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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

बहस किसान बनाम पूंजीपति की

गाँव किसान का दर्द और बहस खेती बनाम पूंजी की ---- 
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार 

इस समय किसान के खेत का आलू और सब्ज़ियाँ आने लगी तो कितना सस्ता मिल रहा है सब । उससे पहले व्यापारी के गोदाम का था तो आलू ही 50/60 मिल रहा था जिसे गरीब की सब्ज़ी कहते है । यही हाल सब चीज़ का है । किसान पूरी मेहनत से पैदा करता है पर उसके पास भंडारण की क्षमता नही है और 80 प्रतिशत किसान छोटे या सीमान्त किसान है जो सिर्फ उतना ही पैदा कर पाते है की वो खा ले और बाकी बेच कर उसे तत्काल कर्ज चुकाना होता है ,इलाज करवाना होता है जो वो रोके होता है फसल तक ,जरूरी कपडा हो या खेती का सामान या फिर गाय भैस सब उसी मे से आगे पीछे करना होता है ।बच्चो की किताब हो या बेटी को शादी सब करना होता है कुछ नकद और कछ उधार जो उसे गाँव या पास के व्यापारी से मिल पाता है खेत और फसल की गारन्टी पर पैसे की सीमा के अनुसार ।इन्ही तत्कालिक जरूरतो के कारण उसे खाने लायक रोक कर अपनी फसल तत्काल बेचना होता है और इसी बात का फायदा उठाता है व्यापारी ।
एक बार मैने प्रैक्टिकल करने के बाद लिखा था जब मैं आगरा की  मंडी के पास एक कालेज मे गया था तो सोचा की जरा सेब का भाव देखा जाये तो वहाँ 5 किलो या ज्यादा लेने पर सेब 40 रुपया किलो मिल रहा था । मंडी के बाहर की ठेल वाले से पूछा तो 60 हो गया था । फिर केवल 1 किलोमीटर दूर सिकंदरा पर खड़ी ठेल से पूछा तो 80 हो गया ।जब और आगे खन्दारी पर पूछा तो 90 और 100 था और जब शहर के अंदर हरी पर्वत चौराहा पर पूछा तो 120 से कम करने को तैयार नही था ।जिस समय आलू पैदा होता है किसान के खेत से 2 रुपए किलो तक चला जाता है और कभी कभी बोरे की कीमत मे ।कभी तो ये हाल हो जाता है कि किसान वही बाहर आलू फेंक देता है की जो ले जाना चाहे वो ले जाये ।गन्ने के साथ भी हम अक्सर देखते है की गन्ना खेत मे ही जला देते है और टमाटर सड़क पर फेंकते दृश्य भी देखे है ।
पर कभी बिस्किट , कोक ,या फैकट्री की चीजे फेंकते तो नही देखा न दवाई केचप या चिप्स ।और अगर कोई कारण फेकने का आया तो मालिक खुद फैक्ट्री मे आग लगवा कर उससे ज्यादा इन्शीरेंस वसूल लेता है पर किसान के मामले मे इन्श्योरेन्स वाला 10 हजार करोड़ कमाता है और हजारो किसान आत्महत्या करते है क्योकि उनका इन्श्योरेन्स उनका वाजिब मुवावजा देता ही नही है ।
नेता बड़े बड़े वादे किसानो से करते है पर विपक्ष मे और सत्ता मे आते ही पूंजीपतियों के पाले मे खड़े हो जाते है इसलिए किसान बदहाल है वर्ना एक समय तक तो पूरा भारत इसी खेती से ही जिन्दा था और सोने की चिडिया था ।तब कहा थे कारखाने और पूंजीपति । 
यहा तक की लाक डाउन मे भी जब सब बंद था होटल कारखाने जहाज कारे और कपडे भी आल्मारी मे थे तो जरूरत सिर्फ खाने का अन्न , सब्जी दूध सभी को और जो बीमार थे उनको दवाई की पड़ी और किसान ने कोई चीज कम नही होने दिया ।जब मंदी का असर भी कही आता है तो कल कारखाने और दफ्तर लडखडाते है पर खेती उस समय भी देश और समाज को सहारा देती है थामती है और देश को डूबने नही देती ।पर इसका उतना ही उपेक्षित रखा गया और रखा जा रहा है जबकी अमरीका इंग्लॅण्ड जैसे देश खेती को भारी आर्थिक सहयता देते है ।

एक सवाल हमेशा से कचोटता है की जो लोग हमारे सामने जमीन पर रख कर थोडा सा सामान बेच रहे थे या साइकिल पर बेच रहे थे या छोटा मोटा लकडी का खोखा लगाकर बेच रहे थे वो देखते देखते बडी पक्की दुकान के मालिक हो गये ,बडी बडी कोठियो के मालिक हो गये या तक की फैक्ट्री और होटलो के मालिक हो गये और उनके परिवारो मे जितने लडके होते गये उनके उतने करोबार और कोठिया बढती गई ।जब सवाल करो तो कहा जाता है की उसने पैसा लगाया और मेहनत की ।पर किसान भी तो पैसा लगाये बैठा है और अधिकतर मामलो मे इन व्यापारियों से ज्यादा क्योकि किसान का खेत लाखो का है ।उसमें वो खर्च भी करता है बीज पानी खाद पर और दिन रात जाड़ा गर्मी बरसात उसमे पसीना बहाता है ।बिना जान की परवाह किये उसकी रखवाली करता है और कभी बाढ तथा कभी सूखा और कभी फसल तथा पशु की बीमारियो का सबसे ज्यादा रिस्क भी लेता है तो किस मामले मे वो व्यापारी से पीछे है ये सवाल सत्ताओ से भी है और समाज से भी ।उसकी फसल प्राकृतिक आपदा का शिकार होती है तो उसे नाम मात्र का मिलता है ।और बडा सवाल है की व्य्पारी के बच्चे बढे तो व्यापार और घर बढ़ जाते है पर किसान के खेत और मकान छोटे होते जाते है क्यो ? 
किसी किसान को बड़ा होते नही देखा अगर उसके परिवार के कुछ लोग नौकरी या किसी व्यापार मे लग गये तभी उसका जीवन थोडा ठीक होता है वर्ना उसका बेटा फौज मे जाकर जान हथेली पर लिये सिर्फ इसलिए खड़ा रहता है किसी भी परिस्थिती मे सीमा पर ताकी साल के अन्त मे वो कुछ पैसे बचा कर गाँव ले जाये जिससे घर की कुछ जरूरते पूरी हो सके ।
जाह तक फसल कही भी बेचने का सवाल है वो नियम पहले से है पर ८० % से ज़्यादा किसान अपने ब्लॉक या पास की मंडी के बाहर कभी नही जाते क्योंकि उतना उत्पादन ही नही है । 
उनके निकट मंडी बना और हर हाल में उनकी उपज ख़रीद कर और स्वामीनाथन आयोग के अनुसार मूल्य देकर तथा उद्योग की तरह सुरक्षा और इंश्योरेंस देकर ही उसका भला किया जा सकता है तथा उसे कृषि में और गाव में रोका जा सकता है 
गांधी जी की दृष्टि आज भी ठीक है की आसपास के २० गाँव अपनी ज़रूरतें वही से पूरा करे इसके उनका मतलब उन सब चीज़ को भी वही डेवलप करने से था जिनकी ज़रूरत पड़ती है स्कूल कालेज अस्पताल तथा स्थानीय उपज से जुड़े छोटे उद्योग भी ।
नौकरी वालो की तन्ख्वाह पिछ्ले 25सालो मे 250 गुना तक बढी और पूंजीपतियों की संपत्ति तो हजारो गुना पर किसान के फसल की कीमत 19या 20भी मुश्किल से कुछ चीजो की ।
व्यापारी का लाखो करोड़ का कर्जा सरकार माफ कर देती है या बट्टे खाते मे डाल देती तो किसान को भी उतनी ही मदद क्यो नही देती ।नौकरी बाले के बच्चो को अगर पढाई का मिलता है, घर मिलता है उसका मेन्टीनेंस मिलता है, फ़्री बिजली मिलती है ,मेडिकल मिलता है घूमने का पैसा मिलता है तो किसान के बच्चे की पढाई और उसका इलाज क्यो न मिले ? उसको फ़्री नही तो सस्ती बिजली और डीजल क्यो न मिले , उसकी बेटी की शादी की सहयता क्यो न मिले ? उसको चाहे 10 साल मे एक बार ही सही घर ठीक कराने के पैसे क्यो न मिले और प्राकृतिक आपदा आने पर उसका कर्जो माफ क्यो न हो ? 
भारत का मूल गाँव , किसान और खेती है उसे मजबूत करना ही होगा  गांव को शहरो की बराबरी पर विकसित करना ही होगा ।क्या ये तय नही हो सकता कि जो शहर मे एक स्कूल कालेज ,अस्पताल और फैक्ट्री बना रहे है उन्हे उस जिले के गाँव मे भी बनाना ही होगा और उसके लिये लाल फीताशाही खत्म कर , पुलिस का आतंक और शोषण खत्म कर उसे गाँव मे लोगो को सुरक्षा का एहसास कराने की मूल जिम्मेदारी देकर तैयार करना होगा जिससे ये सब खोलने वाले तथा उसमे काम करने वाले शौक से गांवो मे जाने को तैयार हो ।
बहस बडी है पर समय भी बडा है तो कोई तो होगा जो बडा सोचेगा महात्मा गांधी के संदेश समझेगा और भारत को कर्जो से लड़े तथा जनता के पैसे से बडा आदमी बने लोगो का देश नही बल्की खुशहाल गाँव और खुशहाल लोग वाला भारत बनाएगा ।
पर पहले उन सवालो का जवाब ढूढना होगा और सत्ता को जवाबदेह होना होगा जो ऊपर उठे है ।

जिंदगी के झरोखे से ,मन्ड्लीय सम्मेलन

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

#1991_मंडलीय_सम्मेलन_और_14_लाख_की_थैली 

बात 1991 के चुनाव के बाद की है पता नही वो घटना अभी तक मैने लिखा या नही जब रात भर चुनाव परिणाम देखने के बाद मैं सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी के घर पहुचा था और इतने बुरे परिणाम से वो बेचैन थे ,जबकी पहले ही दिल्ली से लौटते हुये शिवपाल जी कर घर पर उन्हे मैं ऐसे परिणाम की आशंका जाता चुका था प्रदेश का चुनाव देखने के कारण पर सारे अधिकारी और इंटेलीजेंस एजेंसियां उन्हे 125 से 150 तक की रिपोर्ट दे रही थी ।
केवल 29 एम एल ए और चंद्रशेखर जी समेत केवल 4 एम पी सीट सत्ता मे रहते उनको विचलित कर गई थी ।
मिलते ही बोले कि अयोध्या के कारण ये तो सारी जनता नाराज हो गई है इत्यादि । मैने कहा कि छोटा हूँ पर एक बात कहना चाहता हूँ कि अब हमे इसी स्टैंड पर कायम रहना चाहिये । आप ने कुछ बुरा नही किया बल्की मुख्यमंत्री होने के कारण संविधान की रक्षा किया है और उस पर आप को गर्व होना चाहिये । ये ठीक है की संघ अभी जहरीला प्रचार कर कामयाब हो गया पर कल जब लोग समझेंगे की देश तो संविधान और कानून से ही चल सकता है न कि दंगो से तो यही प्रदेश आप को फिर वापस लाएगा ,और हम दोनो चाय पीने बैठ गये और उसी समय ये भी तय हुआ की मात्र 7 दिन मे चुनाव लड़े विधनसभा के 425 और लोक सभा के 85 लोगो की बैठक बुला लिया जाये (इसका किस्सा अलग से ) ।कल्याण सिंह की सरकार बन गई थी ।
पर सरकार जाने के बाद बडा संकट था और पार्टी चलाने मे दिक्कत हो रही थी क्योकि इस मुख्यमंत्री काल मे मुलायम सिंह जी ने पैसे के बारे मे सोचा ही नही था और जहा तक मुझे पता है सिर्फ एक मामले मे ओम प्रकाश चौटाला ने कुछ दिया था जो दिल्ली से टी सीरीज कैसेट के डिब्बो मे ले जाया गया था और जो आया भी वो चुनाव मे खर्च हो गया था । दो बार तो त्योहार के मौके पर भी हम दफ्तर के स्टाफ को तन्ख्वाह नही दे पाये तब मैने तपन दादा को कुछ रुपए दिये की वो जगजीवन और शरमा इत्यादि बराबर बराबर बांट ले और त्योहार मना ले ,तपन अब बुजर्ग हो गये है पर है और जगजीवन तो आज बहुत रईस भी है और एम एल सी भी । इसी तरह मुलायम सिंह जी के घर का फ़ोन कट गया और कई दिन बाद जुड़ा तब एक दिन मैने महामंत्री के रूप मे लोगो का आह्वान कर दिया की जितना मन हो चाहे 5/10 रुपया ही सही मुलायम सिंह यादव जी को मनी ऑर्डर करे ।जो भी पहुचा मैने पूछा नही ।
2 महीने बाद ही मुलायम सिंह यादव जी एक सामाजिक कार्यक्रम के लिये आगरा आये और जैसा की हमेशा होता था कि अन्त मे प्रेस से मुलाकात मेरे निवास पर होती थी । उस दिन भी हुयी ।
प्रेस के बाद इटावा जाना था तो बोले की आप भी चलिये रास्ते मे बात करते चलेंगे और आज ही ट्रेन पकड़ कर लखनऊ जाना है तो आप उसके बाद वापस आ जाईयेगा ,ऐसा अक्सर ही होता था उस दौर मे । मुझे ऐसा याद आता है कि उस दिन देश के जाने माने कवि और हमारे सांसद उदय प्रताप जी भी साथ थे जिन्होने बाद मे मुझसे शिकायत किया था कि रास्ते भर आप दोनो ही बात करते रहे और मैं तो महज श्रोता बना रहा ।
हम लोग इटावा सिचाई विभाग के डाक बंगला पहुचे जहा शायद मुलायम सिंह यादव जी के आने की खबर नही दी गई थी तो जिस सुईट मे ये रुकते थे पुलिस के किसी डी आई जी को आवंटित हो गया था । मैने वहा के व्यवस्थापक को हड़काया कि आवंटन किसी का हो पर जब प्रोटोकोल मे बडा व्यक्ति आ जाता है तो वो आवंटन अपने आप निरस्त हो जाता है ।खैर डरते डरते की साहब मेरे खिलाफ कुछ न हो जाये उसने कमरा खोल दिया ।मुलायम सिंह जी अंदर गये और बस बाथरूम होकर बाहर आ गये कि अच्छा मौसम है ,बाहर पार्क के चबूतरे पर बैठते है जबकी जून आखिर या जुलाई का आरम्भ था और तेज गर्मी थी ।
खैर हम लोग वही बैठ गये । मुलायम सिंह यादव जी का मानना था को कम से कम एक साल चुपचाप आराम किया जाये और राजनीतिक गतिविधिया बंद रखा जाये क्योकि अभी कही भी निकलने पर जनता का गुस्सा झेलना पड़ सकता है ।
मैने कहा की मैं इस बात से सहमत नही हूँ और वही मैने बीजेपी तथा आरएसएस के गढ आगरा से ही तत्काल कार्यक्रम शुरु करने को आमंत्रित किया । वो सहमत नही थे पर मेरे जोर देने पर मान गये की प्रदेश कार्यकारिणी और वरिष्ठ नेताओ की बैठक कर इसपर बिचार हो जाये तो मैने कहा की देर क्यो हो तत्काल बुला लिया जाये और शायद एक हफ्ते बाद ही वो बैठक बुला ली गई लोहिया ट्रस्ट के हाल मे ।वहां मैने सबसे पहले अपनी बात रखा और तर्क की क्यो तत्काल बाहर निकल कर सक्रिय हुआ जाये और आगरा से ही क्यो । तब कुछ लोगो ने कहा की आगरा मे पार्टी नही है और पार्टी का कोर वोटर नही है कार्यक्रम फ़ेल हो सकता है तब मैने आश्वस्त किया कि आगरा मंडल का कार्यकर्ता सम्मेलन रखा जाये और बाकी सब मुझ पर छोड दिया जाये और उसी मे मैने प्रस्ताव रख दिया कि पार्टी चलाने के लिये 5 से 10 लाख तक की थैली भेंट करने की कोशिश भी की जाये और कार्यक्रम तय हो गया सम्भवतः अगस्त की कोई तारीख तय हुयी ,हम लोग मई अन्त मे चुनाव हारे थे ।
मैं वापस आगरा आया और सबसे पहले कागज पर योजना और अनुमानित बजट तथा अपना कार्यक्रम बनाया और दूसरे दिन ही आगरा का सर्किट हाउस तथा सूर सदन हाल बुक कर दिया तथा बाहर पार्किंग मे लगाने के लिये पंडाल और बैठने का इन्तजाम की भीड ज्यादा हो तो अव्यवस्था न हो और अपने एक दोस्त के बात कर गैलरी से बाहर के पंडाल तक देश के किसी भी कार्यक्रम मे पहली बार क्लोस सर्किट टीवी का इस्तेमाल की व्यव्स्था भी । शाम को आगरा मे जो थोडी बहुत पार्टी थी जनता दल टूटने के बाद जिसमे अधिकतर मेरे द्वारा जोड़े गये 8/10 लडके थे उनकी मीटिंग किया और सबको काम अभी से बता दिया । अपने एक दोस्त के होटल मे आने वाले लोगो के लिये 5000 पैकेट खाना बनाने की बात तय कर दिया ।
आगरा के अन्य नेताओ से कह दिया की मुलायम सिंह के आगरा आने से लेकर जाने तक ठहरना , पूरे सम्मेलन का खाना, शहर भर मे स्वागत द्वार और स्वागत , वाल राइटिंग, गाडियाँ इत्यादि सब मेरी जिम्मेदारी और बाकी लोग थैली के लिये धन एकत्र करे ।
इसके बाद मैं मंडल भर के सभी जिलो के दौरे पर निकल गया सभी जिला अध्यक्षो को बता कर और तब तक मंडल बटा नही था अलीगढ़ भी इसी मे था । सभी जिलो मे मैं सम्मेलन और थैली के लिये माहौल बनाने मे कामयाब रहा ।
सम्मेलन से दो दिन पहले से पूरे महात्मा गांधी मार्ग पर वाल राइटिंग मैने खुद भी किया ,खम्भो पर चढ़ चढ़ कर झंडे और बैनर मैने खुद भी बाधे ताकी कार्यकर्ताओ मे उत्साह रहे क्योकि वो धन का नही जन का जमाना था और राजनीती के ये सब काम कार्यकर्ता ही करते थे और हम जैसे लोग तो छात्र राजनीति से ही करते आ रहे थे ।
कार्यक्रम के एक दिन पहले कई दिनो से आता मुलायम सिंह जी का फ़ोन फिर आया कि अभी भी कार्यक्रम रद्द कर दीजिये फेल जो जायेगा और मैने कहा की आप ट्रेन पकड़ लो रात को सुबह मैं स्टेशन पर मिलूंगा ।
उस दिन सुबह 4 बजे मैने कार्यक्रम स्थल की व्यवस्थाये देखा और खुद मंच के पीछे का बडा बैनर टंगवाया और फिर स्टेशन रवाना हो गया । मुलायम सिंह जी और साथ मे आज़म खान साहब आये थे । अपनी योजना के अनुसार पहले स्टेशन के सामने किले के गेट पर अम्बेडकर मैदान मे बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्ति पर इन लोगो से माल्यार्पण करवाया और फिर सर्किट हाऊस पहुचा कर ये कह कर घर आ गया कि आप लोग तैयार हो जाइये और लोगो से मिलिये 10 बजे  निकलेंगे हम लोग ।
घर आया थोडी देर लेटा पर नीद कहा तो उठ कर नहा धोकर तैयार हो गया और 9,45 पर फिर सर्किट हाऊस पहुच गया ।
हम लोग बड़े काफिले के साथ वहाँ से निकले और महत्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषो की मूर्तियो पर माल्यार्पण करते हुये काफिला महात्मा गांधी मार्ग पर निकला जिसपर समाज के सभी समाजो तथा धर्मो की तरफ से अलग अलग चौराहो पर स्वागत द्वार पर स्वागत हुआ तथा दो स्थानो पर मुलायम सिंह जी को सिक्को से तौला भी गया और जब हम लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुचे तो बाहर ही बडा हुजूम था । अंदर गये तो एक एक सीट पर किसी तरह अटक कर दो दो लोग बैठे थे और सारी सीढियां ही नही बल्की मंच के सामने का खाली स्थान भी भरा था और मंच पर भी तिल रखने को जगह नही थी क्योकि सारे पूर्व और वर्तमान सांसद , विधायक , सभी प्रमुख पदाधिकारी तथा अध्यक्ष इत्यादि मंच पर आ गये थे और मेरे तथा पड़ोस मे रहने वालो के बच्चे भी जबकी मेरे प्रोफेसर पिता तथा पत्नी इत्यादि भी नीचे कार्यकर्ताओ मे बैठे थे ।
दो बात का जरूर उल्लेख करना चाहूँगा कि  मैने अपने कार्यकर्ताओ से कहा था कि जिसकी जहा जिम्मेदारी है वही रहेगा यहा तक की मुलायम सिंह भी सामने आ जाये तो नही हिलना है और बाद मे मैं सबको मिलवाउंगा और साथ फोटो भी करवाउंगा , दूसरा मैने ऐसी व्यव्स्था किया था कि पानी के लिये बस इशारा करिए आप तक पहुच जायेगा और खाने के समय भी सब अपनी जगह ही रहे वही अधिक से अधिक 15 मिनट मे सबको खाना और पानी मिल जायेगा और वही हुआ भी किसी कार्यक्रता ने अपना काम नही छोडा और सारा वितरण मेरी योजना अनुसार ही हो गया ।
मुलायम सिंह जी चाहते थे की अपने स्वागत भाषण और राजनैतिक भाषण के बाद कार्यक्रम का संचालन मैं ही करू पर मेरी ये कमी है की कोई जिम्मेदारी लेने के बाद उसके हर पहलू पर निगाह रखना तथा समय पर व्यवस्थित रूप से चीजो करवा लेना मेरी बेचैनी मे शामिल रहता है इसलिए भाषण के बाद और पूरे कार्यक्रम का ब्योरा देने के बाद मैने पूर्व सिचाई मंत्री बाबू राम यादव से संचालन का आग्रह किया और फिर बाकी सब व्यवस्थित करने मे लग गया जिसका जिक्र ही अखबारो ने किया की सी पी राय मंच पर रहने के बजाय लगातार भाग दौड करते रहे ,करता भी क्यो नही कोई बडी और प्रशिक्षित तथा संपन्न पार्टी तो थी नही ,साधन विहीन ,कमजोर पार्टी थी और आगरा मे सब नये नौजवान थे मेरे जोड़े हुये तो लगता था कही परेशान न हो जाये ।
हा दो दिन पहले लगातार 2/3 घंटे बैठ कर मैने राजनीतिक प्रस्ताव , आर्थिक प्रस्ताव इत्यादि लिख कर प्रिंट करने भेज दिया था और फ़ाईल और कार्यक्रम के पहले वाली रात कई लोग फाइल बनाने मे लगे रहे मेरे घर के बाहर बनी झोपड़ी मे बैठ कर जिसमे कुछ लोग बाद मे बहुत महत्वपूर्ण हो गये और मेरे प्रोफेसर पिता रात को उन सभी को बना बना कर ट्रे भर भर चाय पिलाते रहे और साथ बैठ काम भी करवाते रहे और घर के अंदर मेरी पत्नी और बच्चे भी क्योकि 5000 फाइल बननी थी ।
कार्यक्रम के प्रारंभिक औपचारिकताओ के बाद थैली भेंट होनी शुरु हुयी । वादा किया था कि 10 लाख की कोशिश होगी पर 5 तो होगा ही और भेट किया सब लोगो ने मिल कर 14 लाख जिसके लिये मैने पहले खरीदी अटैची जिसकी दुकान पास ही थी वापस भेज कर बडी अटैची मंगवाया और मथुरा के पंडित राधेश्याम शर्मा ने 50 ग्राम सोना भेट किया ।
दिनभर तमाम नेताओ का भाषण हुआ और अन्त मे मुलायम सिंह जी का नम्बर आया ।वो बहुत भावुक हो गये थे ऐसे स्वागत और कार्यक्रम से तो बोले कि मैं पहले भी कई बार आगरा आया हूँ , चौ चरण सिंह के साथ भी आया जब तीन विधायक थे तो कार्यक्रम रतन मुनी जैन इंटर कालेज मे हुआ था । मैं कल तक सी पी राय से कहता रहा की कैन्सिल कर दीजिये पर इनका आत्मविश्वास था और बोले की बस आप आ जाइये और आज सर्किट हाऊस से यहा तक हर चौराहे पर स्वागत हुआ । यहा भी इतनी भीड हो गई है को अंदर ,बाहर गैलरी और उसके बाहर का पंडाल भरा है और पहली बार मै ये देख रहा हूँ की बाहर वाले लोग भी सब लोग बाहर लगे टीवी पर सब कुछ देख और सुन रहे है । सी पी राय ने उतने अच्छे सब प्रस्ताव लिखे है और बहुत अच्छा सारा इन्तजाम किया है और अनुशासन के साथ सारा इन्तजाम ।
मेरी निगाह मे  यह कार्यकम भीड से ,प्रस्ताव से अनुशासन से , व्यव्स्था से और राजनीती के लिये सर्वश्रेष्ठ कार्यक्रम है और इसका श्रेय केवल सी पी राय को जाता है ।मैने सोचा था 5 लाख नही तो कुछ तो मिलेगा ही पार्टी चलाने को पर यहा तो 5 क्या 14 लाख रुपया और सोना भी मिला है । सी पी राय ने ये कैसे सम्भव किया इनसे बाद मे पूछूंगा पर पार्टी आज से फिर चल गयी और इसके लिये सी पी राय को याद रखा जायेगा ।
नेता के सामने भीड हो और सब अच्छा हो तो जोश तो आ ही जाता है ।जबरदस्त भाषण दिया मुलायम सिंह जी ने और उनके पहले आज़म खान साहब ने भी । काफी बडी संख्या मे नेता लोग बोले ।
सम्मेलन के बाद मैने सूर सदन के बाहर पोर्च से सार्वजनिक सभा को संबोधित करने का इन्तजाम पहले से ही कर रखा था तो मुलायम सिंह को पोर्च पर ले गया । ये बात उनको पहले से नही बताया था ।शाम करीब 5 बज रहा था एम जी रोड पर भीड का समय था और सभा के कारण बडा जाम लग गया ।
सभा के बाद मेरे निवास पर प्रेस से वार्ता और भोजन था । अपने निवास पर मैने कार्यकर्ताओ से उनको मिलवाया ।मुलायम सिंह जी गदगद थे और मेरे सभी कार्यकर्ता भी पर जब स्टेशन उनको छोड़ने गया अपने निवास से तब तक मेरे गले की आवाज मेरा साथ छोड चुकी थी पर तसल्ली इतनी थी की पार्टी को मैने फिर से रफ्तार दे दिया था धन से भी और आत्मविश्वास से भी और खासकर मुलायम सिंह जी का आत्मविश्वास लौट आया था जो बहुत जरूरी था और फिर हम लोग निकल लिये पूरे प्रदेश मे ।
मैने तो बस इमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया था ।
कुछ छूट गया होगा तो वो आत्मकथा मे मिलेगा ।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

संगम इलाहबाद का

#जिंदगी_के_झरोखे_से

--जब सुबह जगा कर एडीएम साहब #संगम ले गए थे --

उस दिन सुबह संगम के दृश्य । 

न जाने कितनी बार आया था #इलाहबाद पर उस दिन सुबह उठ कर उगते हुए सूर्य की किरणों के साथ संगम जाना और वहा दो नदियो या कहे की दो संस्कृतीयो और दो बहनो गंगा और यमुना का मिलन देखना सचमुच बहुत सुखद अनुभूति रही ।
एक दिन पहले कलक्टर साहब से बात हुई थी तो बोले की संगम गए है या नही और नही कहते ही उन्होने फरमान सुना दिया की सुबह तैयार रहियेगा फला एडिएम साहब संगम प्रेमी है वो  आप को ले जायेंगे । मैं सोचने लगा कि कहा मेरे मुह से नही निकल गया , क्या सचमुच इतनी सुबह आ जायेंगे एडीएम साहब , ना आये तो अच्छा । पर वही हुआ सुबह ही करीब 4,45 पर एडीएम साहब ने सर्किट हाऊस जो कलक्टर साहब जो मेरे मित्र थे उन्होने ही बुक करवाया था के मेरे कमरे का दरवाजा खटखटा दिया और फिर उनके साथ गाडी पर संगम जाना ही पडा ( किसी मुसीबत की तरह जो मेरे चेहरे पर साफ दिख रही है फोटो मे , पर वहा पहुच कर थोडी देर बाद एहसास हुआ की सचमुच मैं आज के पहले एक बहुत अच्छे अनुभव और मनोरम दृश्य से वंचित था ) जहा एक शायद सरकारी वोट तैयार थी और ए डी एम साहब के कोई नीचे वाले कोई कर्मचारी पहले से ही पहुच कर तैयारी किये हुये थे ।
खैर --
सूरज उग रहा था और उनकी किरणे गंगा और जमुना के हरे और सफ़ेद पानी को सुनहरा बना रही थी ।क्या मनोहारी दृश्य था और इतनी सुबह की आस्था का सैलाब उमड़ा हुआ था ।ना जाने कितनी नावो में भरे हुए लोग इस ठिठुरती ठण्ड की परवाह किये बिना आये हुए थे की बिलकुल संगम स्थल पर ही आचमन लेंगे या डुबकी लगाएंगे ताकि ,जो भी उनकी मनोकामना या इच्छा हो । बहुत बड़ी संख्या में चिड़ियों को झुण्ड भी चारो तरफ कलरव कर रहा था ।मैं पूछ नहीं पाया की ये चिड़ियाँ  यहाँ स्थायी रूप से मौजूद रहती है या जाड़े में सूदूर बर्फीले इलाके से साइबेरिया इत्यादि से आई हुयी है इस वक्त ।ये जानकारी कोई दे सके तो आभार व्यक्त करूँगा ।
मुझे उस दिन पहली बार पता लगा की संगम के किनारे का किला अकबर ने बनवाया था ।कही नहीं वर्णन आ पाया होगा मेरे अध्ययन में ।अब जानना पड़ेगा की अकबर ने संगम को किला बनवाने को क्यों चुना और हर बात में विवाद ढूँढने वाले लोग  इसमें कोई विवाद नहीं ढूढ़ पाये क्या ।इस पर बाद में अध्ययन करने पर लिखूंगा ।
मेरे दो संस्कृतियो पर बहस छिड़ सकती है क्योकि दोनों  एक ही इलाके में है और मिलन के बाद तो बस गंगा बचती है और विलीन हो जाती है उसमे यमुना , सरस्वती कहां से निकलती है और कब विलीन हो जाती है रहस्य ही बना हुआ है ।
हां तो संस्कृति पर बहस की बात मैंने जान बूझ कर छेड़ा है । यद्यपि यमुना का हरा जल कुछ साफ़ दीखता है यहाँ पता नहीं कैसे जबकि इसके पीछे यमुना पूरी तरह गन्दी दिखती है लेकिन इस हरे रंग के किनारे की संस्कृति कुछ अलग है और उसका खुलकर वर्णन कर दूंगा तो विवाद बढ़ जायेगा । पर इस दो संस्कृति का मेरा आशय और अनुभव भी क्या है कभी लिखूंगा जरूर ताकि मेरी समझ भी साफ़ हो सके । हो सकता मैं जो समझ रहा हूँ उसमे कुछ पेंच हो या मेरे ही मन में किन्ही लोगो या घटनाओ के कारण कुछ खराश हो ।
गंगा का पानी सफ़ेद और कुछ मटमैला दीखता है संगम पर पर गंगा का किनारा पकडे हुए संस्कृति मटमैली नहीं दिखती ।
बताया गया की संगम पर गंगा और यमुना में भी एक युद्ध चलता रहता है । मैं कहूँगा की दो बहनो की आपसी अठखेली होती है या छेड़छाड़ । पर संस्कृति की बड़प्पन की लड़ाई भी हो सकती है ।
कभी गंगा यमुना को पीछे धकेल देती है तो कभी यमुना गंगा को, पर ये पता नहीं चलता की इस लड़ाई में सरस्वती की भूमिका क्या रहती है , तटस्थ एम्पायर या रेफरी की या बस मजा लेते हुए तीसरे व्यक्ति की ।
पर ये सच्चाई तो कबूल करना ही पड़ेगा की अंत में जीत जाती है गंगा और विलीन हो जाता है उसमे सब कुछ , अस्तित्व , संस्कृति , रंग , स्वाद और दोनों नदिया और फिर हथिनी की चाल से गौर्वान्वित चलने लगती है और गंगा भी विलीन हो जाने के लिए अपने से भी बड़े अस्तित्व में ताकि जीवन , मरण और फिर जीवन का चक्र पूरा हो सके ।
फिर समुद्र से भाप बन कर उड़ता है नया जीवन और नई तरह के जीवन बरस पड़ते है उससे जो फिर कही ताल तलैया , तो अलग अलग क्षेत्र में कोई गंगा , कोई यमुना , कोई राप्ती और कोई सरयू जैसा जीवन पाकर चलती रहे ताकि जीवो का जीवन चलता रहे ।
शायद मैं दर्शन से दर्शन की तरफ चला गया ।पर मुझे याद नहीं की इससे पहले उगता हुआ सूरज कब देखा था ।शायद जब कन्याकुमारी गया था नेता जी के साथ ।
इस सब दृश्य के बीच मोटर बोट मंथर गति से नदियो का सीना चीरती हुयी चली जा रही थी और वहां ले जाने वाले साथी वहां के बारे में , ऐतिहासिकता के बारे में और पुण्य के बारे में वर्णन करते जा रहे थे ।उन्होने आज बताया की यदि संगम नहीं आये तो सब तीर्थ बेकार है तो मन में बरबस आ गया की मैं तो कभी किसी मंदिर ही नहीं गया तीर्थ तो बड़ी बात है ,और तब तो यहाँ आकर भी मैं पुण्य का भागी नहीं बन पाया । वैसे ही शीत प्रकृति के कारण डुबकी लगाने का मतलब कुछ दिनों डॉ0 मित्रो की सेवा में रहना हो जाता पर दृश्य सचमुच ऐसा की मैं लिखे बिना नहीं रह सकता था । शायद ऐसे दृश्य ही लोगों को अपनी तरफ खींचते है और यही खिंचाव आस्था बन जाती है । अब तो साधन हो गए पर जब साधन नहीं रहे होंगे तब जो विलीन हो जाते होंगे इन दृश्यों के आगोश में वो स्वर्ग में जाने वाले और ईश्वर के बुलावे वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और जो वापस चले जाते होंगे घर वो ईश्वर की और संगम की कृपा से बच जाने वाले वर्ग में शामिल हो जाते होंगे और इसकी विषद व्याख्या अपने अपने जजमानों को सुनाने वालो की भी काफी तादात होती ही है ।
पर पुण्य मिले या न मिले क्योकि अभी तक कोई प्रमाणिक दस्तवेज और अध्ययन नहीं है जो साबित कर सके की पुण्य क्या है और किस किस को मिला तो क्यों और कैसे मिला और संगम में गहरी डुबकी मार कर भी जिन्हें नहीं मिला क्यों नहीं मिला ।
संगम पर ही जिंदगी जीने वाले मछुवारे ,नाव चलाने वाले और रोज नित्यकर्म से लेकर यही नहाने वाले तो पुण्य से मालामाल हो गए होंगे तो उनके जीवन में क्या विशेष है ये अध्ययन का विषय हो सकता है और शायद शोध से कुछ जानकारी मिले । फिर भी करोडो की आस्था का केंद्र है संगम तभी तो इतने कष्ट सह कर करोडो लोग यहाँ कल्पवास करते है और डुबकी लगाते है । आस्थाएं शायद लोगो को अतिरिक्त ताकत देती और भरपूर ऊर्जा भी ।
जी हां पुण्य मिले या न मिले पर उसी संगम के दर्शन कर लिए आज मैंने भी इतनी सुबह जाकर और इस सुबह जाने की मानसिकता और दबाव में पूरी रात नहीं सोकर तो इस कष्ट के लिए कुछ तो मिलेगा ही ।
पर ये सुबह का दृश्य की किसी भी मायने में कन्याकुमारी के सुबह के दृश्य से पीछे नहीं है और इसे सैलानियो को आकर्षित करने के लिए प्रचारित किया जा सकता था । उस दिन मुझे एहसास हुआ की मेरा प्रदेश किस कदर सुस्त ,दिशाहीन और संकल्पहीन है की राजस्थान अपनी रेट की मार्केटिंग कर लेता है ,कश्मीर , शिमला और अन्य अपनी बर्फ और ठंड, तमिलनाडु कन्याकुमारी का सूर्योदय जो ज्यादातर दिखता ही नही बादलो के कारण इसलिए कह रहा हूँ की जब मैं गया था मुलायम सिंह यादव के दौर मे  कन्याकुमारी तब रात भर जगा बैठा रहा बाल्कनी मे की कही सोता न रह जाउँ और सुबह बस हो गई बादलो मे छुपी हुई ,केरल से लेकर महाराष्ट्र तक समुद्र का किनारा ,तो चेरापूंजी अपनी बारिश और हरियाली ,भूटान सिक्किम मेघालय अरुणाचल अपने पहाड़ और दृश्य तो अमरीका तो बस यू ही किसी भी चीज पर मोटा टिकेट लगा कमा रहा है तो क्या चीज नही है उत्तर प्रदेश मे , साथ ही बिहार और मध्यप्रदेश इत्यादि मे भी , बस सैलानियो के लिए सुरक्षा का भाव अपराधियो और शोहदो से और पुलिस की लूट तथा कमाई के लिए परेशान करने वाली प्रवृति से , और अभाव है मार्केटिंग के लिए भाव , समर्पण ,इरादा और व्यव्स्था की ।
ले दे कर एक ताज महल, या बनारस का घाट भी कुछ लोगो को आकर्षित करता है ।
चलिये इस मुद्दे पर विस्तार से फिर कभी ।
बोलो गंगा मैया की जय (क्योकि जय केवल विजेता और शक्तिशाली की ही बोलने की परम्परा है तो मैं भी इस परम्परा को क्यों तोडू )।

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

जिंदगी_के_झरोखे_से #1980_बनारस

#जिंदगी_के_झरोखे_से   #1980_बनारस 

#लोकबंधु_राजनारायण_का_चुनाव_और_आरएसएस 

1980 , चौ चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री थे राजनारायण जी के कारण और राजनारायण जी यानी पुरे देश के नेताजी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । चौ चरण सिंह ने राजनारायण जी को बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा ।यदि जातिवाद मे यकींन करते नेताजी तो कई ऐसी सीट थी जहा से लड़ सकते थे और पूर्ण सुरक्षित सीट भी तय कर सकते थे पर अभी पिछ्ले चुनाव मे ही देश की ताकतवर प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी जी को चुनाव मे हराया था उन्होने तो मान लिया बात और वैसे भी बनारस उनका गृह जिला था पर ये दिक्कत थी कि कांग्रेस से वहा से पंडित कमलापति त्रिपाठी जी चुनाव लड़ रहे थे जिनकी नेताजी बहुत इज्जत करते थे (इस पर किस्सा अलग से बाद मे )
पर 
1980 के इस चुनाव की नौबत चौ चरण सिंह की सरकार से कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के नाते आयी थी और उसके पहले जनता पार्टी टूटने की नौबत जनसंघीयो की दोहरी सदस्यता और आरएसएस के नाते आयी थी (इस सब पर भी विस्तार से अलग से बाद मे ) । उसी उठापटक मे नेताजी का निस्कासन और उनके समर्थन मे केन्द्र के कई मंत्रियो सहित 100 से ज्यादा सांसदो का इस्तीफा ,उनके द्वारा नेताजी यानी राजनारायण जी को अपना नेता चुनना और नेताजी द्वारा चौ साहब को नेता मानना और दो सांसदो को उनके पास भेजना ,तब चौ साहब का उप प्रधानमंत्री पद से स्तीफा और प्रधानमंत्री बनना इत्यादि अलग अलग लिखा जायेगा और ये भी कि दोहरी सदस्यता का सवाल उठाने और आरएसएस की भूमिका पर सवाल उठाने पर आरएसएस और उससे जुड़े लोगो ने किस कदर कमर के नीचे तक हमला किया लगातार और मुहिम चलायी राजनारायण जी के खिलाफ ये सब लिखूंगा अलग अलग हिस्सो मे ।
फिलहाल बनारस के चुनाव तक सीमित करता हू। राजनारायण जी का चुनाव करीब एकतरफा सा हो गया था उसी मे पहली घटना तो उस दिन हुयी जब चौ चरण सिंह बनिया बाग मे सभा करने आये और मंच से राजनारायण जी की तारीफ करते करते एक हल्का शब्द बोल गये पता नही जान बूझ कर या अनजाने मे जिसका विरोध भी किया मैने उनके मंच से उतरते वक्त और तब राजनारायण जी ने मुझे ज्यादा न बोलने को कह कर चुप करा दिया था ।
चुनाव जब सर्फ दो दिन रह गया था तो हम लोग शहर भर मे अन्तिम व्यवस्थाओ और जन सम्पर्क के लिए घूम रहे थे ।उस दिन शाम थोडी गहरी हो ही रही थी की अचानक नेकरधारी दिखने लगे शहर मे जगह जगह संख्या बहुत नही थी पर वो हर व्यक्ति को बस एक बात कह रहे थे की फैसला हो गया है कि बोट पंडित जी को देना है यानी कांग्रेस उम्मीदवार कमलापति त्रिपाठी जी को जबकी जनता पार्टी जिसके अध्यक्ष चंद्रशेखर जी थे और वर्तमान भाजपा यानी तत्कालीन जनसंघ उसी मे शामिल थी उसके उम्मीदवार जनसंघ के ही ओमप्रकाश सिंह थे जो बाद मे कई बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने भाजपा की सरकारो ने । लेकिन राजनारायण जी आरएसएस के निशाने पर थी और उनके निशाने पर आरएसएस और आरएसएस ये समझ चुकी थी कि जिस आदमी ने कभी डरना और झुकना नही सीखा और तय कर लिया की कांग्रेस को हराना है तो इन्दिरा गांधी जैसी नेता को पहले कोर्ट मे हरा दिया और फिर जनता की अदालत मे भी और ये आदमी अगर मजबूत रह गया तो आरएसएस को कही का नही छोड़ेगा और देश के सामने नंगा कर देगा उनका सिद्धांत और इरादा और फिर उस फकीर आदमी की देश मे विश्वस्नीयता भी जबरदस्त थी ।
कई जगह ये दृश्य देखने के बाद मैं थोडा विचलित हुआ और भाग कर उनके पास पहुचा और उनको बताया की आरएसएस तो अपने उम्मीदवार को हरा कर भी आप को हराने के लिये पंडित जी को वोट डालने की अपील कर रही है और अगर 25/30 हजार वोट भी इधर उधर हो गया तो मुश्किल होगी क्योकि काँटे की टक्कर है ।
नेताजी थोडा सा विचलित हुये पर फिर तुरंत बोले कि ये आप लोग बाहर किसी और से और खासकर अपने कार्यकर्ताओं से मत कहना और जाओ अपना अपना काम करो ।
और नेता जी चंद हजार वोट से चुनाव हार गये ।
लिखने का मकसद चरित्र की व्याख्या करना है ।
बाकी किस्सा अगली कडियो मे और इस चुनाव के दृश्य भी अगली कडियो मे ।

रविवार, 22 नवंबर 2020

पूरा भारत कभी नही लड़ा

पूरा भारत तो कभी नही लड़ा 
(एक ने और मुट्ठी भर ने ही बदला हमेशा इतिहास और हालात ) 

सैकड़ों साल पहले ही भारत में लिख दिया गया था कि ; कोउ नृप होय हमें का हानि ; । इससे भारत की मिट्टी का मूल चरित्र सिद्ध होता है ।कुछ लोग कह सकते है कि ये गोस्वामी तुलसीदास ने मुगल राज स्थापित होने के बाद लिखा था ,राम के युग मे ही सम्पूर्ण जनता किसी गलत के खिलाफ खड़ी हो गई हो ऐसा तो नही दिखा ,वो चाहे राम को राजा बनने से रोकना हो या फिर सीता की अग्नी परीक्षा या अग्नी परीक्षा के बाद भी उनका वन जाना । विस्तार मे जानाँ विवाद पैदा कर सकता है ।कृष्ण के युग मे कंस हत्याये करता जा रहा था पर कहा कोई आवाज उठी कि ये गलत है ,चाहे राजा हो या जमीदार या कोई बडा नही है उसे अधिकार इस तरह हत्याये करने का । अशोक के काल मे भी कहा जनता ने कुछ भी कहा था ,जनता तो हमेशा ताकत और सत्ता की अनुगामिनी ही बनी रही ।
वरना बस सैकड़ो की तादात में आते थे विदेशी लुटेरे और लूट कर चले जाते थे भारत को । जब कोई आता तो खेती करता किसान हल बैल लेकर किनारे खड़े होकर तमाशा देखता और बाक़ी लोग भी । लड़ता सिर्फ़ वो था जिसे लड़ने के पैसे मिलते थे और ज़्यादातर वो भी सेनापति के घायल होने या मर जाने पर भाग खड़े होते या विजेता से मिल कर उनके लिए लड़ने लगते । भारत पर आक्रमण करने वाला या राज करने वाला कोई भी बड़ी फ़ौज लेकर नहीं आया था सबकी लड़ाई  और राज भारतीय लोगों के दम पर ही चला । भारत के नागरिक पर जुल्म हो या हत्या सब यही के लोगो ने किया या तो डर कर या फिर बिक कर और विदेशियों को बुलाकर लाने वाले भी भारतीय थे , रास्ता बताने वाले या कमजोरी बताने वाले सारे विभीषण भी भारतीय थे । मैंने कई बार कहा है उदाहरण के लिए की जब सोमनाथ को लूटा जा रहा था तो वहाँ के सारे पंडे और दर्शनार्थी बैठ कर पूजा करने लगे की अभी भगवान का प्रकोप होगा और सब लुटेरे भष्म हो जाएँगे । पर वो करने के बजाय अगर उन्होंने अपने थाली लोटे से भी आक्रमण कर दिया होता तो सोमनाथ नहीं लूटा होता , भगवान की मूर्ति और मंदिर की शक्ति का भ्रम भी बना रहता और लुटेरे टुकड़ो मे मुर्दा पड़े होते  और उससे भी बड़ा काम ये हुआ होता की आइंदा कोई भी भारत पर आक्रमण करने से पहले सौ बार सोचता की भारत का या उसके किसी भी हिस्से का हर आदमी अपने राज या जमीन के लिए लड़ने को खड़ा हो जाता है  । 
आगे भी पूरा देश तो कभी खड़ा नहीं हुआ बल्कि थोड़े से लोग खड़े हुए किसी भी लड़ाई में वो अन्दोलन चाहे आज़ादी का रहा हो और चाहे आपातकाल से पहले का । जिन लोगों ने भी हिंसा का रास्ता अपनाया उनके साथ बहुत कम लोग खड़े हुए । गांधी जी इस मिट्टी की तासीर को अच्छी तरह समझ गए थे इसीलिए उन्होंने अहिंसा का रास्ता अपनाया और इस रास्ते से वो लाखों या करोड़ों जोड़ने में कामयाब हुए पर पूरे देश को नहीं जोड़ पाये वो भी ।
अंग्रेजो के समय भी पूरी जनता तो इसी कोऊ नृप वाले भाव की थी तो बहुत से लोग अंग्रेजो का साथ दे रहे थे ,बहुत से प्रशंसक थे तो हाथो मे हथियार लेकर जलियां वाला बाग से होकर पूरे देश मे गोली लाठी चलाने वाले ,आजाद को गोली मारने वाले ,भगत को फाँसी लगाने वाले और सुभाष की सेना पर गोली बरसाने वाले सब तो भारतीय ही थे केवल आदेश देने वाला अन्ग्रेज होता था और मुखबिरी कर आज़ादी के लिए लड़ने वालो की पकड्वाने वाले भी भारतीय ही थी ।सभी के खिलाफ अंग्रेजो के पक्ष मे मुकदमा लड़ने वाले भी भारतीय थे और गवाही देने वाले भी भारतीय ही थे ।
आज भी वही हालत है जो भारत की तासीर है ।बंद जगह पर छिप कर विरोध करना हो या छुपा कर बटन दबा कर सत्ता बदल देना हो बशर्ते बटन दबाने वाले हिसाब से ही परिणाम दे तो इतना तो अधिकतम भारतीय कर सकता है पर खुले मे आकर चुनौती देना भारत के आवांम की आदत नही है ।इतिहास मे भी भारत ने कभी भी किसी मजबूत को चुनौती नही दिया । ये हमारा चरित्र है गुलाम होना या गुलाम बनाना ।संमता मे हमारा विश्वास ही नही है ।कमजोर को मारना और मजबूत के सामने दुम हिलाना । 
अगर आज भी देश अपने अहित और बुरे भविष्य पर मुखर नही होता तो ये बहुत चिंता की बात नही है ।अगर आज भी सोमनाथ की तरह देश का बडा हिस्सा मन्दिर मे अपना सुख और भविष्य देख रहा है तो इसमे आश्चर्य की कोई बात नही है ।छोटे स्तर पर भी लोग कहा निकलते है बिजली या पानी नही मिलने पर ,सड़क के लिए या किसी भी बुनियादी समस्या के लिए ।पडोस पर हमला होने या बच्चा उठने या बलत्कार होने पर खिड़किया और पर्दे बंद कर जोर दे टीवी चला देने या कान मे रुई ठूस लेना ज्यादा मुनासिब लगता है । पानी नही दे सरकार तो अपना जेट पंप लगा लिया , बिजली के लिए अपने जेनरेटर लगा लिया । जितना सहनशीलता है भारत के समाज मे । पर ऐसा भी नही कि कभी नही निकलते ।जरा किसी धार्मिक स्थल को कुछ हो जाये ,किसी के चित्र या प्रतिमा से कुछ हो जाये या दो जानवरो मे से किसी का कुछ हो जाये तो निकलते है पर फिर भी मुट्ठी भर और बच बच कर कि कोई खतरा तो नही और नही है तथा सामने वाला कमजोर या कम है तो कायरता पूरी ताकत से क्रूरता दिखाती है और चीख की आवाज भी बुलंद होती है ।
दूसरी तरफ राम भी तो तीन ही थे जिसमे से एक व्यव्स्था के लिए और दो युद्द के लिए और दो साम्राज्य पराजित कर आये थे । कृष्ण ने अकेले केवल दिमाग और जुबान का इस्तेमाल कर भारत को  महाभारत तक पहुचा दिया ।बुद्ध निकले तो अकेले थे पर दुनिया के बड़े हिस्से को जोड़ लिया ।ईसा ने सूली पर लटके लटके ही दुनिया के बड़े हिस्से  को अपने सामने झुका दिया और करबला मे कहा करोडो थे पर करोडो को अपना अनुयायी बना दिया ।गांधी अफ्रीका मे भी अकेले थे और भारत भ्रमण पर भी अकेले ही निकले और ऐसा निकले कि बिना हथियार के ही इतने बड़े दुश्मन को देश से निकाल दिया ।उसके बाद भी किसी एक ने ही सत्ताए बदली है भारत की । आज फिर भारत आज़ादी बनाम गुलामी, लोकतंत्र बनाम अधिनायकवाद ,संविधान बनाम प्रधान की इच्छा , कानून बनाम सता की लाठी के बीच झूल रहा है ।अधिकांश कोऊ नृप होय वाले है तो बहुत से अज्ञात कारणो से प्रशंसक है तो बहुत से गली गली मे मुखबिर और बहुत से लाठी बन्दूक और कानून की किताब के साथ इनके साथ खड़े है तो बहुत से चाहे कलम से या कला से ,जुबान से या आंखो की भाषा से लडाई भी लड़ रहे है सच की ,ईमान की ,लोकतंत्र की संविधान की और अन्त मे यही जीत जायेंगे सारे जुल्म के बावजूद क्योकी हमेशा ही ये मुट्ठी भर लोग ही जीते है ।
इतिहास तो यही बताता है । बस देखना इतना है की वो एक कौन होगा इस युद्ध का नायक और क्या कोई  सम्पूर्ण भारत को कभी निकाल सकेगा चाहे जिसके खिलाफ चाहे जब और चाहे जो भी गलत हो ? क्या कोई बदल पायेगा ये आवाज "कोऊ नृप होंय हमे का हानी "से "को नृप होय ये हम ही जानी" मे ।

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

जिंदगी के झरोके से ,राजेन्द्र शर्मा और शकील

जिंदगी_के_झरोखे_से

#दो_घटनाए_जो_मेरा_अवगुण_बताती_है_और_नेता_से_दूर_करती_है

1--मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे और एक सेठ के बुलावे पर आगरा आये जो मेरी निगाह मे निरर्थक और गैर राजनीतिक फैसला था ।उससे तुरंत पहले पार्टी के महानगर अध्यक्ष की मा का देहांत हो गया । अध्यक्ष मुलायम सिंह द्वारा सीधे बनाये हुये थे जिनका राजनीति से कोई सम्बंध नही था पर वो आयकर के वकील थे और है ।ना मेरा तब सम्बंध था और ना फिर कभी मुलाकात हुयी आजतक उस वकील साहब से पर मै पागल आदमी हूँ ।
मुलायम सिंह यादव उस सेठ के घर दूर गाँव के इलाके मे गये और जब किसी के घर मुख्यमंत्री आ रहा हो और वो भी सेठ तथा व्यापारी के घर तो भव्य कार्यक्रम तो होना ही था और फिर भव्य दोहन भी होना होता ही है ।
उनके कार्यक्रम मे महानगर अध्यक्ष के घर जाने का कोई कार्यक्रम नही था और उस वक्त पार्टी मे मुह लगे लोग भी इस विचार के नही थे की वो किसी के घर जाये चाहे कोई भी मर गया हो ।
पर मुझे ये बात पार्टी के सिद्धांतो और मुलायम सिंह यादव के बारे मे जो वर्षो मे हम लोगो ने इमेज बनायी थी उसके खिलाफ लग रही थी ।
लखनऊ वापस जाने के लिए मुलायम सिंह एयरपोर्ट आये उसके पहले ही मैने डी एम संजय प्रसाद से कह कर रूट साफ करवा लिया । ज्योही मुलायम सिंह जहाज की सीढ़ी की तरफ बढे मैने रोक कर अपने उद्गार व्यक्त कर दिये कि ये आप की पहचान के खिलाफ है कि आप किसी सेठ के घर आकर वापस चले जाये और पार्टी अध्यक्ष की मा का निधन हुआ है और वहा दो मिनट भी न जाये ।
तो वो थोडा झुझलाये पर विचलित भी हुये और बोले की अब देर हो गई है और जाना भी चाहे तो 2 घन्टा समय चाहिये । मैने कहा नही मुश्किल से 30 मिनट जाना आना और 5 मिनट रुकना तो बोले पूरी सड़क भरी होगी और वो आप के घर के पास ही तो रहते है कैसे पहुच जायेंगे ? तो मैने कहा की मैने पहले ही रूट लगवा दिया है ।फिर नाराज हुये की हमसे पूछे बिना कैसे करवा दिया और डी एम की तरफ देखने लगे ।संजय प्रसाद ने आंखे झुका लिया और बोले की हा सर इन्होने कहा की चल सकते है तो इन्तजाम कर दिया गया ।
और फिर वही हुआ और 40 से 45 मिनट मे अध्यक्ष की इज्जत और मन भी रह गया और मुख्यमंत्री की  इज्जत भी  रह गई ।पर मुलायम सिंह ने मुझसे कोप तो पाल ही लिया ।
2--मुलायम सिंह यादव इटावा से दिल्ली जाते हुये मेरे घर पर प्रेस से मिल कर जाने वाले थे जो अकसर होता था । एक हमारा कार्यकर्ता था शकील जो खन्दारी बूथ का मजबूत कार्यकर्ता था उसके घर मे मौत हो गई थी । वो स्कूटर मकेनिक था और पास के चौराहे पर जमीन पर ही बैठता और काम करता था । मैने उसको खबर करवा दिया कि वो अपने घर पहुच जाये और दो और उसी मुहल्ले के कार्यकर्त्ताओ को भी भेज दिया ।
जब मेरे घर से चाले तो मै गाडी मे था और मैने मुलायम सिंह जी से कहा की एक मजबूत कार्यकर्ता है उसके साथ ऐसा हो गया है और उसका घर रास्ते ने पड़ेगा । तो वो बोले की गाडी वहा तक जायेगी ।मैने कहा की थोडा सा पैदल चलना होगा पर जरूरी है ।
वहा पहुच कर हम लोग उतरे और करीब 5/ 600 मीटर पतली सी गली मे पैदल चले ।ये बस्ती बघेल मुस्लमान जिनको मैने पार्टी से जोड़ लिया था और दलितो की बस्ती है । ब्लैल कैट कमांडो और हम लोगो को देख कर पूरी बस्ती मे मिंनटों मे बात फैल गई । उस कार्यकर्ता के घर मे मुलायम सिंह को बैठाने के लिए कुछ नही था ।5 मिनट खड़े खड़े हाल चाल हुआ और जब हम लोग उसके घर से निकले तो सारी छते और पूरी गली भरी हुयी थी और अगले दिन ये किस्सा शहर भर मे चर्चा का विषय बन गया था कि मुलायम सिंह तो छोटे से छोटे कार्यकर्ता का भी ध्यान रखते है ।
समाज मे किसी को नेता बनाना और उसकी छवि बनाना आसान काम नही होता है और उसके लिए बडी सोच और बडा दिल रखना पडता है और कोपभाजन का शिकार भी होना पडता है ।
शायद इन्ही अवगुणौ के कारण बड़े नेता मुझसे नाराज ही रहते थे और कार्यकर्ता भी आप का वजन देखकर ही आप के साथ रहता है ।
पर मैं जैसा हूँ ठीक हूँ 

जिंदगी_के_झरोखे_से#पता_नही_कितने_लोग_मरे_होते

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#पता_नही_कितने_लोग_मरे_होते 

हमारी सरकार थी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे ।सरकार के खिलाफ दिल्ली से गली तक विपक्ष मुखर था । कुछ मामलो को लेकर मुलायम सिंह यादव जी ने उत्तर प्रदेश बंद का आह्वान कर दिया , जिससे मैं पूरी तरह असहमत था और मैने उनसे विरोध भी व्यक्त किया कि हमारी सत्ता है प्रदेश मे और हम ही बंद काल करे इसका क्या मतलब ? अगर लोगो से लड़ना ही है तो लखनऊ या दिल्ली मे रैली के द्वारा अपना संदेश दिया जा सकता है ।मेरा एतराज इसलिए भी था की हम लोगो जैसी सभी पार्टिया प्रशिक्षित संगठन वाली नही है बल्की भीड वाली है और भीड अनियंत्रित होकर कुछ भी कर सकती है ।
मुख्यमंत्री नही माने और एलान हो गया । 
पार्टी पदाधिकारी होने के कारण मुझे उसे सफल भी करना था और दूसरी तरफ मेरी कोशिश थी की मेरे जिले तो सब शान्ती से हो जाये ।इसके लिए मैने संगठन की बैठक कर काम बाटा एक मेटाडोर पर माइक लगाकर शहर भर मे छोटी छोटी नुक्कड़ सभाए कर और व्यक्तिगत रूप से बाजार कमेटियो के लोगो से बात कर सहयोग भी मांगा । 
बंद के लिए काफी जगह बंद किया लोगो ने लेकिन आरएसएस और भाजपा के लोगो की दुकाने पूरे शहर मे खुली रही । अन्य शहरो मे तो नारा लगा था कि बंद दुकान तुम्हारी और खुली दुकान हमारी और इस नारे के साथ जो जो हुआ उससे सरकार और पार्टी बदनाम हुयी , यहा तक की इलाहबाद मे हाई कोर्ट की घटना ने हमारे चेहरे पर कालिख पोत हमे पूरे देश मे बदनाम भी किया और न्यायालय ने भी हम लोगो पर कड़ा रुख अपनाया ।
पर मेरा मानना था की अपील करना हमारा काम , अपना मुद्दा समझाना हमारा काम और साथ देना या ना देना लोगो का अधिकार है इसलिए उस दिन मैं घर पर ही बैठा था । तुलसीराम यादव सहित कुछ लोग मेरे घर पर मौजूद थे और हम लोग जगह जगह से पता लगा रहे थे की बंद कितना सफल है । पार्टी मे कुछ लोग अति उत्साही थी उनको लेकर मेरा मन शंकित था और मैने घर पर मौजूद लोगो से कहा भी मुझे लग रहा है कि आज फला फला लोग कही घायल न हो जाये अपने कारणो से ।
तब तक तो फ़ोन आया एक कार्यकर्ता का कि फला फला लोगो की भाजपा के लोगो ने बहुत पिटायी कर दिया है और वो लोग जिला अस्पताल ले जाये गये है ।
तुरंत मैने गाडी मे सभी मौजूद लोगो को बैठाया और अस्पताल पहुचा और उन लोगो से घटना की जानकारी लिया और मेरा सोचा ही सच हुआ था ,ये लोग भाजपा और आरएसएस का गढ माने जाने वाले बेलनगंज और रावतपाडा मे जबर्दस्ती दुकाने बंद कराने पहुचे थे और सत्ता के नशे मे थे ।डाक्टर लोगो से इन लोगो के समुचित इलाज की बात किया और प्रशासन से मुकदमा कायम करने के बारे मे बात किया ।
तब तक खबर आयी की पार्टी के लोग किले के पास अम्बेडकर मैदान मे एकत्र हो रहे है तो हम लोग भी उधर के लिए निकल लिए ।
वहा पहुचे तो देखा की अच्छी खासी भीड आ चुकी है और नारे लगाते लोग चले आ रहे है ।
आगरा मे जामा मस्जिद से लेकर कलक्ट्री तक घना मुस्लिम इलाका है और जामा मस्जिद के बाद पूरा हिन्दू बाजार । ताजमहल के आगे बरौली अहीर क्षेत्र पूरा यादव लोगो का है ।उधर ये खबर पहुची की सपाइयो पर हमला हो गया है तो उधर से गाँव के इलाके के लोग जिसको जो सवारी मिली उसी से चल दिया अम्बेडकर पार्क की तरफ और शहर से भी लोग वहा आने लगे । एक दिन पहले अम्बेडकर पार्क मे कोई कार्यक्रम हुआ था तो उसका पंडाल और मंच अभी मौजूद था ।
इन्दौर के पूर्व सांसद कल्याण जैन आगरा मे थे तो वो भी वहाँ पहुच गये ।मुस्लिम समाज के बहुत ही लोकप्रिय नेता हाजी इस्लाम कुरेशी आ गये । आसपास के इलाके मे भी खबर हो गई थी की सपाई इकट्ठे हो रहे है और शायद बाजारो पर हमला कर दे तो पास के बाजारो मे लोगो ने मोर्चाबंदी कर लिया था और ईंट पत्थर के साथ अन्य हथियार लेकर लोग छतो पर जम गये थे और ये बात उधर से आये हुये एक कार्यकर्ता ने मुझे कान मे बता दिया था की माहौल बहुत खराब है ।
मंच से गर्मा गर्म भाषण शुरू हो गये ।भीड जोश मे थी और अनियंत्रित होती जा रही थी तभी हाजी साहब जो सुलझे हुये इन्सांन थे पर उनको पता नही क्या सूझा की उन्होने कह दिया की चलो रावतपाडा और बेलनगंज और आज हिसाब हो ही जाये । भीड हमेशा ऐसी ही बाते पसंद करती है ,ये भीड का मनोविज्ञान होता है ।
मुझे झटका लगा और मैं मंच पर चढ़ गया और जोर से मुलायम सिंह जिन्दाबाद का नारा लगाने लगा जिसमे सारी भीड शामिल हो गई ।
फिर मैने सीधे एक सवाल किया कि क्या आप लोग मुलायम सिंह को कल्याण सिंह बनाना चाहते हो जिन्होने सर्वोच्च न्यायालय में हलफ़नामा देकर भी अयोध्या मे इमारत गिरवा दिया ? हमारी सरकार है और हम एक एक बूद खून का हिसाब करेंगे पर दंगा कर के नही कानून का इस्तेमाल कर के , और मैने थोडा लम्बा भाषण दिया ।जब समझ लिया कि अब जो चाहे करवा सकता हूँ (वैसे भी आम आदमी और आम कार्यकर्ताओ का स्नेह और सम्मान मुझे हमेशा मिला) तब मैने आह्वान कर दिया की हमारा जुलुस रावतपाडा और बेलनगंज नही बल्की कलक्ट्री जायेगा और उसका रास्ता वही तय किया जो पूरा मुस्लिम क्षेत्र मे होकर जाता था और ये भी एलान किया कि यदि 24 घंटे मे सभी हमलावर गिरफ्तार नही हुआ तो अगला जुलुस उन इलाको मे जायेगा जहा मार पीट हुयी ।
बस मैं मंच से उतरा और नारा लगाता हुआ अपने निर्धारित रास्ते पर चल दिया और पीछे पीछे पूरी भीड जिसमे कुछ लोगो ने फिर भी कोशिश किया की भीड दूसरी तरफ मुड़ जाये पर अब वो भीड मेरे असर मे थी ।इस बीच इंटेलीजेंस और पुलिस के लोग भी आ गये थे और मैने उनसे प्रशासन को खबर करवा दिया की सारी भीड आ रही है और अधिकारी वहा मौजूद रहे बात सुनने और अपनी बात कहने के लिए ।
हम लोग कलक्ट्री पहुचे वहा फिर मौने कार्यकर्ताओ के मन वाला जोशीला भाषण दिया और प्रशासन को खूब सुनाया भी ।प्रशासन ने तुरंत सख्त कार्यवाही का आश्वासन दिया तब मैने हाथ जोड़ कर सबको घर जाने और 24 घन्टा समय देने के लिए कहा और लोग शान्ती से अपने घर चले गये ।
बाद मे डी एम और एस एस पी ने मुझे धन्यवाद दिया और बताया की आज कितनी बडी घटना होने से मैने बचा लिया वर्ना पता नही कितने लोग मरते और पूरा शहर दंगे की चपेट मे आ जाता और पुलिस को भी दंगा रोकने को सब कुछ करना पडता सामने चाहे जो भी होता ।
खुद को संतुष्टी मिलती है जब आप कुछ सार्थक और अच्छा कर देते है ।
क्या पाया क्या खोया ये एक तरफ है पर आप ने क्या किया ये भाव आप को सुकून देता है ,अच्छी नीद देता और अपने ऊपर मुस्कराने की हिम्मत देता है ।

मंगलवार, 17 नवंबर 2020

बचपन वाला चंदा मामा

#बचपन_वाला_चंदा_मामा

(समय हो तो जरा पढ कर कुछ लिखिए इस पर )

रात को खाना खाने के बाद टहलने निकला तो आसमान में कुछ चमकता सा दिखा , गौर से देखा कि अरे ये तो अपना बचपन का दोस्त चाँद है जिसे मैं जब गांव में रहता था तब रोज देखता था , आसमान साफ था इसलिए दिख गया चाँद वर्ना कहा दिख पाते है चाँद  सितारे शहर में।  सचमुच शहर बहुत सी चीजों को पाता है तो बहुत सी चीजों से मरहूम रह जाता है खासकर प्रकृति के साथ से। शहर में भी आ गया था तो जब तक छत वाला घर घर था या वो कालेज वाला का घर जहां गर्मियों में बाहर चारपाई बिछा कर बिना डर के सो सकते थे तब भी कई बार देखा था चाँद को ।  हा चाँद देखने को शहर वालो को किसी त्यौहार या आयोजन का इन्तजार करना होता है ,महिलाये करवा चौथ पर देख पाती है तो कुछ लोग रोजा तोड़ने के लिए तो बाकि लोग पता नहीं क्यों चंद्र ग्रहण देखने के लिए। आगरा के लोगो का तो उत्सव होता था शरद पूर्णिमा में ताजमहल जाना ।  शरद पूर्णिमा के दिन चाँद पूरा निखरा हुआ होता है जिसे कहते है फूल मून और पहले इस दिन ताजमहल रात भर खुलता था और लाखो लोग ताजमहल जाते थे और इतनी ज्यादा भीड़ होती थी की भारी पुलिस लगानी होती थी और एक तरफ से आने और दूसरी तरफ से जाने का इंतजाम करना होता था ,सीढिया छोटी पड़  जाती थी तो नए रास्ते बनाने होते थे और मचान टाइप फिर भी शरीर से शरीर टकरा कर चलते थे और कई बार तो लगता था की कही रेला लोगो को गिरा न दे वर्ना न जाने कितने लोग घायल हो जायेंगे पर अधिकतर लोग परिवार के साथ पहले ही जाकर खाना पीना साथ लेकर ताजमहल के सामने के लान में जगह घेर लेते थे क्योकि तब तक ये सब मना नहीं था और वही बैठे बैठे निहारते थे ताजमहल और चद्नी या प्रचलित नाम चमकी ।  दरअसल ताजमहल में ऊपर चारो तरफ ऐसे पत्थर लगे है जो चाँद की रौशनी पड़ने पर चमकते है या रौशनी को परवर्तित करते है और ये तो पूरी रात शेर होता था की ;वो चमकी ; ये शोर कुछ लोग तो सचमुच जो देखने गए होते थे उसके लिए करते थे पर नौजवान अक्सर क़िसी लड़की को देख कर हल्ला करते थे और कुछ हरकते भी ।  काफी लोग पुलिस का लॉकअप भी देख लेते थे इस चक्कर में । चांद का करिश्मा देखिये की दुनिया में मशहूर ताजमहल की भीड़ भी उस दिन बढ़ जाती थी जब चाँद चार चाँद लगा देता था । उस वक्त जब चांद से सामना हुआ इतने लम्बे अरसे बाद तो लगा की चाँद शिकायत कर रहा है और उसका मुँह फूला हुआ है कि तुम तो हमें भूल ही गए ।  थोड़ा शर्मिंदा तो हुआ मैं फिर खो गया उन बचपन की यादो में जब रोज ही चाँद देखता था मैं और साथ ही तारे भी।  तारो को गिनने की कोशिश करना और गिनने की दूसरो को चुनती देना और सबका ही हार जाना हमेशा ही होता था।  वो सप्त ऋषि यानि सात तारो को ढूढना भी कितन अच्छा लगता था और आश्चर्य होता था की उनका क्रम बदलता ही नहीं ,लगातार बिलकुल उसी क्रम में और वैसे ही कोण पर मौजूद है सातो ।  पुंछल तारा भी तो दिखता था कभी कभी और उसकी तरह तरह की कहानिया सुनाते थे बुजुर्ग लोग।  ये बाते तो अक्सर होती थी कि किसी की  हाल में ही मृत्यु हुयी हो तो वह उन्हें किसी नए तारे के रूप में खोजता था और बताता था अपनों को कि देखो वो है तुम्हारी नानी नाना दादा दादी या जो भी रिश्ता रहा हो।  मैंने भी जब बाबा से पुछा था की आजी कहा गयी तो वो किसी तारे को दिखा देते थे की वो है भगवांन के पास। 

चाँद भी क्या है की बचपन में माताए चंदा मांमा दूर के पुए पकाये बूर के आप खाये थाली में मुन्ने को दे प्याली में प्याली गयी रूठ मुन्ना गया रूठ गा गा कर धीरे कौर कौर ठूसते ठूसते पूरा खाना खिला देती थी बच्चे को पर बच्चे भी कहा मानने वाले थे वो मैया मोरी चंद खिलौला लैहों कहने लगते और चाँद की मांग लेते खेलने को तो बहलाना पड़ता था गरीब और भूखे बच्चे को चाँद को रोटी बता कर तो बाकी बता कर की देखो वो बुढ़िया चरखा कात रही है और कपङा बना लेगी तो तुमको देगी ,पर चंदा भी कम थोडे है तभी तो ठंढी हवा की शिकायत कर -हठ कर बैठा चांद एक दिन माता से यह बोला सिलवा दो मा मुझे ऊँन का मोटा एक झिंगोला , मांगने लगा । चांदनी रात में नौका विहार पर निबंध भी खूब लिखवाया गया तो प्रेमियों के लिए आकर्षण की चीज रहा है चाँद ,;आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम मिले तो ; तो किसी को यही चाँद  दर्द भी देता रहा है ,केदार नाथ सिंह को अँधेरे  पाख  का चाँद अच्छा लगा तो त्रिलोचन ने कल्पना किया कि ;अगर चाँद मर जाता ,विजय कुमार को चाँद अघोरी लगा तो अवतार को अमावस का चाँद अच्छा लगा ,नरेश सक्सेना ने सुना की आधा चाँद मांगता है पूरी रात ;तो राजेंद्र रहबर की किसी से शिकायत थी की ईद का चाँद हो गया कोई ,वैसे इसका इस्तेमाल तो कई तरह करते रहे लोग कोई शिकायत के लिए तो कोई ताने के लिए ,गणेश पण्डे को सदेश देना था तो उन्होंने ;उस चाँद से कहना ;से भिजवा दिया संदेश ,विष्णु नगर को भी ;एक दिन चाँद ; दिखा ,राघवेंद्र अवस्थी को ;मेरे चांद पर बने बंगले पर हलचल दिखी ,ज्योति खरे कोने में बैठ गयी चाँद से बतियाने ,धर्मवीर भारती को मदभरी चांदनी अच्छा लगी ,तो जावेद अख्तर को दरिया का साहिल हो और पूरे चाँद हो और तुम आओ में कुछ कुछ हुआ ,तो कुंवर नारायण को कुछ ऐसा क्यों लगा ;रात मीठी चांदनी है मौत की चादर तनी है ,और वासना के ज्वार उठ चन्द्रमा तक खिंच रहे ,बालकवि बैरागी ने चंदा से कहा ,तू चंदा मैं चांदनी तू तरुवर मैं शाख रे ,केदार नाथ अग्रवाल को चाँद अकेला दिखा ,तो बच्चन को चांदनी फैली गगन में चाह मन में लगी ,किसी को चाँद उगने का इंतजार रहता है तो किसी को चांद तू जा में रूचि है ,बशीर बद्र का चाँद कही राहो में खो गया ,तो राकेश कौशिक को चाँद बूढ़ा लगा मुक्तिबोध को चाँद का मुँह टेढ़ा दिखा , तो दिनकर जी की रूचि चाँद के कुर्ते में भी थी , मीना कुमारी को चाँद बहुत तनहा तनहा लगा तो शकेब जलाली की शिकायत है की;गले मिला न कभी चाँद वख्त ऐसा था ,बच्चन जी ने बताया की मुझसे चाँद कहा करता था तो साहिर लुधियानवी को चाँद के मद्धम होने से शिकायत है ,किसी को गुलाबी चाँद ने याद किया तो शीन काफ को घाटी का चाँद अच्छा लगा ,शमशेर बहदुर सिंह ने चाँद से थोड़ी गप्पे मारी ,किसी को चाँद झुका दिखा तो किसी को सदियो से चांद  की पीड़ा दिखी किसी को झुरमुट में अटका चाँद दिखा तो मुक्तिबोध को इंतजार था की डूबता चाँद कब डूबेगा ,किसी को लगा कि चाँद सुरागकशी करने निकला है ,बच्चन ने आह्वान किया की चाँद सितारों मिल कर गाओ ,तो निसार अख्तर को उम्मीद है की सौ चाँद चमकेंगे।  बस चाँद एक अनबूझ पहले की तरह साहित्य के इस कलम से उस कलम तक इस पन्ने से उस पन्ने तक सफर कर रहा है लगातार। 

ऐसा नहीं की कविता तक सीमित है चाँद झूम कर तो कभी ग़मगीन होकर खूब गाया भी गया है चाँद , खोया खोया चाँद , खुला आसमान , आँखों में सारी  रात जाएगी की तकलीफ तो चलो दरदार चलो चाँद के पार चलो की ख्वाहिश , चाँद छुपा बादल में तो चाँद सिफारिश जो करता हमारी तो देता वो तुमको बता कह कर भी कह दी गयी बात अपनी ,और ये भी तो कहा  गया बडी शिद्दत से की चौदवी का चाँद हो या आफताभ हो जो भी हो खुद की कसम लाज़वाब हो ,मैंने पुछा चाँद से गाया गया तो आजा सनम मधुर चांदनी में हम तुम ;तो गली में आज चाँद निकला हो ये रात ये चाँद ,सब जगह चाँद ही मिला अपनी बात कहने को शिकायत करने को ,प्रेम का इजहार करने को या दिल टूटने की शिकायत करने को। 

बाकी आरे  आवा पारे आवा नदिया किनारे आवा जैसे गाने भी सुने थे बचपन में तो आजा रे चांदनी हमारी गली चाँद ले के आजा ,आधा है चन्द्रमा रात आधी , ऐ चाँद तेरी चांदनी की कसम ,मेरा चाँद मेरे पास है गाकर कैसा गरूर दिखा दिया चाँद को ही ,चाँद आहे भरेगा फूल दिल थम लेंगे ,चाँद एक बेवा चूड़ी की तरह ,,चाँद जाने कहा खो गया ,तो चाँद जैसे मुखड़े पर बिंदिया सितारा नजर आया और गा दिया किसी ने ,तो चाँद के पास जो सितारा है वो सितारा हंसी लगता है गाकर भी चांद को ही चिढा दिया  ,चाँद की कटोरी है रात ये चटोरी है ,चाँद ने कुछ कहा रात ने कुछ सुना  गाने मे अलग अंदाज से बात कही तो चाँद  निकलेगा जिधर हम न देखेंगे उधर क्या बात है इस गाने में , चाँद  निकला मगर तुम न आये का दर्द भी उड़ेल दिया प्रेमी ने गाकर ,चाँद सा मुखड़ा क्यों शरमाया , आंख मिली और दिल घबराया ,चाँद से पर्दा कीजिये कही चुरा न ले चेहरे का नूर ,चाँद सी महबूबा हो मेरी  कब ऐसा मैंने सोचा था जैसे गाने में चाँद ने खूब धूम मचाई तो माँ ने ;चंदा है तू मेरा सूरज है तू गाकर बच्चे को रिझाया ,चाँद को ढूढने सभी तारे निकल गए ,चंदा मांमाँ से प्यारा मेरा मामा ,चाँद वो चाँद किसने चुराई तेरी मेरी निदिया ,चंदा रे मेरे भैया से कहना बहना याद करे , चंदा रे चंदा कभी तो जमीन पर आ , चंदा रे जा मेरा सन्देश पिया से कहियो ,चंदा से मेरी पतिया ले जाना , चंदा तोरी चांदनी में जिया जला जाए ,धीरे धीरे चल चाँद गगन में , तो गगन के चंदा मत पूछ हमसे कहा हूँ मैं दिल मेरा कहा , जब तक जगे चाँद गगन में मेरे चाँद तुम सोना नहीं ,वो चाँद जहा वो जाए तू भी साथ चले जाना ,रात के मुसाफिर चंदा जरा बता दे मेरा कसूर क्या है तू फैसला सुना दे ,तुझे सूरज कहु या चंदा ,तुम  चन्द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ ,उस चाँद से प्यारे चंदा हो तुम आकाश पे जो मुस्कराता है, वो चाँद जैसी लड़की इस दिल पे छा रही है ,वो चाँद खिला वो तारे हसे ये रात अजब मतवाली है ,ये चाँद सा रोशन चेहरा ,ये वादा करो चाँद के सामने भुला तो न दोगे मेरे प्यार को ;,इस तरह बहन हो बेटी हो ,बेटा हो ,प्रेमी हो प्रेमिका हो ,प्रेम का प्रस्ताव हो ,प्रेम की शिकायत हो , प्रेम का ताना हो या दूरी का दर्द हो ,प्रेम की ख्वाहिश हो या दिल के टूटने का बयां हो इंसान ने सबमे या तो माध्यम बनाया चाँद को या उसी के सर पर धर दिया सब शिकायत और उलाहना । 

कवियताये हो ,फ़िल्मी गीत हो या अन्य भी साहित्य की रचनाये , पेंटिंग हो या फोटोग्राफी सबके आकर्षण का केंद्र और रचना का आधार रहा है चाँद और चाँद केवल इंसानो को ही नहीं प्रभावित करता रहा बल्कि चकोर भी उसका दीवाना है तो इतना बड़ा अथाह समुद्र भी चाँद के प्रेम में पागल है ,ज्योही चाँद थोड़ा पास आता है समुद्र उछल पड़ता है उसे पाने को इस बात की परवाह किये बिना की उसके ज्वार में न जाने कितनो का क्या हो जायेगा । दूसरी तरफ वही इंसान चन्द्रमा पर पैर रख आया और उस दिन मेरे मन में आया था की अब चाँद की पूजा करने वाले क्या करेंगे क्योकि वो भगवान् नहीं रहा अब ,जो उसे देख कर रोजा तोड़ते है और जो उसे छननी में देख कर और पति को देख कर व्रत तोड़ती है वो अब क्या करेंगी पर मेरा डर निर्मूल निकला सब उसी तरह चल रहा है। सोचा मैने ये भी था की अब प्रेम कैसे होगा और चाँद कैसे मदद करेगा जब उस पर बस्ती बस जाएगी तो आजकल चंदा पर नए गाने और कविताये दिख नहीं रही है ,शायद साहित्य को विज्ञानं ने थोड़ा भ्रम मे डाल दिया है ,विज्ञानं भी जरूरी है पर ये क्या की सारी कल्पनाओ पर धूल डाल  देता है जबकि कल्पनाये ही विज्ञानं का आधार है पर ! ये विज्ञानं और साहित्य की लड़ाई पुरानी है और चलती ही रहेगी पर भावनाओ बिना ,प्रेम बिना इंसान क्या ?

तो मैं तो कल्पना के साथ हूँ ,भावना के साथ हूँ प्रेम के साथ हूँ ,विज्ञानं मेरे लिए प्रयोग की चीज है और प्रेम तथा भावना जीने की चीज है कल्पना जीने लिए भविष्य की ताकत और प्रेरणा की चीज है । तो चाँद मैं तो तुम्हे वैसे ही देखूंगा जब मौका मिलेगा और कोई मुफ्त में घर देगा तो भी तुम्हारी ऊपर वाली बस्ती में मैं तो नहीं जाऊंगा ,मै नहीं  मानता की बुढ़िया चर्खा  नहीं कात रही है ,मैं नही मानता की गरीब की रोटी की आस नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता की बिना छत  फुटपाथ और मैदान मे सोने वालो  का सहारा नहीं हो तुम ,मैं नहीं मानता कि बात नहीं करते हो तुम ,अभी बात ही तो कर रहा हूँ चाँद से मैं । और फोटो खींचने के पहले टहलना छोड़कर निहारता रहा मैं अपने बचपन के दोस्त चाँद को देर तक और बाते भी करता रहा जिसमे सवाल और जवाब दोनों मेरे ही मन के थे।  क्या आप चाँद को देखते है ? नहीं तो निकलिए घरो से और जैसे सूरज के सामने पीठ कर बैठते है स्वस्थ रहने को वैसे ही चांद  को सामने से निहारिये वैसे भी आप चाँद के लिए खीर बना कर रख देते है न पूरी रात की चाँदनी उतर आएगी उस खीर में और वो अमृत हो जाएगी बीमारियों से मुक्ति दिलाएगी तो चाँद को खुद ही निहार लीजिये रोज या जब दिखे खूब देर तक और अपनी शिकायत ,अपना दर्द सब उसी से कह दीजिये अकेलापन परेशांन नहीं करेगा और  आप आत्महत्या का विचार  क्यों लाते है और क्यों सोचते है की आप ही दुखी है ,बस चाँद की तरफ देखिये उससे प्रेम करिये और उसी से शिकायत फिर चादर तान कर रात के लिए सो जाइये ताकि सुबह जग सके नई ऊर्जा ,उत्साह और संकल्प के साथ।  अच्छा चाँद अभी के लिए विदा कहता हूँ ,कल फिर मिलेंगे।

सोमवार, 16 नवंबर 2020

1977 शिक्षा मंत्री से चर्चा

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

आज से #43_साल_पहले का यह #1977_का_समाचार है जब ड़ा शिवानंद नौटियाल उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री थे रामनरेश यादव जी की सरकार मे मेरे नेत्रत्व मे छात्रो का प्रतिनिधि मंडल मिला था उनसे आगरा के कुलपति को बर्खास्त करवाने को ।
बाद मे हम लोगो ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल एम चन्ना रेड्डी को घेर लिया आगरा के सर्किट हाऊस मे ,लाठीचार्ज हुआ पर हटे नही हम लोग और सुबह से रात हो गयी तो सर्किट हाऊस की लाईट बुझा कर उन्हे पीछे के रास्ते से निकाला गया ।
दूसरे दिन राज्यपाल ने उस कुलपति को बर्खास्त कर दिया ।
इसके पहले एक दिन कुलपति को उठा कर मैं उनकी कुर्सी पर बैठ गया और आदेश शुरू कर दिये ।एस पी ए एन सिंह और ए डी एम सिटी राम कुमार कुंवर मे बाहर लाठी चार्ज कर छात्रो को तीतर बितर कर दिया और अंदर आकर मुझसे उठने का आग्रह किया पर तब भी मैने इस शर्त  पर उठना मंजूर किया की कुछ घंटे का ही सही मेरे कुलपति होने पर पहले चाय पिए सब लोग तब उठ जाऊंगा ।
और वही हुआ ।किसी पर कोई मुकदमा कायम नही हुआ ।
कुलपति बहुत भ्रष्ट था एक तरफ हम लोगो को लालच देता था और दूसर तरफ कुछ पालतू गुंडो जिसमे से एक सरगना को ओ एस डी बना लिया था उनसे धमकवाता था ।पर उस जमाने मे गुंडो की हैसियत ही नही थी कि सामना कर सके ।

रामगोपाल का पहला चुनाव

#जिंदगी_के_झरोखे_से-'
#रामगोपाल_यादव_का_पहला_राज्यसभा_चुनाव

ये 1992 की बात है । मैं मुलायम सिंह यादव के घर गया था उनके बुलाने पर । तब वो 5 विक्रमादित्य मार्ग पर अकेले रहते थे और नीचे कोने मे छोटे से कमरे मे जगजीवन बैठता था जो तब तक टाईपिष्ट , खजांची ,व्यक्तिगत टेलिफोन ओपरेटर सहित सब बन चुका था और नीचे पायजामा तथा ऊपर कमीज पहनता था ।
बाहर गेट पर छोटी सी गुमटी बनी थी जिसमे सुरक्षा बैठती थी ।
मेरे लिए कोई रोक टोक नही थी कही भी जाने की ।
गेट पर राम अवतार शाक्य विधायक मिला जो अंदर से आ रहा था और उसकी आंखो मे आँसू थे । मुझे देख कर रुक गया ।मैने पूछा कि क्या हो गया तो बोला की मुलायम सिंह यादव ने डांट कर भगा दिया जबकी वो कुछ जरूरी बात करने आया था और आज पार्टी बुरी दशा मे है फिर भी ये बेइज्जती तो कोई पार्टी मे क्यो रहे ? मैने उसकी पूरी बात सुना और फिर बाहर ही उसे रोक दिया की वो मुझसे बिना मिले नही जायेगा ।मेरी आदत थी ये सबको जोडना । 
मैं अंदर गया ।मुलायम सिंह यादव तनाव मे टहल रहे थे । मैने पूछा कि क्या हो गया ? वो बोले की चंद्रशेखर जी के 4 विधायक पार्टी छोड गये और उन्होने अपने भाई को राज्य सभा उम्मीदवार घोसित कर दिया है अब क्या राजनीति करेंगे और क्या मुह दिखाएँगे ।
मैने कहा की पार्टी चंद्रशेखर जी के लोगो ने छोडा है और गुस्सा आप अपनो पर उतार रहे है इसका क्या मतलब है ।तो बोले की मूड ठीक नही फिर भी लोग चले आ रहे है ।मैने कहा उनको क्या पता ,आप गेट पर बोर्ड लगवा दीजिये मूड़ ठीक नही ।
तो चुप हो गए । मैने कहा की राम अवतार शाक्य को मैने रोक दिया है बाहर पहले उसे बुलाइए और अच्छी तरह बात करिए फिर बात करते है ।
उन्होने उसे बुलाया ,खेद व्यक्त किया और मिठाई खिला कर विदा किया ।फिर हम दोनो ड्राइंग रूम में बैठ गये ।
मैने कहा हमारे पास 25/26 विधायक बचे है , यदि मैं 2 विधायक का इन्तजाम कर दूँ तो क्या आप और बाकी लोग मिल कर 2/4 का इन्तजाम नही कर सकते ?  वो बोले की आप कैसे करेंगे ? बहुत पैसा मांगेंगे लोग और हम कहा से देंगे ? 1989 की सरकार मे उन्होने लूट नही किया था । मैने कहा की एक भी पैसा मेरे लोगो को नही देना होगा ।मैने कहा की अकसर आखिरी व्यक्ति 30 के आसपास वोट पर जीत जाता है । वो बोले की कोई निर्दलीय पूंजीपति खड़ा हो गया तो नही होगा ।
तब मैने कहा की काशीराम जी फला तारीख को कानपुर आ रहे है आप भी चले जाईये और यूँ ही उनके रूंम मे चाय पीने चले जाईयेगा सर्किट हाउस में ।
उन्होने कहा की काशीराम ने बयान दिया है कि वो चुनाव मे हिस्सा नही लेंगे ।
मैने कहा की बयानो का क्या अर्थ आप जाईये तो और मिल गया तो सीधे 11/ 12 वोट मिल जायेंगे ।
फिर हम लोगो ने चाय पिया और वही हुआ ।मुलायम सिंह जी की काशीराम की बात हो गई और वही 1993 मे दो दलो के समझौते की बुनियाद बनी ।
इस बीच जीवन मे पहली बार मैने गाडी के शीशो पर काली फिल्म लगवाया जो चुनाव के बाद हटा दिया ।
जनता दल के विधायक चन्द्रभान मौर्य और ओम प्रकाश दिवाकर को काली शीशे वाली गाडी मे ले जाकर मैने मुलायम सिंह यादव से मिलवाया और फिर कुछ और लोगो को भी ।
और अन्ततः रामगोपाल यादव अच्छे वोट से जीत गये ।
मुझे वो दृश्य भी याद है जब चुनाव जीतने के बाद सब लोग विधान सभा से राज भवन कालोनी के दफ्तर तक पैदल गये थे और मैं मुलायम सिंह यादव के साथ गाडी मे ।
पार्टी ऑफिस मे छोटा सा तखत लान मे रखा था उस पर मुलायम सिंह यादव ,राम सरन दास सहित हम कुछ लोग बैठ गये और बाकी सभी सामने नीचे लान मे जमीन पर और रामगोपाल जी सबसे पीछे ।
मैने उस कार्यक्रम का संचालन कर रहा था ।मैने मुलायम सिंह यादव से धीरे से कहा की रामगोपाल को मंच पर बुला ले आज उनका दिन है तो उन्होने मुझे धीरे से डपट  दिया की वही बैठने दो ,दिमाग खराब मत करो और मैं चुप हो गया ।
इससे पहले बैकग्राउंड ये है कि एक दिन दिल्ली के अशोका होटल मे चाय पीते हुए मुलायम सिंह यादव ने अचानक कहा की सी पी राय क्या आप को पता है कि रामगोपाल के बेटे भूखे मर रहे है ?
मैने कहा की वो तो डिग्री कालेज मे टीचर है और गाँव मे खेतो भी है तो भूखे कैसे मर रहे है ? फिर उन्होने ना पचने वाले तर्क दिये और मैं बात समझ गया और कह भी दिया कि भाई साहब आप उन्हें राज्य सभा देना चाहते है तो देगे ही पर उसके लिए ये सब बाते करने की क्या जरुरत है ।
मुझे अगली बार दे दीजियेगा । जो मौका कभी नही आया 
और रामगोपाल ने जिदंगी भर पता नही किस बात की मुझसे दुश्मनी निभाया की फिर कुछ मिलने ही नही दिया जो मेरा हक था और जिससे पार्टी का भी भला  ही  होता ।

अयोध्या अन्दोलन का सच

#जिंदगी_के_झरोखे_से--

#अयोध्या_आंदोलन 

1990 - 25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ से अडवाणी जी ने रथयात्रा शुरू कर दिया था ।अडवाणी जी देश के लोकतंत्र की एक राष्ट्रीय पार्टी के दो बड़े नेताओ मे से एक और उसके अध्यक्ष थे जिसकी जिम्मेदारी देश के भविष्य के लिए लड़ने और शैडो गवर्नमेंट बना कर वैकल्पिक विकास का एजेंडा शिक्षा स्वास्थ्य कृषी सुरक्षा इत्यादि होना चाहिये था वो इन मुद्दो के लिए नही बल्की मंदिर बनाने के लिए माहौल बनाने निकला था । उनको 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुचना था पर 23अक्तूबर को उनको लालू यादव ने समस्तीपुर मे गिरफ्तार कर लिया और फिर उनका रथ वाहि थाने मे ही सड़ गया किसी को उसकी याद नही आई ।
काश अडवाणी जी देश की समस्याओ के लिए रथ लेकर निकले होते गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ निकले होते , गांव की बदहाली के खिलाफ निकले होते , अशिक्षा और अभाव मे मौत के खिलाफ निकले होते तो शायद हम जैसे लोग भी साथ हो लेते पर !
कहानी के विस्तार मे नही जाकर मुद्दे पर आता हूँ जिसके लिए आज लिख रहा हूँ 
राम लला हम आयेंगे ,मंदिर वही बनायेंगे 
बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम 
इत्यादि नारे लगवाये जा रहे थे 
आरएसएस और भाजपा तथा विश्व हिन्दू परिसद ने कार सेवा का एलान किया । 21अक्तूबर से ही देश भर से ये सब संगठन मिल कर लोगो को विभिन्न रस्तो से अयोध्या के 100 किलोमीटर के दायरे मे चारो तरफ लाने लगे ।
और अन्ततः 30 अक्तूबर  और फिर 2 नवम्बर  को इस तरह कूच किया जैसे किसी दूसरे देश मे विजय प्राप्त करने क
जा रहे हो ।
अयोध्या मे पूजा और दर्शन होता था उस समय भी पर विवाद अदालत मे था ।
मैं उस वक्त पार्टी का प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता था हम लोगो ने दो प्रस्ताव किया यह कहते हुये की दर्शन और पूजा सबका अधिकार है पर संविधान और कानून से खिलवाड़ सरकार मे बैठा हुआ और उसकी शपथ लिया कोई भी व्यक्ति नही करने देगा और हम भी नही ।
पर हमारे दो प्रस्ताव है --
हम मध्यस्थता करने को तैयार है दोनो पक्ष साथ बैठ जाये और सहमती से तय कर ले क्या होना चाहिये सरकार उसी को मानेगी 
2--यदि सहमती नही बनती है तो फिर एक ही तरीका है की अदालत जो तय करे वो माना जाये ।
कोई तीसरे तरीके को संविधान और कानून से चलने वाले देश मे किसी भी हालत मे नही स्वीकार किया जा सकता है और न किसी हालत मे स्वीकार किया जायेगा ।
तब इन लोगो ने जवाब दिया था जो आज पूरे देश को जानना चाहिये -
कि 
"यह अदालत और कानून नही बल्की हमारी आस्था का सवाल है और इसे हम खुद हल करेंगे "
बड़े नेताओ ने आफ द रिकार्ड यह कहा था की सिर्फ साफ सफाई करेंगे और घोषणा हो चुकी है तो दर्शन कर लौट जायेंगे ।
लाखो की भीड खेतो मे होकर अयोध्या पहुची और रोकने पर पुलिस तथा प्रशसनिक अधिकारियो पर हमलावर हो गई । अधिकारियो ने बहुत समझाने का प्रयास किया की शान्ती से दर्शन करे और वापस चले जाये पर भीड उग्र हो गई जिसके लिए पीछे से सिखा पढा कर लाया गया था ।
भीड गुम्बद पर चढ़ गई और तोड़फोड़ करने लगी 
मजबूरन पुलिस को बल प्रयोग करना पडा और उसमे 16 लोगो की जाने गई जो बहुत अफसोसजनक है क्योकी वो सब इसी देश के नागरिक थे और अपने परिवारो के प्रिय थे । किसी भी हालत मे कभी भी अपने ही नागरिको पर पुलिस की लाठी और गोली चले यह लोकतंत्र के बिल्कुल खिलाफ है और जिम्मेदार राज्य की अवधारणा के भी खिलाफ है । मरने वाले अधिकतर पिछड़े वर्गो के जवान थे ।ये भी सच है की उन मृतको के परिवारो का इन संगठनो और इनकी सरकारो ने फिर कभी हालचाल भी नही पूछा ।
आरएसएस के झूठ तन्त्र ने फैला दिया की हजारो जाने चली गई और सरयू का पानी लाल हो गया और एक खून खौला देने वाला वीडियो भी बना दिया इन लोगो ने 24 घन्ते मे और देश भर मे बांट भी दिया जैसे अन्ना के आन्दोलन मे मिंनटो मे झंडे और मशाले बट जाती थी ,बस आप दोनो को एक साथ रख कर देख्ते जाइए । मैने दिल्ली मे किसी संघी के घर वो वीडियो देखा ,पूरी पिक्चर थी सारे इफेक्ट डाल कर बनायी गई जिसमे लाशे ही लाशे दिखाई गई ,नाली मे खून बहता दिखाया गया , पहले सोमनाथ से लेकर बाबर तक पता नही क्या क्या बताया गया और उसमे एक हेलिकोप्टर उड़ता दिखाया गया था जिसमे बैठे मुलायम सिह यादव को मशीन गन से लोगो पर गोली चलते दिखाया गया था ।
हमने चुनौती दिया की आप मृतको के नाम बताओ ।  ये लोग जो भी नाम बताते हम पूरा सिस्टम लगा कर उनको ढूढ लाते और मीडिया के सामने पेश कर देते । इंनकी सारी लिस्ट और बात फर्जी नकलती गई और अन्त मे वो 16 लोग बचे जो सचमुच मरे थे और उनकी मौत पर हम सबको अफसोस तब भी था और आज भी है ।
पर यह भी उल्लेखनीय है की कल्याण सिंह की भाजपायी सरकार मे जब सरकारी तौर पर फिर लाखो की भीड आई और विवादित ढांचा तोड गया तो उस पर चढे तमाम लोग उसी के नीचे दब गये थे पर सत्ता का नशा और इस विश्व विजय के जोश मे वो बेचारे समचार की सुर्खिया नही बने ।
उसके बाद अयोध्या से ही मार काट लूट शुरू हो गई और यहा तक की खुद भाजपा का अल्पसंख्यक सेल का अध्यक्ष चीखता ही रह गया की मैं तो आप की पार्टी के इस पद पर हूँ, पर ? (इसका ब्योरा उस दिन के हिन्दू के मौके पर मौजूद रिपोर्टर की रिपोर्ट मे मिल जायेगा ।
कैसे लोग आये थे ये धार्मिक काम करने इसी से समझ लीजिये की रुचिरा गुप्ता इनकी भीड मे ही थी तो उसके शरीर से कपडे गायब हो गए और ये देख कर बी बी सी के रिपोर्टर मार्क टूली ने उसे अपना कोट पहनाया और पिटता रहा पर किसी तरह रुचिरा को भीड से निकालने मे कामयाब रहा ।
दंगो मे 2000 से ज्यादा जाने गई ,हजारो करोड़ की सम्पत्ती नष्ट हुई और उठान लिए हुये विकास का पहिया बैठ गया और सालो पीछे चला गया ।
दंगो मे इन लोगो ने क्या किया था आतंक फैलाने को सर्फ इस बात से जान लीजिये की एक टेप बनाया था जी किसी छत पर अचानक काफी तेज आवाज मे चीखता --बचाओओ ओ ,भागो ओ ओ ,आ गए हजारो मुस्लमान ,अरे मार दिया अरे एक और मार दिया भागो ओ ।
और हम लोग जो आगरा के कालेज कैम्प्स मे रहते थे उसके लोग भी अपने हथियार लेकर निकल आये और छपने की जगह ढूढ़ने लगे ,मैने कहा की यहा कहा कोई मुस्लमान है आसपास पर कोई सुनने को तैयार नही था ,आगरा का लाजपत कुन्ज और ऐसी तमाम कालोनी जो मुस्लिम इलाको से 8 से 10 किलोमीटर दूर है लोग रात रात भर पहरा देने लगे ,रास्तो पर बड़े बड़े पत्थर और पुराने टायर रख दिये इत्यादि 
और मुसलमान अपने मुह्ल्लो मे दुबका था की निकले नही की पी ए सी आयेगी और फिर सिर्फ गोलियो की आवाज होगी ।
(दंगो मे क्या क्या हुआ और कौन लोग मरे , किनके साथ क्या क्या हुआ और क्या क्या कर्म करते हुये महान लोग जय श्रीराम के नारे लगते थे और राम का नाम कर बडा कर रहे थे और कौन सी संपत्तियाँ नष्ट हुई इत्यादि तमाम आयोग और जांच कमेटी की रिपोर्ट अब सार्वजनिक है और हो सचमुच देश के वफादार और जिम्मेदार लोग है उनको सब पढ़ना चाहिये और सब जानना चाहिये ।
हर दंगे के बाद भाजपा की सीटे बढती गई ।
और 
इसी बीच विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अडवाणी जी के अभियान के मुकाबले मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर दिया ।उनकी सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर जी प्रधान मंत्री बन गए ।
# बीच मे ये भी जान लीजिये की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन था और भाजपा के प्रिय जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे जब कश्मीरी पंडीत कश्मीर छोड कर गए ,पर उस वक्त भाजपा ने न उसे मुड़दा बनाया और न कश्मीरी पण्डितो के सवाल पर उस सरकार से समर्थन ही वापस लिया#
हा तो चंद्रशेखर जी के अटल बिहारी वाजपेयी श्रीमति सिंधिया , भैरोंसिंह शेखावत सहित काफी भाजपा नेताओ से अच्छे सम्बंध थे और उनकी सरकार मे हम लोगो के युवा राजनीती के मित्र सुबोधकांत सहाय गृह मंत्री थे ।
(  मन्दिर सम्बन्धी हिन्दू परिसद और इन लोगो की बैठक और प्रधान मंत्री से मिलकर बात करने की इच्छा पर चंद्रशेखर जी का उनकी बैठक मे श्रीमति सिंधिया के यहा खुद पहुच जाना और फिर उन्होने क्या सुना और क्या कहा तथा फिर मुस्लिम पक्ष से क्या कहा जानने के लिए Chanchal Bhu की वाल खंगालिए थोडा समय निकाल कर )
अन्त मे चंद्रशेखर जी विवाद का एक सर्वसम्मत हाल निकाल ही लिया अपनी दृढता और दूरदर्शिता से जिसपर अंदर सब सहमत थे और वो फौसला करीब ऐसा ही था जो उसके बाद इतनी बर्बादी और दंगो तथा नफरत की खेती के बाद अन्ततः अदालत ने ही दिया # फिर याद रखिये की हमने कहा था की या तो बातचीत से हल कर लो या अदालत को करने दो और तब आस्था के नाम पर अदालत को मानने से इंकार कर दिया था इस जमात ने #
और अपनी सरकार बन जाने पर उसी अदालत को माना भी और दिन रात देश से भी कहते रहे की अदालत को सभी माने मिलजुल कर और पूरे देश ने माना मुसलमान ने भी । पूरा देश शान्त रहा पर यदि अदालत का फौसला इसका उल्टा होता तो क्या होता ,कल्पना से रूह काँप जाती है ।
प्रधान-मंत्री चंद्रशेखर के निवास से विश्व हिन्दू परिसद वाले यह कह कर निकले की थोडी देर मे आपस मे राय कर के आते है और फिर आये ही नही ।
अब पाठक ध्यान से पढे और समझे इस जमात के इरादे की , आदत को , रणनीति को ,इच्छा को , इनके हथकण्डे को , देश के प्रति जिम्मेदारी को , देश के भविष्य को लेकर चिंतन को , चिंता को और इनके देश के लिए सपने ,सिद्धांत और सक्ल्प को । 
( लखनऊ से दिल्ली तक की सत्ता के करीब रह कर , निस्पक्ष रूप से जागृत रह कर जो देखा , जो जाना , जो समझा सब लिख दिया क्योकी जो अब 45 साल के है तब स्कूल मे पढ रहे होंगे और 1990 मे पैदा लोग अब 30 साल के हुये होगे ।देश की 65%आबादी 35 साल के नीचे की है इसका मतलब ये है की उनको जो बताया गया होगा शाखा मे ता सन्घ के प्रचार ने वो उसी को सच मानते है ।इसलिए सभी जागरूक और सच्चे देशभक्तो की जिम्मेदारी है की पूरे देश को सच की तस्वीर दिखाए बड़े पैमाने पर और देश को फसीवद की तरफ जाने से बचाए ।
आज इसिलिए मैने एक पोस्ट मे लिखा था की देश दो पाटो के बीच फंस गया है -एक जो सच है और दूसरा आरएसएस का सच । देखे ईश्वर कैसे बचाता है मेरे देश को ।
जो सच्चे हिन्दू है और सचमुच मे राम कृष्ण और शिव को मानते है और चाहते है की समाज इन तीनो के नाम पर घृणा और दंगे मे न फंसे बल्की इनके जो गुण और ज्ञान आज को और भविष्य को अच्छा बनाते हो और भारत को तथा भारत वासियो को अच्छा बनाते हो उनका प्रसार हो उनकी भी जिम्मेदारी है की देश और समाज को सही धर्म का ज्ञान कराये ,स्वामी विवेकानन्द से लेकर गांधी जी और डा लोहिया तक के धर्म और इन लोगो के बारे मे लिखे का ज्ञान कराने का अभियान चलाये ।
अदालत का फौसला आया , मन्दिर बनेगा , देश मे सब उसके पक्ष मे है पर उसे धार्मिक आयोजन ही रखा जाता और उसमे राजनीती नही की जाती तो भारत बनता 
लेकिन इन लोगो को भारत बनाना ही कब था या है इन्हे तो बस वोट और सरकार बनाना है सब बेच देने के लिए ।

वो बच्चा और राम

#जिंदगी_के_झरोखे_से

आज कुछ झलकियाँ जानी, देखी या भोगी हुई   -  वो बच्चा 

1-वो भी बच्चा था , तब गाँव मे रहता था और गाँव मे आप किसी भी जाती मे और किसी भी स्तर के परिवार मे पैदा हुये हो गाय भैस को अन्य बच्चो के साथ चराने या तालाब मे नहलाने ले जाना एक काम होता ही था जैसे खेत के काम मे हाथ बताना, अगर घूरा उठ रहा है तो ,अगर गन्ना पेरा जा रहा हो या पानी के लिए रहट चल रही हो तो बैलो के पीछे पीछे घंटो चलना ,गुड बनते वक्त आग मे ईधन झोंकना , दवाई के समय खलिहान मे बैलो को हाँकना , कटाई पर चाहे छोटा बोझा ही लेकर आना ,मक्के की बाल छीलना , चारा काटना, खेत की रखवाली के लिए कुछ देर मचान पर बैठना , गाय बैल भैस को दाना पानी देना इत्यादि सब मे लगना ही होता था ।शायद फिल्मो वाले गाँव के जमीन वाले किसानो के परिवार भी कही होते होंगे ही । ये बच्चा भी सब करता था ।  उसको भी खेलना अच्छा लगता था और खेलते वक्त गाँव मे बच्चो मे जाति की रेखा नही थी । लाखन पाती , पेड पर चढ़ दूसरे को छू लेना , गिट्टी फोड ,गिल्ली डंडा ,कुश्ती और कबड्डी ही खेल थे गाँव के ।
उस दिन शाम को दो टीम बन कर कबड्डी हो रही थी खलिहान मे और खेल खत्म होते होते सूरज डूबने लगा था । सब बच्चे साथ साथ लौटे और वह बच्चा भी लौटा । और बच्चो के पिता किसान थे पर उस बच्चे के पिता अध्यापक थे । उन्होने जोर से चीक कर पूछा कहा थे ? बच्चे ने जवाब दिया -खलिहान मे सब फला फला थे और आज कबड्डी थी ,अभी खत्म हुई ।उसके पिता ने कहा की अब तो अन्धेरा होने को है पहले क्यो नही लौटे ? इस पर वह बच्चा चुप हो गया क्योकी इसका कोई जवाब उसके पास नही था । फिर सवाल आया कि बोलते क्यो नही ? फिर भी जवाब नही था ।
बस पास मे रखी लाठी पिता के हाथ मे थी और उस बच्चे के शरीर पर अनगिनत निशान छोड कर ही लाठी वापस अपने स्थान पर गई । निशान भी ऐसे की रात को सोते वक्त चारपाई भी सजा दे रही थी ।
बाकी किसी भी बच्चे के घर से कोई चीख सुनाई नही पड़ी ।  हो सकता है उन बच्चो को घर के अंदर ले जाकर सजा मिली हो ।
2-वो बच्चा शहर आ गया था अपने पिता के साथ । गाँव से आया था और गाँव मे सर पर चुटिया रखना शायद कोई धार्मिक मजबूरी थी या परम्परा थी या पंडीत जी द्वारा पैदा किसी अन्धविश्वास की उपज थी ।
शहर मे स्कूल के बच्चे उस बच्चे पर हंसते और उसका मजाक ही नही उडाते बल्की जब तक पीछे से चुटिया खींच देते थे ।
बाल कटवाने का दिन आया ।घर के पास ही नाई था । पिता वहाँ बैठा कर और काटने का पैसा देकर घर चले गए ।बाल काटने का नम्बर आया तो काटते हुये नाई ने पूछा की चुटिया छोड़ना है या काटना है ? वो बच्चा मौन रहा और मौन को सहमती मांन नाई ने चुटिया भी काट दिया ।बच्चा अंदर से खुश कि अब स्कूल मे कोई तंग नही करेगा । 
घर पहुचा और मासूमियत से बता दिया की चुटिया नाई ने काट दिया लेकिन अच्छा ही हुआ क्योकी स्कूल मे उसके साथ ये सब होता है ।
बात पूरी हुई भी नही की पिता के हाथ मे डंडा था और उस बच्चे शरीर पर निशान ही निशान और उसकी चीखे ।
3-वो बच्चा अपने छोटे भाई को बहुत प्यार करता था और हर उसको लेकर खेलना और गोद मे लेकर घुमाना उसे अच्छा लगता था । पिता के पास साइकिल थी जिसमे उस जमाने मे आगे हैंडिल मे कंडीया लगी होती थी ।छोटा भाई इतना छोटा था की उस कंडीया मे बैठ जाता था और वो बच्चा मुहल्ले मे छोटे भाई को उस कन्डिया मे बैठा कर घूमाता था ।एक दिन शाम को भी घर पास उसे घुमा रहा था कि कन्डिया किसी तरह हैंडिल से गिर गई और छोटे भाई को चोट लग गई ।वो बच्चा घबरा गया और साईकिल घर के बाहर खड़ा कर छोटे भाई को लेकर परेशान हाल इधर उधर दौडने लगा उसके घाव को हाथ से दबा कर की खून रुक जाये पर कब तक ? घर तो जाना ही था ।
घर मे जब पिता को पता लगा ये तो फिर पिता की मार और बच्चे के शरीर पर निशान लेकिन इस बार एक निशान शरींर पर नही बल्की मन पर भी लगा और  बहुत गहरा लगा जो कभी खत्म ही नही हुआ जब पिता ने उस छोटे से बच्चे से कहा की हाँ तुम मार देना चाहते हो छोटे को ताकी गाँव की जमीन जायदाद सब तुम्हारी हो जाये ।
वो बच्चा एक कोने मे रोता रहा लगातार और बार बार ।
4-उस बच्चे को उसके पिता शायद बहुत चाहते थे और चाहते थे कि जो वो नही बन पाये वो बच्चा बन जाये और खुद की इच्छा उसपर थोपने के चक्कर मे शायद कुछ ज्यादा कर जाते थे -
जैसे उस बच्चे को सिखाया की राम की स्पेलिंग आर ए एम होती है और साथ ही की आर ए एम ए रामा होता है पर क्यो होता है और कैसे बनता है शब्द बस यह ही नही बता पाये पिता ।अक्सर पूछ लेते राम की स्पेलिंग बताओ तो वो बच्चा बता देता आर ए एम तो उसे पक्का करने को तुरंत घुडक देते थे वो पिता की आर ए एम होता है ? और बच्चा घबरा जाता और आर ए एम ए बोल देता और फिर बच्चे के शरीर को मजबूत करने का अवसर नही गंवाते वो पिता और इस राम और रामा ने उस पिता को 50 से ज्यादा ही मौके दिये बच्चे के शरीर को मजबूत बनाने के ।
इसी तरह यदि वो बच्चा गडित कर रहा होता तो सवाल होता की अंग्रेजी कब पढ़ोगे और अंग्रेजी पढता तो गडित कौन पढेगा जैसे सवाल सभी विषयो पर होता और बच्चा लगातार शारीरिक रूप से मजबूत होता रहा  ।
5-ऐसा नही की हमेशा पिता ने उस बच्चे के शरीर को मजबूत करने का ही काम किया बल्की एक बार थोडा बडा हुआ था वो बच्चा और बच्चो के साथ साथ देखा देखी मे एक गलती कर बैठा ।इस बार पिता ने डंडा नही उठाया बल्की अपनी आंखे गीली कर लिया कुछ कह कर और इस बार उस बच्चे को ये सजा कही ज्यादा भारी पड़ी और फिर दुबारा इस बच्चे ने वो गलती कभी नही किया ।
6-एक बार बच्चे को कुछ पैसे की जरूरत पड़ गई और पिता से ही मांगना था । पिता अब डंडे से नही शब्दो से मारने लगे थे । बोले की जब जरूरत हो तो पिताजी ? 
बस उस दिन से उस बच्चे ने कभी ना मुह खोला और ना हाथ फैलाया ,यहाँ तक की जूता टूट जाने पर कुछ दिनो तक नंगे पैर गया स्कूल ।
फिर वो बच्चा बडा हो गया और जब भी उसके पिता देख रहे होते तो वो उपन्यास पढने लगता और जब वो नही देखते तो कोर्स पढने लगता क्योकी अब उस बच्चे के शरीर को मजबूती की जरूरत नही थी और पिता भी अब थक चुके थे ।

सोमवार, 2 नवंबर 2020

आगरा रामलीला मैदान देवीलाल की रैली

#यादो_के_झरोखे_से

एक #पुरानी_याद #1988_की ।
आगरा के सर्किट हाउस की एक फोटो प्रेस कांफ्रेंस के समय ।
हरियाणा के मुख्यमंत्री चौ #देवीलाल की रैली थी आगरा के रामलीला मैदान में ।मैंने #ओमप्रकाशचौटाला को यू पी भवन में #मुलायम सिंह यादव के कमरे में और देवी लाल जी को हरियाणा भवन में मना किया था की जो रैली करवा रहे है एक हज़ार आदमी भी नहीं ला पाएँगे सभा में 
पर वो गुप्ता जी थे और मुलायम सिंह यादव ने उनको चेयरमैन बनवा दिया था तो उनकी बात का वजन ज़्यादा था 
और 
उस वक्त सम्पूर्ण विपक्ष की धुरी तथा उम्मीद की किरण देवीलाल जी आए भी 
रामलीला मैदान बिलकुल ख़ाली । 
देवीलाल जी फ़ॉर्मैलिटी पूरी कर नाराज़ हो वापस चले गए हरियाणा सरकार के स्टेट प्लेन से और बाक़ी सब लोग सर्किट हाउस आ गए #जनेश्वर_मिश्रा , #शरद_यादव , मुलायम सिंह यादव इत्यादि ।
गुप्ता जी ग़ायब , खाने तक का भी इंतज़ाम नहीं । एक तनाव था सब के अंदर की देवीलाल जी को क्या मुह दिखाएँगे । 
मुलायम सिंह में मुझसे अकेले में बात किया की इज्जत कैसे बचाई जा सकती है ? क्या अख़बार में कुछ ऐसा हो सकता है की देवीलाल जी को दिखाया जा सके ?
मैंने कहा कोशिश करता हूँ । 
फिर मेरे निमंत्रण पर सब लोग मेरे निवास पर आए जहाँ मेरे फ़ोन कर देंने के बाद मेरी पत्नी ने जल्दी जल्दी में पूरी सब्जी और पुलाव तथा रायता बना लिया था और उसके बाद  चाय । 
सभी नेता जनेश्वर जी शरद यादव , मुलायम सिंह और अन्य ने वही भोजन किया । 
मुलायम सिंह यादव बोले की जल्दी चला जाए ताकि सी पी राय भी फ़्री होकर उस ज़रूरी काम में लगे जो उन्हें दिया गया है 
और 
सबको बिदा कर मैं काम में लग गया । अखबार के दोस्तो ने सिर्फ इतनी दोस्ती निभा दिया की केवल मंच की फोटो छापा और देवीलाल जी तथा अन्य नेताओ का भाषण और भीड की चर्चा तथा फोटो छोड दिया ।अगले दिन देवीलाल की की सभा #एक_सफल_सभा थी ।
हा हा हा हा । 
जय हिंद ।

सोमवार, 22 जून 2020

चीन और नेपाल के बहाने

भारत के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप मे लिख रहा हूँ 
कि 
चीन ,नेपाल पाकिस्तान तीनो मोर्चो को एक साथ खोले रखना ठीक नही है ।
अन्धे होकर अमरीका की गोद मे बैठ जाना भी ठीक नही है 
और इस चक्कर मे विश्वसनीय दोस्त रहे रुस को दूर कर देना भी ठीक नही हुआ और न ईरान के साथ संबंधो मे परिवर्तन ।
आसपास के बहुत से देश तबाह है तो मजबूत दिखने बाले देश भी अंदर से आज खोखले है ।
हम आज अर्थिक सँकट और कोरोना सँकट मे है और चारो तरफ से घिरे है तो चीन भी चारो तरफ से घिरा है और सँकट मे है ।चीन ने अर्थिक विस्तार इतना ज्यादा कर लिया है की तमाम जगह अपने को अर्थिक रूप से फंसा लिया है ।चीन आज लड़ाकू योद्धा नही बल्की ऐसा व्यापारी बन गया है जो अपने घर और व्यापार की रक्षा के लिए सुरक्षा भी रखता है ।
नेपाल की अपनी जरूरते और मजबूरिया है और जब हम अपनी तरफ से जाने वाली पाइप लाईन काट काट देंगे तो वो पानी पीने कही तो जायेगा ही ।लेकिन लाख मावोवादी शासन आ गया हो पर आज भी नेपाल हिन्दूओ का देश है और पशुपति नाथ से लेकर सीता मा तक का घर है और इन लोगो के होते हुये उसे इतनी आसानी से और इतनी जल्दी भारत से काटा नही जा सकता है ।नेपाल की अच्छी खासी निर्भरता भारत पर आज भी है तो भारत की सेना मे तैनात इतनी बडी संख्या मे नेपाली गोरखा जहा हमारी फौज का मजबूत आधार है वही यदि हम सचेत नही रहे और चीजो को ठीक से नही देखा समझा तो आने वाले समय मे वे आत्मघाती भी साबित हो सकते है ।
पाकिस्तान की हकीकत सिर्फ इतनी है की सेना के राज के करण वो पिछड गया है और अर्थिक बदहाली का शिकार है और तमाम अर्थिक स्रोत पर काबिज उनकी सेना और बड़े नेता तथा ठेकेदार लोगो की रुचि पाकिस्तान की बनाने मे कम और दूनिया के दूसरे देशो मे सम्पत्तियाँ बनाने और अपने परिवारो का वहा सुरक्षित इन्तजाम करने मे अधिक रही है ।
पर किसी भी पाकिस्तानी से कही मुलाकात हो जाये तो वो भारतीय से प्रेम से मिलता है ।
हर देश की कुछ कमजोरिया है और अन्तर्विरोध है पर दुर्भाग्य से भारत के दूतावासो ने और सभी खुफिया संगठनो ने पिछ्ले कुछ सालो मे लगता है की सिर्फ ऐश किया है और अपनी जिम्मेदारियो का निर्वाह नही किया है ।
जब सरकार मे बैठे लोगो की निगाह और लक्ष्य इन चीजो की तरफ होता है और उसमे गम्भीरता होती है तो वैसे ही लोग विभिन्न देशो और स्थानो पर लगाये जाते है और उन्हे पता होता है की उनका उद्देश्य क्या है क्योकी उनको स्पष्ट निर्देश रहता है की अगले कुछ सालो का लक्ष्य क्या है । सरकार भले बदल जाये पर देश का लक्ष्य नही बदलता यह किसी देश की तरक्की और मजबूती की मुख्य बुनियाद है इसिलिए बुनियाद यह भी है की सिर्फ चुनाव के 3/4 महीने कोई कुछ भी कर ले और बाकी दिनो भी विपक्ष अपनी धारदार भूमिका निभाए चाहे जब चाहे जो हो पर सभी मुख्य बड़े नेताओ , पूर्व राष्ट्रपति,पूर्व प्रधानमंत्री,
पूर्व विदेश मंत्री,पूर्व रक्षा मंत्री,पूर्व गृह मंत्री ,पूर्व वित्त मंत्री और पूर्व सेनध्य्क्ष ,और खुफिया विभागो के भी पूर्व काबिल लोगो की लगातार ऑफ द रिकॉर्ड चर्चा और विचार विमर्श ,सूचनाओ और भविष्य की योजनाओ पर गोपनीय रणनीतियो का निर्धारण लगातार होते रहना जरूरी है क्योकी देश सबका है और लोकतंत्र है तो कोई भी कभी भी सत्ता मे हो सकता है और कोई भी विरोध मे । और चूँकि सभी के कुछ अनुभव भी है और कुछ भविषय के सपने भी तो देश उन सभी विचारो और रणनीतियो का लाभ क्यो न पाये या उनसे वंचित क्यो रहे । आदर्श व्यव्स्था तो यही है ।
नेपाल से लड़कर नही मिल कर और उनकी तथा वहा के समाज की जिन्दगी ने घुस कर और जनता से जनता के संवाद को बढा कर बहुत कुछ ठीक भी किया जा सकता है और हासिल भी किया जा सकता है ।
पाकिस्तान के अन्तर्विरोधो पर निगाह भी और दखल भी और वहा की जनता चाहे बलूच हो या सिन्धी या भारत से गए लोग जो आज भी दोयम दर्जे के नागरिक है क्या हम उनको जोड़ सकते है ? क्या हम उनकी आँखो मे कुछ सपने जगा सकते है ?  और भी बहुत कुछ पर उनका इस्तेमाल राजनीती के लिए करेंगे तो कुछ नही होगा सिर्फ कुछ वोट हासिल करने के अलावा ।
भुटान के बारे मे थोडे कम से समय की और दूसरी थोडी दूरगामी रणनीति तय करनी होगी ।
श्रीलंका,मालदीव ,म्यांमार,बंगला देश के मामले मे भी कही रस्सी या तो कमजोर पडी या ढीली पड़ गई ।हा इतनी भी न खिंच जाये की टूट ही जाये ।
सिर्फ दलाई लामा को शरण देकर भूल जाना भी तो बडी भूल साबित हुई । अगर पीओके पर दूनिया मे चर्चा हो सकती है , फिलिस्तीन को मान्यता मिल सकती हौ और इस्राईल को मान्यता मिल सकती है तो बौद्ध धर्म तो पूरी दूनिया के तमाम देशो मे है ,तिब्बत की आज़ादी या दलाई लामा और इनके लोगो के लिए चीन जमीन खाली करे इसपर लगातार मुद्दा क्यो नही रह सकता है ।हम लोग मानवता और लोकतंत्र के ठेकेदार है तो तिनामिन चौक पर बच्चो पर टैंक चढाये गए तब या होंगकोग मे जो आन्दोलन चल रहा है उस पर हमारा देश और बड़े नेता मुखर क्यो नही है ? तिब्बत बचाओ आन्दोलन क्यो मरने दिया गया । आसपास के देशो का ढीलाढाला महासंघ को ये सपना आसपास के सभी देशो की आवांम देखने लगे इसके लिए सभी दल सयुक्त रूप से डा लोहिया के इस सपने पर काम क्यो नही कर सकते । इन चीजो के दूरगामी परिणाम हो सकते थे और है । विभिन्न देशो के साथ मैत्री संघ और शैक्षिक संस्कृतिक आदान प्रदान के कार्यक्रम क्यो बंद हो गए और क्यो नही चलाये जा सकते है रणनीतिक रूप से ।
जहा तक अभी के हालात का सवाल है उसे सरकार का नही बल्की देश का सवाल बना देना चाहिये ।
1-अर्थिक मोर्चे के लिए एक सर्व्दलीय और सर्वकालिक जानकार लोगो का समूह बने ।
2-नेपाल के लिए एक समूह बने जिसमे उसकी जानकारी तथा वहा से अच्छे सम्बन्ध रखने वाले नेता किसी भी दल के , विदेश, बड़े धर्म गुरु , नेपाल के एक्सपर्ट  विदेश सेवा के लोग , वहा काम कर चुके खुफिया विभाग के लोग इत्यादि हो ।
3-बंगला देश , भुटान , श्रीलंका सहित अलग अलग देशो के लिए भी ऐसा ही हो ।
4-पाकिस्तान के लिए उसको हैंडिल कर चुके और सफलता से चीजो को अंजाम दे चुके लोगो का समूह बने ।
5-चीन के लिए प्रधानमंत्री के नेत्रत्व मे एक सर्व्दलीय प्रतिनिधिमंडल चीन से वार्ता करे और साथ साथ अपनी क्षमता और रणनीति के अनुसार सेना अपना काम तत्काल शुरू करे और भारत लाईन ऑफ कन्ट्रोल का एक नक्शा तत्काल जारी करे उसके अनुसार चीन को वापस जाने को मजबूर करे अन्यथा फिलहाल जहा भारत के पक्ष मे परिस्थितिया हो उन इलाको मे उससे ज्यादा किलोमीटर अंदर तक जाकर बैठ जाये ।।
साथ ही विएतनाम , जापान सहित जिन देशो से चीन के हित टकराते है उंन सभी देशो के लिए तत्काल मंत्री या पूर्व मंत्री के नेत्रत्व मे प्रतिनिधिमंडल भेज कर आक्रमक रणनीति अपनाने का संदेश दे ।
पर अब जो भी करना है मजबूती से करना है और स्थाई करना है ।
रुस ईरान इत्यादि के साथ हुई गलती का सुधार भी जरूरी एजेंडा होना चाहिये ।
देश सँकट मे है तो चुनाव और राजनीती संगठन के लोग देखे चाहे सत्ता हो या विपक्ष पर सत्ता के पड़ो पर बैठे लोग और विपक्ष मे बैठे ये जिम्मेदारियां निभा चुके लोग फिलहाल देश बनाने और बचाने के काम मे जुटे ।