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शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

जिंदगी के झरोके से ,राजेन्द्र शर्मा और शकील

जिंदगी_के_झरोखे_से

#दो_घटनाए_जो_मेरा_अवगुण_बताती_है_और_नेता_से_दूर_करती_है

1--मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे और एक सेठ के बुलावे पर आगरा आये जो मेरी निगाह मे निरर्थक और गैर राजनीतिक फैसला था ।उससे तुरंत पहले पार्टी के महानगर अध्यक्ष की मा का देहांत हो गया । अध्यक्ष मुलायम सिंह द्वारा सीधे बनाये हुये थे जिनका राजनीति से कोई सम्बंध नही था पर वो आयकर के वकील थे और है ।ना मेरा तब सम्बंध था और ना फिर कभी मुलाकात हुयी आजतक उस वकील साहब से पर मै पागल आदमी हूँ ।
मुलायम सिंह यादव उस सेठ के घर दूर गाँव के इलाके मे गये और जब किसी के घर मुख्यमंत्री आ रहा हो और वो भी सेठ तथा व्यापारी के घर तो भव्य कार्यक्रम तो होना ही था और फिर भव्य दोहन भी होना होता ही है ।
उनके कार्यक्रम मे महानगर अध्यक्ष के घर जाने का कोई कार्यक्रम नही था और उस वक्त पार्टी मे मुह लगे लोग भी इस विचार के नही थे की वो किसी के घर जाये चाहे कोई भी मर गया हो ।
पर मुझे ये बात पार्टी के सिद्धांतो और मुलायम सिंह यादव के बारे मे जो वर्षो मे हम लोगो ने इमेज बनायी थी उसके खिलाफ लग रही थी ।
लखनऊ वापस जाने के लिए मुलायम सिंह एयरपोर्ट आये उसके पहले ही मैने डी एम संजय प्रसाद से कह कर रूट साफ करवा लिया । ज्योही मुलायम सिंह जहाज की सीढ़ी की तरफ बढे मैने रोक कर अपने उद्गार व्यक्त कर दिये कि ये आप की पहचान के खिलाफ है कि आप किसी सेठ के घर आकर वापस चले जाये और पार्टी अध्यक्ष की मा का निधन हुआ है और वहा दो मिनट भी न जाये ।
तो वो थोडा झुझलाये पर विचलित भी हुये और बोले की अब देर हो गई है और जाना भी चाहे तो 2 घन्टा समय चाहिये । मैने कहा नही मुश्किल से 30 मिनट जाना आना और 5 मिनट रुकना तो बोले पूरी सड़क भरी होगी और वो आप के घर के पास ही तो रहते है कैसे पहुच जायेंगे ? तो मैने कहा की मैने पहले ही रूट लगवा दिया है ।फिर नाराज हुये की हमसे पूछे बिना कैसे करवा दिया और डी एम की तरफ देखने लगे ।संजय प्रसाद ने आंखे झुका लिया और बोले की हा सर इन्होने कहा की चल सकते है तो इन्तजाम कर दिया गया ।
और फिर वही हुआ और 40 से 45 मिनट मे अध्यक्ष की इज्जत और मन भी रह गया और मुख्यमंत्री की  इज्जत भी  रह गई ।पर मुलायम सिंह ने मुझसे कोप तो पाल ही लिया ।
2--मुलायम सिंह यादव इटावा से दिल्ली जाते हुये मेरे घर पर प्रेस से मिल कर जाने वाले थे जो अकसर होता था । एक हमारा कार्यकर्ता था शकील जो खन्दारी बूथ का मजबूत कार्यकर्ता था उसके घर मे मौत हो गई थी । वो स्कूटर मकेनिक था और पास के चौराहे पर जमीन पर ही बैठता और काम करता था । मैने उसको खबर करवा दिया कि वो अपने घर पहुच जाये और दो और उसी मुहल्ले के कार्यकर्त्ताओ को भी भेज दिया ।
जब मेरे घर से चाले तो मै गाडी मे था और मैने मुलायम सिंह जी से कहा की एक मजबूत कार्यकर्ता है उसके साथ ऐसा हो गया है और उसका घर रास्ते ने पड़ेगा । तो वो बोले की गाडी वहा तक जायेगी ।मैने कहा की थोडा सा पैदल चलना होगा पर जरूरी है ।
वहा पहुच कर हम लोग उतरे और करीब 5/ 600 मीटर पतली सी गली मे पैदल चले ।ये बस्ती बघेल मुस्लमान जिनको मैने पार्टी से जोड़ लिया था और दलितो की बस्ती है । ब्लैल कैट कमांडो और हम लोगो को देख कर पूरी बस्ती मे मिंनटों मे बात फैल गई । उस कार्यकर्ता के घर मे मुलायम सिंह को बैठाने के लिए कुछ नही था ।5 मिनट खड़े खड़े हाल चाल हुआ और जब हम लोग उसके घर से निकले तो सारी छते और पूरी गली भरी हुयी थी और अगले दिन ये किस्सा शहर भर मे चर्चा का विषय बन गया था कि मुलायम सिंह तो छोटे से छोटे कार्यकर्ता का भी ध्यान रखते है ।
समाज मे किसी को नेता बनाना और उसकी छवि बनाना आसान काम नही होता है और उसके लिए बडी सोच और बडा दिल रखना पडता है और कोपभाजन का शिकार भी होना पडता है ।
शायद इन्ही अवगुणौ के कारण बड़े नेता मुझसे नाराज ही रहते थे और कार्यकर्ता भी आप का वजन देखकर ही आप के साथ रहता है ।
पर मैं जैसा हूँ ठीक हूँ 

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