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गुरुवार, 27 नवंबर 2014

बचपन में जब तक संस्कृत पढना मजबूरी थी इतना भारी और बोर लगता था की मास्टर साहब 33 नंबर देकर बस पास कर देते थे और जब क्लास 9 में जाने पर उससे पीछा छूटा तो लगा कैद से मुक्त हो गए ।
आज तक नहीं समझ पाया इतना पढने के बाद की क्या सिखाया संस्कृत ने ।और इतना ज्ञान का भंडार है तो कोई किसी भी क्लास में पढना क्यों नहीं चाहता ।
कही धीरेन्द्र ब्रह्मचारी की तरह अपने लोगो को इसी बहाने स्कूल और कालेजो में भरने की साजिश तो नहीं जैसे उन्होंने अपने सारे शिष्य योग टीचर बनवा दिए ।
अब ये तो सभी जानते है की क्या किया इतने वर्षो में योग और उसके टीचर ने ।

वैसे तो संघी दो मोर्चे पर काम करते है - 1- अपनी अयोग्यता ,अदूरदर्शिता ,असफलता से ध्यान हटाते है विवाद छेड़ कर और -2- अपने लोगो को मीडिया ,शिक्षा से लेकर हर क्षेत्र में भर देते है भविष्य में फासीवाद लाने के हथियार के रूप में ।

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