कितना
तिल तिल मर रहे होते है जब आप खौल रहे होते है अपनी खून की बूँद बूँद में
और लगता है की सभी नसे फट जाएँगी पर इतने मजबूर भी होते है की न कुछ कह
सकते है और न जोर से रो ही पाते है की कुछ दर्द बह जाये | कितने मजबूर होते
है ऐसे लोग |
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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मंगलवार, 19 अगस्त 2014

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