उसकी तोहमत किस पर लगाना है ये पहले ही तय कर लीजिये ।
9--केवल अपने लिए जियो क्योकि आप हो तो आप हो और तभी कोई आप का अपना है वर्ना मंदिर के सामने प्रसाद बाँटने वालो को कौन पूछता है ।
10--इश्वर ने आप को अकेले पैदा किया है और माँ बाप के नहीं होने पर भी आप पल ही जाते है तथा किस्मत और पुर्सार्थ भर बन ही जाते है इसलिए अकेले ही सफ़र के लिए हर क्षण तैयार भी रहिये और वैसी ही मानसिकता भी रखिये तो सुखी रहेंगे ।
( आज के चिंतन से )
चंद्रा ;;स्वामी ;;;स्वामी ;;राफेल ;;;विमान ;; आखिर ये किस्सा क्या है और इसमें कही अन्न दानी भी है क्या परदे के पीछे ?
इन्तजार कीजिये ;; आने वाली है ;; इनकी भी आने वाली है :;
जब ताबूत नहीं छोड़ा तो फिर जहाज तो बड़ा होता है भाई | ये तो गलत हो जायेगा अगर छोड़ दे तो |
हाँ नहीं तो |
बाप रे ये महंगाई कितनी बढ़ गयी है सुरसा के मुह की तरह । अंदाज ही नहीं था ।बेटियों की शादी के लिए निकला हूँ तब पता लग रही है औकात ।
किसी ने कहां था 100 दिन में महंगाई भाग जाएगी । 100 दिन में 15 लाख हर किसी के खाते में होगा ,100 दिन में डालर को हमारा रुपया मुह चिढाएगा , ****----++++++?/+? इत्यादि इत्यादि । पर ये तो सब उल्टा हो गया है ।
हमें बुरा लगता था वो फेंकना जैसा कुछ पर यार सचमुच फेंक रहे थे और फेंक ही रहे हो ये तो अब एहसास हो रहा है ।
वार रे अधकचरा लोकतंत्र ! बस चिंता इतनी की कोई ग्रहण न लगा दे हिटलर और मुसौलिनी की तरह ।
जैसे भी होगा अब हमें तो सब करना ही है पर आह्ह्ह्ह् ।आह जला देती है बहुत कुछ ये जानते है न साहेब ।
दुसरे देशो में जाकर अपने देश की अन्दरूनी बाते करना और अपने देश की बुराई करना देश के साथ गद्दारी है या वफादारी ??
किसी से शिकायत होने या प्रताड़ित होने पर आत्महत्या तो कोई हल नहीं है ।
बल्कि हल तो ये है की मजबूती से अपनी सुखद जिंदगी हँसते हुए जी कर दिखाओ ।ये शायद उस व्यक्ति के लिए बड़ी सजा होगी जिसने आप को दुःख दिया और सजा हो या न हो पर ईश्वर की दी हुयी जिंदगी को जी कर ईश्वर का आभार तो व्यक्त कर ही सकते हो ।
अनर्गल आरोप हो या आत्महत्या दोनों कायरो और कमजोर के काम है और आप की अपने प्रति प्रतिबद्धता पर भी सवाल खड़े करते है ।
( आज के चिंतन से )
उम्मीद की सुबह ---------------------------------हर किसी की सुबह बहुत उम्मीदे और उमंग लेकर आती है इसीलिए शायद कहा गया है की उगते हुए सूरज को देखो और प्रणाम करो तथा प्रेरणा लो की इतनी लम्बी अँधेरी रात भी सूरज को उगने से रोक नहीं पाती और उसका स्याह साया सूरज की उगने की प्रवृति को डिगा नहीं पाता तो तुम क्यों नहीं उग सकते हो नयी सुबह के साथ ।
हम करोडो सो रहे होते है पर सूरज खरामा खरामा अपनी आसमानी सफ़र पर पूरे ओज और ऊर्जा तथा चमक के साथ चल रहा होता है और हमें भी मजबूर कर रहा होता है आँखे खोलने और उठ खड़े होने के लिए ।
ये भी सच है की बहुत से लोग फिर शाम होते होते नाउम्मीद और पस्त हो जाते है लेकिन सूरज भी तो चमक खो देता है शाम तक और डूब रहा होता है कही क्षितिज की अनंत गहराइयो में ताकि फिर ऊर्जा के साथ सफ़र पर चल सके ।
इसलिए हर सुबह उम्मीदे बनाये रखिये और चिंता के नहीं बल्कि चिंतन के पथ पर मजबूत इरादे के साथ ,खुद के हौसलों के साथ और जोश के साथ कदम बढ़ाते चलिए ।
मंजिले कभी सीधे और सुगम रास्तो पर होती है ,कभी फिसलन भरे रास्तो से तो कभी बहुत कंटकपूर्ण ,कभी पथरीली तो अक्सर पहाड़ो के तरह घुमावदार और लम्बे रास्तो से मिलती है ।कभी दलदल ,नदी और अथाह समुद्र जैसे अवरोध भी सामने आ जाते है पर लोगो ने इनको भी पार किया है ।
रात को सोये होते है तो प्रायः अर्ध मृतप्राय ही तो होते है और सुबह जागते है तो एक तरह नया जन्म ही तो लेते है हम और हमारी किलकारी हो या क्रंदन दुनिया को बता देते है की हम है या हम भी है या अब हम आ गए है दुनिया की चुनौतियों के लिए ।बस यही भाव हो हर नयी सुबह का ।
सभी को हर सुबह नयी सुबह हो उठान की और नयी उड़ान की ।नयी सुबह की सभी को शुभकामनायें ।
(मेरा सूरज विज्ञानं का नहीं बल्कि साहित्य का सूरज है अतः वैसे ही देखे )
(आज सुबह के चिंतन से )
देश और लोकतंत्र के भले के लिए ऐसा कानून बने की किसी भी एक के पास बहुत ज्यादा जिम्मेदारियां नहीं होनी चाहिए । विभागों और जनता के साथ न्याय नहीं होता तथा तंत्र निरंकुश हो जाता है ।
( आज के चिंतन से )
पता नहीं क्यों मुझे लगता है की अंधाधुंध पूंजीवादियों की रफ्तार और सरकारो का केवल उनके लिए दिखना देश में नयी चेतना को जन्म देगा और राजनीती करवट लेगी तथा राजनीती के केंद्र में किसान ,मजदूर और बेरोजगार नौजवान होगा ।
अपनी पार्टी के राष्ट्रीय सम्मलेन में पार्टी को मैंने इस दिशा में मोड़ने की कोशिश किया था मेरी आवाज खो गयी थी ।
आज अगर कोई चौ चरण सिंह होते तो देश की राजनीती की धुरी बन जाते ।पर ऐसे लोग जो खुद दिन रात पूंजीपतियो के साथ ही गलबहियां करते है वो कितनो भी कोशिश कर लें किसान और मजबूर के नेता वो नहीं हो सकते ।
अगर सरकारे अपने इस केवल पूंजीपति समर्थक रूप से अलग नहीं हो पायी और तंत्र गरीबो ,किसानो और मजदूरो तथा मजबूरों से घृणा नहीं छोड़ पाया और प्रकृति भी प्रहार करती रही तो स्थिति विस्फोटक भी हो सकती है ।
उससे बचने के लिए सभी को सोचना और बदलना होगा और इन लोगो के प्रति उपेक्षा का नजरिया बदलते हुए इन सभी के हालातो को बदलने के लिए गंभीर और ईमानदार प्रयास करना होगा ।
(आज सुबह के चिंतन से )
पता नहीं आज बहादुर शाह जफ़र की याद आ गयी जो कहने को तो पूरे हिंदुस्तान के बादशाह थे पर उनका हिंदुस्तान दिल्ली के लाल किले तक सीमित था ।
और शायद वाजिद अली शाह की भी जो पूछते रहे की दुश्मन की सेना अभी कितनी दूर है तब तक शतरंज की एक बाजी और हो जाये ।
बस यूँ ही । सन्दर्भ --बूझो तो जाने ।
आप किसी इंसान के शरीर से उसके बाल उखाड़ो तो उसे दर्द होगा या नहीं और वो हिलेगा या नहीं ,आप उसके शरीर से पहले पानी और फिर खून निचोड़ लो ,आप उसके शरीर में छेद करते जावो तो क्या होगा ।
यही तो कर रहे है हम सभो पृथ्वी के साथ उसके बाल यानी हरियाली विहीन करते जा रहे है ,उसकी नसों यानी नदियो को और नालो तथा नहरो को खत्म करते जा रहे है ,जमीन में छेद करते जा रहे है अंधाधुंध ,उसका पानी निचोड़ते जा रहे है तो उसे भी दर्द हो रहा है और वो भी हिल रही है ।अब उसके हिलने से क्या क्या होगा उसको क्या
माल्थस ने तो वर्षो पहले हमें बता दिया था की प्रकृति अपना संतुलन खुद तय करती है पर हमने उनकी बात पर गौर करना भी उचित नहीं समझ ।
अब भुगतने को तैयार रहे पूरी मानवता ।
पर आज के हादसे में जहा भी और जो भी प्राण गंवा बैठा है उसको श्रधांजलि और उसके परिवार के प्रति संवेदना और जहा भी नुक्सान हुआ है उनके प्रति भी ।
लेकिन सम्हल जाये इंसान भी और इंसानो की सरकारे भी तथा खास तौर पर पूंजीपति लोग जो प्रकृति के साथ सबसे ज्यादा खिलवाड़ करते है ।
किसी ने अपनी किस्मत अच्छी होने का ढिंढोरा पीटा था किसी बात पर । उनकी अच्छी किस्मत के कई नमूने देख लिए लोगो ने थोड़े ही समय में ।
जय हो । अच्छे दिन्न्न्न्न्न्न ??????
करोडो की जमीन खरीदेंगे और बड़े घर बनायेंगे पर एक पेड़ नहीं लगायेंगे और करोडो की सजावट करेंगे पर केवल २५ हजार रुपया खर्च कर वाटर रीचार्ज की बोरिंग नहीं करवाएंगे और जो जिम्मेदार है वो नदियों नहरों और पहाड़ो के संरक्षण और वृक्षारोपण का पैसा खा जायेंगे और फाईलो में ये सब काम कर देंगे और फिर जब पृथ्वी हिलेगी या समुद्र गुस्सा होगा तो डर कर कांपेंगे |
जिस दिन प्रकृति बदला लेगी खुद से छेड़छाड़ का और तबाही आयेगे कहा लेकर भागोगे ये हरम से कमाई दौलत ? जैसे मिलावट कर के दौलत तो कमाँ रहे हो पर एक दूसरे के द्वारा बेचीं गयी बीमारियों और कैंसर इत्यादि से खुद को बचा नहीं पा रहे है और न अपनों को |
जरा सोचो तबाही हमारी किसी और के कारण नहीं बल्कि हमारे कारण आती है और बड़ी तथा अंतिम तबाही हमारे ही कारण आएगी |
चाहो तो अब भी बाख जाओ या तबाही की इबारत अपने ही हाथो से लिखते जाओ |

सोमवार, 23 मार्च 2015

विपक्ष में रहते हुए कुछ भी बोल दो या आरोप लगा दो ,चाँद तोड़ लेने के वादे कर दो ,सबके घर सोने के बनाने की बात कर दो और शकर जी की पूरी बारात को सड़क पर उतार दो सब चलता है ।
पर जब सत्ता में हो और सारी जनता तथा चारो तरफ से हर वर्ग ने बहुमत की सत्ता दी हो तो सब कुछ इसके उलट हो जाता है । -हर शब्द तौला जाता है -हर निर्णय और बटवारे पर निगाह रहती है -हर कदम और भाव भंगिमा पर निगाह रहती है -चपरासी तक की नौकरी और नियुक्ति पर निगाह रहती है -साथ दिखने वालो पर निगाह रहती है -हर वादे पर और उसकी जमीनी हकीकत पर निगाह रहती है -हर न्याय और अन्याय पर निगाह रहती है ।
गलत और अयोग्य लोगो को न्याय तथा निर्णय के स्थानों पर बैठना सत्ता के गर्त में जाने की गारंटी होती है ।सत्ता के लिए योग्य ,ईमानदार और जानकार लोगो की जरूरत होती है जैसे संगठन के लिए संगठक और विनम्र तथा हर वक्त उपलब्ध की ।
जब सबने मिल कर बहुमत दिया हो तो सबको न्याय और सामान न्याय देना अगली बार सरकार बनाने के लिए जरूरी हो जाता है ।पर संघर्ष के सभी साथी भी महसूस करे की वो भी सत्ता के हिस्सेदार है , धन दौलत नहीं तो कम से कम सम्मान के तो है ही और वो अपनों से दूर नहीं हुए है ये जरूरी होता है ।
लोगो से अपनेपन की निगाह हटी और दुर्घटना घटी । ये सभी पर लागू होता है । आप केवल काम करे ये नौकरशाही में होता है पर राजनेता काम करे और हर काम में लोगो को उसका चेहरा तथा आदेश वाली वाणी दिखाई और सुनाई पड़ती रहे यह जरूरी है और यह भी जरूरी है की लीडर जो हो रहा है उसे मौके पर निर्देश और निरिक्षण कैरता दिखे तथा जनता को खुद उसी स्थान से समर्पित करता दिखे ।
पर सबको लगे की आप सबके है ये जरूरी है ।किसी को भी ओहदा देने और महत्व देने के तरीके हो सकते है और ऐसे ओहदे है जिनपर बैठ कर देश और समाज का बड़ा नुक्सान संभव नहीं है पर मूल्यों तथा संस्थाओ को नहीं बिगाड़ना चाहिए । क्योकि जब मूल्य तथा परम्पराएँ बिगड़ती है या जब संस्थाओ को खोखला किया जाता है तो उसके दुष्परिणाम पूरा देश ,पूरा समाज और पीढियां भुगतती है ।
( आज सुबह के चिंतन से )
हमेशा उंच नीच की खाई और गैरबराबरी के खिलाफ लडाई और सिद्धांत की बात करने वाले सत्ता में आते ही खुद बड़ी से खायी क्यों बना देते है और बहुत बड़े और बिलकुल छोटे वाली गैरबराबरी क्यों पैदा कर देते है तथा जो पहले से ही बड़े है उन्हें और बड़ा बनाने में क्यों लग जाते है ?
संघर्ष और सत्ता के चरित्र में ये अंतर क्यों होता है ?
राजनीती शास्त्र में एक पुरानी बहस है की लोक कल्याणकारी तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था उतनी ज्यादा अच्छी मानी जाएगी जितना सरकार और उसके तंत्र का नागरिक के जीवन में हस्तक्षेप कम होगा तथा जितना नागरिक को इनसे दूर रहने की सुविधा मिलेगी |
परन्तु विभाग बढ़ाते जा रहे है ,कानून बढ़ाते जा रहे है और जिंदगी में हस्तक्षेप करने वाले लोग बढ़ते जा रहे है |
क्या सरकारे इस दिशा में ठोस कदम बढ़ा सकती है की ये सब कम से कम हो और जनता को दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़े | क्योकि जो इ गवर्न्नेंस के मामले है उसमे भी लोगो को खुद तक आने से मजबूर करने के रास्ते खोज लिए है कर्मचारियों ने |
जब ये माना जाता है की नागरिक सभी कानून और नियम जानता  है तो उसे स्वयम कानून को मानाने वाला मन कर रहने दिया जाये |
रेंडम जांच में अगर गलत पाया जाये तो अधिक आर्थिक दंड भुगते पर हर किसी को हर दफतर हर महीने या साल क्यों जाना पड़े ?
1-लोग मुझे याद करेंगे मेरे मर जाने के बाद
2-जिन्दा कॉमें पाँच साल इन्तजार नहीं करती
3-जिस तरह आप तवे पर रोटी को तब तक उलटते पुलतते हो जब तक ठीक से पक न जाये ।नहीं पलटोगे तो एक तरफ से जल जायेगी ।वैसे ही सत्ता को तब तक पलटते रहो जब तक वो सबको न्याय देने वाली ,गैर बराबरी खत्म करने वाली न हो जाये ।
4-तालाब का पानी नहीं बदलोगे तो सड़ जायेगा पीने लायक नहीं रहेगा उसी तरह सत्ता को बदलते रहो वर्ना सत्ता भी सड़ जायेगी ।
5-जो बड़े है उनसे कहो थोडा धीरे चले और जो बहुत पीछे छूट गए है उन्हें विशेस अवसर देकर उनकी रफ़्तार बढ़ा दो एक दिन ये दूरी खत्म हो जायेगी और ये उंच नीच की खायी खत्म हो जायेगी ।
6 -इंसानो को बचाना है तो नदियो को बचाओ ,पहाड़ो को बचाओ गंगा यमुना को बचाओ और हिमालय को बचाओ तथा जंगल को बचाना बचाओ ।
7-गोवा की लड़ाई के बाद तिब्बत की लड़ाई भो भारत की जिम्मेदारी है तथा भारत के लिए जरूरी है ।
8-अंग्रेजी सहित सभी भाषाओ को जानो पर स्वदेशी भाषा को मजबूत करना जरूरी है राष्ट्र के आत्मसम्मान और तरक्की के लिए ।
9-देश केवल संसद को गर्म करने से नहीं बदलेगा उसके लिए खेत खलिहान और चौराहो को गरमाना होगा ।
10-राम और कृष्ण को मैं काव्य पुरुष मानता हूँ पर ये तो मानना पड़ेगा की भारत की एकता में दोनों का बड़ा योगदान है ।जहा राम ने उत्तर का दक्षिण से परिचय करवाया वही कृष्ण ने पच्छिम से पूरब का परिचय करवाया और इनको जोड़ने का काम किया ।
11-राम की मर्यादा ,कृष्ण का ह्रदय और शिव का न्याय अगर आ जाये तो बहुत बड़ा काम हो जाये ।
12-जितने पैसे कुछ लोगो के एक कुत्ते पर खर्च होते है यहाँ करोडो परिवार उतने में पूरा महीना जीवन यापन करते है ।कैसे कह दे की देश में सबको आज़ादी मिल गयी है ।
13-राम घर से चले थे तो केवल तीन थे पर लौटे तो एक साम्राज्य बदल कर लौटे ।इरादे न्याय के हो और संकल्प हो तो सब कुछ मुमकिन है ।
14-कृष्ण ने इंद्रा को चुनौती दिया की इसे भूख नहीं लगती ये तो केवल सूंघने वाला देव है इसलिए क्यों खिलाते हो जिसको भूख लगती है जो सुगंध नहीं स्वाद जनता है जिसके पेट है उसे खिलाओ तो उन्होंने भविष्य के न्याय अन्याय और उंच नीच के खिलाफ लड़ाई की इबारत ही तो लिख दिया था चाहे उसके लिए उन्हें अपनी छोटी सी उंगली पर जिम्मेदारियो और लोगो को सरक्षण का पहाड़ ही क्यों नहीं उठाना पड़ा ।
15-मैं जानता हूँ की नेहरू से टकरा कर मैं इस पहाड़ को गिरा नहीं सकता पर टकराते टकराते मैं दरार तो पैदा कर ही दूंगा की कमजोर होकर कल ये पहाड़ भी गिर जायेगा ।
16-इस बड़े देश के लिए जरूरी है चौखम्भा राज जिसमे गांव से दिल्ली तक अधिकार और निर्णय की ताकत बटी हो ।केंद्र केवल सुरक्षा विदेश निति और संचार का सञ्चालन करे ।प्रदेश शिक्ष स्वस्थ्य विकास सहित तमाम चीजो का और जिले तथा गांव की योजनाये उसी स्तर पर बने ।
17-दुनिया को सात क्रांतियों की जरूरत है जिसमे सभी तरह की गैरबराबरी खत्म होती हो वो चाहे रंग के आधार पर हो नर नारी के आधार पर हो उंच नीच और जातीयता के आधार पर या धर्म के आधार पर हो चमड़ी के आधार पर हो ।
18-आसपास के देशो का एक महासंघ बनाना चाहिए जिससे फ़ौज पर खर्च होने वाला पैसा लोगो की खुशहाली पर खर्च हो ।
(आज और अभी के लिए इतना ही )
फांसी मजूर है माफ़ी मंजूर नहीं ।मेरी शहादत आजादी की जंग में नया रंग भरेगी ।और मुस्करा दिए ।
ये खालिस्तान के लिए या हिन्दू मुसलमान के लिए नहीं ,बल्कि हिंदुस्तान के लिए शहीद हुए ।ये फासीवाद के लिए नहीं बल्कि बहुलवादी व्यवस्था को रखते हुए लोकशाही के लिए शहीद हुए ।ये किसी केंद्रीयकृत सत्ता के लिए नहीं बल्कि जन की सत्ता के लिए शहीद हुए ।ये हिंदुस्तानियत और इंसानियत के लिए शहीद हुए ।
23 साल की उम्र में लोग अपनी पढाई और जिदगी की दिशा नहीं तय कर पाते और उस उम्र में इन्होने शाहदत या जिन्दगी में से चुन लिया फासी का फंदा ,उस उम्र इनके दिमाग में तय था समाज का भविष्य और देश के भविष्य का नक्शा हर परिपेक्ष्य में ।
देश का सलाम और हिंदुस्तानियत तथा इंसानियत की प्रतिबद्धता का सलाम ।
जब किसी की छवि लगातार असत्य बोलने और वादाखिलाफी तथा नौटंकी करने वाले की बन जाती है तो फिर वो कुछ भी कर ले इसी तराजू पर उसे तौला जायेगा और उसे इसी दृष्टि से देखा जायेगा ।
सन्दर्भ आज का ही है तथा लेखन में नाम का उल्लेख करना जरूरी नहीं होता है ।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

हरियाणा- भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार
झारखंड - भाजपा की गठबंधन की सरकार
महाराष्‍ट्र - भाजपा की जैसे-तैसे सरकार
कश्‍मीर- न भाजपा की न विपक्ष की सरकार
दिल्‍ली- भाजपा की हार, विपक्ष की सरकार
......गिरते ग्राफ के लिए मोदी जिम्‍मेदार।
आप यदि जीतती है जैसा की दिख रहा है तो बाकी दलों को भी अपनी अपनी राजनीती पर और रणनीति पर चिंतन करना होगा की देश की राजनीती और युवा तथा गरीब और बेरोजगार राजनीती को कोई नयी दिशा और नयी धार तो नहीं दे रहे जिसमे पुराना धर्म और जाति का गणित गौण हो रहा है और व्यवस्था परिवर्तन की चाहत और उसके लिए छटपटाहट ,उसके लिए आग्रह ,उसके लिए विमर्श और बौद्धिक विमर्श तथा चर्चा परिचर्चा ,साफ़ सुथरे चेहरे और भाषा चाहे जाति और धर्म कुछ भी हो नए हथियार तो नहीं बनने जा रहे है ।
जो समय से समझ जायेगा और उसके अनुसार खुद को ढाल लेगा वो समय के साथ चल जायेगा ।
अमेरिकी रास्त्रपति पूरी तैयारी कर के आये थे और तय कर के आये थे की भारत के वर्तमान सत्ताधीशो को लोकतंत्र तथा विकास के रस्ते के बारे में बताएँगे और उन्होंने बता भी दिता की --१- गाँधी की धरती और विवेकानंद के देश में आकर वो खुश है | -२- यदि भारत धार्मिक आधार पर नहीं उलझा और बंटा तो सचमुच बहुत तरक्की करेगा तथा यहाँ की बहुलतावाद को भी इंगित किया | गाँधी और विवेकानंद के विचार तो इनके बिलकुल पलट है जो नागपुर का राज्य स्थापित करना चाहते है |
बहुत दिक्कत हो गयी ये तो और सारा स्वागत का मज़ा किरकिरा हो गया क्योकि संघ की सरकार तो जो करना चाहती है और उसका भविष्य का एजेंडा है उसी की बुराई और उसी पर उपदेश दे दिया बराक ओबामा ने |
अब देखे अगले कुछ दिन में क्या दिखता है |
शायद ज्ञान ,निष्ठां ,मेहनत, लगन,चरित्र ,इमानदारी इत्यादि बस किताबी शब्द रह गए हैं आज जो बस किताबो में पढने ,दूसरो को सीख और प्रवचन देने ,भाषण देने और अपनी कमजोरियां ढकने के काम आते है ।
आज के समय में जो पूरी तरह इन बातो के विपरीत है वही प्रिय है ,वही तरक्की कर रहा है ,वही समाज और देश का आदर्श है और वही सभी क्षेत्रो में ऊँचाइयाँ हासिल कर रहा है ।
बिलकुल वैसे की गलत काम मत करो और घूस मत दो पर ट्रेन छूट न जाये इसके लिए कुछ दे देना ,काम हो जाये चाहे कुछ देना पड़े इत्यादि सार्वभौमिक सच्चाई बन गये हैं ।
किसी फ़िल्मी हीरो और अम्बानी जैसो के लिए बिछे जाते है पर आदर्शवादी या स्वतंत्रता सेनानी खाने और दवाई बिना मर जाता है तथा उसके बच्चे पढाई और शादी जैसी मूल चीजो के लिए भी वंचित रहते है ।
पूरा जीवन ,जीवन मूल्य और समाज ही दोहरेपन का शिकार हो चूका है ।
जो अगुवा है वो क्या न पा जाऊं की चूहा दौड़ में बस आसमान की तरह देख रहे हैं की कैसे ये चाँद सितारे भी उनकी मिलकियत हो जाये ।पर सब इसी व्यवस्था से संतुष्ट भी है इसलिए व्यवस्था और व्यवस्था में बैठे लोग इस रास्ते पर भागे जा रहे है ।जिस दिन डर बैठ जायेगा की भूख की आग महलो को जला भी सकती है उस दिन नजर अपने आप जमीन पर ही नहीं बल्कि झोपड़ो के अन्दर भी हर वक्त देखने लगेगी ।
पर सवाल तो यही है की वो सच्ची आजादी और सच्चे कल्याणकारी लोकतंत्र का दिन कब आएगा और कैसे आएगा ।
बस ?????????????????????? ! ! !
( आज का चिंतन )

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

समाजवादी पार्टी के सभी ८ विधान परिषद् उम्मीदवार चुनाव जीते और बीजेपी का धन्ना सेठो के पैसे के दम पर और मोदी नाम का इस्तमाल करके तथा भविष्य में टिकेट देने का लालच देकर और दल बदल करवा कर चुनाव जीतने का मंसूबा चकनाचूर हो गया | बीजेपी का घमंड भी चकनाचूर हो गया | शायद उसके अहंकार का बुखार अब उतर जाये | सभी समाजवादी विजेता उम्मीदवारों को बधाई |
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सहित उन सभी बीजेपी नेताओ के झूठ का पर्दाफाश हो गया जो सपा के सौ से अधिक विधायको के उनके सम्पर्क में होने और टूटने का दावा कर रहे थे | फेंकने वालो की पार्टी का ये फेंकना भी बेकार गया |
जनता अब इन लोगो के असली चेहरे को और चाह को पहचान गयी है |
क्या नैतिकता के नाम पर प्रदेश अध्यक्ष सहित ये सभी असत्य बोलने वाले नेता स्तीफा देंगे ? आज का यह यक्ष प्रश्न है संघ और बीजेपी के सामने |

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

अभी अभी एक बड़े प्रतिष्ठित अख़बार के मेरे अच्छे मित्र पत्रकार ने बताया की उत्तर प्रदेश सरकार ने इस वर्ष की दिल्ली की 26 जनवरी परेड के लिए सामाजिक सौहार्द और विकास के एजेंडे पर अपनी झाकी बनाया था ।जो मुख्यमंत्री जी का संकल्प तथा कार्यक्रम है और जिस पर समाजवादी सरकार मजबूती से चल रही है ।
पर केंद्र सरकार ने इस झांकी पर एतराज कर दिया और दूसरी झांकी वाजिद अली शाह पर बनाने को कहा ।कोई प्रदेश अपनी प्रगति या उद्देश्य को दिखाने वाली क्या झांकी दिखाना चाहता है यह इसका अधिकार है और केंद्र को उसको रद्द करने का कोई अधिकार नहीं जब तक की वो झांकी संविधान या रास्त्रहित के खिलाफ न हो ।
यदि केंद्र सरकार ने ये किया है तो उसने देश के 22 करोड़ जनसंख्या का अपमान किया है और आर एस एस की सोच के दबाव का फैसला किया है ।
26 जनवरी की परेड की व्यवस्था केंद्र का रक्षा मंत्रालय करता है पर उसकी सलामी श्रीमान रास्त्रपति जी लेते है और रास्त्रपति पूरे देश तथा सभी प्रदेशो के होते है और यह परेड देश की समृद्धि और सोच तथा ताकत दिखाने के लिए होती है तथा सभी प्रदेश इसके भागीदार होते है ।
मैं केंद्र सरकार के इस कृत्या की घोर निंदा करता हूँ ।मैं तो इसके विरोध में अपना विरोध दर्ज जरूर करवाता और झांकी बदलने से इनकार कर देता ।
केवल सात महीने में ही खुमार उतर गया और ये हाल ? 5 /5 फुट दूर कुर्सियां लगायी गयी और फिर भी पूरी दिल्ली बीजेपी तथा केंद्र सरकार 10 हजार लोगो को भी नहीं इकठ्ठा कर पायी रामलीला मैदान में अपने प्रधान प्रचारक के कुछ और पलटू भाषण सुनने के लिए ।और अहंकार ये कि वादे 2022 के ।
जब भाषण के अलाबा कुछ करना ही नहीं है तो 50 साल बाद तक के कुछ वादे करते जाओ ।
लगे रहो ।वैसे अच्छा कहा की जिसे जो आता हो जनता उसे वही काम सौंपे ।इस हिसाब से तो केवल भाषण देना जानने वाले को जनता ने एक बार गलत काम सौप दिया ।
ये भी ठीक कहा प्रधान प्रचारक जी की दिल्ली में झूठ ही चल रहा है ।अनजाने में ही सही स्वीकार तो कर ही लिया की देश की जनता से झूठ बोलकर दिल्ली चल रही है ।
पर बहुत अफ़सोस हुआ की बस इतना ही समर्थन बचा दिल्ली में ।जनता ऐसे ही जवाब देती है घमंड में चूर और 2021 का सपना पालने वालो ।पर मीडिया का कुछ भाग भीड़ दिखाने की तकनीक का आज भी इस्तेमाल कर रहा था पर कुछ कैमरों ने पोल खोल दिया ।
मुझे दो बाते लगती है ----
1---दूसरे की हार पर खुश होने के बजाय अपनी जीत हासिल कर खुश हुआ जाये ।
2--- दूसरे से गलती होने का इंतजार करने और उससे अपने लिए उम्मीद पालने के स्थान पर खुद अपने अच्छे कर्मो से ,अच्छे व्यवहार से ,जनता के हर वर्ग को जोड़ कर ,संगठन को मजबूर कर ,कार्यकर्ताओ को हर स्थान पर अधिकार, अवसर और अपनापन देकर तथा सबका दिल जीत कर उम्मीद नहीं बल्कि लोगो के दिलो पर स्थायी राज किया जाये ।
बस यूँ ही विचार आ गया कुछ वर्तमान संदर्भो पर ।
सात महीने तक काफी मशक्कत करने के बाद अंततः संघ की सरकार ने देश पर पहला एहसान किया और बड़ा काम किया ।योजना आयोग का नाम नीति आयोग कर दिया ।
पूरा देश आभारी भी है और गदगद भी ।
दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थ सस्ता हो रहा है संघी उसका श्रेय भी अपने प्रधान प्रचारक को दे रहे है और जनता को उसका लाभ देने के स्थान पर टैक्स बढ़ाते जा रहे है ।
कमाल ये है छाती पीटने वाले लोग और हर शहर और पेट्रोल पम्प पर लोगो के हलक से पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर तूफ़ान खड़ा करवाने वाले कैमरे भी विश्राम पर है ।
देश में टॉप के केवल दस लाख लोगो को अलग कर के देश के सभी अर्थशास्त्री बताये की जी डी पी ,सेंसेक्स और पर कैपिट इनकम के आंकडे क्या कहते है ?
और 124.9 करोड़ लोग कहा खड़े है तथा संघ की सरकार इनके लिए क्या कर रही है ?
लोकबंधू राजनारायण को भारत रत्न मिले बिना 1977 के बाद मिले सभी भारत रत्न बेमानी है ।अगर आज़ादी की लडाई में अंग्रेजो की मुखबिरी करने वाले को तथा स्वतंत्रता सेनानियों को जेल भिजवाने वाले को भारत रत्न मिल सकता है तो देश के लिए इतनी तरह की लड़ाइयाँ लड़ने वाले राजनारायण जी को क्यों नहीं ??
1-राजनारायण का मतलब जो आज़ादी की लडाई में 3 साल जेल में रहे तो आज़ाद भारत में गरीब ,मजदूर ,किसान ,नौजवान ,मुद्दों के लिए ,संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए 14 साल से अधिक जेल में रहे ।
2-राजनारायण जो खुद बड़े जमीदार थे पर आज़ादी के बाद जमीदारी के खिलाफ आन्दोलन चलाया और खेत जोतने वालो को हक दिलवाने की फैसलाकुन लडाई छेडी ।
3- आज कोई कुछ भी दावा करे पर राजनारायण वो पहले व्यक्ति थे जो खुद बड़ी में पैदा हुए थे लेकिन हजारो दलितों को लेकर बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रवेश करवाया जिस पर पंडो ,पुलिस और संघियों ने उन पर तथा हरिजनों पर हमला कर दिया ।पर उन्होंने देश के दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलवाने की आवाज तो बुलंद कर ही दिया ।
4- राजनारायण जी पसंद नहीं आया की आज़ाद भारत में अंग्रेज आकाओ की मूर्तियाँ अपनी जगह कड़ी है तो उन्होंने तोड़ने की शुरुवात कर दिया और उसके लिये उन्हें आज़ाद भारत में करीब डेढ़ 1.5 साल की जेल और जुरमाना हुआ ।
5- उत्तर प्रदेश की पहली विधान सभा से लेकर संसद तक उन्होंने विपक्ष को आवाज दिया और तमाम अपमान और चोटो के बावजूद उन्होंने सिखाया की सत्ता चाहे कितनी संख्या बल वाली बलशाली हो पर आप के इरादे मजबूत है ,आप सैधांतिक लडाई लड़ रहे है और आप का आवाज में दम है तो आप अकेले भी विपक्ष की भुमिका निभा सकते है तथा मुद्दों पर सरकार को झुकने को मजबूर कर सकते है ।
6 - उन्हने कर के दिखाया की किस तरह बना धन और ताकत के भी इंदिरा गाँधी जैसी मजबूत प्रधान मंत्री का भी हराया जा सकता है जनता की अदालत में भी और कानून की अदालत में भी ।
7-उनकी अंतिम यात्रा में जिस तरह लाखो लोग सड़को पर थे और महिलाये छतो पर थी ,नदी में लोगो से भरी नावो में नदी ही ढक गयी थी वो उनके किये को लोगो का अंतिम सलाम था .
बड़े से अथवा सत्ता से कभी ऐसा सत्य हरगिज मत बोलिए जो अप्रिय हो अन्यथा आप अप्रिय हो जायेंगे इसकी सौ प्रतिशत गारंटी है ।उसे कूए में गिरते देख कर भी ताली बजाइए और कहिये की आप से अच्छा तो कोई कूद ही नहीं सकता है और इस बात पर आप फायदे और सफलता की सीढिया कूद कर चढ़ जायेंगे इसकी भी गारंटी है ।
ज्ञान के भण्डार से ।
किसी व्यक्ति या दल को प्रदेश या देश से भगाना या मिटाना लोकतंत्र की न तो भाषा हो सकती है ,न सोच और न इरादा ।
बीजेपी और संघ की ये भाषा फासीवाद का उदबोधन है ।पर देश की जनता लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा करना जानती है ।
कुछ लोग नौकरी में रहते हुए पानी पी पी कर राजनीती और नेताओ को गली देते है तथा सारी समस्यावो की जिम्मेदारी उन पर डाल देते है वही लोग तब बहुत हास्यास्पद नजर आते हैं जब नौकरी जाते ही घुटने के बल रेंग कर नेता बनने आ जाते है और राजनीती तथा पार्टी का गुणगान करते है |
रामलीला मैदान फ्लॉप रैली ने किरन बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया ।देश के प्रधान प्रचारक ने समझ लिया की दिल्ली का चुनाव टच विद केयर वाला है ।बस दो पुराने लोकपालियो को कर दिया आमने सामने ।
मान गए भाई टोपी पहनाना अच्छी तरह आता है ।बुराई नहीं कर रहा हूँ बल्कि बाकि नेताओ को सीखने के लिए है की बिना कुछ भी किये बहुत कुछ कैसे दिखाया जाता है ।बिना कुछ जाने बहुत कुछ कैसे बताया जाता है और जिन सीढियों का इस्तेमाल किया उनको कैसे मिटाया जाता है तथा खतरा आने पर अपनी टोपी दूसरे को पहना कर खुद को कैसे बचाया जाता है ।
दे तीन ताली ।