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बुधवार, 23 जून 2021

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#जिंदगी_के_झरोखे_से--

मेनका गांधी की गालिया और नेता जी राज नारायणजी की शिक्षा --

 मेनका गांधी के बारे मे पढा की उन्होने किसी वेटनरी डाक्टर को भद्दी भद्दी गलियाँ दिया ।इस पर मुझे ये संभवतः 1981/82 का किस्सा याद आ गया ।
राज नारायणजी 6 तीन मूर्ती लेन मे रहते थे और सभी समाजवादीयो का दिल्ली जाने पर रहने सोने ही के साथ नहाने और हर वक्त खाने का ठिकाना यही घर होता था । राज नारायणजी के घर डबल बेड और सोफ़ा नही था । वो खुद नीचे जमीन पर ही बैठते थे और सोते थे । उनके कमरे के बाहर के कमरे मे पूरा इस दीवार से उस दीवार तक बिस्तर और चादर बिछा था । यही पर बीच मे बड़ी से प्लास्टिक बिछ जाती थी और वो दस्तरखान बन जाता था जिपर बैठ कर घर मे उस वक्त मौजूद सभी एक साथ खाना खाते थे और रात को सोने का बिस्तर । चूंकि ये घर संसद सदस्य मनीराम बागड़ी के नाम से था जो ज्यादातर हरियाणा मे या कही अपने घर पर रहते थे पर एक कमरा उनका बंद रहता था बेड वाला और सांसद को मिलने वाला फर्नीचर उस हिस्से मे रखा था ।बाहर के बड़े कमरे मे कुछ सोफे भी थी । राज नारायणजी के पास बाहर का छोटा ऑफिस वाला कमरा था , अन्दर का ये मल्टी पर्पस कमरा था ,जिसमे राज नारायणजी रहते थे दर असल वो साइड का बरामदा घेर कर बना हुआ कमरा था और बगल वाले कमरे का बाथरूम इससे जोड़ दिया गया था । बड़े कमरे के पीछे का एक कमरा था जो कर्मचारियो और जिनको बाहर जगह नही मिलती उनके सोने के काम आता ।पीछे एक बडा स्टोर था जिसमे आटा दाल सब्जिया इत्यादि भरी रहती थी कही कही से प्राप्त हुयी और उसके बगल मे रसोई तथा पीछे छोटा सा आंगन कपडे सूखने को ।
अक्सर हाल ये होता था की बाहर बागड़ी जी वाला ड्राइंग रूम भी पूरा भर जाता था ।
कितने भी लोग हो नेता जी की रसोई सबको खिला देती थी ।
बाहर गेट के ठीक सामने का गेराज क्रन्तिकारी और विद्वान युवा लोगो के कमरे मे तब्दील कर दिया गया था और बाहर तो बहुत बाल लांन था जो अच्छे खासे सम्मेलनो और प्रदर्शन की तैयारियो का गवाह बना ।
पर यहा बात मेनका गांधी के किस्से की ।
मैं जब भी राज नारायणजी के घर रहता वो कही मिलने जाते तो अक्सर मुझे भी ले जाते थे चाहे मोहन मिकिन्स के मालिक ब्रिगेडियर कपिल मोहन का घर हो या किसी भी और बड़े नेता का ।
उस दिन मेनका गांधी ने राज नारायणजी को सुबह नाश्ते के लिये बुलाया था । ये वो समय था जब मेनका गांधी इन्दिरा गाँधी जी के घर से बाहर निकल आई थी और राजनीति मे पैर रख चुकी थी जिसको राज नारायणजी जी का हर तरह सहारा प्राप्त था ।मेनका गांधी महारानी बाग मे अपनी मा के घर रह रही थी ।
नेता जी ने रात को ही बता दिया था कि सुबह कही चलना है तैयार हो जाइयेगा ।
सुबह हम दोनो उनकी कार मे रवाना हो गये ।महारानी बाग की एक अच्छी कोठी मे कार रुकी तो तुरंत मेनका गांधी राज नारायणजी की अगवानी करने बाहर आयी ।
हम लोग अंदर गये और एक भव्य ड्राइंग रूम जो अच्छी तरह सज़ा था मे बैठ गये जहा पानी आया । नेता जी ने मेनका गांधी से मेरा परिचय करवाया नाम बता कर बोले की ये हमारे परिवार के है और बहुत क्रांतिकारी युवा नेता है ,आने वाले समय मे मेरा नाम रोशन करेंगे (जो मैं नही कर सका क्योकी उतनी हिम्मत नही जुटा पाया और उतना त्यागी नही हो पाया ) । फिर टेबल पर आने का आग्रह हुआ । ड़ाइनिँग टेबल पर कटे हुये फल , अंकुरित चना इत्यादि , पाराठे दही , लस्सी , कुछ मिठाईयाँ , जलेबी ,ब्रेड जैम इत्यादि बहुत कुछ लगा था और आया जा रहा था । राज नारायणजी पूरे मन से नाश्ता करने लगे ।मैने भी नाश्ते मे इतनी चीजे पहली बार देखा था पर संकोच मे थोडा थोडा सब लिया और खाने लग गया  ।
तभी मेनका गांधी राजनीतिक बाते और कार्य योजना पर बाते करने लगी । वहा तक तो ठीक था पर अचानक एं टी रामाराव और बहुगुणा जी के बारे मे भद्दी कुछ बाते कह कर भद्दी गलिया देने लगी और फिर उनकी भाषा सतही स्तर पर उतर गयी
और वो भी क्रांतिकारी नेता राज नारायणजी के सामने जो मेरे लिये बर्दाश्त करना मुश्किल था क्योकी राज नारायणजी मेरे आदर्श भी थे और पारिवारिक बुजुर्ग भी ।
मेरा गुस्सा बढ रहा था पर नेता जी  ने भांप कर मुझे चुपचाप नाश्ता करने का इशारा किया । मेनका गांधी के घर से वापसी के लिये हम लोग गाडी मे बैठ गये जहा मेनका गांधी और उनकी मा ने विदा किया ।
गाडी मे बैठते ही मैने कहा की आप ने मेनका को डाँटा क्यो नही वो इतनी छोटी और आप के सामने बेलिहाज ऐसी गालिया दे रही थी इतने बड़े लोगो को ।
राज नारायणजी बोले की मेरा ध्यान नाश्ते मे था जिसके लिये उन्होने मुझे बुलाया था और आप का ध्यान उनकी बातो मे ।
जिस काम के लिये कही गये वही करना चाहिए ।
नाश्ता तो बहुत अच्छा था ।
मैने तो कोई गाली नही सुना ।
वाह लोकबंधु राज नारायणजी ( सुभाषचंद्र बोस के बाद और अजादी के बाद आचार्य नरेंद्र द्वारा दिये नाम के अनुसार असली "नेताजी "।
ये मेरे लिये एक शिक्षा थी ।

शनिवार, 19 जून 2021

पापा आप मम्मी को प्यार नही करते

अभी लिखी एक कहानी -
पापा मम्मी को प्यार नही करते ? 

मम्मी पापा और सब भाई बहन बस यही तो दुनिया है इस परिवार की ।जो भी है मिल बांट कर खा पी लेना और सब सुख दुख मिल बांट कर जी लेना ।
अचानक दुख का पहला बडा पहाड टूट पड़ा परिवार पर और बडा इसलिए कि बाकी दुख तो पता ही नही चले थे कि कब निकल गये माँ और पिता के प्यार तथा संबल और भाई बहनो के आपसी समर्पण और सद्भाव मे ।पर इसबार तो जीवन का आधार ही हिल रहा था ।माँ ही बीमार पड़ गई थी । पिता और बड़े भाई डा को दिखाने से लेकर दवाई लाने तक सब करते तो बाकी भाई बहन भी माँ की देख भाल मे कोई कसर नही छोड रहे थे ।
पर उस दिन सचमुच का पहाड टूट पड़ा था विपत्ति का जब माँ की सांसे थम गई थी । सब बुला रहे थे, हिला रहे थे और लगातार कोई हाथ मल रहा था तो कोई पैर तो कोई सर सहला रहा था पर माँ थी कि जिद कर चुकी थी कि अब नही बोलूंगी तो नही ही बोलूंगी देखू कोई क्या कर लेता है 
तभी पापा की आवाज आई कि उठाओ इन्हे और अब जमीन पर लिटा दो ।
सब एक साथ कितना जोर से चीख पड़े थे पापा पर कि क्या बात करते है कि माँ को जमीन पर लिटा दे ,क्या हो गया आप को ? तब पापा थोडा कठोर होते हुये मुश्किल से बोल पाये थे कि बच्चो अब माँ नही रही अब इन्हे जमीन पर ही लेटाना होगा सब इन्तजाम कर ले जाने से पहले । सब फिर चीख पड़े कहा ले जायेंगे ? माँ हमे छोडकर कैसे जा सकती है ? तो फिर थोडा और कठोर स्वर गूंजा कि बच्चो अब अन्त हो गया माँ के जीवन का और अब अन्तिम संस्कार के लिए ले जाना होगा और बेटो का नाम लेकर बोले कि जमीन पर लेटा कर तुम जावो अन्तिम संस्कार का सामांन फला दुकान से ले आओ और तुम लोग रिश्तेदारों को और पडोसियो की खबर कर दो ।
तब अचानक कितना जोर से सब रो पड़े थे एक साथ पर पापा बिल्कुल नही रोए थे और सब इन्तजाम मे खुद भी लग गये ।
बडा झटका लगा था सभी बच्चो को कि इतने साल जिस माँ के साथ रहे जिन्हीने कितनी सेवा किया पर पापा उनसे प्यार ही नही करते ।देखो कैसे पत्थर जैसे बने हुये है ,एक बूंद आसू नाम के लिए भी नही ।
लोग इकट्ठे हो गये जो रिश्तेदार आ सकते थे और आसपास के कुछ लोग और बिस्तर पर सोने वाली माँ को आज कैसे कैसे बास और उसके टुकड़ो का बिस्तर बना उस पर लेटा कर बांध दिया गया और फिर कन्धो पर उठा कर चल डिए सब लोग । माँ बताती थी की वो जब शादी होकर इस घर मे आई थी तो कोई गाडी वाड़ी नही थी बल्कि कहार पालकी मे लेकर आये थे ।
और आज अपने लोग लेकर जा रहे थे खुरदरे से बनाये गये बिस्तर पर और कितना प्रेम से सज़ा कर लायी गई थी इस घर मे और आज सब कुच उतार कर जला दी जायेंगी ।
क्यो बनाया है भगवान ने ये व्यवस्था ? जीवन क्यो और जीवन तो दुख क्यो। दुख भी ठीक तो अपनो को छोडकर जाने वाली ये मौत क्यो ? 
पता नही क्या क्या विचार आ रहे थे मन मे पर आँखो से बहती नदी लगातार उफान ले रही थी सभी की आंखो से और चीख रुकने का नाम नही ले रही थी ।कितनी औरते थी जो सम्हालने की कोशिश कर रही थी पर सब नाकाम थी । सब सोच रहे थे की ये सब तो गैर है अभी आ गये है फार्मलटी के लिए जो हम लोगो पर बीत रही है ये क्या जाने ।
बार बार ख्याल आता पापा तो जरा भी नही रोए । क्यो नही रोए ? क्या बिना किसी भावना के इतने सालो से मम्मी के साथ रह रहे थे ? क्या उनका प्यार झूठा था और बस दिखावा था ? 
दिन बीतने लगे अकसर भाई बहन यही बात करते की पापा नही रोए ? वो मम्मी की प्यार नही करते थे ।इस बात पर सब भाई बहन एकमत होते गये और पिता के प्रती विचार थोडे बदल से गये और व्यव्हार भी ।
उस दिन काम जल्दी खत्म हो गया था तो सभी बहन ने तय किया की चल कर छत पर बैठा जाये ,अच्छी हवा चल रही है । छत की आखिरी सीढ़ी पर पहुचे ही थे की जोर जोर से हिचकी की आवाज आ रही थी और लग रहा था कि कोई अपना रोना दबाने की कोशिश कर रहा हो ।
अरे ये तो पापा है ।सव दौड कर पास पहुचे तो देखा कि मुह मे तौलिये का एक छोर दबाए हुये वो रो रहे थे । सबने पूछा कि क्या हो गया पापा ? बहुत देर तक कोई जवाब नही मिला ।सब बिल्कुल पास आ गये और अपने अपने तरीके से पापा का हाथ पैर सर सहलाने लगे तो लगा की जैसे रुका हुआ बांध अचानक टूट गया हो ।
बड़ी मुश्किल से सबने मिल कर सम्हाला था पापा को । फिर सब जानने को उत्सुक थे कि आज क्या हो गया ।
बड़ी मुश्किल से बोले थे पापा "वो बीच रास्ते छोडकर चली गई ,जब तक संघर्ष था चट्टान बन कर साथ खडी रही और थोडा वक्त ठीक हुआ  अकेला कर गई मुझे ।
सब बच्चे भी साझीदार हो गये आज फिर गम मे कि पापा आप इतना प्यार करते थे माँ को पर कभी बोला क्यो नही ? हम सब पता नही क्या क्या सोचने लगे थे ।
दरार भर गई थी ,बाध के बहाव के साथ बहुत कुछ बह गया था और फिर सुख दुख साथ झेल लेने वाली मुट्ठी मजबूत हो गई थी ।

शनिवार, 12 जून 2021

जिन्दगी_के_झरोखे_से

यादो_के_झरोखे_से

जब #मुलायम_सिंह यादव जी और #मैं_दोनो_डर_के_मारे बिला वजह #हंस और #बोल रहे थे -
1991/92 का किस्सा है उत्तर प्रदेश पार्टी की प्रदेश कार्यकारणी की बैठक थी नैनीताल मे । फिल्मकार मुजफ्फर अली जो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार भी रह चुके है लखनऊ से उनका नैनीताल झील के पास पार्किंग से ऊपर सामने जा रहे रास्ते से चढ़ कर बहुत ही खूबसूरत बंगला है । मुजफ्फर अली ने पूरी कार्यकारिणी को अपने घर रात्रि भोज पर आमंत्रित किया था । 
हम लोग उत्तर प्रदेश भवन से नीचे उतर कर पार्किंग स्थल पर पहुचे और वही सामने ऊपर जा रहे रास्ते पर जाना था । वहा पार्किंग मे लोगो ने ऊपर चढ़ने के लिए घोड़े से चलने को कहा पर सारे लोगो ने घोड़े पर बैठने से मना कर दिया की ज्यादा दूर नही है पैदल ही चलेंगे ,पर मुलायम सिंह जी घोड़े पर बैठ गए और दूसरे घोड़े पर मैं भी । थोडी देर पहले ही बारिश हुई थी और सड़क भीगी हुई भी थी बल्की ऊपर से नीचे की तरफ पानी बह रहा था ।
पहाडी घोड़े पता नही क्यो खाई वाली तरफ के किनारे पर चलते है आज तक नही जान पाया और पूछ भी नही पाया ,अब पता लगाऊंगा ।
खैर हमारे घोड़े भी खाई के बिल्कुल किनारे पर चलने लगे और बाकी लोग पैदल । बिल्कुल किनारे पर चलते घोड़े पर हम दोनो की हालत खराब हो रही थी पर बीच मे उतर भी नही सकते थे ,समझा जा सकता है कारण और कुछ कह भी नही पा रहे थे तो दोनो ध्यान बटाने और डर पर काबू पाने के लिए कुछ बिला वजह बात करने लगे जोर जोर से बोल कर और उसी के साथ जोर से हंसने लगते 
और बाकी पैदल चलने वाले बिना जाने हमारी हालत और बाते यूँ ही हंसी मे साथ दे रहे थे ।
खैर किसी तरह मुजफ्फर अली का घर आ गया और उतरने का मौका मिला तो जान मे जान आई ।
मुलायम सिंह जी ने धीरे से पूछा सी पी राय डर लग रहा था न कि घोडा कही खाई की तरफ पैर फिसल गया तो ।
मैने कहा हा तभी तो हंस रहे थे और उनसे पूछा आप को ? जवाब वही था ।उतरते वक्त रकाबी मे फंस कर मेरे पजामे का नीचे पायचे का हिस्सा फट गया था ।
पर 
उसके बाद आनंद ही आनंद था । बढिया संस्कृतिक कार्यक्रम और बहुत ही दिव्य भोजन ।
और 
वापसी मे घोड़े पर बैठने की गलती हम दोनो ने नही किया कि खाने के बाद टहलना चाहिये ।
हा हा हा हा हा हा हा ।