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सोमवार, 13 जनवरी 2025

अयोध्या_आंदोलन

#जिंदगी_के_झरोखे_से--

#अयोध्या_आंदोलन 

1990 - 25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ से अडवाणी जी ने रथयात्रा शुरू कर दिया था ।अडवाणी जी देश के लोकतंत्र की एक राष्ट्रीय पार्टी के दो बड़े नेताओ मे से एक और उसके अध्यक्ष थे जिसकी जिम्मेदारी देश के भविष्य के लिए लड़ने और शैडो गवर्नमेंट बना कर वैकल्पिक विकास का एजेंडा शिक्षा स्वास्थ्य कृषी सुरक्षा इत्यादि होना चाहिये था वो इन मुद्दो के लिए नही बल्की मंदिर बनाने के लिए माहौल बनाने निकला था । उनको 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुचना था पर 23अक्तूबर को उनको लालू यादव ने समस्तीपुर मे गिरफ्तार कर लिया और फिर उनका रथ वाहि थाने मे ही सड़ गया किसी को उसकी याद नही आई ।
काश अडवाणी जी देश की समस्याओ के लिए रथ लेकर निकले होते गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ निकले होते , गांव की बदहाली के खिलाफ निकले होते , अशिक्षा और अभाव मे मौत के खिलाफ निकले होते तो शायद हम जैसे लोग भी साथ हो लेते पर !
कहानी के विस्तार मे नही जाकर मुद्दे पर आता हूँ जिसके लिए आज लिख रहा हूँ 
राम लला हम आयेंगे ,मंदिर वही बनायेंगे 
बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम 
इत्यादि नारे लगवाये जा रहे थे 
आरएसएस और भाजपा तथा विश्व हिन्दू परिसद ने कार सेवा का एलान किया । 21अक्तूबर से ही देश भर से ये सब संगठन मिल कर लोगो को विभिन्न रस्तो से अयोध्या के 100 किलोमीटर के दायरे मे चारो तरफ लाने लगे ।
और अन्ततः 30 अक्तूबर  और फिर 2 नवम्बर  को इस तरह कूच किया जैसे किसी दूसरे देश मे विजय प्राप्त करने क
जा रहे हो ।
अयोध्या मे पूजा और दर्शन होता था उस समय भी पर विवाद अदालत मे था ।
मैं उस वक्त पार्टी का प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता था हम लोगो ने दो प्रस्ताव किया यह कहते हुये की दर्शन और पूजा सबका अधिकार है पर संविधान और कानून से खिलवाड़ सरकार मे बैठा हुआ और उसकी शपथ लिया कोई भी व्यक्ति नही करने देगा और हम भी नही ।
पर हमारे दो प्रस्ताव है --
हम मध्यस्थता करने को तैयार है दोनो पक्ष साथ बैठ जाये और सहमती से तय कर ले क्या होना चाहिये सरकार उसी को मानेगी 
2--यदि सहमती नही बनती है तो फिर एक ही तरीका है की अदालत जो तय करे वो माना जाये ।
कोई तीसरे तरीके को संविधान और कानून से चलने वाले देश मे किसी भी हालत मे नही स्वीकार किया जा सकता है और न किसी हालत मे स्वीकार किया जायेगा ।
तब इन लोगो ने जवाब दिया था जो आज पूरे देश को जानना चाहिये -
कि 
"यह अदालत और कानून नही बल्की हमारी आस्था का सवाल है और इसे हम खुद हल करेंगे "
बड़े नेताओ ने आफ द रिकार्ड यह कहा था की सिर्फ साफ सफाई करेंगे और घोषणा हो चुकी है तो दर्शन कर लौट जायेंगे ।
लाखो की भीड खेतो मे होकर अयोध्या पहुची और रोकने पर पुलिस तथा प्रशसनिक अधिकारियो पर हमलावर हो गई । अधिकारियो ने बहुत समझाने का प्रयास किया की शान्ती से दर्शन करे और वापस चले जाये पर भीड उग्र हो गई जिसके लिए पीछे से सिखा पढा कर लाया गया था ।
भीड गुम्बद पर चढ़ गई और तोड़फोड़ करने लगी 
मजबूरन पुलिस को बल प्रयोग करना पडा और उसमे 16 लोगो की जाने गई जो बहुत अफसोसजनक है क्योकी वो सब इसी देश के नागरिक थे और अपने परिवारो के प्रिय थे । किसी भी हालत मे कभी भी अपने ही नागरिको पर पुलिस की लाठी और गोली चले यह लोकतंत्र के बिल्कुल खिलाफ है और जिम्मेदार राज्य की अवधारणा के भी खिलाफ है । मरने वाले अधिकतर पिछड़े वर्गो के जवान थे ।ये भी सच है की उन मृतको के परिवारो का इन संगठनो और इनकी सरकारो ने फिर कभी हालचाल भी नही पूछा ।
आरएसएस के झूठ तन्त्र ने फैला दिया की हजारो जाने चली गई और सरयू का पानी लाल हो गया और एक खून खौला देने वाला वीडियो भी बना दिया इन लोगो ने 24 घन्ते मे और देश भर मे बांट भी दिया जैसे अन्ना के आन्दोलन मे मिंनटो मे झंडे और मशाले बट जाती थी ,बस आप दोनो को एक साथ रख कर देख्ते जाइए । मैने दिल्ली मे किसी संघी के घर वो वीडियो देखा ,पूरी पिक्चर थी सारे इफेक्ट डाल कर बनायी गई जिसमे लाशे ही लाशे दिखाई गई ,नाली मे खून बहता दिखाया गया , पहले सोमनाथ से लेकर बाबर तक पता नही क्या क्या बताया गया और उसमे एक हेलिकोप्टर उड़ता दिखाया गया था जिसमे बैठे मुलायम सिह यादव को मशीन गन से लोगो पर गोली चलते दिखाया गया था ।
हमने चुनौती दिया की आप मृतको के नाम बताओ ।  ये लोग जो भी नाम बताते हम पूरा सिस्टम लगा कर उनको ढूढ लाते और मीडिया के सामने पेश कर देते । इंनकी सारी लिस्ट और बात फर्जी नकलती गई और अन्त मे वो 16 लोग बचे जो सचमुच मरे थे और उनकी मौत पर हम सबको अफसोस तब भी था और आज भी है ।
पर यह भी उल्लेखनीय है की कल्याण सिंह की भाजपायी सरकार मे जब सरकारी तौर पर फिर लाखो की भीड आई और विवादित ढांचा तोड गया तो उस पर चढे तमाम लोग उसी के नीचे दब गये थे पर सत्ता का नशा और इस विश्व विजय के जोश मे वो बेचारे समचार की सुर्खिया नही बने ।
उसके बाद अयोध्या से ही मार काट लूट शुरू हो गई और यहा तक की खुद भाजपा का अल्पसंख्यक सेल का अध्यक्ष चीखता ही रह गया की मैं तो आप की पार्टी के इस पद पर हूँ, पर ? (इसका ब्योरा उस दिन के हिन्दू के मौके पर मौजूद रिपोर्टर की रिपोर्ट मे मिल जायेगा ।
कैसे लोग आये थे ये धार्मिक काम करने इसी से समझ लीजिये की रुचिरा गुप्ता इनकी भीड मे ही थी तो उसके शरीर से कपडे गायब हो गए और ये देख कर बी बी सी के रिपोर्टर मार्क टूली ने उसे अपना कोट पहनाया और पिटता रहा पर किसी तरह रुचिरा को भीड से निकालने मे कामयाब रहा ।
दंगो मे 2000 से ज्यादा जाने गई ,हजारो करोड़ की सम्पत्ती नष्ट हुई और उठान लिए हुये विकास का पहिया बैठ गया और सालो पीछे चला गया ।
दंगो मे इन लोगो ने क्या किया था आतंक फैलाने को सर्फ इस बात से जान लीजिये की एक टेप बनाया था जी किसी छत पर अचानक काफी तेज आवाज मे चीखता --बचाओओ ओ ,भागो ओ ओ ,आ गए हजारो मुस्लमान ,अरे मार दिया अरे एक और मार दिया भागो ओ ।
और हम लोग जो आगरा के कालेज कैम्प्स मे रहते थे उसके लोग भी अपने हथियार लेकर निकल आये और छपने की जगह ढूढ़ने लगे ,मैने कहा की यहा कहा कोई मुस्लमान है आसपास पर कोई सुनने को तैयार नही था ,आगरा का लाजपत कुन्ज और ऐसी तमाम कालोनी जो मुस्लिम इलाको से 8 से 10 किलोमीटर दूर है लोग रात रात भर पहरा देने लगे ,रास्तो पर बड़े बड़े पत्थर और पुराने टायर रख दिये इत्यादि 
और मुसलमान अपने मुह्ल्लो मे दुबका था की निकले नही की पी ए सी आयेगी और फिर सिर्फ गोलियो की आवाज होगी ।
(दंगो मे क्या क्या हुआ और कौन लोग मरे , किनके साथ क्या क्या हुआ और क्या क्या कर्म करते हुये महान लोग जय श्रीराम के नारे लगते थे और राम का नाम कर बडा कर रहे थे और कौन सी संपत्तियाँ नष्ट हुई इत्यादि तमाम आयोग और जांच कमेटी की रिपोर्ट अब सार्वजनिक है और हो सचमुच देश के वफादार और जिम्मेदार लोग है उनको सब पढ़ना चाहिये और सब जानना चाहिये ।
हर दंगे के बाद भाजपा की सीटे बढती गई ।
और 
इसी बीच विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अडवाणी जी के अभियान के मुकाबले मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर दिया ।उनकी सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर जी प्रधान मंत्री बन गए ।
# बीच मे ये भी जान लीजिये की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन था और भाजपा के प्रिय जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे जब कश्मीरी पंडीत कश्मीर छोड कर गए ,पर उस वक्त भाजपा ने न उसे मुड़दा बनाया और न कश्मीरी पण्डितो के सवाल पर उस सरकार से समर्थन ही वापस लिया#
हा तो चंद्रशेखर जी के अटल बिहारी वाजपेयी श्रीमति सिंधिया , भैरोंसिंह शेखावत सहित काफी भाजपा नेताओ से अच्छे सम्बंध थे और उनकी सरकार मे हम लोगो के युवा राजनीती के मित्र सुबोधकांत सहाय गृह मंत्री थे ।
(  मन्दिर सम्बन्धी हिन्दू परिसद और इन लोगो की बैठक और प्रधान मंत्री से मिलकर बात करने की इच्छा पर चंद्रशेखर जी का उनकी बैठक मे श्रीमति सिंधिया के यहा खुद पहुच जाना और फिर उन्होने क्या सुना और क्या कहा तथा फिर मुस्लिम पक्ष से क्या कहा जानने के लिए Chanchal Bhu की वाल खंगालिए थोडा समय निकाल कर )
अन्त मे चंद्रशेखर जी विवाद का एक सर्वसम्मत हाल निकाल ही लिया अपनी दृढता और दूरदर्शिता से जिसपर अंदर सब सहमत थे और वो फौसला करीब ऐसा ही था जो उसके बाद इतनी बर्बादी और दंगो तथा नफरत की खेती के बाद अन्ततः अदालत ने ही दिया # फिर याद रखिये की हमने कहा था की या तो बातचीत से हल कर लो या अदालत को करने दो और तब आस्था के नाम पर अदालत को मानने से इंकार कर दिया था इस जमात ने #
और अपनी सरकार बन जाने पर उसी अदालत को माना भी और दिन रात देश से भी कहते रहे की अदालत को सभी माने मिलजुल कर और पूरे देश ने माना मुसलमान ने भी । पूरा देश शान्त रहा पर यदि अदालत का फौसला इसका उल्टा होता तो क्या होता ,कल्पना से रूह काँप जाती है ।
प्रधान-मंत्री चंद्रशेखर के निवास से विश्व हिन्दू परिसद वाले यह कह कर निकले की थोडी देर मे आपस मे राय कर के आते है और फिर आये ही नही ।
अब पाठक ध्यान से पढे और समझे इस जमात के इरादे की , आदत को , रणनीति को ,इच्छा को , इनके हथकण्डे को , देश के प्रति जिम्मेदारी को , देश के भविष्य को लेकर चिंतन को , चिंता को और इनके देश के लिए सपने ,सिद्धांत और सक्ल्प को । 
( लखनऊ से दिल्ली तक की सत्ता के करीब रह कर , निस्पक्ष रूप से जागृत रह कर जो देखा , जो जाना , जो समझा सब लिख दिया क्योकी जो अब 45 साल के है तब स्कूल मे पढ रहे होंगे और 1990 मे पैदा लोग अब 30 साल के हुये होगे ।देश की 65%आबादी 35 साल के नीचे की है इसका मतलब ये है की उनको जो बताया गया होगा शाखा मे ता सन्घ के प्रचार ने वो उसी को सच मानते है ।इसलिए सभी जागरूक और सच्चे देशभक्तो की जिम्मेदारी है की पूरे देश को सच की तस्वीर दिखाए बड़े पैमाने पर और देश को फसीवद की तरफ जाने से बचाए ।
आज इसिलिए मैने एक पोस्ट मे लिखा था की देश दो पाटो के बीच फंस गया है -एक जो सच है और दूसरा आरएसएस का सच । देखे ईश्वर कैसे बचाता है मेरे देश को ।
जो सच्चे हिन्दू है और सचमुच मे राम कृष्ण और शिव को मानते है और चाहते है की समाज इन तीनो के नाम पर घृणा और दंगे मे न फंसे बल्की इनके जो गुण और ज्ञान आज को और भविष्य को अच्छा बनाते हो और भारत को तथा भारत वासियो को अच्छा बनाते हो उनका प्रसार हो उनकी भी जिम्मेदारी है की देश और समाज को सही धर्म का ज्ञान कराये ,स्वामी विवेकानन्द से लेकर गांधी जी और डा लोहिया तक के धर्म और इन लोगो के बारे मे लिखे का ज्ञान कराने का अभियान चलाये ।
अदालत का फौसला आया , मन्दिर बनेगा , देश मे सब उसके पक्ष मे है पर उसे धार्मिक आयोजन ही रखा जाता और उसमे राजनीती नही की जाती तो भारत बनता 
लेकिन इन लोगो को भारत बनाना ही कब था या है इन्हे तो बस वोट और सरकार बनाना है सब बेच देने के लिए ।

सोमवार, 4 नवंबर 2024

दिनकर जी से मुलाकात

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--
#जी_मैं_मिला_हूँ_राष्ट्रकवि_रामधारी_सिंह_दिनकर_जी_से --

(By Chandra Prakash Rai Sir) 

दिनकर जी को आज देश की चेतना का सलाम ।
वो दिनकर जी जो स्वयं संघर्ष की प्रतिमूर्ती थे ,वो दिनकर जी जिनको नेहरु जी अपना दोस्त कहते थे , वो दिनकर जी जिन्होने कर्ण को बडा बना दिया अपनी कविता मे ,वो दिनकर जी जिन्होने मित्रता के बावजूद भी चीन के सवाल पर नेहरु जी की नही बख्शा ,वो दिनकर जी जो जयप्रकाश के भी प्रेरणाश्रोत बने,वो दिनकर जी जिन्होने कविता के नये नये आयाम स्थापित किये ।
मैं मिला उनसे 1974 में और कई दिन मिलता रहा जब ये आगरा आये थे विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में और कुछ दिनों तक रुके थे यहाँ । 
उनके एक रिश्तेदार आगरा मे ही एक बड़े पद पर थे और उनसे हम लोगो का पारिवारिक सम्बंध था और वो भी ऐसा की ज्यादतर वो ही पति पत्नी मेरे घर आ जाते थे या पिता जी टहलते हुये उनके घर चाले जाते थे । उनके पास अम्बेसडर कार थी तो वो तो घर मे जैसे बैठे हो ,उस जमाने मे लुंगी मे तो वैसे ही आ जाते थे ।
दिनकर जी को आगरा विश्वविद्यालय ने अपने स्वर्ण जयंती वर्ष मे दीक्षांत समारोह संबोधित करने को आमंत्रित किया और वो आये तो अपने उसी रिश्तेदार के घर ही रुके ।उसी बीच जब पता लगा की राष्ट्रकवि शहर मे आ रहे है तो दयालबद के लोगो ने भी अपने यहा उसी समय दीक्षांत समारोह रख लिया और उनको आमंत्रित कर लिया ,और भी कार्यक्रम बन गए और इस तरह वो काफी दिन आगरा मे रुक गए ।
उनके रिश्तेदार मे पिता जी को बताया भी और आमन्त्रित भी किया की मिलने आइएगा ।
पिता जी मुझे भी ले गए मिलने के लिए ।परिचय हुआ और बडी आत्मीयता की बाते हुई ।
क्या शानदार व्यक्तित्व था 6 फुट से लम्बे और व्यक्तित्व मे जबरदस्त प्रभावशाली ।
अगले दिन आगरा विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह था ।पिता जी और हम दोनो गए ।पिता जी को तो प्रोफेसर होने के कारण आगे जगह मिल गई पर मुझे पीछे भीड मे खड़ा होना पडा ।लग रहा था की किसी बड़े नेता की जनसभा है ।क्या वो यही समाज था क्योकी मैने पिता जी के साथ छागला साहब की सभा भी देखा था जो अंग्रेजी मे बोलते थे और कोई हिन्दी मे तर्जुमा करता था पर उन्हे सुनने भी हजारो लोग आये थे इसी आगरा मे ।खैर वो दीक्षांत समारोह अनोखा था क्योकी आमतौर पर दीक्षांत समारोह का मुख्य अतिथि लिखा हुआ भाषण देता है पर दिनकर जी ने इंकार कर दिया था और यूँ ही बोले थे ।मुझे आज भी उनकी माइक पर गूंजती वो भारी सी आवाज भूली नही है और उनके भाषण का प्रारंभ भी । जब मंच की संबोधित करने के बाद उन्होने छात्रो को अधिकारो के लिए  जागरूक करते हुये कृष्ण का प्रकरण सुनाया था 5 गाँव वाला और फिर अपना करीब एक घंटे का उद्बोधन आगे बढाया था । पंडाल के बाहर हजारो लोग थे जिनका विश्वविद्यालय से कोई सम्बंध नही था और वो भीड या तो चुपचाप सुन रही थी या किसी वाक्य पर ताली बजा देती थी ।
मैने अपनी पूरी जिन्दगी मे वैसा दीक्षांत उद्बोधन कभी नही सुना ।
उसी दिन रात को विश्वविद्यालय मे कवि सम्मेलन भी था जिसमे बच्चन ,महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, सोहन लाल द्विवेदी , शिवमंगल सिंह सुमन इत्यादि सभी उस दौर के बड़े कवि थे और वो कार्यक्रम लाइव रेडियो पर प्रसारित हुआ था और करीब पूरी रात चला था वी कवि सम्मेलन ।
दिनकर जी ने पिता को आदेश दिया की यदि कही व्यस्त न हो तो शाम को आ जाया करिये ,फिर करीब रोज ही हम दोनो चले जाते थे ।

मैंने एक टूट फूटी कविता लिख कर दिया था "तुम भी तो दिनकर हो और वह भी तो दिनकर है जो करता प्रकाश धरा और अम्बर मे "उनको और  उस पर हस्ताक्षर कर उन्होंने दी थी अपनी कई पुस्तकें ।

ऐसा लगता है कि कल की ही बात है ।आगरा से ही गए थे वो दक्षिण भारत और फिर काल ने छीन लिया उन्हें ।
राष्ट्र के कलमकार प्रहरी को प्रणाम ।

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

लाटरी बंद करवाया

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

कितने लोगो को पता है की इस #देश से #लाटरी #मैने_खत्म_करवाया ।
पुराने लोग जानते है की एक समय था देश भर मे हर सड़क हर गली और हर बाजार मे लाटरी बहुत बडा व्यवसाय बन गया था । परिवार के परिवार तबाह हो रहे थे ।
उसी दौर मे मुझे कुछ घटनाए पता लगी जिसमे से अभी सिर्फ एक का जिक्र कर दे रहा हूँ -
एक मध्यम वर्ग की महिला भी इसका शिकार हो गयी । हुआ ये की वो घर का समान लेने जाती सब्जी इत्यादि और इस उम्मीद मे लाटरी का टिकेट भी खरीद लेती की शायद घर की हालात कुछ अच्छे हो जाये । उसकी एक बेटी थी शादी को और पति मे घर खर्च काट काट कर कुछ पैसा इकट्ठा किया था ।धीरे धीरे जुवरियो की तरह वो उस पैसे को भी ज्यादा टिकेट खरीद खर्च करने लगी और सब बर्बाद कर बैठी । फिर सब खत्म हो जाने पर परेशान रहने लगी । किसी दुकान पर उसकी किसी औरत से दोस्ती हो गयी थी और जब उसे समस्या पता लगी तो उसने इस महिला को वेश्यावृत्ति मे धकेल दिया । अक्सर ये महिला आत्महत्या करने का सोचती थी इसलिए इसने सारा ब्योरा और अपना गुनाह एक जगह लिख कर रख दिया की उसकी मौत के लिए वो खुद जिम्मेदार है और दूसरे कागज पर अपने पति को सारी बात और अपना माफीनामा । वेश्यावृत्ति के चक्कर मे एक दिन वह जहा पहुची वहा उसके खुद का बेटा और उसके दोस्त थे जिन्होंने दलाल से उसे बुलवाया था और फिर वहा से भाग कर उसने आत्महत्या कर लिया ।
ये और कुछ अन्य दर्दनाक घटनाए जो मैं आत्मकथा मे विस्तार से लिखूंगा जिनमे ना जाने कितने लाख घर और लोग बर्बाद हुये , कितनो ने आत्महत्या कर लिया , मेरे संज्ञान मे आई तो मेरी आत्मा ने धिक्कारा की क्या सिर्फ जिन्दाबाद मुर्दाबाद ही राजनीती है या समाज के असली जहर के खिलाफ लड़ना ।
#अलोक_रंजन जो उत्तर प्रदेश के #मुख्यसचिव से रिटायर हुये है और अभी भी लखनऊ मे है वो मेरे यहा डी एम थे और बाबा हरदेव सिंह ए डी एम सिटी ।भाजपा की कल्याण सिंह की सरकार थी ।
मैं अलोक रंजन से मिला और उनके सामने मैने वो सारी घटनाए रखा और कहा की मैं कम से कम अपने शहर मे तो लाटरी नही बिकने दूंगा । वो बोले की सरकार के बड़े राजस्व का भी सवाल है और कानून व्यव्स्था का भी पर नैतिक रूप से मैं आप की बात का समर्थन करता हूँ । बस एक प्रेस कांफ्रेंस और उसके बाद लाटरी फाडो अभियान की शुरुवात हो गयी ।उस वक्त की मीडिया ऐसी नही थी सारे अखबारो ने रोज बडा कवरेज दिया और मेरा समाचार पूरे देश के एडिशन मे छापा मेरे आग्रह पर की ये देश भर मे अभियान शायद बन जाये ।
और हा #भाजपा पूरी ताकत से इस आन्दोलन के खिलाफ और #लाटरी व्यापार #के_पक्ष_मे_थी ।
बहुत कुछ झेलना पडा , पथराव , झगड़े और एक बड़े माफिया जो अब जेल मे है उनका लाटरी का होल सेल का काम था उनकी धमकी और लालच भी ,जी उस समय मुझे 5 लाख मे खरीदने या गोली खाने का आफर मिला और मेरा वही जवाब की बिकाउ मै हूँ नही और मुझे मार सकना तेरे बस मे नही है और अगर अच्छे काम के लिए मर भी गया तो शायद ये अन्दोलन भी जोर पकड़ ले और कामयाबी मिल जाये वर्ना कम से कम अच्छे काम के लिए मरूँगा ।
देश मे मेरा समचार देख कर अन्य जगहो पर भी लोगो ने छिटपुट अन्दोलन शुरू कर दिया ।
कितना लोकप्रिय था वह मेरा अन्दोलन इससे समझ लीजिये की - नैनीताल मे पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक तय हो गयी और मुझे रिजर्वेशन नही मिला तो सीधे ट्रेन पर पहुच गया ,ट्रेन मे टीटी ने पहचान लिया और बर्थ दे दिया । यही काठगोदाम मे हुआ वहा के स्टेशन मास्टर ने पहचान लिया बैठा कर चाय पिलाया और नैनीताल उनके एक दोस्त जा रहे थे उनके साथ मुझे भेजा और वापसी के रिजर्वेशन का इन्तजाम भी किया । (ऐसा मेरे साथ मुशर्रफ वाले अन्दोलन मे भी हुआ था जब उसके अगले दिन मैं फैजाबाद गया तो बस स्टेशन के पास जो उस बक्त का अच्छा होटल था उसमे किसी ने रुकने का इन्तजाम किया था , मैं काऊंटर पर पहुचा तो आजतक पर मेरा ही समचार चल रहा था ,वहा बैठा मालिक टीवी और मुझे आश्चर्य से देखने लगा ,खैर फिर उसने होटल के बजाय अपने घर का खाना खिलाया और कमरे का पैसा लेने से भी इन्कार कर दिया ) 
थोडे दिन बाद हमारी सरकार बन गयी और #मुलायम_सिंह_यादव जी #मुख्यमंत्री । तब उनके सामने मैने उत्तर प्रदेश में लाटरी खत्म करने का प्रस्ताव किया जिसका एक पूरा विभाग था । 300 या 400 करोड़ लाटरी से प्रदेश को मिलता था उस समय ।पर मेरे अन्दोलन का नैतिक दबाव भी था और मुख्यमंत्री ने भी जरूरी समझा और उत्तर प्रदेश में तत्काल प्रभाव से लाटरी बंद कर दी गयी फिर ऐसा माहौल बना की धीरे धीरे सभी प्रदेशो को लाटरी बंद करनी पडी ।

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

जिंदगी के झरोखे से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

मुलायम सिंह यादव जी से वो आखिरी बातचीत जिसका मुझे आज भी अफसोस है :;

2017 में सत्ता रहते हुए गैरकानूनी( क्योंकि पार्टी अध्यक्ष की अनुमति के बिना सम्मेलन नही बुलाया जा सकता था और अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जी थे ) तरीके से पार्टी का एक सम्मेलन बुलाया गया और उसमे मुलायम सिंह यादव जी को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था तथा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अध्यक्ष बना दिया गया था । मुझे मुलायम सिंह यादव का ये अपमान तथा पार्टी विरोधी कार्य मंजूर नहीं था । भगवती सिंह जी ,अंबिका चौधरी , ओम प्रकाश सिंह , शादाब फातिमा , नारद राय के अलावा पूरी पार्टी और मुलायम सिंह यादव का शिवपाल सिंह यादव को छोड़कर पूरा खानदान सत्ता के साथ यानी अखिलेश यादव के साथ चला गया था । आजम खान साहब जरूर उस सम्मेलन में नही गए थे और लगातार मुलायम सिंह यादव तथा अखिलेश यादव के बीच में पुल बनने की असफल कोशिश किया था ।
उस सम्मेलन में अखिलेश यादव ने बोला था की आने वाले चुनाव में वो सरकार बना लेंगे तथा सरकार और पार्टी दोनो नेता जी को सौप देंगे पर क्या हुआ वो दुनिया ने देखा और सबको याद है । इसके बाद के चुनाव में भाजपा ने इस घटना का अपने लिए इस्तेमाल कर लिया तथा इतिहास के एक व्यक्ति से अखिलेश यादव को जोड़ते हुए नारा दे दिया की " जो न हुआ अपने बाप का वो क्या होगा आप का " और भाजपा ने माहौल अपने पक्ष में कर लिया तथा चुनाव जीत लिया । यद्यपि मैने तो मुलायम सिंह यादव जी  के निष्कासन के दिन ही मुलायम सिंह यादव जी के निर्देश पर उनके दरवाजे पर खड़े देश भर की मीडिया से बात करते हुए कह दिया था कि अखिलेश जी अभी भी भूल सुधार लीजिए वरना इस चुनाव में 50 सीट भी नही मिलेगी तथा आप के माथे पर जो कलंक लगेगा वो लंबे समय तथा पीछा नहीं छोड़ेगा और उस वक्त पार्टी की टूट पर बोलते हुए मैं रो पड़ा था । बाद में काफी लोगो ने बताया कि उस वक्त के मेरे बयान को सुन कर काफी लोग रो पड़े थे ।
पूरे देश का केवल इस घटना पर केंद्रित था और लखनऊ का माहौल बहुत ही गर्म था और यहां तक तनाव बढ़ गया था की अखिलेश समर्थक नौजवानो ने मुलायम सिंह यादव की तस्वीर को पैरो से रौंदा था ।बाकी सब इतिहास में दर्ज है और ये भी दर्ज है की अखिलेश यादव के एक समर्थक ने एक चिट्ठी जारी किया जिसमें मुलायम सिंह यादव जी की पत्नी को कैकेई शब्द से विभूषित किया था।
बाकी सब इतिहास में दर्ज है । इस सारे घटना क्रम के लिए मुलायम सिंह यादव जी ने राम गोपाल यादव जी को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था की अखिलेश राम गोपाल के बहकावे में आ गया ,रामगोपाल इसे कही का नही छोड़ेगा ।
जैसा मैने प्रारंभ में लिखा की मुझे ये अनैतिक काम मंजूर नहीं था इसलिए मैं पूरी ताकत से मुलायम सिंह यादव जी के साथ खड़ा हो गया था और मुलायम सिंह यादव जी का प्रवक्ता बन वो जो कहते रहे वो मैं बोलता रहा । पार्टी के महामंत्री पद और मंत्री दर्जा से मैने स्टीफा दे दिया था । इसके बाद के बाकी घटना क्रम पर अलग एपिसोड लिखूंगा ।
अभी उस दिन तक सीमित करता हूं ।
मुलायम सिंह यादव जी अकेले पड़ गए थे और उनके यहां पार्टी का क्या परिवार का भी कोई नही आता था । बस उनके कुछ गिने चुने पुराने साथी कभी कभी लखनऊ आने पर मिल लिया करते थे । मैने एक नियम बना लिया की लगातार उनसे मिलने जाना है और कुछ समय उनके साथ बिताना है ताकि उन्हें ये नही लगे की कोई उनके साथ नही है ।
मुलायम सिंह यादव जी के निधन के कुछ समय पहले मैं इसी तरह उनसे मिलने गया । जैसा कि हमेशा होता था वो घर के अंदर बुला लेते थे । उस दिन भी उन्होंने अंदर बुला लिया तथा वही पर उनकी पत्नी साधना यादव जी भी बैठी थी । हाल चाल और इधर उधर की कुछ बाते हुई की अचानक उन्होंने मुझसे पूछा की ये रामगोपाल आप के इतने खिलाफ क्यों है ? उसकी खिलाफत के कारण आप का बहुत नुकसान हुआ और साथ ही एस पी सिंह बघेल तथा राम शकल गुजर भी आप के खिलाफ बहुत शिकायते करते और आरोप लगाते जो जो जांच कराने पर सब गलत निकला । मैं आप को राज्य सभा मे रखना चाहता था पर रामगोपाल विरोध कर देता था ।
इसपर मैने पूछा कौन रामगोपाल तो बोले पार्टी का महासचिव है आप नही जानते है । मैने कहा कि पार्टी के महासचिव तो रामजी लाल सुमन भी है जो मेरे पड़ोसी है,और भी कई है क्या उनकी भी आप ऐसे ही सुनते है । पार्टी के उपाध्यक्ष और बहुत बड़े नेता थे जनेश्वर मिश्र क्या उनकी आप ने कभी सुना इन मामलों में ? जहां तक राम गोपाल जी का सवाल है न मैने उनकी भैंस खोला और उनका खेत काट लिया तथा कभी उनके मेरे बीच कोई कहा सुनीं भी नहीं हुई । हा वैचारिक और पसंद न पसंद का अंतर उनके मेरे बीच रहा है ।वो आप के परिवार से जुड़े नही होते तो सिर्फ मास्टर होते । उनकी योग्यता इतनी है की तीस साल से संसद में होने के बावजूद कोई उनका महत्वपूर्ण भाषण किसी को याद नही है , कोई प्राइवेट मेंबर बिल याद नही है और पिछड़ों या  अल्पसंख्यको के सवाल पर या देश के सवाल पर कभी उन्होंने ऐसा कुछ नही किया की कुछ देर तक सदन डिस्टर्ब हो गया हो । आप को ऐसे ही सब पसंद आए राज्य सभा में भेजने को जो गए और कमा धमा कर वापस आ गए कोई नाम भी नही जान पाया पर मेरा देश में नाम होता और संसद में मेरी भूमिका होती जो आप को शायद इसलिए पसंद नहीं है की सत्ता नाराज न हो जाए । जाने दीजिए भाईसाहब अब आप का समय अपनी गलतियों पर अफसोस प्रकट करने का तथा किसी के साथ बुरा किया हो तो उसपर खेद व्यक्त करने का है ऐसी बाते करने का नही और वो भी मुझसे जो जब आप के साथ कोई नही तब भी लगातार आप के साथ बैठा है । जाने दीजिए ।
1989 में मैने आगरा के खेरागढ़ से टिकट मांगा था और मेरा संसदीय बोर्ड में बहुमत था तथा चौ देवीलाल और जॉर्ज फर्नांडीज सहित कई लोग मेरे पक्ष में थे । वो विश्वनाथ प्रताप सिंह की लहर का चुनाव था इसलिए खेरागढ़ में मैं क्या कोई भी चुनाव लड़ता तो जीत जाता वहा के जातिगत समीकरण के कारण पर आप एक अपराधी प्रवृति के व्यक्ति को टिकट देना चाहते थे इसलिए तब आप ने बोर्ड में ये कह दिया था की आप तो देश मे प्रचार के लिए निकलेंगे तो आप का चुनाव मैं देखूंगा और आप के मुख्यमंत्री हो जाने पर एम एल ए क्या होता है सी पी राय उससे ज्यादा बन जाएंगे । सबसे पहले जॉर्ज साहब बाहर आए थे और उन्होंने मुझसे कहा था कि होने वाला सी एम आपको अपना चुनाव इंचार्ज बनाना चाहता है और बोल रहा है की सी एम बनने के बाद सी पी राय एम एल ए से ज्यादा होंगे तो आप उसकी बात मानो। क्या पता वो आप को राज्य सभा में भेज दे या एम एल सी बना कर मंत्री बना दे । फिर भी काफी कोशिश किया था मैंने की आप मान जाए और चुनाव जीत कर मेरा सदन का कैरियर शुरू हो जाए पर आप नही माने थे और सत्ता आने के बाद आप मुझे मिले ही नही । तब मिले जब सरकार जा रही थी । भाई साहब आप मेरे साल लगातार यही तो करते रहे है तो बोले दर्जा तो दिया । मैने कहा की वो तो मैं कभी नही चाहता था आपने  दबाव देकर दो बार ज्वाइन करवाया ये कह कर की अभी ये होने दो चुनाव आते ही राज्य सभा में भेज देंगे । यहां तक कि एक बार तो आप ने अपने घर जहा आप का मेरा परिवार साथ लंच कर रहा था सबके सामने कहा था की इस बार फला फला कारण से आप को अनिल अंबानी तथा जया बच्चन को टिकट देना पड रहा है पर अभी मुझे कोपरेटिव फेडरेशन का अध्यक्ष बनायेंगे तथा अगली बार चाहे एक टिकट हो मुझे ही देंगे ।
ऐसी ही कुछ बाते कहते कहते अचानक मुझे पता नही क्या सूझा कि मैंने बोल दिया की भाई साहब आप के और मेरे बीच 35/36 साल से एक लड़ाई चल रही है । वो बोले की मेरे आप के बीच लड़ाई चल रही है । तब बोले मेरे आप के बीच क्या लड़ाई है ? मेरे मुंह से निकल गया कि मेरी सच्चाई,ईमानदारी और बाफादारी तथा आप का झूठ ,धोखा और दगाबाजी के बीच लड़ाई है ।आप लगातार जीत रहे हो और मैं हार रहा हूं।आप कभी रामगोपाल के कंधे पर रख कर बंदूक चला देते हो तो कभी अमर सिंह का इस्तेमाल कर लेते हो । बेनी प्रसाद वर्मा ने संसद में आप को गाली दिया तो उनको राज्य सभा दे दिया ,अमर सिंह ने आप के खिलाफ कोई कसर नहीं छोड़ा तो उसे दे दिया पर मेरा गुण आप की निगाह में अवगुण ही रहे इसलिए मैने ये लड़ाई बोला ।
इस बात पर वो बहुत अपसेट हो गए तथा बोले : क्या मैं दगाबाज हूं ,क्या में दगाबाज हूं और फिर यही वाक्य जल्दी जल्दी बोलने लगे ।तब साधना जी उठी और दौड़ कर एक प्याली में दो रसगुल्ला रख लाई तथा जबरन उनके मुंह में डालने लगी कि जल्दी खा लीजिए वरना बीमार हो जाएंगे और अभी अस्पताल ले जाना पड़ेगा ।  मैं इस बात से आवाक रह गया तथा अंदर से बहुत दुखी हो गया । मेरा मन मुझे कचोटने लगा की मैने ये क्या कर दिया ।अभी कुछ हो जाएगा तो मैं खुद से निगाह नही मिला पाऊंगा।
वहा सन्नाटा पसर गया । सब चुप । कोई कुछ नही बोला काफी देर तक । फिर करीब 20/25 मिनट बाद साधना जी ने सन्नाटा तोड़ा और बोली की भाईसाहब से क्यों नाराज हो रहे हो । आप ने क्या कर दिया इनके लिए ? इन्होंने क्या क्या किया है वो आप भी बताते रहे और मैं भी जानती हूं । भाभी जी को आप ने बहन माना और राखी बंधवाया पर वो कैंसर से मर गई आप ने क्या किया ? वैसे तो आप लोगो को भी जहाज से भेज कर मेदांता में इलाज करवाते रहे ।
तब मैने कहा भाभी जी जाने दीजिए मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था । मैं अपने शब्दो के लिए माफी चाहता हूं ।इसपर साधना जी फिर नेता जी से बोली की मैने कई बार आपको कहा की राय साहब को सलाहकार बना लो । ये भी कहा था की प्रोफेसर साहब को दिल्ली में अकेले मत रखो राय साहब को भी रखो पर आप ने बात नही माना। बोली की ये जी बुरा वक्त हमे देखने को मिला वो नही होता ।  मैं ये सब सुनकर हतप्रभ था क्योंकि साधना जी से मेरी कोई बात नही होती थी ।
मुलायम सिंह जी तब बोले सी पी राय अखिलेश को मुख्यमंत्री बना कर गलती हो गई । वो मुख्यमंत्री नही बनता तो लीडर बन जाता । अब कोई लीडर नही बन पाएगा ।मैने कहा ये तो आप मुझसे कई बार कह चुके पर बन गया तो बन गया और आपने ही बनाया  । देखो क्या कर बैठा ।अपने मन का हो गया है हमारी बात ही नही मानता । मैने एम एल सी के लिए आप के लिए बोला था की आप लखनऊ में ही रहोगेऔर मंत्री बनवा दूंगा पर हरियाणा का वो क्या नाम है जो यूथ का नेता था , लाठर ,उसक नाम गवर्नर हाउस भेज कर कलकत्ता भाग गया । मैने कहा की अब तो आप साथ है न । तो बोले सी पी राय पेट और मुंह में अंतर होता है ।  बेटा है तो उसे कैसे छोड़ देता , माफ़ कर दिया और मेरी बनाई पार्टी भी तो खत्म नही होने देना था । मैने कहा की क्या आप को याद है की समाजवादी पार्टी कैसे बनीं।तो बोले अब याद है । आप ने ही पहली बार कहा था और फिर जनेश्वर तथा कालीदेव बाबू को लेकर मिले था और पीछे पड़े रहे तन मैने बनाया । आप ने भी बहुत साथ दिया और बहुत मेहनत किया पार्टी के लिए ।
फिर बोले की आप की अखिलेश से मुलाकात हुई । मैने कहा नही , वो आपके साथ गद्दारी नहीं करने वालो को अपना दुश्मन मानते है तो मुझसे क्यों मिलेंगे । भाई साहब अब जो हो गया वो हो गया पर ये नही पता की किसका जीवन ज्यादा है लेकिन जब तक मेरा जीवन है तब तक आप का साथ नही छोडूंगा । इसपर साधना जी बोली की देख लो एक ये भाईसाहब है जो जिंदगी भर साथ निभाने की बात कर रहे है दूसरी तरफ वो लोग है जो हमारे घर का रास्ता ही भूल गए ।
मुलायम सिंह यादव जी पता नही उम्र के कारण या यू ही भावुक हो गए और तब बोले की इस बार राज्य सभा चुनाव आने दो मैं अखिलेश के पास चल कर बैठ जाऊंगा जब तक आप को टिकट नहीं देता । साधना जी बोली की मैं भी साथ चलूंगी । मैने कहा भाईसाहब जाने दीजिए । अब आप के हाथ में कुछ नही है और मेरे लिए ऐसा करेंगे तो आप को फिर बेइज्जत होना पड़ेगा और वो में नही चाहूंगा । इसपर बोले की मैने आप के साथ बहुत गलत किया अब दुनिया से जाने के पहले भूल सुधारूंगा । मैने जाने दीजिए फिर से एक असत्य मत बोलिए तो बोले की असत्य क्यों आप देख लेना इस बार ।
साधना जी ने नौकर को आवाज दी की फला वाली मिठाई ले आओ और चाय ले आओ , पानी भी लेते आना । मिठाई खाकर जो मुलायम सिंह यादव जी जोर देकर तीन मिठाई खिला दिया और चाय पीकर मैं विदा हो ।
अफसोस कि फिर मुलायम सिंह यादव जी नही बल्कि उनकी अंत्येष्ठि में उनकी मिट्टी से ही मुलाकात हुई ।
उन्होंने क्या किया वो उनके साथ गया पर उस दिन अपने बोले गए शब्दो पर जिससे वो आहत हो गए थे मुझे आज तक अफसोस है । 

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

ई टी वी कान्क्लेव जयपुर

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

यह 2013 की तस्वीर है जब मैं जयपुर गया था #etv के कन्क्लेव मे हिस्सा लेने #समाजवादी पार्टी की तरफ से ।कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह जी ने किया था तो उद्घाटन उस वक्त विदेश मंत्री और मेरे मित्र सलमान खुर्शीद ने और केन्दीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहमान जी , मोहसिना किदवई, शिया धर्म गुरु क्ल्वे जव्वाद , पूर्व मंत्री शाहनवाज ,  लालू जी की पार्टी से पूर्व मंत्री फातमी जी , साम्यवादी पार्टी से मेरे मित्र अतुल अनजान ,  पुरी की शंकराचार्य , केन्द्रीय मुख्य सूचना आयुक्त पूर्व आई ए एस हबिबुल्ला सहित सभी बडी पार्टियो के बड़े नेता आये (एक मैं ही साधारण कार्यकर्ता था जिसे सीधे etv ने बुलाया था )
विषय था -माइनोरिटि के समक्ष चुनौतिया ।
कार्यक्रम कई उर्दू वाले देशो मे सीधा प्रसारित हुआ था पूरे समय ।
मुझे याद है की उस दिन कार्यक्रम से एक दिन पहले रात 9 बजे तक तीन बार और फिर कार्यक्रम वाले दिन सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी का फ़ोन आया की कौन कौन और है इस कार्यक्रम मे ? जब मैने आधिकतर नाम बता दिये तो बोले आप क्या बोलेंगे कुछ तैयार किया है ? मैने कहा की सब आयोग की रिपोर्ट और बहुत कुछ पढ कर आया हूँ पर यदि बाकी लोग मुद्दे पर बोलेंगे तो मैं केवल मुद्दे पर बोलूंगा जो मेरी आदत है पर यदि लोग राजनीती करेंगे तो मेरा भी जवाब पहले राजनीतिक ही होगा और फिर मुद्दा भी । वो हर फ़ोन पर कोई एक नई बात याद दिलाते और मैं आश्वस्त करता की आप चिंता मत करो कल खुद सुन लेना, मैं इनमे से किसी से भी 19 साबित नही हाऊँगा ।
और हुआ भी वही की पहले सलमान खुर्शीद ने  उद्घाटन भाषण किया फिर राजनाथ सिंह ने भी व्यस्तता बता उनके तुरंत बाद भाषण किया कि जाना है और उन दोनो के बाद ही मुझे बुला लिया गया फिर जो मेरा तरीका है वही किया हाल की तालियो के बीच ।
मुलायम सिंह यादव बैठे रहे अपने लखनऊ मे टीवी के सामने मेरा भाषण हो जाने तक ।
उसी दिन मेरे भाषण के बाद क्लार्क जयपुर की लॉबी मे मुनव्वर राना जी से भी गपशप हुई थी ।उसी दिन की यह तस्वीरे  ।

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

#चौ_चरण_सिंह के साथ पहली यादगार रैली

#जिंदगी_झरोखे_से

#चौ_चरण_सिंह  के साथ पहली यादगार रैली 
 ---#1977 --लोकसभा का चुनाव प्रचार शुरू हो चुका था ।आपातकाल की कैद में 19 महीने से घुट रही जनता सड़क पर निकल चुकी थी थी ।जनता पार्टी घोषित हो चुकी थी पर अधिकतर नेता जेल में ही थे तो जनता खुद संगठन बन गयी थी । खुद लोग मंच माइक लगा कर जगह जगह सभाओं में बुलाने लगे ।
बड़े नेताओं को सभाएं तो मानो जनता का कुम्भ जुट गया हो ।कोई भी बड़ा से बड़ा मैदान छोटा पड़ने लगा । लाखो लोग खुद मैदान पर पहुचते और आर्थिक सहयोग भी देने को आतुर रहते थे ।
आगरा के रामलीला मैदान भी ऐसी ही कई लाखो वाली सभाओं का गवाह  बना । 
इसी में एक सभा थी जनता पार्टी  के सबसे बड़े जनाधार वाले नेता चौ चरण सिंह की । 
चौ साहब कार से ही पूरा दौरा करते थे । उस दिन कई घण्टे लेट चौ साहब लेट हो गए । जितने वक्ता थे कई कई बार बोल कर थक चुके थे और जनता हिल नही रही थी पर किया क्या जाए ।
मंच पर मैं भी मौजूद था । तभी जनसंघ से जुड़े वरिष्ठ नेता योगेंद्र सिंह चौहान जिनके पुत्र अब आगरा के एत्मादपुर से विधायक है ,की निगाह मुझ पर पड़ी ।  
छात्र नेता के साथ साथ अपनी ओज और व्यंग की कविताओं के लिए मेरा नाम आगरा में तब तो हो चुका था और चौहान साहब मेरी कविताएं सुन चुके थे कुछ कवि सम्मेलन में ।
उन्होंने भगवान शंकर रावत जो बाद में कई बार सांसद बने और उस दिन संचालन कर रहे थे उनके पास जाकर चौ साहब के आने तक मुझे कविताएं सुनाने के लिए बुलाने को कहा ।
मेरा नाम कविता सुनाने को पुकारा गया । लाखो की शोर करती और नारा लगाती भीड़ और 22 साल का मैं ।
मैंने कहा कि आप कविता सुनना चाहते है पंर आज देश को कविता चाहिए तो दिनकर के अंगार की चाहिये । आपातकाल के अंतिम संस्कार के मौके पर मेरे मुह से भी शायद अंगार ही निकलेगा ।
मैंने शुरू किया कि बस कुछ मिनट मेरी बात सुन ले फिर कविता भी सुनाऊंगा  । हा शहीदों के नाम सुनाऊंगा और आपातकाल भी ।
जनता चुप हो गयी ।
और शुरू हुआ भाषण --  
देश के असली मालिको वक्त बेड़िया तोड़ कर आज़ाद हो जाने का है ।सोचो क्या भोगा है पूरे मुल्क ने इन 19 महीनों में । - --- बस पता नही कहा से विचार आया मन मे -- ,
:इस देश मे दो माताएं हुई है । एक हुई थी पन्ना दाई जिसने दुश्मन के सामने अपने बेटे को राजा का बेटा बता दिया और अपने सामने अपने बेटे को कट जाने दिया और राजा के बेटे को बचा लिया क्योकि राजा ही प्रतीक था राज का , संप्रभुता का । 
और एक माता आज है जिसने अपने बेटे के लिए ---वाक्य पूरा किया लोगों ने -पूरी जनता बोली देश के लोगों को कटवा दिया ।
फिर बस शोर और नारे में डूब गया रामलीला मैदान और अगले 20 मिनट मुझे बस खड़े होकर उन नारो में भागीदारी होना पड़ा और उसके बाद पुनः शुरू हुआ भाषण फिर तभी रुका जब चौ चरण सिंह की गाड़ी मंच के बगल में आ गयी और उनके नारो के लिए लोग माइक पर आ गए और मैं चौ साहब के स्वागत के लिए उनकी गाड़ी के पास चला गया ।
( उस दिन की एक घटना पुनः लिखूंगा और चौ साहब के साथ दिल्ली की पहली मुलाकात का ब्यौरा पुनः लिखूंगा )

गुरुवार, 22 जून 2023

मुझे सपने देखने दो ।

मेरी कविता

मुझे सपने देखने दो ।

चलो अब कुछ अच्छा होने के
सपने देखे सुबह होने तक ।
सूरज निकलेगा और ग्रस लेगा 
इस अँधेरे को शाम होने तक ।
फिर शाम आयेगी और 
सूरज गर्त हो जायेगा उसके अन्दर 
यही क्रम जीवन को चलाता रहेगा 
उठाता रहेगा गिराता रहेगा 
हम नियति का सड़क पर पड़ा 
पत्थर बन लोगो की ठोकरों से 
इधर उधर उछलते और गिरते रहेंगे 
कुचलते रहेंगे स्वार्थो के टायर हमें 
जब तक कही जमीन में 
दफन नहीं हो जायेंगे हम ।
फिर भी तब सपने देखना तो 
हमारी नियति भी है और अधिकार भी ।
क्या अब इतने ताकतवर हो गए है 
कुछ लोग की 
वो हमारे सपने भी 
हँमसे छीन लेना चाहते है 
पर पत्थर चाहे बेजान क्यों न हो
कभी ठोकर दे सकता है
तो कभी किसी उछाल से 
घायल भी कर सकता है 
इसलिए मुझ बेजान से भी खेलो मत 
मुझे सपने देखने दो ।
चलो सपने देखे सुबह होने तक ।

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023

आइए रंगो से बात करे रंगो की बात करे

आइए रंगो की बात करे ,आइए रंगो से बात करे ::

मेरे बगीचे के रंग । अगर ये सभी रंग नही होते तब भी क्या अच्छा लगता मेरा छोटा सा बगीचा ? रंगो से ही तो जीवन है और उसमे सभी रंग होते है । सफेद भी एक रंग ही है पर इसका अर्थ और उसकी खुशी आप की मानसिकता पर निर्भर है ,रंग काला भी है जो कपड़ो में तो फैशन में आता है ऐसे ही रंग केसरिया और हरा भी है । तंग कोई भी हो वो हरी डालियों पर है और उन्हें खुराक हरी पत्तियों से ही मिलती है ।
हर ऐसा नही है तो बिना हरियाली के रंग खिला कर दिखाए कोई , घर को किसी और रंग का बना कर दिखाए कोई , धान, गेहूं, अरहर हो या चना या मूंग और बाजरा बिना हरियाली के उगाए कोई । सब्जियां जो हरी होती है वही पौष्टिक मानी जाती है पर इसका मतलब ये नही की रंगीन टमाटर और हजार पौष्टिक नही है पर क्या करे उनको भी हरी पत्तियों का ही साथ है । गुलाब सफेद हो गुलाबी या पीला पत्तियां तो सफेद ही होती है ।आम हो सेब, पपीता ,अनार या कोई भी फल उसका सहारा भी हरियाली ही है ।
पर घमंड हरियाली को भी नही होना चाहिए क्योंकि ऐसी कोई भी हरियाली जिसमे फल और भोज्य नही वो या तो पशुओं के खाने और चारे के काम आती है या घास हैं अच्छी लगने के बावजूद पैरो से रौंदी जाती है । इंसान खुद प्रेम से उसी पौधे को भी लगाता है जो उसे कुछ देता है , जो काम का होता है कष्टदायक नही होता है जो फल या अन्न देता है । बबूल लोग कहा लगाते है और कौन बैठता है बबूल पर ? कहा बच्चे शैतानी करते है बबूल पर ? बबूल हो या कांटेदार नागफनी वहा लगाए जाते है जहा बाड़ का काम करे और खुद को न चुभे ।
और रंग भी कुछ स्थाई होते है जीवन के लिए जरूरी जैसे फल और अनाज पर मौसमी रंग होते है सिर्फ सजावट के लिए जो मौसम बदलने के साथ खत्म हो जाते है और उनमें बीज हुए तो रख लिए जाते है अगले मौसम के लिए । लेकिन फलों के रंग हरे हो या कैसे भी कई बार इंसान का पीढ़ी दर पीढ़ी साथ दे जाते है वर्षो । अनाज की फसलें भी बीज के रूप में साथ दे रहे है पीढ़ियों से और पीढ़ियों तक ।
इंसान भी कुछ ऐसे हो तो होते है जिनको लोग याद करते है पीढ़ियों तक , कुछ गुण और ज्ञान बोए जाते है पीढ़ियों तक और कुछ फूलो की खुशबू भी रची बसी है न जाने कब से और रहेंगी न जाने कब तक । पर कभी काफी बबूल दिखते थे और नागफनी भी ,बबूल तो खत्म होते जा रहे है और नागफनी कही कही गमलों में सिमटती जा रही है । तलाब में मिलने वाला बेहया तो खुद मनुष्य ही खत्म करता रहता है और रास्ते पर चलते वक्त घाव कर देने वाले पौधों को भी ।
तो आइए हम सभी रंगो को प्यार करे और मान ले संग किसी खास के नही बल्कि सबके है और सभी रंगो से बना बगीचा ही सुंदर लगता है तथा ये भी को चुभने और घायल करने वाले रंग कोई भी हो किसी को पसंद नही है ।
मैं भी कहा कहा चला गया जबकि बता ये रहा था की मेरे छोटे से बगीचे में इस वक्त रंगो की बहार है ।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

विपक्ष फिर चूक गया

रास्ट्रपति का चुनाव विपक्ष की मजबूत एकता का कारण बन सकता था , केन्द्र की वर्तमान सत्ता को चुनौती पेश कर सकता था पर इस बार फिर चूक गया सम्पूर्ण विपक्ष । 
यूँ भी लम्बे समय से विपक्ष भाजपा की सत्ता को न तो संसद मे ही कभी परेशानी मे डाल पाया और न सडक पर चुनौती दे सका है । पिछले 5/6 वर्षो मे कोई बडा आन्दोलन नही खड़ा कर सका । असरदार किसान आन्दोलन हुआ तो वो उनका था विपक्ष कही नही था । एन आर सी और सी ए ए के खिलाफ शाहीन बाग से आवाज उठी वो भी विपक्ष के बिना थी और रोजगार के सवाल पर या अभी अग्निपथ के खिलाफ सडक गरमा गयी तो विपक्ष उसमे भी दूर दूर तक नही था ।
कलमकारो और थोडा बहुत चितंन करने वालो  की जिम्मेदारी सिर्फ सत्ता का कान उमेठना ही नही है बल्कि सिद्धांतहीनता और विचलन का शिकार विपक्ष को भी लगातार कोंचना और आइना दिखाना है और वो भी अपनी इस भुमिका को पूरी तरह नही निभा पा रहे है ।
यद्दपि द्रौपदी मुर्मू का राज्यपाल के रूप मे कार्यकाल बहुत निस्पक्ष और गरिमा के अनुरूप नही बताया जाता है बल्कि उनपर संघ के लिये काम करने के आरोप लगते रहे और ये भी सत्य है की भारत का राष्ट्रपति जो केवल भारत के सार्वभौमिकता का प्रतीक ही नही है बल्कि सम्पूर्ण भारत का प्रतीक है ,तीनो सेनाओ का सर्वोच्च कमान्डर है और दुनिया मे जब वो जाता है या किसी राष्ट्राध्यक्ष का स्वागत करता है तो संपूर्णता से भारत का परिचायक होता है ,शिक्षा ,संस्कृति ,ज्ञान सब कुछ और द्रौपदी मुर्मू इन मामलो मे सम्भवतः 5% भी खरी नही उतरती है । ये भी सच है की आरएसएस के लगातार 50 साल शासन कर अपने सपने को साकार करने की बेचैनी मे भाजपा जिम्मेदार और भविश्य के लिये जवाबदेह शासन देने मे विफल केवल चुनावी मशीन बन चुकी है, वो आने वाली जनरेशन के बजाय आने वाले एलेक्शन के लिये ही सब करती दिखती है और उसका हर फैसला केवल अगले चुनाव को प्रभावित करने के उद्देश्य तक सीमीत होता है और ये फैसला भी भारत राश्ट्र के लिये नही बल्कि आगामी चुनाव के लिये ही है पर सवाल ये है कि क्या विपक्ष ने कोई मजबूत विकल्प दिया ? मजबूत चुनौती पेश किया ? ऐसा उम्मीदवार देते कि जो अपने नही वो भी मजबूर हो जाते उसे वोट देने को जैसे इस मामले मे जो भाजपा के नही वो भी काफी लोग मुर्मू का विरोध नही कर पायेंगे सिर्फ आदिवासी होने के कारण । 
बडा सवाल ये है कि क्या विपक्ष के सारे बड़े नेताओ ने भाजपा की रणनीति पर निगाह रखा और क्या गम्भीरता से चुनौती देने के बारे मे सोचा ? 
मनमोहन सिंह,प्रकाश सिंह बादल ,चन्द्र बाबू नायडू ,#मानिक_सरकार , देव गौडा, शरद यादव ,पवन कुमार चामलिग  इत्यादि के अलावा कोई प्रतिष्ठित पूर्व सर्वोच्च न्यायधीश , कोई पूर्व सेनाध्य्क्ष , शिक्षा जगत का प्रतिष्ठित व्यक्ति ,मेघा पाटकर जैसी कोई प्रसिद्ध समाज सेवी के साथ दक्षिण का होना या वंचित होना इत्यादि रणनीति विपक्ष की भी तो हो सकती थी । 
भाजपा के वर्तमान नेत्रत्व को बेचैन करने को आगे बढ़ कर रणनीतिक रूप से उन्ही के खेमे मे लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, वर्तमान उप राष्ट्रपति पर चर्चा चलाई जा सकती थी ।
जब पता था कि आदिवासी कार्ड खेला जा सकता है तो विपक्ष के पास भी तो आदिवासी नेता है जो शिक्षित भी है और अनुभवी भी ।
यदि केवल नाम के लिये ही चुनाव लड़ना था तो किसी सीवर मे घुस कर सफाई करने वाले को वही से उठा कर उम्मीदवार बना देते , किसी खेत से मजदूर को उठा कर खड़ा कर देते ,किसी बिल्कुल अनजान राजनीतिक कार्यकर्ता को ले आते या प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल अथवा प्रो आनंद कुमार जैसे किसी बुद्धिजीवी को उम्मीदवार बना देते ।
विपक्ष को ये समझना होगा की आधे अधूरे मन से और आपसी काट छांट से भाजपा से नही लड़ा जा सकता है और किसी भी चुनाव मे विकल्पहीनता या कमजोर विकल्प और वैकल्पिक कार्यक्रम और मजबूत सैधांतिक धरातल के बिना आरएसएस और उनके राजनीतिक चेहरे भाजपा को नही हराया जा सकता है ।
विपक्ष की सबसे बड़े पार्टी खुद इस वक्त राहुल गांधी को ईडी से बचाने की लड़ाई तक सीमित है । देश की राजनीतिक लड़ाई भी वो केवल राहुल गांधी के नेत्रत्व तक सीमित रखना चाहती है ।
देश, लोकतंत्र सब कुछ दाव पर लगा है पर कोई जिम्मेदार नही है ,कोई जवाबदेह नही है । सब अपना अपना ढोल पीट रहे है । कोई सामुहिक प्रयास नही दिख रहा है ।
क्या भाजपा मे असन्तोष नही है ? क्या वहा सभी नेता और कार्यकर्ता खुश और संतुष्ट है ? ना ,बिल्कुल नही ।पर वो तो नही टूट रही है , उसकी सरकारे नही गिर रही है । फिर विपक्ष की क्यो ? क्योकी विपक्ष मे कोई उसके लिये सतत और सार्थक प्रयास नही करता ।ये कहना की भाजपा ने हमारे लोगो को तोड लिया ये आधा सच है पूरा सच ये है की आप अपनो को अपना बना कर क्यो नही रख पाते,आप अपनो से जुडे क्यो नही रह पाते है । इस पर आत्मचिन्तन तो करना ही चाहिये  । 
अभी से भी यशवंत सिन्हा की जगह किसी अन्य नाम पर विचार करना चाहिये ।

डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक समीक्षक एवं वरिष्ठ पत्रकार

रविवार, 19 दिसंबर 2021

#जिंदगी के झरोखे से। समाजवादी पार्टी की स्थापना

#जिंदगी_के_झरोखे_से

#समाजवादी_पार्टी_की_स्थापना -

1992 की बात है मुलायम सिंह यादव जी 1991 की भयानक हार से उबर कर कभी कभी दिल्ली जाने लगे थे । चन्द्रशेखर जी की सरकार के जाते जाते मेरी सलाह पर अयोध्या काण्ड को आधार बना कर खतरे के आधार पर मुलायम सिंह यादव के उस वक्त बहुत करीबी और दिल्ली मे मीडिया सलाहकार डा बागची ने प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी टाइप करवाया और चन्द्रशेखर जी ने भी बिना देरी के मुलायम सिंह यादव जी के लिये एन एस जी जो एस पी जी के गठन से पूर्व उस बक्त तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा देखती थी के ब्लैक कैट कमांडो की स्वीकृत कर दिया पर उस वक्त तक पूर्व मुख्यमंत्री सुरक्षा के लिये सरकारी वाहन नही मिलता था तो डा बागची ने मुझसे पूछा की सुरक्षा तो हो गयी अब गाडी की व्यवस्था कैसे होगी और मैने जिम्मेदारी ले लिये कि हो जायेगी । उसके बाद मैं अपने एक मित्र जो गृह मंत्रालय मे राजभाषा अधिकारी थे और टेनिस कोर्ट के सामने वाले आर के पुरम के सरकारी क्वार्टर मे रहते थे उनके घर गया क्योकी उनके घर के पास मैने एक टैक्सी स्टैंड देखा था ।हम दोनो वहा गये और स्टैंड के मालिक सरदार जी से तीन गाड़ियो के बारे मे गाड़ियो की क्वालिटी और रेट के बारे मे तय किया इस शर्त के साथ कि जब भी फोन किया जायेगा हमे तीन गाडी अवश्य मिलेगी जिसमे से तय समय पर दो एन एस जी कैम्प जायेगी कमांडो को लेने और एक मुलायम सिंह यादव जी के लिये तय समय पर एयरपोर्ट पर वी आई पी लाउंज पहुचेगी । सब तय हो गया ।
यहा यह बताना जरूरी नही है की सत्ता से सीधे 29 सीट पर आकर मुलायम सिंह जी बहुत निराश थे (यद्द्पि चुनाव के बीच ही जब मैं दिल्ली से सुब्रमण्यम स्वामी जो उस वक्त वाणिज्य और कपडा मंत्री थे के यहा से कुछ सामान लेकर लखनऊ वापस जा रहा था क्योकी स्वामी जी के एक व्यक्ति के अलावा मैं ही लखनऊ के दफ्तर मे बैठता था और रास्ते मे शिवपाल जी के घर पर मुलाकात मे बता चुका था कि मुझे 40 से ज्यादा आती नही दिख रही है ) तथा विचलित भी और एक साल तक कुछ भी करने को तैयार नही थे पर कैसे चुनाव के बाद तुरन्त चुनाव लड़े हुये लोगो की बैठक क्यो बुलाया ,फिर कुछ ही समय बाद मेरे द्वारा आयोजित आगरा मे विशाल मन्ड्लीय सम्मेलन के आयोजन मे क्यो आने को तैयार हो गये जिसमे 14 लाख की थैली भेंट की गयी तथा 50 ग्राम सोना या शायद मैं अलग अलग एपिसोड मे बताऊंगा ।
ये भी क्यो बताया जाये की एक साल तक घर से नही निकलने की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव जी दिल्ली क्यो आये । दिल्ली मे रुकने की जगह सिर्फ यू पी भवन था जो विधायक के नाते मिलता पर मैं नही चाहता था की वो यू पी भवन मे रुके ।तब डा बागची ने हल निकाला और किसी से बात कर के सम्राट होटल मे उनके लिये सूईट बुक करवाया और यू पी भवन का कमरा मेरे लिये तय हो गया क्योकी जब भी उन्हे दिल्ली आना होता मुझे लखनऊ से फोन आ जाता था ,फिर मैं सरदार जी को गाडी के लिये फोन करता और खुद भी दिल्ली पहुच जाता था और यू पी भवन मे सामान रख कर समय पर एयरपोर्ट जाकर रिसीव करना ,रोज सुबह से शाम तक साथ रहना और फिर वापसी पर एयरपोर्ट विदा कर वापस जाना ये अगली सत्ता आने तक चलता रहा । पहली बार आने पर मैने कुछ लोगो से मिलवाया जिनके नामो की जरूरत नही है । शाम को वापस होटल मे आने पर मुलायम सिंह जी बोले कि अरे आप को तो दिल्ली मे बहुत लोग जानते है ,आप तो यहा बहुत काम के रहेंगे ,मैं आप को दिल्ली मे रखुँगा जो कभी भी नही हुआ क्योकी प्राथमिकता मे परिवार और खास जातियां आ गयी ।
खैर सम्राट होटल के बाद आशोका होटल का सूईट बुक होने लगा । एक दिन सूईट के कमरे मे खिडकी के किनारे दो कुर्सियो पर बैठे हम लोग चाय पी रहे थे वही जो मेरे मन मे काफी दिन से घूम रहा यहा मैने उनसे कहा कि फिर से समाजवादी पार्टी की स्थापना किया जाये तब तक हम लोग सजपा मे थे जिनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी थे और मुलायम सिंह यादव जी प्रदेश अध्यक्ष थे तथा मैं प्रदेश का महामंत्री और प्रवक्ता था । मेरी बात पर उन्होने असहमती व्यक्त किया की मेरा तो केवल 2/4 जिलो मे असर है ,चन्द्रशेखर जी बड़े नेता है उनके साथ रहना ही ठीक है । उसपर मैने कहा की सजपा की जगह समाजवादी पार्टी कर दिया जाये क्योकी वो अजादी की लडाई के समय से एक वैचारिक आन्दोलन रहा है और उससे भावनात्मक रूप से देश भर मे काफी लोग जुडे है चाहे संगठन का स्वरूप यही रहे और चन्द्रशेखर जी रास्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे ,पर आप राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे तो वो एक बडा सन्देश होगा और पहली बार कोई पिछड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा ,आगे आप की मर्जी आप जो तय करिये ।पर उन्होने इस विचार को पूरी तरह से खारिज कर दिया लेकिन मन मे एक सपना तो मैने जगा ही दिया था ।
हम राज नारायणजी के लोगो का स्थायी अड्डा जनेश्वर जी का घर होता था ,बाकी दिनो मे वही नाश्ता खाना ,वही रुक जाना ,बल्कि देश भर के समाजवादीयो के लिये उनका घर सराय था इसलिये घर के बाहर ही लिख दिया गया था बाद मे लोहिया के लोग । थोडे ही दिन बाद मैं वहा था और बिहार वाले कपिलदेव बाबू भी वहा आये थे । हम तीनो जब साथ बैठे थे तो मैने अपना विचार बताया की मैने मुलायम सिंह जी से ये कहा है पर वो मान नही रहे है ।जनेश्वर जी बोले की ये तो अच्छा विचार है और देश भर मे खाली बैठे सभी समाजवादी साथ आ जायेंगे । कपिलदेव बाबू बोले की मुलायम से हमारी मुलाकात करवाइये हम भी कहेंगे और हमे कुछ नही चाहिए हमारे पास स्वतंत्रता सेनानी का भी पास और पेशन है और विधायक का भी और रहने को जनेश्वर का घर है ,अगर पार्टी बनेगी तो हम पूरा समय देंगे ।फिर जनेश्वर जी और कपिलदेव बाबू की भी बात हुयी और रमाशंकर कौशिक ,भगवती सिंह तथा रामसरन दास से भी चर्चा करने के बाद मुलायम सिंह यादव जी तैयार हो गये और तैयारी शुरू हो गयी । सवाल ये आया की देश भर मे सूचना कैसे हो तो अखबारो मे विज्ञापन दिया गया और मुलायम सिंह जी का फोन नंबर दे दिया गया ।देश भर से फोन आने लगे जगजीवन फोन उठाता था और फिर जिसका भी फोन आया होता था उनका नाम और फोन नंबर मुझे भी लिखवा देता था ।
आखिर 4/5 नवम्बर आ ही गया और बेगम हजरत महल पार्क मे स्थापना सम्मेलन हुआ जिसमे असम केरल बंगाल महाराष्ट्र बिहार मध्यप्रदेश,हरियाणा दिल्ली कश्मीर सहित कई प्रदेशो के लोग शामिल हुये जिसमे असम के पूर्व मुख्यमंत्री गोलप बोरबोरा , हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह ,बंगाल की सोशलिश्ट पार्टी जिसके मंत्री प्रबाल चन्द्र सिन्हा और किरणमय नन्दा सहित विधायक ,बिहार से बड़े नाम वाले कई समाजवादी शामिल हुये ।पार्टी का स्वरूप राष्ट्रीय उसी दिन दिखने लगा ।ये अलग से लिखूंगा कि किसके और किन कारणो से आगे चल कर सब बड़े नेता साथ छोड़ गये ।
स्थापन सम्मेलन मेरी व्यस्तता का ये आलम था की मैं सिर्फ दो बार मंच पर गया एक बार राजनीतिक प्रस्तांव पर बोलने और दुबारा मुलायम सिंह जी के सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर । 5 को  सम्मेलन खत्म हुआ तो मुलायम सिंह जी बाहर से आये नेताओं से मिलने स्टेट गेस्ट हाउस आये तो सबसे मिलते हुये मेरे कमरा नंबर 47 मे पहुचे ।मैं कुर्सी पर ही बेसुध पड़ा था ।उन्होने धीरे से जगाया और बोले की चाय मगाइये ।दोनो ने चाय पिया तो बोले मैं जानता हूँ कि आप बाहर से आये लोगो की अगवानी और ब्यवस्था मे 3 दिन से ठीक से सोये नही है पर आज से जब तक सबको विदा करना है वो कर के खूब सो लीजियेगा फिर मेरे पास आइएगा तब समीक्षा किया जायेगा और आप का ही ये विचार था तो आगे की बात भी किया जायेगा ।
बाकी सब इतिहास मे दर्ज है और छूटा हुआ सब बाद के एपिसोड मे ।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

जिंदगी के झरोखे से 14 लाख

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

#1991_मंडलीय_सम्मेलन_और_14_लाख_की_थैली 

बात 1991 के चुनाव के बाद की है पता नही वो घटना अभी तक मैने लिखा या नही जब रात भर चुनाव परिणाम देखने के बाद मैं सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी के घर पहुचा था और इतने बुरे परिणाम से वो बेचैन थे ,जबकी पहले ही दिल्ली से लौटते हुये शिवपाल जी कर घर पर उन्हे मैं ऐसे परिणाम की आशंका जाता चुका था प्रदेश का चुनाव देखने के कारण पर सारे अधिकारी और इंटेलीजेंस एजेंसियां उन्हे 125 से 150 तक की रिपोर्ट दे रही थी ।
केवल 29 एम एल ए और चंद्रशेखर जी समेत केवल 4 एम पी सीट सत्ता मे रहते उनको विचलित कर गई थी ।
मिलते ही बोले कि अयोध्या के कारण ये तो सारी जनता नाराज हो गई है इत्यादि । मैने कहा कि छोटा हूँ पर एक बात कहना चाहता हूँ कि अब हमे इसी स्टैंड पर कायम रहना चाहिये । आप ने कुछ बुरा नही किया बल्की मुख्यमंत्री होने के कारण संविधान की रक्षा किया है और उस पर आप को गर्व होना चाहिये । ये ठीक है की संघ अभी जहरीला प्रचार कर कामयाब हो गया पर कल जब लोग समझेंगे की देश तो संविधान और कानून से ही चल सकता है न कि दंगो से तो यही प्रदेश आप को फिर वापस लाएगा ,और हम दोनो चाय पीने बैठ गये और उसी समय ये भी तय हुआ की मात्र 7 दिन मे चुनाव लड़े विधनसभा के 425 और लोक सभा के 85 लोगो की बैठक बुला लिया जाये (इसका किस्सा अलग से ) ।कल्याण सिंह की सरकार बन गई थी ।
पर सरकार जाने के बाद बडा संकट था और पार्टी चलाने मे दिक्कत हो रही थी क्योकि इस मुख्यमंत्री काल मे मुलायम सिंह जी ने पैसे के बारे मे सोचा ही नही था और जहा तक मुझे पता है सिर्फ एक मामले मे ओम प्रकाश चौटाला ने कुछ दिया था जो दिल्ली से टी सीरीज कैसेट के डिब्बो मे ले जाया गया था और जो आया भी वो चुनाव मे खर्च हो गया था । दो बार तो त्योहार के मौके पर भी हम दफ्तर के स्टाफ को तन्ख्वाह नही दे पाये तब मैने तपन दादा को कुछ रुपए दिये की वो जगजीवन और शरमा इत्यादि बराबर बराबर बांट ले और त्योहार मना ले ,तपन अब बुजर्ग हो गये है पर है और जगजीवन तो आज बहुत रईस भी है और एम एल सी भी । इसी तरह मुलायम सिंह जी के घर का फ़ोन कट गया और कई दिन बाद जुड़ा तब एक दिन मैने महामंत्री के रूप मे लोगो का आह्वान कर दिया की जितना मन हो चाहे 5/10 रुपया ही सही मुलायम सिंह यादव जी को मनी ऑर्डर करे ।जो भी पहुचा मैने पूछा नही ।
2 महीने बाद ही मुलायम सिंह यादव जी एक सामाजिक कार्यक्रम के लिये आगरा आये और जैसा की हमेशा होता था कि अन्त मे प्रेस से मुलाकात मेरे निवास पर होती थी । उस दिन भी हुयी ।
प्रेस के बाद इटावा जाना था तो बोले की आप भी चलिये रास्ते मे बात करते चलेंगे और आज ही ट्रेन पकड़ कर लखनऊ जाना है तो आप उसके बाद वापस आ जाईयेगा ,ऐसा अक्सर ही होता था उस दौर मे । मुझे ऐसा याद आता है कि उस दिन देश के जाने माने कवि और हमारे सांसद उदय प्रताप जी भी साथ थे जिन्होने बाद मे मुझसे शिकायत किया था कि रास्ते भर आप दोनो ही बात करते रहे और मैं तो महज श्रोता बना रहा ।
हम लोग इटावा सिचाई विभाग के डाक बंगला पहुचे जहा शायद मुलायम सिंह यादव जी के आने की खबर नही दी गई थी तो जिस सुईट मे ये रुकते थे पुलिस के किसी डी आई जी को आवंटित हो गया था । मैने वहा के व्यवस्थापक को हड़काया कि आवंटन किसी का हो पर जब प्रोटोकोल मे बडा व्यक्ति आ जाता है तो वो आवंटन अपने आप निरस्त हो जाता है ।खैर डरते डरते की साहब मेरे खिलाफ कुछ न हो जाये उसने कमरा खोल दिया ।मुलायम सिंह जी अंदर गये और बस बाथरूम होकर बाहर आ गये कि अच्छा मौसम है ,बाहर पार्क के चबूतरे पर बैठते है जबकी जून आखिर या जुलाई का आरम्भ था और तेज गर्मी थी ।
खैर हम लोग वही बैठ गये । मुलायम सिंह यादव जी का मानना था को कम से कम एक साल चुपचाप आराम किया जाये और राजनीतिक गतिविधिया बंद रखा जाये क्योकि अभी कही भी निकलने पर जनता का गुस्सा झेलना पड़ सकता है ।
मैने कहा की मैं इस बात से सहमत नही हूँ और वही मैने बीजेपी तथा आरएसएस के गढ आगरा से ही तत्काल कार्यक्रम शुरु करने को आमंत्रित किया । वो सहमत नही थे पर मेरे जोर देने पर मान गये की प्रदेश कार्यकारिणी और वरिष्ठ नेताओ की बैठक कर इसपर बिचार हो जाये तो मैने कहा की देर क्यो हो तत्काल बुला लिया जाये और शायद एक हफ्ते बाद ही वो बैठक बुला ली गई लोहिया ट्रस्ट के हाल मे ।वहां मैने सबसे पहले अपनी बात रखा और तर्क की क्यो तत्काल बाहर निकल कर सक्रिय हुआ जाये और आगरा से ही क्यो । तब कुछ लोगो ने कहा की आगरा मे पार्टी नही है और पार्टी का कोर वोटर नही है कार्यक्रम फ़ेल हो सकता है तब मैने आश्वस्त किया कि आगरा मंडल का कार्यकर्ता सम्मेलन रखा जाये और बाकी सब मुझ पर छोड दिया जाये और उसी मे मैने प्रस्ताव रख दिया कि पार्टी चलाने के लिये 5 से 10 लाख तक की थैली भेंट करने की कोशिश भी की जाये और कार्यक्रम तय हो गया सम्भवतः अगस्त की कोई तारीख तय हुयी ,हम लोग मई अन्त मे चुनाव हारे थे ।
मैं वापस आगरा आया और सबसे पहले कागज पर योजना और अनुमानित बजट तथा अपना कार्यक्रम बनाया और दूसरे दिन ही आगरा का सर्किट हाउस तथा सूर सदन हाल बुक कर दिया तथा बाहर पार्किंग मे लगाने के लिये पंडाल और बैठने का इन्तजाम की भीड ज्यादा हो तो अव्यवस्था न हो और अपने एक दोस्त के बात कर गैलरी से बाहर के पंडाल तक देश के किसी भी कार्यक्रम मे पहली बार क्लोस सर्किट टीवी का इस्तेमाल की व्यव्स्था भी । शाम को आगरा मे जो थोडी बहुत पार्टी थी जनता दल टूटने के बाद जिसमे अधिकतर मेरे द्वारा जोड़े गये 8/10 लडके थे उनकी मीटिंग किया और सबको काम अभी से बता दिया । अपने एक दोस्त के होटल मे आने वाले लोगो के लिये 5000 पैकेट खाना बनाने की बात तय कर दिया ।
आगरा के अन्य नेताओ से कह दिया की मुलायम सिंह के आगरा आने से लेकर जाने तक ठहरना , पूरे सम्मेलन का खाना, शहर भर मे स्वागत द्वार और स्वागत , वाल राइटिंग, गाडियाँ इत्यादि सब मेरी जिम्मेदारी और बाकी लोग थैली के लिये धन एकत्र करे ।
इसके बाद मैं मंडल भर के सभी जिलो के दौरे पर निकल गया सभी जिला अध्यक्षो को बता कर और तब तक मंडल बटा नही था अलीगढ़ भी इसी मे था । सभी जिलो मे मैं सम्मेलन और थैली के लिये माहौल बनाने मे कामयाब रहा ।
सम्मेलन से दो दिन पहले से पूरे महात्मा गांधी मार्ग पर वाल राइटिंग मैने खुद भी किया ,खम्भो पर चढ़ चढ़ कर झंडे और बैनर मैने खुद भी बाधे ताकी कार्यकर्ताओ मे उत्साह रहे क्योकि वो धन का नही जन का जमाना था और राजनीती के ये सब काम कार्यकर्ता ही करते थे और हम जैसे लोग तो छात्र राजनीति से ही करते आ रहे थे ।
कार्यक्रम के एक दिन पहले कई दिनो से आता मुलायम सिंह जी का फ़ोन फिर आया कि अभी भी कार्यक्रम रद्द कर दीजिये फेल जो जायेगा और मैने कहा की आप ट्रेन पकड़ लो रात को सुबह मैं स्टेशन पर मिलूंगा ।
उस दिन सुबह 4 बजे मैने कार्यक्रम स्थल की व्यवस्थाये देखा और खुद मंच के पीछे का बडा बैनर टंगवाया और फिर स्टेशन रवाना हो गया । मुलायम सिंह जी और साथ मे आज़म खान साहब आये थे । अपनी योजना के अनुसार पहले स्टेशन के सामने किले के गेट पर अम्बेडकर मैदान मे बाबा साहेब अम्बेडकर की मूर्ति पर इन लोगो से माल्यार्पण करवाया और फिर सर्किट हाऊस पहुचा कर ये कह कर घर आ गया कि आप लोग तैयार हो जाइये और लोगो से मिलिये 10 बजे  निकलेंगे हम लोग ।
घर आया थोडी देर लेटा पर नीद कहा तो उठ कर नहा धोकर तैयार हो गया और 9,45 पर फिर सर्किट हाऊस पहुच गया ।
हम लोग बड़े काफिले के साथ वहाँ से निकले और महत्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषो की मूर्तियो पर माल्यार्पण करते हुये काफिला महात्मा गांधी मार्ग पर निकला जिसपर समाज के सभी समाजो तथा धर्मो की तरफ से अलग अलग चौराहो पर स्वागत द्वार पर स्वागत हुआ तथा दो स्थानो पर मुलायम सिंह जी को सिक्को से तौला भी गया और जब हम लोग कार्यक्रम स्थल पर पहुचे तो बाहर ही बडा हुजूम था । अंदर गये तो एक एक सीट पर किसी तरह अटक कर दो दो लोग बैठे थे और सारी सीढियां ही नही बल्की मंच के सामने का खाली स्थान भी भरा था और मंच पर भी तिल रखने को जगह नही थी क्योकि सारे पूर्व और वर्तमान सांसद , विधायक , सभी प्रमुख पदाधिकारी तथा अध्यक्ष इत्यादि मंच पर आ गये थे और मेरे तथा पड़ोस मे रहने वालो के बच्चे भी जबकी मेरे प्रोफेसर पिता तथा पत्नी इत्यादि भी नीचे कार्यकर्ताओ मे बैठे थे ।
दो बात का जरूर उल्लेख करना चाहूँगा कि  मैने अपने कार्यकर्ताओ से कहा था कि जिसकी जहा जिम्मेदारी है वही रहेगा यहा तक की मुलायम सिंह भी सामने आ जाये तो नही हिलना है और बाद मे मैं सबको मिलवाउंगा और साथ फोटो भी करवाउंगा , दूसरा मैने ऐसी व्यव्स्था किया था कि पानी के लिये बस इशारा करिए आप तक पहुच जायेगा और खाने के समय भी सब अपनी जगह ही रहे वही अधिक से अधिक 15 मिनट मे सबको खाना और पानी मिल जायेगा और वही हुआ भी किसी कार्यक्रता ने अपना काम नही छोडा और सारा वितरण मेरी योजना अनुसार ही हो गया ।
मुलायम सिंह जी चाहते थे की अपने स्वागत भाषण और राजनैतिक भाषण के बाद कार्यक्रम का संचालन मैं ही करू पर मेरी ये कमी है की कोई जिम्मेदारी लेने के बाद उसके हर पहलू पर निगाह रखना तथा समय पर व्यवस्थित रूप से चीजो करवा लेना मेरी बेचैनी मे शामिल रहता है इसलिए भाषण के बाद और पूरे कार्यक्रम का ब्योरा देने के बाद मैने पूर्व सिचाई मंत्री बाबू राम यादव से संचालन का आग्रह किया और फिर बाकी सब व्यवस्थित करने मे लग गया जिसका जिक्र ही अखबारो ने किया की सी पी राय मंच पर रहने के बजाय लगातार भाग दौड करते रहे ,करता भी क्यो नही कोई बडी और प्रशिक्षित तथा संपन्न पार्टी तो थी नही ,साधन विहीन ,कमजोर पार्टी थी और आगरा मे सब नये नौजवान थे मेरे जोड़े हुये तो लगता था कही परेशान न हो जाये ।
हा दो दिन पहले लगातार 2/3 घंटे बैठ कर मैने राजनीतिक प्रस्ताव , आर्थिक प्रस्ताव इत्यादि लिख कर प्रिंट करने भेज दिया था और फ़ाईल और कार्यक्रम के पहले वाली रात कई लोग फाइल बनाने मे लगे रहे मेरे घर के बाहर बनी झोपड़ी मे बैठ कर जिसमे कुछ लोग बाद मे बहुत महत्वपूर्ण हो गये और मेरे प्रोफेसर पिता रात को उन सभी को बना बना कर ट्रे भर भर चाय पिलाते रहे और साथ बैठ काम भी करवाते रहे और घर के अंदर मेरी पत्नी और बच्चे भी क्योकि 5000 फाइल बननी थी ।
कार्यक्रम के प्रारंभिक औपचारिकताओ के बाद थैली भेंट होनी शुरु हुयी । वादा किया था कि 10 लाख की कोशिश होगी पर 5 तो होगा ही और भेट किया सब लोगो ने मिल कर 14 लाख जिसके लिये मैने पहले खरीदी अटैची जिसकी दुकान पास ही थी वापस भेज कर बडी अटैची मंगवाया और मथुरा के पंडित राधेश्याम शर्मा ने 50 ग्राम सोना भेट किया ।
दिनभर तमाम नेताओ का भाषण हुआ और अन्त मे मुलायम सिंह जी का नम्बर आया ।वो बहुत भावुक हो गये थे ऐसे स्वागत और कार्यक्रम से तो बोले कि मैं पहले भी कई बार आगरा आया हूँ , चौ चरण सिंह के साथ भी आया जब तीन विधायक थे तो कार्यक्रम रतन मुनी जैन इंटर कालेज मे हुआ था । मैं कल तक सी पी राय से कहता रहा की कैन्सिल कर दीजिये पर इनका आत्मविश्वास था और बोले की बस आप आ जाइये और आज सर्किट हाऊस से यहा तक हर चौराहे पर स्वागत हुआ । यहा भी इतनी भीड हो गई है को अंदर ,बाहर गैलरी और उसके बाहर का पंडाल भरा है और पहली बार मै ये देख रहा हूँ की बाहर वाले लोग भी सब लोग बाहर लगे टीवी पर सब कुछ देख और सुन रहे है । सी पी राय ने उतने अच्छे सब प्रस्ताव लिखे है और बहुत अच्छा सारा इन्तजाम किया है और अनुशासन के साथ सारा इन्तजाम ।
मेरी निगाह मे  यह कार्यकम भीड से ,प्रस्ताव से अनुशासन से , व्यव्स्था से और राजनीती के लिये सर्वश्रेष्ठ कार्यक्रम है और इसका श्रेय केवल सी पी राय को जाता है ।मैने सोचा था 5 लाख नही तो कुछ तो मिलेगा ही पार्टी चलाने को पर यहा तो 5 क्या 14 लाख रुपया और सोना भी मिला है । सी पी राय ने ये कैसे सम्भव किया इनसे बाद मे पूछूंगा पर पार्टी आज से फिर चल गयी और इसके लिये सी पी राय को याद रखा जायेगा ।
नेता के सामने भीड हो और सब अच्छा हो तो जोश तो आ ही जाता है ।जबरदस्त भाषण दिया मुलायम सिंह जी ने और उनके पहले आज़म खान साहब ने भी । काफी बडी संख्या मे नेता लोग बोले ।
सम्मेलन के बाद मैने सूर सदन के बाहर पोर्च से सार्वजनिक सभा को संबोधित करने का इन्तजाम पहले से ही कर रखा था तो मुलायम सिंह को पोर्च पर ले गया । ये बात उनको पहले से नही बताया था ।शाम करीब 5 बज रहा था एम जी रोड पर भीड का समय था और सभा के कारण बडा जाम लग गया ।
सभा के बाद मेरे निवास पर प्रेस से वार्ता और भोजन था । अपने निवास पर मैने कार्यकर्ताओ से उनको मिलवाया ।मुलायम सिंह जी गदगद थे और मेरे सभी कार्यकर्ता भी पर जब स्टेशन उनको छोड़ने गया अपने निवास से तब तक मेरे गले की आवाज मेरा साथ छोड चुकी थी पर तसल्ली इतनी थी की पार्टी को मैने फिर से रफ्तार दे दिया था धन से भी और आत्मविश्वास से भी और खासकर मुलायम सिंह जी का आत्मविश्वास लौट आया था जो बहुत जरूरी था और फिर हम लोग निकल लिये पूरे प्रदेश मे ।
मैने तो बस इमानदारी से अपना कर्तव्य निभाया था ।
कुछ छूट गया होगा तो वो आत्मकथा मे मिलेगा ।

बहस किसान बनाम पूंजीपति की

गाँव किसान का दर्द और बहस खेती बनाम पूंजी की ---- 
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार 

इस समय किसान के खेत का आलू और सब्ज़ियाँ आने लगी तो कितना सस्ता मिल रहा है सब । उससे पहले व्यापारी के गोदाम का था तो आलू ही 50/60 मिल रहा था जिसे गरीब की सब्ज़ी कहते है । यही हाल सब चीज़ का है । किसान पूरी मेहनत से पैदा करता है पर उसके पास भंडारण की क्षमता नही है और 80 प्रतिशत किसान छोटे या सीमान्त किसान है जो सिर्फ उतना ही पैदा कर पाते है की वो खा ले और बाकी बेच कर उसे तत्काल कर्ज चुकाना होता है ,इलाज करवाना होता है जो वो रोके होता है फसल तक ,जरूरी कपडा हो या खेती का सामान या फिर गाय भैस सब उसी मे से आगे पीछे करना होता है ।बच्चो की किताब हो या बेटी को शादी सब करना होता है कुछ नकद और कछ उधार जो उसे गाँव या पास के व्यापारी से मिल पाता है खेत और फसल की गारन्टी पर पैसे की सीमा के अनुसार ।इन्ही तत्कालिक जरूरतो के कारण उसे खाने लायक रोक कर अपनी फसल तत्काल बेचना होता है और इसी बात का फायदा उठाता है व्यापारी ।
एक बार मैने प्रैक्टिकल करने के बाद लिखा था जब मैं आगरा की  मंडी के पास एक कालेज मे गया था तो सोचा की जरा सेब का भाव देखा जाये तो वहाँ 5 किलो या ज्यादा लेने पर सेब 40 रुपया किलो मिल रहा था । मंडी के बाहर की ठेल वाले से पूछा तो 60 हो गया था । फिर केवल 1 किलोमीटर दूर सिकंदरा पर खड़ी ठेल से पूछा तो 80 हो गया ।जब और आगे खन्दारी पर पूछा तो 90 और 100 था और जब शहर के अंदर हरी पर्वत चौराहा पर पूछा तो 120 से कम करने को तैयार नही था ।जिस समय आलू पैदा होता है किसान के खेत से 2 रुपए किलो तक चला जाता है और कभी कभी बोरे की कीमत मे ।कभी तो ये हाल हो जाता है कि किसान वही बाहर आलू फेंक देता है की जो ले जाना चाहे वो ले जाये ।गन्ने के साथ भी हम अक्सर देखते है की गन्ना खेत मे ही जला देते है और टमाटर सड़क पर फेंकते दृश्य भी देखे है ।
पर कभी बिस्किट , कोक ,या फैकट्री की चीजे फेंकते तो नही देखा न दवाई केचप या चिप्स ।और अगर कोई कारण फेकने का आया तो मालिक खुद फैक्ट्री मे आग लगवा कर उससे ज्यादा इन्शीरेंस वसूल लेता है पर किसान के मामले मे इन्श्योरेन्स वाला 10 हजार करोड़ कमाता है और हजारो किसान आत्महत्या करते है क्योकि उनका इन्श्योरेन्स उनका वाजिब मुवावजा देता ही नही है ।
नेता बड़े बड़े वादे किसानो से करते है पर विपक्ष मे और सत्ता मे आते ही पूंजीपतियों के पाले मे खड़े हो जाते है इसलिए किसान बदहाल है वर्ना एक समय तक तो पूरा भारत इसी खेती से ही जिन्दा था और सोने की चिडिया था ।तब कहा थे कारखाने और पूंजीपति । 
यहा तक की लाक डाउन मे भी जब सब बंद था होटल कारखाने जहाज कारे और कपडे भी आल्मारी मे थे तो जरूरत सिर्फ खाने का अन्न , सब्जी दूध सभी को और जो बीमार थे उनको दवाई की पड़ी और किसान ने कोई चीज कम नही होने दिया ।जब मंदी का असर भी कही आता है तो कल कारखाने और दफ्तर लडखडाते है पर खेती उस समय भी देश और समाज को सहारा देती है थामती है और देश को डूबने नही देती ।पर इसका उतना ही उपेक्षित रखा गया और रखा जा रहा है जबकी अमरीका इंग्लॅण्ड जैसे देश खेती को भारी आर्थिक सहयता देते है ।

एक सवाल हमेशा से कचोटता है की जो लोग हमारे सामने जमीन पर रख कर थोडा सा सामान बेच रहे थे या साइकिल पर बेच रहे थे या छोटा मोटा लकडी का खोखा लगाकर बेच रहे थे वो देखते देखते बडी पक्की दुकान के मालिक हो गये ,बडी बडी कोठियो के मालिक हो गये या तक की फैक्ट्री और होटलो के मालिक हो गये और उनके परिवारो मे जितने लडके होते गये उनके उतने करोबार और कोठिया बढती गई ।जब सवाल करो तो कहा जाता है की उसने पैसा लगाया और मेहनत की ।पर किसान भी तो पैसा लगाये बैठा है और अधिकतर मामलो मे इन व्यापारियों से ज्यादा क्योकि किसान का खेत लाखो का है ।उसमें वो खर्च भी करता है बीज पानी खाद पर और दिन रात जाड़ा गर्मी बरसात उसमे पसीना बहाता है ।बिना जान की परवाह किये उसकी रखवाली करता है और कभी बाढ तथा कभी सूखा और कभी फसल तथा पशु की बीमारियो का सबसे ज्यादा रिस्क भी लेता है तो किस मामले मे वो व्यापारी से पीछे है ये सवाल सत्ताओ से भी है और समाज से भी ।उसकी फसल प्राकृतिक आपदा का शिकार होती है तो उसे नाम मात्र का मिलता है ।और बडा सवाल है की व्य्पारी के बच्चे बढे तो व्यापार और घर बढ़ जाते है पर किसान के खेत और मकान छोटे होते जाते है क्यो ? 
किसी किसान को बड़ा होते नही देखा अगर उसके परिवार के कुछ लोग नौकरी या किसी व्यापार मे लग गये तभी उसका जीवन थोडा ठीक होता है वर्ना उसका बेटा फौज मे जाकर जान हथेली पर लिये सिर्फ इसलिए खड़ा रहता है किसी भी परिस्थिती मे सीमा पर ताकी साल के अन्त मे वो कुछ पैसे बचा कर गाँव ले जाये जिससे घर की कुछ जरूरते पूरी हो सके ।
जाह तक फसल कही भी बेचने का सवाल है वो नियम पहले से है पर ८० % से ज़्यादा किसान अपने ब्लॉक या पास की मंडी के बाहर कभी नही जाते क्योंकि उतना उत्पादन ही नही है । 
उनके निकट मंडी बना और हर हाल में उनकी उपज ख़रीद कर और स्वामीनाथन आयोग के अनुसार मूल्य देकर तथा उद्योग की तरह सुरक्षा और इंश्योरेंस देकर ही उसका भला किया जा सकता है तथा उसे कृषि में और गाव में रोका जा सकता है 
गांधी जी की दृष्टि आज भी ठीक है की आसपास के २० गाँव अपनी ज़रूरतें वही से पूरा करे इसके उनका मतलब उन सब चीज़ को भी वही डेवलप करने से था जिनकी ज़रूरत पड़ती है स्कूल कालेज अस्पताल तथा स्थानीय उपज से जुड़े छोटे उद्योग भी ।
नौकरी वालो की तन्ख्वाह पिछ्ले 25सालो मे 250 गुना तक बढी और पूंजीपतियों की संपत्ति तो हजारो गुना पर किसान के फसल की कीमत 19या 20भी मुश्किल से कुछ चीजो की ।
व्यापारी का लाखो करोड़ का कर्जा सरकार माफ कर देती है या बट्टे खाते मे डाल देती तो किसान को भी उतनी ही मदद क्यो नही देती ।नौकरी बाले के बच्चो को अगर पढाई का मिलता है, घर मिलता है उसका मेन्टीनेंस मिलता है, फ़्री बिजली मिलती है ,मेडिकल मिलता है घूमने का पैसा मिलता है तो किसान के बच्चे की पढाई और उसका इलाज क्यो न मिले ? उसको फ़्री नही तो सस्ती बिजली और डीजल क्यो न मिले , उसकी बेटी की शादी की सहयता क्यो न मिले ? उसको चाहे 10 साल मे एक बार ही सही घर ठीक कराने के पैसे क्यो न मिले और प्राकृतिक आपदा आने पर उसका कर्जो माफ क्यो न हो ? 
भारत का मूल गाँव , किसान और खेती है उसे मजबूत करना ही होगा  गांव को शहरो की बराबरी पर विकसित करना ही होगा ।क्या ये तय नही हो सकता कि जो शहर मे एक स्कूल कालेज ,अस्पताल और फैक्ट्री बना रहे है उन्हे उस जिले के गाँव मे भी बनाना ही होगा और उसके लिये लाल फीताशाही खत्म कर , पुलिस का आतंक और शोषण खत्म कर उसे गाँव मे लोगो को सुरक्षा का एहसास कराने की मूल जिम्मेदारी देकर तैयार करना होगा जिससे ये सब खोलने वाले तथा उसमे काम करने वाले शौक से गांवो मे जाने को तैयार हो ।
बहस बडी है पर समय भी बडा है तो कोई तो होगा जो बडा सोचेगा महात्मा गांधी के संदेश समझेगा और भारत को कर्जो से लड़े तथा जनता के पैसे से बडा आदमी बने लोगो का देश नही बल्की खुशहाल गाँव और खुशहाल लोग वाला भारत बनाएगा ।
पर पहले उन सवालो का जवाब ढूढना होगा और सत्ता को जवाबदेह होना होगा जो ऊपर उठे है ।

राज नारायणजी

संघर्ष को समर्पित एक कबीर की फकीरी जिंदगी का नाम था  ;;राजनारायण ;

                           

नेताजी के नाम से प्रसिद्द राजनारायण जी वही जिन्होंने देश का इतिहास बदला अजेय प्रधानमंत्री को पहले कोर्ट में हरा कर और फिर वोट से हरा कर ,वाही राजनारायण जिनको पढ़े बिना कानून की पढाई पूरी नहीं हो सकती ,वाही राजनारायण जिनको जाने बिना समझा ही नहीं जा सकता है लोक तंत्र के सही मायने को ,वाही राजनारायण जिन्होंने देश में लोकतंत्र के विपक्ष को मायने दिया बल्कि एक समय खुद प्रतीक बन गए थे विपक्ष के ,वाही राजनारायण जिन्होंने एक समय सरकारों को अपने हिसाब से उल्टा पुलटा | वे हर वक्त केवल जन और जनतंत्र की सोचते थे जागते हुए और मुझे लगता है की सोते हुए भी । लखनऊ की दो घटनाये उनके आम जन की चिंता और उसकी लड़ाई को दर्शाने के लिए काफी है । पहली -एक समय तक लखनऊ रेलवे स्टेशन के अन्दर रिक्शा नहीं जा सकता था । नेताजी अन्दर रिक्शे से जाने की जिद कर बैठे और मना होने पर उसी रिक्शे पर खड़े होकर भाषण देने लगे । मजमा जुटने लगा हजारो की भीड़ लग गयी रास्ते  बंद हो गए ,लोगो की ट्रेन छूटने लगी पर नेताजी कहा मानने वाले थे । जब सरकार ने रिक्शे को अन्दर जाने की इजाजत दे दिया तभी उनका वो तात्कालिक आन्दोलन समाप्त हुआ और आज सभी स्टेशन में रिक्शे से जा सकते है ।दूसरा - ऐसा ही उनका रिक्शा आन्दोलन राजभवन में प्रवेश को लेकर हुआ और फिर सरकार को झुकना पड़ा तथा वे राजभवन में रिक्शे से ही गए ।

इस तरह के आन्दोलनों के वर्णन से पूरा ग्रन्थ तैयार हो सकता है ।उन्हें आज की तरह अच्छाई ,बुराई ,फायदा ,नुक्सान सोचने की आदत नहीं थी । जहा भी जन तकलीफ में दिखा या कोई बात जन के खिलाफ दिखी ,जहा भी जनतंत्र को खतरा दिखा या कोई कमजोरी दिखी राजनारायण जी वहा स्वतः मौजूद दिखते थे और जहा वो खड़े हो जाते थे वही आन्दोलन अपने आप पैदा हो जाता था ।

गडवाल का बहुगुणा जी का चुनाव हो या बाबू  बनारसी दास जी का  ,माया त्यागी कांड हो या चौधरी चरण सिंह जी के खिलाफ उनका चुनाव ,पंडित कमलापति त्रिपाठी जी के खिलाफ उनका बनारस का चुनाव हो या इंदिरा जी के खिलाफ रायबरेली का चुनाव राजनारायण जी की संघर्ष क्षमता ,नेतृत्व क्षमता ,आदर्श राजनैतिक सोच ,विरोधी के प्रति भी मर्यादा का पालन ,जीत और हार को सहज भाव से स्वीकार करने का गुण ,तमाम ऐसी बाते है जिनका आज अभाव दीखता है और लोग उनसे बहुत कुछ सीख सकते है ।

वे केंद्र सरकार के मंत्री बने तो सादगी की मिसाल ही नहीं पेश किया बल्कि ऐसा काम किया की रूस के प्रावदा ने लिखा की भारत में एक ही मंत्री है जो सचमुच समाजवादी फैसले कर रहा है । बेयर फूट डॉक्टर की उनकी योजना के द्वारा दूरस्त गाँवो में प्रारंभिक चिकत्सा की सुविधा पहुचाने के साथ लाखो को रोजगार देने का काम भी हुआ । चलते फिरते पूर्ण अस्पताल वाली गाड़ियाँ भी उनकी गरीबो और गाँवो को चिकित्सा सुविधा देने के उनकी चिंता और चिंतन को दर्शाती है ।

पंजाब के बटवारे के समय संसद में दिया गया उनका भाषण और उसमे आने वाले समय में आतंकवाद और अलगाववाद के सर उठाने की चिंता उनके दूर तक देख सकने वाली क्षमता  दिखती है ।जनता सरकार बन जाने पर इंदिरा जी को पूर्व प्रधानमंत्री होने और स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते उचित सम्मान और निवास तथा सुरक्षा देने के बारे में मंत्रिमंडल में कही गयी बातें उनके बड़े दिल और लोकतंत्र के प्रति आस्था को को दिखाती है जब उन्होंने कहा की न्यायलय इंदिरा जी के साथ क्या करेगा ये उसका काम है पर हमारी सरकार को उनके साथ वो करना चाहिए जो हम अपने लिए सही समझते है । उन्होंने यहाँ तक कह दिया था की यदि उन्हें दिल्ली में निवास नहीं दिया तो उन्हें तो केवल एक कमरे की जरूरत है ,वे अपना मंत्री वाला बाकी  घर इंदिरा जी को दे देंगे । ये एक बडा सोचने और आगे का राजनीतिक व्यव्हार तय करने वाले नेता का वक्तव्य था ।उनकी बात नहीं मानी गयी और तत्कालीन गृहमंत्री अपने काम पर ध्यान देने के स्थान पर केवल इंदिरा जी के पीछे पड़  गए और उसका जो परिणाम सामने आना था आया ,वर्ना जानने वाले जानते है की राजनीती की दशा और दिशा कुछ और होती ।

एक किसान नेता और सचमुच जनाधार वाले नेता को प्रधानमंत्री बनाने का उनका सपना और संकल्प जूनून तक चला गया जब बिना जनधार वालो ने जनधार वालो को अपमानित करना शुरू किया और देश अपने तरीके से हांकने का प्रयास किया । उनका विद्रोही स्वाभाव और उग्र हो गया जब षड़यंत्र द्वारा गरीबो के नेतृत्व को प्रदेशो में पदस्थ करने की मुहीम चली । उन्होंने आगे आने वाले समय की गुप्त चुनौतियों को देखा उसकी जड़ पर हमला करना शुरू कर दिया जब आधे लोग सत्ता में आये और दल में आये आधो को आने वाले षड़यंत्र के लिए अलग छोड़ दिया गया ।

क्या क्या लिखूं ? क्या लिखूं की कैसे उनको जरा सा बीमार जान कर इंदिरा जी पैदल ही उनके घर तक चली आई थी प्रधानमत्री होते हुए ,क्या लिखूं की संजय गाँधी को उन्होंने संघर्ष का क्या मंत्र दिया ,क्या लिखूं की उन्होंने ऐसे तमाम लोग जिन्होंने अपने शहर नहीं देखे थे उन्हें प्रदेश और देश की राजधानी दिखा दिया ,क्या लिखूं की देश के कानून की पढाई करने वाले और अदालत में जाने वाले राजनारायण जी को पढ़े बिना काम नहीं चला पाएंगे ? क्या लिखूं की अपने को संसदीय दल का नेता चुन लिए जाने के बाद एक दिन पहले तक उनकी लानत मलानत करने वाले को उन्होंने नेता चुनवाया और प्रधानमंत्री बनवा दिया ? क्या ये लिखूं की उनकी बात मान ली गयी होती और इस्तीफ़ा नहीं देकर सदन चलाया गया होता तो राजनीती कुछ और होती ? क्या ये लिखू की वो भी जाति की राजनीती कर रहे होते तो जिंदगी भर संसद में रहे होते पर इतिहास नहीं रचा होता । क्या ये लिखूं की इतने बड़े नेता जिसने दिल्ली को पलटा  ,प्रदेशो के नेतृत्व तय किया उनके बच्चो को कोई नहीं जानता  था ,या ये लिखू की जब उनका दल कमजोर हो गया था और उनके एक बेटे ने मनीराम बागड़ी से कहलवाया की टाइप और फोटोस्टेट मशीन उसे दे दिया जाये तो उसका खर्च चल जायेगा तो नेताजी ने जवाब दिया की पार्टी का है पैसा जमा कर दो ले जाओ ,क्या क्या बताऊ ?

जहा तक व्यक्तिगत अनुभव का सवाल है तो नेताजी की केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद बिना स्थानीय प्रशासन की जानकारी के मुझ जैसे किसी भी कार्यकर्ता के घर अचानक पहुँच जाते थे की चाय पिलाओ और चलो कही चलना है । आन्दोलन में 20 जानवरों को लाठी चार्ज होता है शाम को जेल जाते है और 21 जनवरी को सुबह 10 बजे नेता जी दिल्ली से चल कर आगरा की जेल में हाजिर है ।104 बुखार में दवाई लेकर मेरी शादी की पार्टी में खड़े है और लोगो से मिल रहे है । मेरी बेटी के पैदा होने पर निमत्रण देने पर कहते है की मै  व्यस्त हूँ कर्पूरी ठाकुर और सतेन्द्र नारायण सिन्हा की पंचायत की जिम्मेदारी चंद्रशेखर जी मुझे दिया है और पार्टी वाले दिन केवल आधे घंटे के लिए दलबल को लेकर वो पहुँच जाते है । कभी नहीं लगा की उनसे कोई पद मांगे ,वैसे ही बड़ी ताकत महसूस होती थी । देश में कही भी हो लगता था की राजनारायण जी साथ खड़े है किसी से डरने की जरूरत नहीं है । ऐसा हुआ भी जब हैदराबाद में कोई दिक्कत आई पर बस एक फ़ोन किया और समस्या ख़त्म । इतने बड़े संबल ,इतने बड़े लड़ाके  ,इतने बड़े और सच्चे समाजवादी ,इतने बड़े दिल वाले ,इतने बड़े राजनैतिक भविष्यवक्ता ,लोकतंत्र और सिधान्तो के इतने समर्पित इंसान और भारत के लोकतंत्र को मायने देने वाले महामानव को मेरा शत शत नमन ।

रविवार, 24 अक्टूबर 2021

साड़ी शाल जिन्दाबाद पाकिस्तान मुर्दाबाद

आज लखनऊ को सड़कें खाली है 
एक तो करवा चौथ जिसे भारत की फिल्मो ने बहुत लोकप्रिय भी किया है और ग्लैमराइस भी किया है 
पर 
उससे भी ज्यादा आरएसएस और भाजपा के प्रेमी पाकिस्तान से कोई मैच है,अरे वही पाकिस्तान जो आतंकवादी भेजता है और कभी कभी सत्ता उसके साथ नही खेलने और न व्यापार करने का एलान करती है पर अडानी और अंबानी तथा सारे कृपापात्रो का व्यापार चालू रहता है। हा ये टुक टुक मैच भी कैसे नही होता जब शाह साहब के बेटे ही क्रिकेट के सर्वेसर्वा है 
सुना है कि सुरक्षा सलाहकार के बेटे का भी काफी वापरिक याराना है वहा 
दुश्मनी तो चीन से भी भारी वाली है क्योकी रोज घुसा जा रहा है भारत मे वैसे सच तो मोदीजी को ही मानिये जिन्होने एलान किया है की ना कोई आया और न घुसा ,ये अलग बात है कि उन्ही के सांसदो ने अरुणाचल से लेकर लदाख तक की सच्चाई बयान कर दिया और बात दर बार की खबरे भी सब आसमान पर लिख दे रही है ।
पर अपन को क्या ? अपना न व्यापार से सम्बंध है और न किरिकिट ही से ।
हम तो दीवाली मे चीन की झालर नही खरीदेंगे और कागज पर पाकिस्तान लिख कर पर लाल आंख से उसे ड़राएंगे ,फिर डांटेगे और उसके बाद उसे फाड कर जूते से कुचल देंगे और सिद्ध कर देंगे खुद को सच्चा राष्ट्रवादी और कम होगा तो कुछ गालियाँ भी ।
बोलो साड़ी और शाल के आदान प्रदान की जय ।
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021

उ प्र मे कांग्रेस की डगर आसान नही

#उत्तरप्रदेश_में_कांग्रेस_की_डगर_आसान_नही ।

प्रियंका गांधी रुपी तुरूप का इक्का फेंक दिया कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में , पर राह कुछ आसान नही लग रही है । जब जब प्रियंका गांधी किसी मुहिम पर निकली है उन्होने देश प्रदेश के मीडिया और जनता का ध्यान आकर्षित किया है पर अचानक उछाल लेकर फिर काफी दिनो के लिये दृश्य से बाहर हो जाना सारे किये कराये पर पानी फेर देता है ।ये कमजोरी राहुल जी को भी बार बार पीछे धकेल देती है और भारत की राजनीति मे गैर गम्भीर बना देती है । 
भारत की राजनीति और खासकर उत्तर भारत की राजनीति का चारित्र पूर्णकालिक है ।यहा की जनता तथा कार्यकर्ता नेता से हर वक्त अपने बीच मे होने और हर सुख दुख मे साझीदार होने की उम्मीद रखते है ।अखिलेश यादव भी मुख्य लडाई मे होने के बावजूद पिछले साढे चार साल की अनुपलब्धता के कारण ही लडाई मे उतने मजबूत नही दिख रहे है जबकी उनके पास उनका अधिकांश जातीय वोट मौजूद है जबकी कांग्रेस के पास कोई जातीय वोट बैंक स्पष्ट रूप से एकतरफा दिखलाई नही पड़ रहा है  और मायावती की लगातार चुप्पी और अदृश्य होने के कारण अभी भी कही नज़र नही आ रही है  ।पिछले कई चुनाओ से कांग्रेस 6 से 8 प्रतिशत वोटो के साथ आखिरी पायदान पर सघर्श कर रही है ।
प्रियंका गांधी ने जब उत्तर प्रदेश का जिम्मा लिया उसी वक्त कहा गया की अब वो लखनऊ मे ही रहेंगी और पूरा समय देंगी परंतु पता नही क्यो वो हो नही सका । सोनभद्र की घटना मे जनता का ध्यान आकर्षित किया फिर सन्नाटा रहा ।फिर हाथरस मे गरमी आई तो कभी नाव यात्रा पर हर बार उसके बाद लम्बा सन्नाटा रहा जबकी उस समय तक अन्य विरोधी दल मुखर नही हुये थे ।
उसी समय से यदि प्रियंका गांधी ने दिल्ली को त्याग दिया होता और इस सच्चाई को स्वीकार कर कि जाती भारत की राजनीति की बड़ी सच्चाई है कुछ जातिगत क्षत्रपो को जोड़ लिया होता जिससे वो सवाल खत्म हो जाता की कांग्रेस के पास कौन सा वोट है और उन सभी के साथ सामुहिक रूप से प्रदेश की नाप दिया होता तो आज ये सवाल ही खत्म हो गया होता की अगली सरकार किसकी ।प्रियंका जी ने यदि खुद को मुख्यमंत्री और कुछ अन्य नेताओ को उप मुख्यमंत्री घोसित कर मुहिम चलाया होता तो आज कांग्रेस भाजपा के खिलाफ विकल्प बन गयी होती ।अब हर जाती मे सत्ता मे भागीदारी को लेकर जागरुकता है और वो दिये बिना कोई भी सत्ता नही पा सकता है ।वो समय दूसरा था जब इन्दिरा गांधी या चौ चरण सिंह के नाम से जाती की दीवारे तोड कर वोट पडता था ।
लखीमपुर खीरी की घटना पर एक बार फिर प्रियंका गांधी ने लीड लिया है लेकिंन केवल तेवर और सांकेतिक लड़ाईयो से सत्ता की पायदान तो नही चढा जा सकता है ।यद्दपि अब देर हो चुकी है फिर भी नये सिरे से कोशिश की जा सकती है लचीला होकर , उप्लब्ध होकर और आगे बढ़ कर लीड कर के उत्तर प्रदेश में ब्लॉक ब्लॉक तक पहुच कर तथा वोट बैंक के लिये लोगो को जोड़कर ।पर अभी भी देखना होगा की गिरफ्तारी से छूटने के बाद उनका रुख क्या होता है ।
अगर रवैय्या पुराना ही रहेगा तो इस बात से भी इंकार किया जा सकता है कि ज्यो ज्यो लडाई भाजपा और सपा की आमने सामने होती जाएगी कांग्रेस बंगाल की गति को प्राप्त होती जाएगी । पर इसके लिये अगले एक महीने की घटनाओ पर निगाह रखना होगा ।

शनिवार, 18 सितंबर 2021

दुशांबे का मोदीजी का भाषण

#मोदीजी_का_भाषण

मेरे घर मे डिश कनेक्शन नही है अत: मैं #मोदीजी का कल का शंघाई सहयोग संगठन का भाषण नही सुन पाया था या क्या चुपाऊ ,काफी दिनो से उनका भाषण सुनना ही बंद कर दिया है ,उनके भाषण पर सच झूठ या अज्ञानता के विवाद सोशल मीडिया से पता चल ही जाते है ।
खैर आज उनका भाषण अखबार मे देखने को मिला जिसमे उन्होने (1)  कट्टरता को शान्ती और सुरक्षा के लिये खतरा बताया है और (2) अफगानिस्तान के संदर्भ मे समावेशी शासन की बात किया है तथा अल्पसंख्यको और महिलाओ को लेकर चिंता व्यक्त किया है ।
निश्चित ही अगर ये आरएसएस और भाजपा के चिन्तन सोच और व्यव्हार तथा उदेश्य मे परिवर्तन का द्योतक है तो स्वागत योग्य है और अगर "पर उपदेश कुशल बहुतेरे "है तो फिर जाने ही देते है क्योकी हजारो भाषणो मे एक भाषण और जुड़ गया जैसा है ।
संघ प्रमुख हो या मोदी कई बार सार्वजनिक मंचो पर और खासकर मोदी अंतर्राष्ट्रीय मंचो पर ऐसे भाषण देते ही रहते है जो पदीय मजबूरी होती है अथवा अन्तर्राष्ट्रिय बिरादरी मे उठने बैठने की मजबूरी होती है जो  उनके मूल विचार का बिल्कुल उलट होता है ।
काश ये दोनो लोग अपने 120 से ज्यादा संगठनो को सामने बैठा कर दिल से यही भाषण दे पाते तो भारत का भला हो जाता ।
अन्यथा चूंकि अब दुनिया एक गाँव बन चुकी है तो सब को सब पता है और निश्चित ही बाकी राष्ट्राध्य्क्ष मंद मंद मुस्कराये होंगे इस भाषण पर ।
पर हम भारत के लोग भारत के हितो के लिये और हितो की सीमा तक तो आंख बंद कर अपने प्रधानमंत्री के साथ है ।
जी बजाओ ताली -भाषण बहुत ही जानदार था और खास बात ये है की पाकिस्तान और इमरान की फ़ूक सरक गयी इस भाषण से ।
वैसे हर घर मे आइना तो जरूर होता है ।

सोमवार, 16 अगस्त 2021

उत्तर प्रदेश की राजनीति

आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा --

उत्तर प्रदेश का आने वाला चुनाव मील का पत्थर साबित होने वाला है ।बंगाल ने लम्बे समय बाद एक चुनौती को स्वीकार भी किया और चुनौती दिया भी और इबारत लिख दिया राजनीति के पन्ने पर की इरादा हो, संकल्प हो और आत्मबल हो तो कितनी भी बड़ी ताकते सामने हो उन्हे परास्त किया जा सकता है ।
अब बारी उत्तर प्रदेश की है तय करने की कि देश की राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी । जो विभिन्न कोनो से आवाज उठती है कि लोकतंत्र खत्म हो जायेगा और संविधान संघविधान मे बदल जायेगा तथा एक संगठन को छोड बाकी सब कैद मे जीवन काटेंगे ,क्या सचमुच वैसा कुछ होगा या ये सब एक भ्रम मात्र है ।तय तो ये भी होना है की जो चल रहा है वही चलेगा या बदलाव आयेगा और खुली बयार फिर से बहेगी ।तय होना है की उत्तर प्रदेश सिर्फ ठोको , मुकदमे लगाओ और जेले भरो पर ही चलेगा या रोटी रोजगार और सचमुच के विकास जिसका लोग सपना देखते है उसपर चलेगा ।
तय ये भी होना है कि 1989 से हर चुनाव मे सत्ता परिवर्तन की बयार इस बार भी बहेगी या कांग्रेस युग की वापसी होगी और सत्ता फिर वापस आयेगी ।
इस युद्द के मुख्य रूप से चार योद्धा है जिसमे भाजपा तथा आरएसएस और समाजवादी पार्टी फिलहाल आमने सामने दिखलाई पड़ रहे है । भाजपा के ऊपर जहा सरकार असफलताओ का बोझ है वही अपने ही विधायको नेताओ और कार्यकर्ताओ की नाराजगी का जोखिम भी ,जहा सभी चीजो की महंगाई का विराट प्रश्न सामने मुह बाये खड़ा है तो किसान आन्दोलन की आंच भी जलाने को तत्पर है ,बेरोजगार नौजवान हुंकार भर रहा है तो कुछ को छोडकर कर पूर प्रशासन तंत्र मे एक कसमसाहट है , या यूँ कहे की चुनावी जमीन भाजपा को निगलने को आतुर दिख रही है ।नागपुर से लेकर दिल्ली और लखनऊ तक भगवा खेमे जबर्दस्त बेचैनी दिखलाई पड़ रही है और साम दाम दंड भेद सब कुछ इस्तेमाल कर किला बचाने की जद्दो-जहद भी साफ नज़र आ रही है । हिन्दू मुसलमान मुद्दा बना देने को कमर कसते नज़र आ रहे है भगवा खेमे के योद्धा चाहे उसकी आंच मे प्रदेश बर्बाद क्यो न हो जाये पर चुनाव बड़ी चीज है ।
दूसरी तरफ समाजवादी खेमा लम्बी नीद से उठ कर अपनी अंगडाई लेता हुआ दिख रहा है पर अभी भी जमीनी हकीकत और अपनी कमजोरियो से आंखे मूदे हुये लगता है ।जहा भाजपा सैकड़ो चेहरे और संगठनो के साथ उछल कूद कर रही है वही समाजवादी पार्टी वन मैंन शो के साथ वन मैन आर्मी ही नजर आ रही है । अखिलेश यादव द्वारा मुलायम सिंह यादव को बेइज्जत कर अध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी सभी चुनावो मे खेत रही है ।पार्टी का दो मुख्य मजबूत वोट था जिसमे से पिछले विधान सभा चुनाव और लोक सभा चुनाव मे इसमे से यादव लोगो का भाजपा खेमे को काफी समर्थन मिला हिन्दू और मंदिर के नाम पर और अभी भी ये दावा नही किया जा सकता कि 100% यादव वोट पुरानी वाली ताकत तथा जज्बे से सपा के लिये लडेगा और वोट देगा ।दूसरा अडिग वोट मुसलमान का रहा जो 1989 और फिर 1993 से पूरी ताकत के साथ सपा के साथ खड़ा रहा पर इस बार वो विचलित दिखलाई पड़ रहा है और आज़म खान के मामले मे अखिलेश यादव की तब तक की गई बेरुखी जब तक वोवैसी से आज़म से मिलने की इच्छा व्यक्त नही किया और कांग्रेस की तरफ से भी उनके प्रति सहानुभूती नही दर्शाई गई ने भी पूरे मुस्लिम समाज को विचलित कर दिया है साथ मे कभी विष्णू के मंदिर तथा कभी परशुराम के मंदिर की बात कर अखिलेश यादव ने पाया कुछ नही बल्कि भाजपा की नीतियो का पिछलग्गू बनने का काम किया है ।ऐसे मे यदि मुस्लमान को कोई और विकल्प नही मिला तो उसका वोट तो मिल सकता है पर 1991की तरह ही जोश रहित और कम संख्या मे होगा ।पता नही क्यो अखिलेश यादव पर अति जातिवादी होने का ठप्पा भी लग गया है और बडी जातियो के प्रति बेरुखी वाला भाव भी ।ये गलती तो सपा ने प्रारंभ से ही किया कि वो अन्य पिछडी जातियो और अति पिछडी जातियो को ये एहसास नही करा पायी की पार्टी तथा सत्ता उनकी भी है ।मुलायम सिंह के उलट अखिलेश का सुलभ न होना तथा पुराने लोगो के प्रति उपेक्षा भाव और अनुभवी वरिष्ठ लोगो से दूरी भी उनको भारी पड़ती दिख रही है और वो अपना ही राजनीतिक कुनबा ही पूरी तरह समेट नही पा रहे है ।जहा सिर्फ 30या 35 सीट की लडाई मे अपने चाचा शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव को बाहर का रस्ता दिखा दिया वही कांग्रेस को 125 सीट दे दिया । यद्द्पि भाजपा के सामने आज तक सपा ही है पर अभी तक सपा और उनके सहयोगी 125/130 सीट से ज्यादा पर बढते हुये नज़र नही आ रहे है पर थोडा व्यव्हार और रणनीति बदल कर उछाल लेने से भी इंकार नही किया जा सकता है । कितना ये उनके व्यहार और रणनीति परिवर्तन पर निर्भर है 
तीसरी  पार्टी बसपा है जिसकी नेता मायावती यदि पैसे की भूखी नही होती और धन वैभव तथा अहंकार से दूर रही होती और अपने मिशन के साथियो को दूर नही किया होता तथा काशीराम के रास्ते पर चलती रही होती तो आज देश की सबसे बडी ताकतवर नेता होती या सबसे बड़े 3/4 मे होती ।पर उनकी कमजोरियों और कर्मो ने उनकी लम्बे अर्से से भाजपा की सत्ता के सामने शरणागत कर दिया और लम्बे समय से दिल्ली मे बैठी वो केवल राजनीति की औपचारिकता निभाती हुयी दिख रही है । उनके कर्मो से उनका वोट ठगा हुआ मह्सूस कर रहा है ,फिर भी उनका वोट है ।इस चुनाव मे भी वो पुराने हथकंडो के साथ मिश्रा जी के कन्धे पर चढ़ कर चुनाव को बस जीवित रहने लायक लड़ना चाह्ती है या भाजपा की बैसाखी बन अपनी सुरक्षा और अपने भतीजे की राजनीति मे स्थापना तक के ही इरादे से उतरना चाह्ती है ये वक्त बतायेगा ।  फिर भी मायावती यदि इस चुनाव मे पैसे का लालच छोड कर और क्षेत्रो के सम्मानित लोगो को ढूढ कर टिकेट देती है और अपने खजाने का कुछ अंश लोगो के चुनाव लड़ने पर खर्च करती है तो वो 40 से ज्यादा सीट जीत सकती है और यदि ढर्रा पुराना ही रहता है तो 19 से भी नीचे ही जायेंगी और कितना नीचे इसकी समीक्षा कुछ समय बाद हो सकेगी ।
चौथी पार्टी कांग्रेस है जिसके लिये इस बार सबसे अच्छा अवसर था क्योकी वो 1989 से ही उत्तर प्रदेश सरकार से बाहर है और प्रियंका के रूप मे ये नया चेहरा उनके पास था पर या तो कांग्रेस का नेतृत्व किसी दबाव मे है या फिर मन से हार चुका है और इतना कुण्ठित हो गया है कि नये विचार और कार्यक्रम सोच ही नही पा रहा है । लोगो को जोडने मे कांग्रेस का विश्वास नही नही है बल्कि स्थापित काग्रेसी इस चक्कर मे रह्ते है की जो है उनको भी कैसे निकाला जाये की उनका एकछत्र राज रहे चाहे बंजर जमीन पर ही सही ।खुद राहुल गांधी पूरे परिवार की पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपनी पारम्परिक सीट अमेठी हार चुके है और जब सोनिया जी या राहुल जीतते भी है तो अपने जिले की विधान सभा नही जीता पाते पर अभी ये परिवार स्वीकार नही कर पा रहा है की राजनीति कहा जा चुकी और आप करिश्मा करने वाले नही रहे । वैसे भी इधर कांग्रेस सिर्फ उन प्रदेशो मे चुनाव जीती जहा किसी दल से सीधी टक्कर हो और उस प्रदेश मे कांग्रेस का मजबूत नेता हो जिसने अपने प्रदेश मे अपनी साख कायम रखी हो । बंगाल मे शून्य पर आकर और तमिलनाडु केरल तथा असम मे पूरी ताकत और समय लगाकर भी दोनो कूछ हासिल नही कर सके पर अभी भी अपनी कमजोरियो दूर करने और जमीन की हकीकत समझने का कोई इरादा नही दिखता है ।शायद भाजपा और आरएसएस पर ही निगाह रखते तो कुछ तो कमजोरिया दूर कर सकते थे ।इसका क्या जवाब है कि अच्छे खासे पंजाब के नेतृत्व को कमजोर करने की क्या जरूरत थी । सिंधिया छोड सकते है महीनो से पता था पर क्यो नही रोक पाये ,सचिन पाइलट ने 5 साल मेहनत की पर उनकी उपेक्षा क्यो और क्यो कुछ फैसला नही ।मध्य प्रदेश में 28 सीटो का चुनाव था और सत्ता का फैसला होना था पर भाई बहन सहित पूरी पार्टी ने कमल नाथ को अकेला छोड दिया ।इतिहास ही याद कर लेते की 1978 मे सिर्फ एक सीट पर इन्दिरा जी ने कैसे गाव गाव पैदल नापा था और जिस गाव मे जहा जगह मिली रुक गई । सांकेतिक राजनीति का तजुर्बा तो हो चुका भट्टा और परसौल मे । जरा पन्ना पलट कर देख लेना चाहिए कि वो सब कर के कितना वोट मिला दोनो जगह । उत्तर प्रदेश में मे भी कही कांग्रेस इसी तरह चलती रही तो कही बंगाल ही न दोहरा दे और अब भी अपने रंगीन चश्मे उतार दे और राजनीतिक पर्यटन को छोडकर कर डट जाते पूर्णकालिक तौर पर और व्यवहारिक राजनीति कर ले तो शायद कुछ साख बच जाये ।वो सत्ता की तरफ जाने वाला रास्ता और समय तो पीछे छूट गया पर सम्मान बचा सकती है और 2024 के लिये बुनियाद रख सकती है ।
कुल मिलाकर पूरा माहौल भाजपा और योगी विरोधी होने के बावजूद आज की तारीख तक विरोध की अकर्मण्यता,सिद्धांतो से विचलन और धारदार राजनीति का अभाव तथा सुविचारित रणनीति का अभाव भाजपा को फिर मुकुट पहना सकता है ।ऊपर लोगो की जिन आशंकाओ का जिक्र किया गया है उनका जवाब देने और फैसलाकुन युद्द छेड़ने की जिम्मेदारी तो विपक्ष के नेताओ की है ।देखते है की 1989 का सिलसिला जारी रहता है और सत्ता बदलती है या 80 के दशक का कांग्रेस का इतिहास भाजपा दोहरा देती है । यदि विपक्ष रणनीतिक साझेदारी के साथ आरएसएस और भाजपा के धार्मिक और जातीय ट्रैप से बच कर फैसलाकुन लडाई लडने उतर सका तो भाजपा को 100 सीट भी नही मिलेगी और सत्ता परिवर्तन होगा और यदि यही ढर्रा रहा तो भाजपा 160 से 210 तक सीट जीतने मे कामयाब हो जाएगी सारी विपरीत स्थितियो के बावजूद भी । सवालो के जवाबो की प्रतीक्षा जनता को भी है और भविष्य के इतिहास को भी ।
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक 
और 
वरिष्ठ पत्रकार 


शुक्रवार, 13 अगस्त 2021

उत्तर प्रदेश की राजनीति

आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा --

उत्तर प्रदेश का आने वाला चुनाव मील का पत्थर साबित होने वाला है ।बंगाल ने लम्बे समय बाद एक चुनौती को स्वीकार भी किया और चुनौती दिया भी और इबारत लिख दिया राजनीति के पन्ने पर की इरादा हो, संकल्प हो और आत्मबल हो तो कितनी भी बड़ी ताकते सामने हो उन्हे परास्त किया जा सकता है ।
अब बारी उत्तर प्रदेश की है तय करने की कि देश की राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी । जो विभिन्न कोनो से आवाज उठती है कि लोकतंत्र खत्म हो जायेगा और संविधान संघविधान मे बदल जायेगा तथा एक संगठन को छोड बाकी सब कैद मे जीवन काटेंगे ,क्या सचमुच वैसा कुछ होगा या ये सब एक भ्रम मात्र है ।तय तो ये भी होना है की जो चल रहा है वही चलेगा या बदलाव आयेगा और खुली बयार फिर से बहेगी ।तय होना है की उत्तर प्रदेश सिर्फ ठोको , मुकदमे लगाओ और जेले भरो पर ही चलेगा या रोटी रोजगार और सचमुच के विकास जिसका लोग सपना देखते है उसपर चलेगा ।
तय ये भी होना है कि 1989 से हर चुनाव मे सत्ता परिवर्तन की बयार इस बार भी बहेगी या कांग्रेस युग की वापसी होगी और सत्ता फिर वापस आयेगी ।
इस युद्द के मुख्य रूप से चार योद्धा है जिसमे भाजपा तथा आरएसएस और समाजवादी पार्टी फिलहाल आमने सामने दिखलाई पड़ रहे है । भाजपा के ऊपर जहा सरकार असफलताओ का बोझ है वही अपने ही विधायको नेताओ और कार्यकर्ताओ की नाराजगी का जोखिम भी ,जहा सभी चीजो की महंगाई का विराट प्रश्न सामने मुह बाये खड़ा है तो किसान आन्दोलन की आंच भी जलाने को तत्पर है ,बेरोजगार नौजवान हुंकार भर रहा है तो कुछ को छोडकर कर पूर प्रशासन तंत्र मे एक कसमसाहट है , या यूँ कहे की चुनावी जमीन भाजपा को निगलने को आतुर दिख रही है ।नागपुर से लेकर दिल्ली और लखनऊ तक भगवा खेमे जबर्दस्त बेचैनी दिखलाई पड़ रही है और साम दाम दंड भेद सब कुछ इस्तेमाल कर किला बचाने की जद्दो-जहद भी साफ नज़र आ रही है । हिन्दू मुसलमान मुद्दा बना देने को कमर कसते नज़र आ रहे है भगवा खेमे के योद्धा चाहे उसकी आंच मे प्रदेश बर्बाद क्यो न हो जाये पर चुनाव बड़ी चीज है ।
दूसरी तरफ समाजवादी खेमा लम्बी नीद से उठ कर अपनी अंगडाई लेता हुआ दिख रहा है पर अभी भी जमीनी हकीकत और अपनी कमजोरियो से आंखे मूदे हुये लगता है ।जहा भाजपा सैकड़ो चेहरे और संगठनो के साथ उछल कूद कर रही है वही समाजवादी पार्टी वन मैंन शो के साथ वन मैन आर्मी ही नजर आ रही है । अखिलेश यादव द्वारा मुलायम सिंह यादव को बेइज्जत कर अध्यक्ष पद से हटाने के बाद पार्टी सभी चुनावो मे खेत रही है ।पार्टी का दो मुख्य मजबूत वोट था जिसमे से पिछले विधान सभा चुनाव और लोक सभा चुनाव मे इसमे से यादव लोगो का भाजपा खेमे को काफी समर्थन मिला हिन्दू और मंदिर के नाम पर और अभी भी ये दावा नही किया जा सकता कि 100% यादव वोट पुरानी वाली ताकत तथा जज्बे से सपा के लिये लडेगा और वोट देगा ।दूसरा अडिग वोट मुसलमान का रहा जो 1989 और फिर 1993 से पूरी ताकत के साथ सपा के साथ खड़ा रहा पर इस बार वो विचलित दिखलाई पड़ रहा है और आज़म खान के मामले मे अखिलेश यादव की तब तक की गई बेरुखी जब तक वोवैसी से आज़म से मिलने की इच्छा व्यक्त नही किया और कांग्रेस की तरफ से भी उनके प्रति सहानुभूती नही दर्शाई गई ने भी पूरे मुस्लिम समाज को विचलित कर दिया है साथ मे कभी विष्णू के मंदिर तथा कभी परशुराम के मंदिर की बात कर अखिलेश यादव ने पाया कुछ नही बल्कि भाजपा की नीतियो का पिछलग्गू बनने का काम किया है ।ऐसे मे यदि मुस्लमान को कोई और विकल्प नही मिला तो उसका वोट तो मिल सकता है पर 1991की तरह ही जोश रहित और कम संख्या मे होगा ।पता नही क्यो अखिलेश यादव पर अति जातिवादी होने का ठप्पा भी लग गया है और बडी जातियो के प्रति बेरुखी वाला भाव भी ।ये गलती तो सपा ने प्रारंभ से ही किया कि वो अन्य पिछडी जातियो और अति पिछडी जातियो को ये एहसास नही करा पायी की पार्टी तथा सत्ता उनकी भी है ।मुलायम सिंह के उलट अखिलेश का सुलभ न होना तथा पुराने लोगो के प्रति उपेक्षा भाव और अनुभवी वरिष्ठ लोगो से दूरी भी उनको भारी पड़ती दिख रही है और वो अपना ही राजनीतिक कुनबा ही पूरी तरह समेट नही पा रहे है ।जहा सिर्फ 30या 35 सीट की लडाई मे अपने चाचा शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव को बाहर का रस्ता दिखा दिया वही कांग्रेस को 125 सीट दे दिया । यद्द्पि भाजपा के सामने आज तक सपा ही है पर अभी तक सपा और उनके सहयोगी 125/130 सीट से ज्यादा पर बढते हुये नज़र नही आ रहे है पर थोडा व्यव्हार और रणनीति बदल कर उछाल लेने से भी इंकार नही किया जा सकता है । कितना ये उनके व्यहार और रणनीति परिवर्तन पर निर्भर है 
तीसरी  पार्टी बसपा है जिसकी नेता मायावती यदि पैसे की भूखी नही होती और धन वैभव तथा अहंकार से दूर रही होती और अपने मिशन के साथियो को दूर नही किया होता तथा काशीराम के रास्ते पर चलती रही होती तो आज देश की सबसे बडी ताकतवर नेता होती या सबसे बड़े 3/4 मे होती ।पर उनकी कमजोरियों और कर्मो ने उनकी लम्बे अर्से से भाजपा की सत्ता के सामने शरणागत कर दिया और लम्बे समय से दिल्ली मे बैठी वो केवल राजनीति की औपचारिकता निभाती हुयी दिख रही है । उनके कर्मो से उनका वोट ठगा हुआ मह्सूस कर रहा है ,फिर भी उनका वोट है ।इस चुनाव मे भी वो पुराने हथकंडो के साथ मिश्रा जी के कन्धे पर चढ़ कर चुनाव को बस जीवित रहने लायक लड़ना चाह्ती है या भाजपा की बैसाखी बन अपनी सुरक्षा और अपने भतीजे की राजनीति मे स्थापना तक के ही इरादे से उतरना चाह्ती है ये वक्त बतायेगा ।  फिर भी मायावती यदि इस चुनाव मे पैसे का लालच छोड कर और क्षेत्रो के सम्मानित लोगो को ढूढ कर टिकेट देती है और अपने खजाने का कुछ अंश लोगो के चुनाव लड़ने पर खर्च करती है तो वो 40 से ज्यादा सीट जीत सकती है और यदि ढर्रा पुराना ही रहता है तो 19 से भी नीचे ही जायेंगी और कितना नीचे इसकी समीक्षा कुछ समय बाद हो सकेगी ।
चौथी पार्टी कांग्रेस है जिसके लिये इस बार सबसे अच्छा अवसर था क्योकी वो 1989 से ही उत्तर प्रदेश सरकार से बाहर है और प्रियंका के रूप मे ये नया चेहरा उनके पास था पर या तो कांग्रेस का नेतृत्व किसी दबाव मे है या फिर मन से हार चुका है और इतना कुण्ठित हो गया है कि नये विचार और कार्यक्रम सोच ही नही पा रहा है । लोगो को जोडने मे कांग्रेस का विश्वास नही नही है बल्कि स्थापित काग्रेसी इस चक्कर मे रह्ते है की जो है उनको भी कैसे निकाला जाये की उनका एकछत्र राज रहे चाहे बंजर जमीन पर ही सही ।खुद राहुल गांधी पूरे परिवार की पूरी ताकत लगाने के बावजूद अपनी पारम्परिक सीट अमेठी हार चुके है और जब सोनिया जी या राहुल जीतते भी है तो अपने जिले की विधान सभा नही जीता पाते पर अभी ये परिवार स्वीकार नही कर पा रहा है की राजनीति कहा जा चुकी और आप करिश्मा करने वाले नही रहे । वैसे भी इधर कांग्रेस सिर्फ उन प्रदेशो मे चुनाव जीती जहा किसी दल से सीधी टक्कर हो और उस प्रदेश मे कांग्रेस का मजबूत नेता हो जिसने अपने प्रदेश मे अपनी साख कायम रखी हो । बंगाल मे शून्य पर आकर और तमिलनाडु केरल तथा असम मे पूरी ताकत और समय लगाकर भी दोनो कूछ हासिल नही कर सके पर अभी भी अपनी कमजोरियो दूर करने और जमीन की हकीकत समझने का कोई इरादा नही दिखता है ।शायद भाजपा और आरएसएस पर ही निगाह रखते तो कुछ तो कमजोरिया दूर कर सकते थे ।इसका क्या जवाब है कि अच्छे खासे पंजाब के नेतृत्व को कमजोर करने की क्या जरूरत थी । सिंधिया छोड सकते है महीनो से पता था पर क्यो नही रोक पाये ,सचिन पाइलट ने 5 साल मेहनत की पर उनकी उपेक्षा क्यो और क्यो कुछ फैसला नही ।मध्य प्रदेश में 28 सीटो का चुनाव था और सत्ता का फैसला होना था पर भाई बहन सहित पूरी पार्टी ने कमल नाथ को अकेला छोड दिया ।इतिहास ही याद कर लेते की 1978 मे सिर्फ एक सीट पर इन्दिरा जी ने कैसे गाव गाव पैदल नापा था और जिस गाव मे जहा जगह मिली रुक गई । सांकेतिक राजनीति का तजुर्बा तो हो चुका भट्टा और परसौल मे । जरा पन्ना पलट कर देख लेना चाहिए कि वो सब कर के कितना वोट मिला दोनो जगह । उत्तर प्रदेश में मे भी कही कांग्रेस इसी तरह चलती रही तो कही बंगाल ही न दोहरा दे और अब भी अपने रंगीन चश्मे उतार दे और राजनीतिक पर्यटन को छोडकर कर डट जाते पूर्णकालिक तौर पर और व्यवहारिक राजनीति कर ले तो शायद कुछ साख बच जाये ।वो सत्ता की तरफ जाने वाला रास्ता और समय तो पीछे छूट गया पर सम्मान बचा सकती है और 2024 के लिये बुनियाद रख सकती है ।
कुल मिलाकर पूरा माहौल भाजपा और योगी विरोधी होने के बावजूद आज की तारीख तक विरोध की अकर्मण्यता,सिद्धांतो से विचलन और धारदार राजनीति का अभाव तथा सुविचारित रणनीति का अभाव भाजपा को फिर मुकुट पहना सकता है ।ऊपर लोगो की जिन आशंकाओ का जिक्र किया गया है उनका जवाब देने और फैसलाकुन युद्द छेड़ने की जिम्मेदारी तो विपक्ष के नेताओ की है ।देखते है की 1989 का सिलसिला जारी रहता है और सत्ता बदलती है या 80 के दशक का कांग्रेस का इतिहास भाजपा दोहरा देती है । यदि विपक्ष रणनीतिक साझेदारी के साथ आरएसएस और भाजपा के धार्मिक और जातीय ट्रैप से बच कर फैसलाकुन लडाई लडने उतर सका तो भाजपा को 100 सीट भी नही मिलेगी और सत्ता परिवर्तन होगा और यदि यही ढर्रा रहा तो भाजपा 160 से 210 तक सीट जीतने मे कामयाब हो जाएगी सारी विपरीत स्थितियो के बावजूद भी । सवालो के जवाबो की प्रतीक्षा जनता को भी है और भविष्य के इतिहास को भी ।
डा सी पी राय 
स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक 
और 
वरिष्ठ पत्रकार 


शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

प्रोफेसर साहब

प्रोफेसर साहब --


प्रोफेसर साहब मेडिकल कालेज के नामी गिरामी प्रोफेसर थे । नाम बडा था ज्ञान भी था ही पर ? जाने देते है ।
जब मेनचेस्टर कहे जाने जिले के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर थे तो उनका  लडका भी वही छात्र हो गया था पता नही अपनी मेहनत से या पिता की जुगाड से । बेटे के साथ एक बहुत कुशाग्र छात्र भी पढता था जो तीन साल तक लगातर प्रथम आता रहा । चौथे साल मे प्रोफेसर साहब का माथा ठनका की उनके रहते हुये कोई और छात्र कैसे टॉपर हो सकता है, बस लग गये और चौथे तथा अंतिम साल मे बेटे को टाप करवा ही दिया ।
समय ने करवट लिया और प्रेम के स्मारक वाले शहर के मेडिकल कालेज मे प्रोफेसर साहब हेड बन कर आ गये और जिस अपने छात्र को उन्होने टॉप नही करने दिया था वो भी अध्यापक बन कर उसी कालेज मे आ गया ।थोडे दिन मे प्रोफेसर साहब का दूसरा बेटा इसी कालेज मे दाखिल हो गया । उसकी परीक्षा का अवसर आया तो जिसका नंबर घटा कर पीछे किया था उनसे ही सिफारिश किया अपने दूसरे बेटे को प्रथम स्थान पर पहुचाने की ।
प्रोफेसर साहब ने अपने दोनो बेटो को अमेरिका भेज दिया और खुद लग गये पैसा बटोरने मे । पैसा दांत से पकडते थे प्रोफेसर साहब और शहर मे सबसे ज्यादा फीस वसूलते थे ,कोई रहम नही । कोई बहुत गरीब और जरूरतमंद हो तो गिड़गिड़ा कर मर जाये पर मजाल क्या कि प्रोफेसर साहब का दिल पिघल जाये ।
प्रोफेसर साहब अब बूढे हो चले थे तो सोचा चले कुछ दिन दोनो बेटो के घर अमरीका मे बिताये और मन लग गया तो भारत का घर इत्यादि बेच कर पति पत्नी वही बच्चो के पास रह जायेंगे । बड़े अरमानो और जोश से टिकेट करवा कर अमरीका बड़े बेटे के घर पहुचे । कुछ दिन तो सब ठीक चला पर फिर बेटे से खटपट होने लगी छोटी बड़ी बात पर और बात यहा तक पहुची की बेटा उनके मुह पर ही बोल देता कि क्यो बिला वजह जिन्दा हो ? क्या बक बक करते हो ?  शाम तक मर क्यो नही जाते ।
और एक दिन बेटे ने घर से जाने का फरमान सुना दिया तब छोटे बेटे को फ़ोन किया पर वो लेने ही नही आया और बेरुखी से बात कर फोन काट दिया । छोटे बेटे से बोले कि टिकेट होने तक अपने घर ले चलो और फिर बस हवाई अड्डे तक छोड देना, पर वो नही आया ।निराश ,उदास,अपमानित  प्रोफेसर साहब भारत अपने घर लौट आये ।

पत्नी गम्भीर बीमार हो गई तो वही काम आया जिसके नंबर कम कर अपने बेटे को टॉप करवाया था । उन्होने पत्नी का ऑप्रेशन किया । कुछ ही दिन मे प्रोफेसर साहब गम्भीर रूप से बीमार हो गये तो उसी डाकटर साहब ने उन्हे अस्पताल मे भर्ती किया और लगातार उनकी देखभाल किया । पर लगता है कि बीमारी से ज्यादा मन की टूटन ने प्रोफेसर साहब को जख्मी कर दिया था अंदर तक और वो एक दिन उदासी चेहरे पर ओढ़े हुये चल बसे ।
सवाल आया कि दो बेटे है उन्हे खबर कर दिया जाये और उनके इन्तजार मे शरीर को संरक्षित कर रख दिया जाये । बेटो को खबर की गई पर दोनो ने ही आने से इंकार कर दिया कि एक मर गये आदमी को बस आग लगाने को वो अमरीका से नही आ सकते । अन्ततः प्रोफेसर साहब के नौकर ने उनका अंतिम संस्कार किया और उस वक्त मुट्ठी भर केवल वो लोग वहाँ मौजूद थे जो उनके कुछ नही लगते थे पर जिनको पढाया था या जो साथ मे शिक्षक थे और जिन्हे ये एहसास था कि नही गये तो लोग क्या कहेंगे ।
प्रोफेसर साहब का दांत से पकडा पैसा अपने भविष्य की बाट जोह रहा है और वो बड़ी सी कोठी प्रोफेसर साहब की पत्नी के अंतिम दिनो का सहयोगी बन वीरानी मे टुकुर टुकुर देखती रहती है और अपने नये मालिक के साथ फिर से गुलजार होने का इन्तजार कर रही है । नौकर ने बेटे का कर्तव्य निभा दिया और संस्कार कर दिया पर वो बेटा तो नही हो पायेगा अधिकार मे और इसिलिए उसने अपनी रोजी रोटी के लिये दूसरा ठिकाना ढूढना शुरू कर दिया है ।
कुछ दिन मे लोग भूल जाना चाहेंगे प्रोफेसर साहब को पर उनके किस्से सबक बन कर काफी दिनो तक फिजा मे तैरते रहेँगे ।
(अभी अभी लिखी एक कहानी । हम सब के आसपास ना जाने कितने प्रोफेसर साहब है और उनके बेटे भी )


बुधवार, 23 जून 2021

#जिंदगी_के_झरोखे_से मेनका गांधी की गालियां और राज नारायण जी

#जिंदगी_के_झरोखे_से--

मेनका गांधी की गालिया और नेता जी राज नारायणजी की शिक्षा --

 मेनका गांधी के बारे मे पढा की उन्होने किसी वेटनरी डाक्टर को भद्दी भद्दी गलियाँ दिया ।इस पर मुझे ये संभवतः 1981/82 का किस्सा याद आ गया ।
राज नारायणजी 6 तीन मूर्ती लेन मे रहते थे और सभी समाजवादीयो का दिल्ली जाने पर रहने सोने ही के साथ नहाने और हर वक्त खाने का ठिकाना यही घर होता था । राज नारायणजी के घर डबल बेड और सोफ़ा नही था । वो खुद नीचे जमीन पर ही बैठते थे और सोते थे । उनके कमरे के बाहर के कमरे मे पूरा इस दीवार से उस दीवार तक बिस्तर और चादर बिछा था । यही पर बीच मे बड़ी से प्लास्टिक बिछ जाती थी और वो दस्तरखान बन जाता था जिपर बैठ कर घर मे उस वक्त मौजूद सभी एक साथ खाना खाते थे और रात को सोने का बिस्तर । चूंकि ये घर संसद सदस्य मनीराम बागड़ी के नाम से था जो ज्यादातर हरियाणा मे या कही अपने घर पर रहते थे पर एक कमरा उनका बंद रहता था बेड वाला और सांसद को मिलने वाला फर्नीचर उस हिस्से मे रखा था ।बाहर के बड़े कमरे मे कुछ सोफे भी थी । राज नारायणजी के पास बाहर का छोटा ऑफिस वाला कमरा था , अन्दर का ये मल्टी पर्पस कमरा था ,जिसमे राज नारायणजी रहते थे दर असल वो साइड का बरामदा घेर कर बना हुआ कमरा था और बगल वाले कमरे का बाथरूम इससे जोड़ दिया गया था । बड़े कमरे के पीछे का एक कमरा था जो कर्मचारियो और जिनको बाहर जगह नही मिलती उनके सोने के काम आता ।पीछे एक बडा स्टोर था जिसमे आटा दाल सब्जिया इत्यादि भरी रहती थी कही कही से प्राप्त हुयी और उसके बगल मे रसोई तथा पीछे छोटा सा आंगन कपडे सूखने को ।
अक्सर हाल ये होता था की बाहर बागड़ी जी वाला ड्राइंग रूम भी पूरा भर जाता था ।
कितने भी लोग हो नेता जी की रसोई सबको खिला देती थी ।
बाहर गेट के ठीक सामने का गेराज क्रन्तिकारी और विद्वान युवा लोगो के कमरे मे तब्दील कर दिया गया था और बाहर तो बहुत बाल लांन था जो अच्छे खासे सम्मेलनो और प्रदर्शन की तैयारियो का गवाह बना ।
पर यहा बात मेनका गांधी के किस्से की ।
मैं जब भी राज नारायणजी के घर रहता वो कही मिलने जाते तो अक्सर मुझे भी ले जाते थे चाहे मोहन मिकिन्स के मालिक ब्रिगेडियर कपिल मोहन का घर हो या किसी भी और बड़े नेता का ।
उस दिन मेनका गांधी ने राज नारायणजी को सुबह नाश्ते के लिये बुलाया था । ये वो समय था जब मेनका गांधी इन्दिरा गाँधी जी के घर से बाहर निकल आई थी और राजनीति मे पैर रख चुकी थी जिसको राज नारायणजी जी का हर तरह सहारा प्राप्त था ।मेनका गांधी महारानी बाग मे अपनी मा के घर रह रही थी ।
नेता जी ने रात को ही बता दिया था कि सुबह कही चलना है तैयार हो जाइयेगा ।
सुबह हम दोनो उनकी कार मे रवाना हो गये ।महारानी बाग की एक अच्छी कोठी मे कार रुकी तो तुरंत मेनका गांधी राज नारायणजी की अगवानी करने बाहर आयी ।
हम लोग अंदर गये और एक भव्य ड्राइंग रूम जो अच्छी तरह सज़ा था मे बैठ गये जहा पानी आया । नेता जी ने मेनका गांधी से मेरा परिचय करवाया नाम बता कर बोले की ये हमारे परिवार के है और बहुत क्रांतिकारी युवा नेता है ,आने वाले समय मे मेरा नाम रोशन करेंगे (जो मैं नही कर सका क्योकी उतनी हिम्मत नही जुटा पाया और उतना त्यागी नही हो पाया ) । फिर टेबल पर आने का आग्रह हुआ । ड़ाइनिँग टेबल पर कटे हुये फल , अंकुरित चना इत्यादि , पाराठे दही , लस्सी , कुछ मिठाईयाँ , जलेबी ,ब्रेड जैम इत्यादि बहुत कुछ लगा था और आया जा रहा था । राज नारायणजी पूरे मन से नाश्ता करने लगे ।मैने भी नाश्ते मे इतनी चीजे पहली बार देखा था पर संकोच मे थोडा थोडा सब लिया और खाने लग गया  ।
तभी मेनका गांधी राजनीतिक बाते और कार्य योजना पर बाते करने लगी । वहा तक तो ठीक था पर अचानक एं टी रामाराव और बहुगुणा जी के बारे मे भद्दी कुछ बाते कह कर भद्दी गलिया देने लगी और फिर उनकी भाषा सतही स्तर पर उतर गयी
और वो भी क्रांतिकारी नेता राज नारायणजी के सामने जो मेरे लिये बर्दाश्त करना मुश्किल था क्योकी राज नारायणजी मेरे आदर्श भी थे और पारिवारिक बुजुर्ग भी ।
मेरा गुस्सा बढ रहा था पर नेता जी  ने भांप कर मुझे चुपचाप नाश्ता करने का इशारा किया । मेनका गांधी के घर से वापसी के लिये हम लोग गाडी मे बैठ गये जहा मेनका गांधी और उनकी मा ने विदा किया ।
गाडी मे बैठते ही मैने कहा की आप ने मेनका को डाँटा क्यो नही वो इतनी छोटी और आप के सामने बेलिहाज ऐसी गालिया दे रही थी इतने बड़े लोगो को ।
राज नारायणजी बोले की मेरा ध्यान नाश्ते मे था जिसके लिये उन्होने मुझे बुलाया था और आप का ध्यान उनकी बातो मे ।
जिस काम के लिये कही गये वही करना चाहिए ।
नाश्ता तो बहुत अच्छा था ।
मैने तो कोई गाली नही सुना ।
वाह लोकबंधु राज नारायणजी ( सुभाषचंद्र बोस के बाद और अजादी के बाद आचार्य नरेंद्र द्वारा दिये नाम के अनुसार असली "नेताजी "।
ये मेरे लिये एक शिक्षा थी ।