अंग्रेजो के बनाये एक कानून पर पुनर्विचार करने की कसरत हो रही है संसद
में । देखें इस भूमि अधिग्रहण बिल से किसान को क्या मिलता है ? क्योकि देश
की दशा और दिशा ८० % किसान नहीं तय करता है बल्कि कुछ सौ उद्योगपति तय करते
है और देश दिवालिया होने की कगार पर पहुच गया है । जय जवान ,जय किसान के
नारे से देश मजबूत हुआ था । आज भी देश इन ८० % लोगो को केंद्र में रख कर
दशा दिशा तय होने लगे तो सब सम्हल जायेगा । १९६२ में किसान ने बेटे को भेजा
सीना पर लड़ने को और घर का सोना और अनाज भी दे दिया । याद है किसी को की
किसी पूंजीपति ने भी कुछ दिया था प्लीस बताइयेगा ।
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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गुरुवार, 29 अगस्त 2013
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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