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शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

#चौ_चरण_सिंह के साथ पहली यादगार रैली

#जिंदगी_झरोखे_से

#चौ_चरण_सिंह  के साथ पहली यादगार रैली 
 ---#1977 --लोकसभा का चुनाव प्रचार शुरू हो चुका था ।आपातकाल की कैद में 19 महीने से घुट रही जनता सड़क पर निकल चुकी थी थी ।जनता पार्टी घोषित हो चुकी थी पर अधिकतर नेता जेल में ही थे तो जनता खुद संगठन बन गयी थी । खुद लोग मंच माइक लगा कर जगह जगह सभाओं में बुलाने लगे ।
बड़े नेताओं को सभाएं तो मानो जनता का कुम्भ जुट गया हो ।कोई भी बड़ा से बड़ा मैदान छोटा पड़ने लगा । लाखो लोग खुद मैदान पर पहुचते और आर्थिक सहयोग भी देने को आतुर रहते थे ।
आगरा के रामलीला मैदान भी ऐसी ही कई लाखो वाली सभाओं का गवाह  बना । 
इसी में एक सभा थी जनता पार्टी  के सबसे बड़े जनाधार वाले नेता चौ चरण सिंह की । 
चौ साहब कार से ही पूरा दौरा करते थे । उस दिन कई घण्टे लेट चौ साहब लेट हो गए । जितने वक्ता थे कई कई बार बोल कर थक चुके थे और जनता हिल नही रही थी पर किया क्या जाए ।
मंच पर मैं भी मौजूद था । तभी जनसंघ से जुड़े वरिष्ठ नेता योगेंद्र सिंह चौहान जिनके पुत्र अब आगरा के एत्मादपुर से विधायक है ,की निगाह मुझ पर पड़ी ।  
छात्र नेता के साथ साथ अपनी ओज और व्यंग की कविताओं के लिए मेरा नाम आगरा में तब तो हो चुका था और चौहान साहब मेरी कविताएं सुन चुके थे कुछ कवि सम्मेलन में ।
उन्होंने भगवान शंकर रावत जो बाद में कई बार सांसद बने और उस दिन संचालन कर रहे थे उनके पास जाकर चौ साहब के आने तक मुझे कविताएं सुनाने के लिए बुलाने को कहा ।
मेरा नाम कविता सुनाने को पुकारा गया । लाखो की शोर करती और नारा लगाती भीड़ और 22 साल का मैं ।
मैंने कहा कि आप कविता सुनना चाहते है पंर आज देश को कविता चाहिए तो दिनकर के अंगार की चाहिये । आपातकाल के अंतिम संस्कार के मौके पर मेरे मुह से भी शायद अंगार ही निकलेगा ।
मैंने शुरू किया कि बस कुछ मिनट मेरी बात सुन ले फिर कविता भी सुनाऊंगा  । हा शहीदों के नाम सुनाऊंगा और आपातकाल भी ।
जनता चुप हो गयी ।
और शुरू हुआ भाषण --  
देश के असली मालिको वक्त बेड़िया तोड़ कर आज़ाद हो जाने का है ।सोचो क्या भोगा है पूरे मुल्क ने इन 19 महीनों में । - --- बस पता नही कहा से विचार आया मन मे -- ,
:इस देश मे दो माताएं हुई है । एक हुई थी पन्ना दाई जिसने दुश्मन के सामने अपने बेटे को राजा का बेटा बता दिया और अपने सामने अपने बेटे को कट जाने दिया और राजा के बेटे को बचा लिया क्योकि राजा ही प्रतीक था राज का , संप्रभुता का । 
और एक माता आज है जिसने अपने बेटे के लिए ---वाक्य पूरा किया लोगों ने -पूरी जनता बोली देश के लोगों को कटवा दिया ।
फिर बस शोर और नारे में डूब गया रामलीला मैदान और अगले 20 मिनट मुझे बस खड़े होकर उन नारो में भागीदारी होना पड़ा और उसके बाद पुनः शुरू हुआ भाषण फिर तभी रुका जब चौ चरण सिंह की गाड़ी मंच के बगल में आ गयी और उनके नारो के लिए लोग माइक पर आ गए और मैं चौ साहब के स्वागत के लिए उनकी गाड़ी के पास चला गया ।
( उस दिन की एक घटना पुनः लिखूंगा और चौ साहब के साथ दिल्ली की पहली मुलाकात का ब्यौरा पुनः लिखूंगा )

गुरुवार, 22 जून 2023

मुझे सपने देखने दो ।

मेरी कविता

मुझे सपने देखने दो ।

चलो अब कुछ अच्छा होने के
सपने देखे सुबह होने तक ।
सूरज निकलेगा और ग्रस लेगा 
इस अँधेरे को शाम होने तक ।
फिर शाम आयेगी और 
सूरज गर्त हो जायेगा उसके अन्दर 
यही क्रम जीवन को चलाता रहेगा 
उठाता रहेगा गिराता रहेगा 
हम नियति का सड़क पर पड़ा 
पत्थर बन लोगो की ठोकरों से 
इधर उधर उछलते और गिरते रहेंगे 
कुचलते रहेंगे स्वार्थो के टायर हमें 
जब तक कही जमीन में 
दफन नहीं हो जायेंगे हम ।
फिर भी तब सपने देखना तो 
हमारी नियति भी है और अधिकार भी ।
क्या अब इतने ताकतवर हो गए है 
कुछ लोग की 
वो हमारे सपने भी 
हँमसे छीन लेना चाहते है 
पर पत्थर चाहे बेजान क्यों न हो
कभी ठोकर दे सकता है
तो कभी किसी उछाल से 
घायल भी कर सकता है 
इसलिए मुझ बेजान से भी खेलो मत 
मुझे सपने देखने दो ।
चलो सपने देखे सुबह होने तक ।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

आइए रंगो से बात करे रंगो की बात करे

आइए रंगो की बात करे ,आइए रंगो से बात करे ::

मेरे बगीचे के रंग । अगर ये सभी रंग नही होते तब भी क्या अच्छा लगता मेरा छोटा सा बगीचा ? रंगो से ही तो जीवन है और उसमे सभी रंग होते है । सफेद भी एक रंग ही है पर इसका अर्थ और उसकी खुशी आप की मानसिकता पर निर्भर है ,रंग काला भी है जो कपड़ो में तो फैशन में आता है ऐसे ही रंग केसरिया और हरा भी है । तंग कोई भी हो वो हरी डालियों पर है और उन्हें खुराक हरी पत्तियों से ही मिलती है ।
हर ऐसा नही है तो बिना हरियाली के रंग खिला कर दिखाए कोई , घर को किसी और रंग का बना कर दिखाए कोई , धान, गेहूं, अरहर हो या चना या मूंग और बाजरा बिना हरियाली के उगाए कोई । सब्जियां जो हरी होती है वही पौष्टिक मानी जाती है पर इसका मतलब ये नही की रंगीन टमाटर और हजार पौष्टिक नही है पर क्या करे उनको भी हरी पत्तियों का ही साथ है । गुलाब सफेद हो गुलाबी या पीला पत्तियां तो सफेद ही होती है ।आम हो सेब, पपीता ,अनार या कोई भी फल उसका सहारा भी हरियाली ही है ।
पर घमंड हरियाली को भी नही होना चाहिए क्योंकि ऐसी कोई भी हरियाली जिसमे फल और भोज्य नही वो या तो पशुओं के खाने और चारे के काम आती है या घास हैं अच्छी लगने के बावजूद पैरो से रौंदी जाती है । इंसान खुद प्रेम से उसी पौधे को भी लगाता है जो उसे कुछ देता है , जो काम का होता है कष्टदायक नही होता है जो फल या अन्न देता है । बबूल लोग कहा लगाते है और कौन बैठता है बबूल पर ? कहा बच्चे शैतानी करते है बबूल पर ? बबूल हो या कांटेदार नागफनी वहा लगाए जाते है जहा बाड़ का काम करे और खुद को न चुभे ।
और रंग भी कुछ स्थाई होते है जीवन के लिए जरूरी जैसे फल और अनाज पर मौसमी रंग होते है सिर्फ सजावट के लिए जो मौसम बदलने के साथ खत्म हो जाते है और उनमें बीज हुए तो रख लिए जाते है अगले मौसम के लिए । लेकिन फलों के रंग हरे हो या कैसे भी कई बार इंसान का पीढ़ी दर पीढ़ी साथ दे जाते है वर्षो । अनाज की फसलें भी बीज के रूप में साथ दे रहे है पीढ़ियों से और पीढ़ियों तक ।
इंसान भी कुछ ऐसे हो तो होते है जिनको लोग याद करते है पीढ़ियों तक , कुछ गुण और ज्ञान बोए जाते है पीढ़ियों तक और कुछ फूलो की खुशबू भी रची बसी है न जाने कब से और रहेंगी न जाने कब तक । पर कभी काफी बबूल दिखते थे और नागफनी भी ,बबूल तो खत्म होते जा रहे है और नागफनी कही कही गमलों में सिमटती जा रही है । तलाब में मिलने वाला बेहया तो खुद मनुष्य ही खत्म करता रहता है और रास्ते पर चलते वक्त घाव कर देने वाले पौधों को भी ।
तो आइए हम सभी रंगो को प्यार करे और मान ले संग किसी खास के नही बल्कि सबके है और सभी रंगो से बना बगीचा ही सुंदर लगता है तथा ये भी को चुभने और घायल करने वाले रंग कोई भी हो किसी को पसंद नही है ।
मैं भी कहा कहा चला गया जबकि बता ये रहा था की मेरे छोटे से बगीचे में इस वक्त रंगो की बहार है ।