आगरा बोलता है
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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सोमवार, 13 जनवरी 2025
अयोध्या_आंदोलन
सोमवार, 4 नवंबर 2024
दिनकर जी से मुलाकात
गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024
लाटरी बंद करवाया
शुक्रवार, 6 सितंबर 2024
जिंदगी के झरोखे से
#जिन्दगी_के_झरोखे_से
मुलायम सिंह यादव जी से वो आखिरी बातचीत जिसका मुझे आज भी अफसोस है :;
2017 में सत्ता रहते हुए गैरकानूनी( क्योंकि पार्टी अध्यक्ष की अनुमति के बिना सम्मेलन नही बुलाया जा सकता था और अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जी थे ) तरीके से पार्टी का एक सम्मेलन बुलाया गया और उसमे मुलायम सिंह यादव जी को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था तथा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अध्यक्ष बना दिया गया था । मुझे मुलायम सिंह यादव का ये अपमान तथा पार्टी विरोधी कार्य मंजूर नहीं था । भगवती सिंह जी ,अंबिका चौधरी , ओम प्रकाश सिंह , शादाब फातिमा , नारद राय के अलावा पूरी पार्टी और मुलायम सिंह यादव का शिवपाल सिंह यादव को छोड़कर पूरा खानदान सत्ता के साथ यानी अखिलेश यादव के साथ चला गया था । आजम खान साहब जरूर उस सम्मेलन में नही गए थे और लगातार मुलायम सिंह यादव तथा अखिलेश यादव के बीच में पुल बनने की असफल कोशिश किया था ।
उस सम्मेलन में अखिलेश यादव ने बोला था की आने वाले चुनाव में वो सरकार बना लेंगे तथा सरकार और पार्टी दोनो नेता जी को सौप देंगे पर क्या हुआ वो दुनिया ने देखा और सबको याद है । इसके बाद के चुनाव में भाजपा ने इस घटना का अपने लिए इस्तेमाल कर लिया तथा इतिहास के एक व्यक्ति से अखिलेश यादव को जोड़ते हुए नारा दे दिया की " जो न हुआ अपने बाप का वो क्या होगा आप का " और भाजपा ने माहौल अपने पक्ष में कर लिया तथा चुनाव जीत लिया । यद्यपि मैने तो मुलायम सिंह यादव जी के निष्कासन के दिन ही मुलायम सिंह यादव जी के निर्देश पर उनके दरवाजे पर खड़े देश भर की मीडिया से बात करते हुए कह दिया था कि अखिलेश जी अभी भी भूल सुधार लीजिए वरना इस चुनाव में 50 सीट भी नही मिलेगी तथा आप के माथे पर जो कलंक लगेगा वो लंबे समय तथा पीछा नहीं छोड़ेगा और उस वक्त पार्टी की टूट पर बोलते हुए मैं रो पड़ा था । बाद में काफी लोगो ने बताया कि उस वक्त के मेरे बयान को सुन कर काफी लोग रो पड़े थे ।
पूरे देश का केवल इस घटना पर केंद्रित था और लखनऊ का माहौल बहुत ही गर्म था और यहां तक तनाव बढ़ गया था की अखिलेश समर्थक नौजवानो ने मुलायम सिंह यादव की तस्वीर को पैरो से रौंदा था ।बाकी सब इतिहास में दर्ज है और ये भी दर्ज है की अखिलेश यादव के एक समर्थक ने एक चिट्ठी जारी किया जिसमें मुलायम सिंह यादव जी की पत्नी को कैकेई शब्द से विभूषित किया था।
बाकी सब इतिहास में दर्ज है । इस सारे घटना क्रम के लिए मुलायम सिंह यादव जी ने राम गोपाल यादव जी को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था की अखिलेश राम गोपाल के बहकावे में आ गया ,रामगोपाल इसे कही का नही छोड़ेगा ।
जैसा मैने प्रारंभ में लिखा की मुझे ये अनैतिक काम मंजूर नहीं था इसलिए मैं पूरी ताकत से मुलायम सिंह यादव जी के साथ खड़ा हो गया था और मुलायम सिंह यादव जी का प्रवक्ता बन वो जो कहते रहे वो मैं बोलता रहा । पार्टी के महामंत्री पद और मंत्री दर्जा से मैने स्टीफा दे दिया था । इसके बाद के बाकी घटना क्रम पर अलग एपिसोड लिखूंगा ।
अभी उस दिन तक सीमित करता हूं ।
मुलायम सिंह यादव जी अकेले पड़ गए थे और उनके यहां पार्टी का क्या परिवार का भी कोई नही आता था । बस उनके कुछ गिने चुने पुराने साथी कभी कभी लखनऊ आने पर मिल लिया करते थे । मैने एक नियम बना लिया की लगातार उनसे मिलने जाना है और कुछ समय उनके साथ बिताना है ताकि उन्हें ये नही लगे की कोई उनके साथ नही है ।
मुलायम सिंह यादव जी के निधन के कुछ समय पहले मैं इसी तरह उनसे मिलने गया । जैसा कि हमेशा होता था वो घर के अंदर बुला लेते थे । उस दिन भी उन्होंने अंदर बुला लिया तथा वही पर उनकी पत्नी साधना यादव जी भी बैठी थी । हाल चाल और इधर उधर की कुछ बाते हुई की अचानक उन्होंने मुझसे पूछा की ये रामगोपाल आप के इतने खिलाफ क्यों है ? उसकी खिलाफत के कारण आप का बहुत नुकसान हुआ और साथ ही एस पी सिंह बघेल तथा राम शकल गुजर भी आप के खिलाफ बहुत शिकायते करते और आरोप लगाते जो जो जांच कराने पर सब गलत निकला । मैं आप को राज्य सभा मे रखना चाहता था पर रामगोपाल विरोध कर देता था ।
इसपर मैने पूछा कौन रामगोपाल तो बोले पार्टी का महासचिव है आप नही जानते है । मैने कहा कि पार्टी के महासचिव तो रामजी लाल सुमन भी है जो मेरे पड़ोसी है,और भी कई है क्या उनकी भी आप ऐसे ही सुनते है । पार्टी के उपाध्यक्ष और बहुत बड़े नेता थे जनेश्वर मिश्र क्या उनकी आप ने कभी सुना इन मामलों में ? जहां तक राम गोपाल जी का सवाल है न मैने उनकी भैंस खोला और उनका खेत काट लिया तथा कभी उनके मेरे बीच कोई कहा सुनीं भी नहीं हुई । हा वैचारिक और पसंद न पसंद का अंतर उनके मेरे बीच रहा है ।वो आप के परिवार से जुड़े नही होते तो सिर्फ मास्टर होते । उनकी योग्यता इतनी है की तीस साल से संसद में होने के बावजूद कोई उनका महत्वपूर्ण भाषण किसी को याद नही है , कोई प्राइवेट मेंबर बिल याद नही है और पिछड़ों या अल्पसंख्यको के सवाल पर या देश के सवाल पर कभी उन्होंने ऐसा कुछ नही किया की कुछ देर तक सदन डिस्टर्ब हो गया हो । आप को ऐसे ही सब पसंद आए राज्य सभा में भेजने को जो गए और कमा धमा कर वापस आ गए कोई नाम भी नही जान पाया पर मेरा देश में नाम होता और संसद में मेरी भूमिका होती जो आप को शायद इसलिए पसंद नहीं है की सत्ता नाराज न हो जाए । जाने दीजिए भाईसाहब अब आप का समय अपनी गलतियों पर अफसोस प्रकट करने का तथा किसी के साथ बुरा किया हो तो उसपर खेद व्यक्त करने का है ऐसी बाते करने का नही और वो भी मुझसे जो जब आप के साथ कोई नही तब भी लगातार आप के साथ बैठा है । जाने दीजिए ।
1989 में मैने आगरा के खेरागढ़ से टिकट मांगा था और मेरा संसदीय बोर्ड में बहुमत था तथा चौ देवीलाल और जॉर्ज फर्नांडीज सहित कई लोग मेरे पक्ष में थे । वो विश्वनाथ प्रताप सिंह की लहर का चुनाव था इसलिए खेरागढ़ में मैं क्या कोई भी चुनाव लड़ता तो जीत जाता वहा के जातिगत समीकरण के कारण पर आप एक अपराधी प्रवृति के व्यक्ति को टिकट देना चाहते थे इसलिए तब आप ने बोर्ड में ये कह दिया था की आप तो देश मे प्रचार के लिए निकलेंगे तो आप का चुनाव मैं देखूंगा और आप के मुख्यमंत्री हो जाने पर एम एल ए क्या होता है सी पी राय उससे ज्यादा बन जाएंगे । सबसे पहले जॉर्ज साहब बाहर आए थे और उन्होंने मुझसे कहा था कि होने वाला सी एम आपको अपना चुनाव इंचार्ज बनाना चाहता है और बोल रहा है की सी एम बनने के बाद सी पी राय एम एल ए से ज्यादा होंगे तो आप उसकी बात मानो। क्या पता वो आप को राज्य सभा में भेज दे या एम एल सी बना कर मंत्री बना दे । फिर भी काफी कोशिश किया था मैंने की आप मान जाए और चुनाव जीत कर मेरा सदन का कैरियर शुरू हो जाए पर आप नही माने थे और सत्ता आने के बाद आप मुझे मिले ही नही । तब मिले जब सरकार जा रही थी । भाई साहब आप मेरे साल लगातार यही तो करते रहे है तो बोले दर्जा तो दिया । मैने कहा की वो तो मैं कभी नही चाहता था आपने दबाव देकर दो बार ज्वाइन करवाया ये कह कर की अभी ये होने दो चुनाव आते ही राज्य सभा में भेज देंगे । यहां तक कि एक बार तो आप ने अपने घर जहा आप का मेरा परिवार साथ लंच कर रहा था सबके सामने कहा था की इस बार फला फला कारण से आप को अनिल अंबानी तथा जया बच्चन को टिकट देना पड रहा है पर अभी मुझे कोपरेटिव फेडरेशन का अध्यक्ष बनायेंगे तथा अगली बार चाहे एक टिकट हो मुझे ही देंगे ।
ऐसी ही कुछ बाते कहते कहते अचानक मुझे पता नही क्या सूझा कि मैंने बोल दिया की भाई साहब आप के और मेरे बीच 35/36 साल से एक लड़ाई चल रही है । वो बोले की मेरे आप के बीच लड़ाई चल रही है । तब बोले मेरे आप के बीच क्या लड़ाई है ? मेरे मुंह से निकल गया कि मेरी सच्चाई,ईमानदारी और बाफादारी तथा आप का झूठ ,धोखा और दगाबाजी के बीच लड़ाई है ।आप लगातार जीत रहे हो और मैं हार रहा हूं।आप कभी रामगोपाल के कंधे पर रख कर बंदूक चला देते हो तो कभी अमर सिंह का इस्तेमाल कर लेते हो । बेनी प्रसाद वर्मा ने संसद में आप को गाली दिया तो उनको राज्य सभा दे दिया ,अमर सिंह ने आप के खिलाफ कोई कसर नहीं छोड़ा तो उसे दे दिया पर मेरा गुण आप की निगाह में अवगुण ही रहे इसलिए मैने ये लड़ाई बोला ।
इस बात पर वो बहुत अपसेट हो गए तथा बोले : क्या मैं दगाबाज हूं ,क्या में दगाबाज हूं और फिर यही वाक्य जल्दी जल्दी बोलने लगे ।तब साधना जी उठी और दौड़ कर एक प्याली में दो रसगुल्ला रख लाई तथा जबरन उनके मुंह में डालने लगी कि जल्दी खा लीजिए वरना बीमार हो जाएंगे और अभी अस्पताल ले जाना पड़ेगा । मैं इस बात से आवाक रह गया तथा अंदर से बहुत दुखी हो गया । मेरा मन मुझे कचोटने लगा की मैने ये क्या कर दिया ।अभी कुछ हो जाएगा तो मैं खुद से निगाह नही मिला पाऊंगा।
वहा सन्नाटा पसर गया । सब चुप । कोई कुछ नही बोला काफी देर तक । फिर करीब 20/25 मिनट बाद साधना जी ने सन्नाटा तोड़ा और बोली की भाईसाहब से क्यों नाराज हो रहे हो । आप ने क्या कर दिया इनके लिए ? इन्होंने क्या क्या किया है वो आप भी बताते रहे और मैं भी जानती हूं । भाभी जी को आप ने बहन माना और राखी बंधवाया पर वो कैंसर से मर गई आप ने क्या किया ? वैसे तो आप लोगो को भी जहाज से भेज कर मेदांता में इलाज करवाते रहे ।
तब मैने कहा भाभी जी जाने दीजिए मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था । मैं अपने शब्दो के लिए माफी चाहता हूं ।इसपर साधना जी फिर नेता जी से बोली की मैने कई बार आपको कहा की राय साहब को सलाहकार बना लो । ये भी कहा था की प्रोफेसर साहब को दिल्ली में अकेले मत रखो राय साहब को भी रखो पर आप ने बात नही माना। बोली की ये जी बुरा वक्त हमे देखने को मिला वो नही होता । मैं ये सब सुनकर हतप्रभ था क्योंकि साधना जी से मेरी कोई बात नही होती थी ।
मुलायम सिंह जी तब बोले सी पी राय अखिलेश को मुख्यमंत्री बना कर गलती हो गई । वो मुख्यमंत्री नही बनता तो लीडर बन जाता । अब कोई लीडर नही बन पाएगा ।मैने कहा ये तो आप मुझसे कई बार कह चुके पर बन गया तो बन गया और आपने ही बनाया । देखो क्या कर बैठा ।अपने मन का हो गया है हमारी बात ही नही मानता । मैने एम एल सी के लिए आप के लिए बोला था की आप लखनऊ में ही रहोगेऔर मंत्री बनवा दूंगा पर हरियाणा का वो क्या नाम है जो यूथ का नेता था , लाठर ,उसक नाम गवर्नर हाउस भेज कर कलकत्ता भाग गया । मैने कहा की अब तो आप साथ है न । तो बोले सी पी राय पेट और मुंह में अंतर होता है । बेटा है तो उसे कैसे छोड़ देता , माफ़ कर दिया और मेरी बनाई पार्टी भी तो खत्म नही होने देना था । मैने कहा की क्या आप को याद है की समाजवादी पार्टी कैसे बनीं।तो बोले अब याद है । आप ने ही पहली बार कहा था और फिर जनेश्वर तथा कालीदेव बाबू को लेकर मिले था और पीछे पड़े रहे तन मैने बनाया । आप ने भी बहुत साथ दिया और बहुत मेहनत किया पार्टी के लिए ।
फिर बोले की आप की अखिलेश से मुलाकात हुई । मैने कहा नही , वो आपके साथ गद्दारी नहीं करने वालो को अपना दुश्मन मानते है तो मुझसे क्यों मिलेंगे । भाई साहब अब जो हो गया वो हो गया पर ये नही पता की किसका जीवन ज्यादा है लेकिन जब तक मेरा जीवन है तब तक आप का साथ नही छोडूंगा । इसपर साधना जी बोली की देख लो एक ये भाईसाहब है जो जिंदगी भर साथ निभाने की बात कर रहे है दूसरी तरफ वो लोग है जो हमारे घर का रास्ता ही भूल गए ।
मुलायम सिंह यादव जी पता नही उम्र के कारण या यू ही भावुक हो गए और तब बोले की इस बार राज्य सभा चुनाव आने दो मैं अखिलेश के पास चल कर बैठ जाऊंगा जब तक आप को टिकट नहीं देता । साधना जी बोली की मैं भी साथ चलूंगी । मैने कहा भाईसाहब जाने दीजिए । अब आप के हाथ में कुछ नही है और मेरे लिए ऐसा करेंगे तो आप को फिर बेइज्जत होना पड़ेगा और वो में नही चाहूंगा । इसपर बोले की मैने आप के साथ बहुत गलत किया अब दुनिया से जाने के पहले भूल सुधारूंगा । मैने जाने दीजिए फिर से एक असत्य मत बोलिए तो बोले की असत्य क्यों आप देख लेना इस बार ।
साधना जी ने नौकर को आवाज दी की फला वाली मिठाई ले आओ और चाय ले आओ , पानी भी लेते आना । मिठाई खाकर जो मुलायम सिंह यादव जी जोर देकर तीन मिठाई खिला दिया और चाय पीकर मैं विदा हो ।
अफसोस कि फिर मुलायम सिंह यादव जी नही बल्कि उनकी अंत्येष्ठि में उनकी मिट्टी से ही मुलाकात हुई ।
उन्होंने क्या किया वो उनके साथ गया पर उस दिन अपने बोले गए शब्दो पर जिससे वो आहत हो गए थे मुझे आज तक अफसोस है ।
मंगलवार, 16 जुलाई 2024
ई टी वी कान्क्लेव जयपुर
शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023
#चौ_चरण_सिंह के साथ पहली यादगार रैली
गुरुवार, 22 जून 2023
मुझे सपने देखने दो ।
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023
आइए रंगो से बात करे रंगो की बात करे
शुक्रवार, 15 जुलाई 2022
विपक्ष फिर चूक गया
रविवार, 19 दिसंबर 2021
#जिंदगी के झरोखे से। समाजवादी पार्टी की स्थापना
#जिंदगी_के_झरोखे_से
#समाजवादी_पार्टी_की_स्थापना -
1992 की बात है मुलायम सिंह यादव जी 1991 की भयानक हार से उबर कर कभी कभी दिल्ली जाने लगे थे । चन्द्रशेखर जी की सरकार के जाते जाते मेरी सलाह पर अयोध्या काण्ड को आधार बना कर खतरे के आधार पर मुलायम सिंह यादव के उस वक्त बहुत करीबी और दिल्ली मे मीडिया सलाहकार डा बागची ने प्रधानमंत्री के नाम एक चिट्ठी टाइप करवाया और चन्द्रशेखर जी ने भी बिना देरी के मुलायम सिंह यादव जी के लिये एन एस जी जो एस पी जी के गठन से पूर्व उस बक्त तक प्रधानमंत्री की सुरक्षा देखती थी के ब्लैक कैट कमांडो की स्वीकृत कर दिया पर उस वक्त तक पूर्व मुख्यमंत्री सुरक्षा के लिये सरकारी वाहन नही मिलता था तो डा बागची ने मुझसे पूछा की सुरक्षा तो हो गयी अब गाडी की व्यवस्था कैसे होगी और मैने जिम्मेदारी ले लिये कि हो जायेगी । उसके बाद मैं अपने एक मित्र जो गृह मंत्रालय मे राजभाषा अधिकारी थे और टेनिस कोर्ट के सामने वाले आर के पुरम के सरकारी क्वार्टर मे रहते थे उनके घर गया क्योकी उनके घर के पास मैने एक टैक्सी स्टैंड देखा था ।हम दोनो वहा गये और स्टैंड के मालिक सरदार जी से तीन गाड़ियो के बारे मे गाड़ियो की क्वालिटी और रेट के बारे मे तय किया इस शर्त के साथ कि जब भी फोन किया जायेगा हमे तीन गाडी अवश्य मिलेगी जिसमे से तय समय पर दो एन एस जी कैम्प जायेगी कमांडो को लेने और एक मुलायम सिंह यादव जी के लिये तय समय पर एयरपोर्ट पर वी आई पी लाउंज पहुचेगी । सब तय हो गया ।
यहा यह बताना जरूरी नही है की सत्ता से सीधे 29 सीट पर आकर मुलायम सिंह जी बहुत निराश थे (यद्द्पि चुनाव के बीच ही जब मैं दिल्ली से सुब्रमण्यम स्वामी जो उस वक्त वाणिज्य और कपडा मंत्री थे के यहा से कुछ सामान लेकर लखनऊ वापस जा रहा था क्योकी स्वामी जी के एक व्यक्ति के अलावा मैं ही लखनऊ के दफ्तर मे बैठता था और रास्ते मे शिवपाल जी के घर पर मुलाकात मे बता चुका था कि मुझे 40 से ज्यादा आती नही दिख रही है ) तथा विचलित भी और एक साल तक कुछ भी करने को तैयार नही थे पर कैसे चुनाव के बाद तुरन्त चुनाव लड़े हुये लोगो की बैठक क्यो बुलाया ,फिर कुछ ही समय बाद मेरे द्वारा आयोजित आगरा मे विशाल मन्ड्लीय सम्मेलन के आयोजन मे क्यो आने को तैयार हो गये जिसमे 14 लाख की थैली भेंट की गयी तथा 50 ग्राम सोना या शायद मैं अलग अलग एपिसोड मे बताऊंगा ।
ये भी क्यो बताया जाये की एक साल तक घर से नही निकलने की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव जी दिल्ली क्यो आये । दिल्ली मे रुकने की जगह सिर्फ यू पी भवन था जो विधायक के नाते मिलता पर मैं नही चाहता था की वो यू पी भवन मे रुके ।तब डा बागची ने हल निकाला और किसी से बात कर के सम्राट होटल मे उनके लिये सूईट बुक करवाया और यू पी भवन का कमरा मेरे लिये तय हो गया क्योकी जब भी उन्हे दिल्ली आना होता मुझे लखनऊ से फोन आ जाता था ,फिर मैं सरदार जी को गाडी के लिये फोन करता और खुद भी दिल्ली पहुच जाता था और यू पी भवन मे सामान रख कर समय पर एयरपोर्ट जाकर रिसीव करना ,रोज सुबह से शाम तक साथ रहना और फिर वापसी पर एयरपोर्ट विदा कर वापस जाना ये अगली सत्ता आने तक चलता रहा । पहली बार आने पर मैने कुछ लोगो से मिलवाया जिनके नामो की जरूरत नही है । शाम को वापस होटल मे आने पर मुलायम सिंह जी बोले कि अरे आप को तो दिल्ली मे बहुत लोग जानते है ,आप तो यहा बहुत काम के रहेंगे ,मैं आप को दिल्ली मे रखुँगा जो कभी भी नही हुआ क्योकी प्राथमिकता मे परिवार और खास जातियां आ गयी ।
खैर सम्राट होटल के बाद आशोका होटल का सूईट बुक होने लगा । एक दिन सूईट के कमरे मे खिडकी के किनारे दो कुर्सियो पर बैठे हम लोग चाय पी रहे थे वही जो मेरे मन मे काफी दिन से घूम रहा यहा मैने उनसे कहा कि फिर से समाजवादी पार्टी की स्थापना किया जाये तब तक हम लोग सजपा मे थे जिनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी थे और मुलायम सिंह यादव जी प्रदेश अध्यक्ष थे तथा मैं प्रदेश का महामंत्री और प्रवक्ता था । मेरी बात पर उन्होने असहमती व्यक्त किया की मेरा तो केवल 2/4 जिलो मे असर है ,चन्द्रशेखर जी बड़े नेता है उनके साथ रहना ही ठीक है । उसपर मैने कहा की सजपा की जगह समाजवादी पार्टी कर दिया जाये क्योकी वो अजादी की लडाई के समय से एक वैचारिक आन्दोलन रहा है और उससे भावनात्मक रूप से देश भर मे काफी लोग जुडे है चाहे संगठन का स्वरूप यही रहे और चन्द्रशेखर जी रास्ट्रीय अध्यक्ष बने रहे ,पर आप राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे तो वो एक बडा सन्देश होगा और पहली बार कोई पिछड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा ,आगे आप की मर्जी आप जो तय करिये ।पर उन्होने इस विचार को पूरी तरह से खारिज कर दिया लेकिन मन मे एक सपना तो मैने जगा ही दिया था ।
हम राज नारायणजी के लोगो का स्थायी अड्डा जनेश्वर जी का घर होता था ,बाकी दिनो मे वही नाश्ता खाना ,वही रुक जाना ,बल्कि देश भर के समाजवादीयो के लिये उनका घर सराय था इसलिये घर के बाहर ही लिख दिया गया था बाद मे लोहिया के लोग । थोडे ही दिन बाद मैं वहा था और बिहार वाले कपिलदेव बाबू भी वहा आये थे । हम तीनो जब साथ बैठे थे तो मैने अपना विचार बताया की मैने मुलायम सिंह जी से ये कहा है पर वो मान नही रहे है ।जनेश्वर जी बोले की ये तो अच्छा विचार है और देश भर मे खाली बैठे सभी समाजवादी साथ आ जायेंगे । कपिलदेव बाबू बोले की मुलायम से हमारी मुलाकात करवाइये हम भी कहेंगे और हमे कुछ नही चाहिए हमारे पास स्वतंत्रता सेनानी का भी पास और पेशन है और विधायक का भी और रहने को जनेश्वर का घर है ,अगर पार्टी बनेगी तो हम पूरा समय देंगे ।फिर जनेश्वर जी और कपिलदेव बाबू की भी बात हुयी और रमाशंकर कौशिक ,भगवती सिंह तथा रामसरन दास से भी चर्चा करने के बाद मुलायम सिंह यादव जी तैयार हो गये और तैयारी शुरू हो गयी । सवाल ये आया की देश भर मे सूचना कैसे हो तो अखबारो मे विज्ञापन दिया गया और मुलायम सिंह जी का फोन नंबर दे दिया गया ।देश भर से फोन आने लगे जगजीवन फोन उठाता था और फिर जिसका भी फोन आया होता था उनका नाम और फोन नंबर मुझे भी लिखवा देता था ।
आखिर 4/5 नवम्बर आ ही गया और बेगम हजरत महल पार्क मे स्थापना सम्मेलन हुआ जिसमे असम केरल बंगाल महाराष्ट्र बिहार मध्यप्रदेश,हरियाणा दिल्ली कश्मीर सहित कई प्रदेशो के लोग शामिल हुये जिसमे असम के पूर्व मुख्यमंत्री गोलप बोरबोरा , हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह ,बंगाल की सोशलिश्ट पार्टी जिसके मंत्री प्रबाल चन्द्र सिन्हा और किरणमय नन्दा सहित विधायक ,बिहार से बड़े नाम वाले कई समाजवादी शामिल हुये ।पार्टी का स्वरूप राष्ट्रीय उसी दिन दिखने लगा ।ये अलग से लिखूंगा कि किसके और किन कारणो से आगे चल कर सब बड़े नेता साथ छोड़ गये ।
स्थापन सम्मेलन मेरी व्यस्तता का ये आलम था की मैं सिर्फ दो बार मंच पर गया एक बार राजनीतिक प्रस्तांव पर बोलने और दुबारा मुलायम सिंह जी के सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने पर । 5 को सम्मेलन खत्म हुआ तो मुलायम सिंह जी बाहर से आये नेताओं से मिलने स्टेट गेस्ट हाउस आये तो सबसे मिलते हुये मेरे कमरा नंबर 47 मे पहुचे ।मैं कुर्सी पर ही बेसुध पड़ा था ।उन्होने धीरे से जगाया और बोले की चाय मगाइये ।दोनो ने चाय पिया तो बोले मैं जानता हूँ कि आप बाहर से आये लोगो की अगवानी और ब्यवस्था मे 3 दिन से ठीक से सोये नही है पर आज से जब तक सबको विदा करना है वो कर के खूब सो लीजियेगा फिर मेरे पास आइएगा तब समीक्षा किया जायेगा और आप का ही ये विचार था तो आगे की बात भी किया जायेगा ।
बाकी सब इतिहास मे दर्ज है और छूटा हुआ सब बाद के एपिसोड मे ।
गुरुवार, 9 दिसंबर 2021
जिंदगी के झरोखे से 14 लाख
बहस किसान बनाम पूंजीपति की
राज नारायणजी
रविवार, 24 अक्टूबर 2021
साड़ी शाल जिन्दाबाद पाकिस्तान मुर्दाबाद
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021
उ प्र मे कांग्रेस की डगर आसान नही
शनिवार, 18 सितंबर 2021
दुशांबे का मोदीजी का भाषण
सोमवार, 16 अगस्त 2021
उत्तर प्रदेश की राजनीति
शुक्रवार, 13 अगस्त 2021
उत्तर प्रदेश की राजनीति
शुक्रवार, 16 जुलाई 2021
प्रोफेसर साहब
बुधवार, 23 जून 2021
#जिंदगी_के_झरोखे_से मेनका गांधी की गालियां और राज नारायण जी
#जिंदगी_के_झरोखे_से--
मेनका गांधी की गालिया और नेता जी राज नारायणजी की शिक्षा --
मेनका गांधी के बारे मे पढा की उन्होने किसी वेटनरी डाक्टर को भद्दी भद्दी गलियाँ दिया ।इस पर मुझे ये संभवतः 1981/82 का किस्सा याद आ गया ।
राज नारायणजी 6 तीन मूर्ती लेन मे रहते थे और सभी समाजवादीयो का दिल्ली जाने पर रहने सोने ही के साथ नहाने और हर वक्त खाने का ठिकाना यही घर होता था । राज नारायणजी के घर डबल बेड और सोफ़ा नही था । वो खुद नीचे जमीन पर ही बैठते थे और सोते थे । उनके कमरे के बाहर के कमरे मे पूरा इस दीवार से उस दीवार तक बिस्तर और चादर बिछा था । यही पर बीच मे बड़ी से प्लास्टिक बिछ जाती थी और वो दस्तरखान बन जाता था जिपर बैठ कर घर मे उस वक्त मौजूद सभी एक साथ खाना खाते थे और रात को सोने का बिस्तर । चूंकि ये घर संसद सदस्य मनीराम बागड़ी के नाम से था जो ज्यादातर हरियाणा मे या कही अपने घर पर रहते थे पर एक कमरा उनका बंद रहता था बेड वाला और सांसद को मिलने वाला फर्नीचर उस हिस्से मे रखा था ।बाहर के बड़े कमरे मे कुछ सोफे भी थी । राज नारायणजी के पास बाहर का छोटा ऑफिस वाला कमरा था , अन्दर का ये मल्टी पर्पस कमरा था ,जिसमे राज नारायणजी रहते थे दर असल वो साइड का बरामदा घेर कर बना हुआ कमरा था और बगल वाले कमरे का बाथरूम इससे जोड़ दिया गया था । बड़े कमरे के पीछे का एक कमरा था जो कर्मचारियो और जिनको बाहर जगह नही मिलती उनके सोने के काम आता ।पीछे एक बडा स्टोर था जिसमे आटा दाल सब्जिया इत्यादि भरी रहती थी कही कही से प्राप्त हुयी और उसके बगल मे रसोई तथा पीछे छोटा सा आंगन कपडे सूखने को ।
अक्सर हाल ये होता था की बाहर बागड़ी जी वाला ड्राइंग रूम भी पूरा भर जाता था ।
कितने भी लोग हो नेता जी की रसोई सबको खिला देती थी ।
बाहर गेट के ठीक सामने का गेराज क्रन्तिकारी और विद्वान युवा लोगो के कमरे मे तब्दील कर दिया गया था और बाहर तो बहुत बाल लांन था जो अच्छे खासे सम्मेलनो और प्रदर्शन की तैयारियो का गवाह बना ।
पर यहा बात मेनका गांधी के किस्से की ।
मैं जब भी राज नारायणजी के घर रहता वो कही मिलने जाते तो अक्सर मुझे भी ले जाते थे चाहे मोहन मिकिन्स के मालिक ब्रिगेडियर कपिल मोहन का घर हो या किसी भी और बड़े नेता का ।
उस दिन मेनका गांधी ने राज नारायणजी को सुबह नाश्ते के लिये बुलाया था । ये वो समय था जब मेनका गांधी इन्दिरा गाँधी जी के घर से बाहर निकल आई थी और राजनीति मे पैर रख चुकी थी जिसको राज नारायणजी जी का हर तरह सहारा प्राप्त था ।मेनका गांधी महारानी बाग मे अपनी मा के घर रह रही थी ।
नेता जी ने रात को ही बता दिया था कि सुबह कही चलना है तैयार हो जाइयेगा ।
सुबह हम दोनो उनकी कार मे रवाना हो गये ।महारानी बाग की एक अच्छी कोठी मे कार रुकी तो तुरंत मेनका गांधी राज नारायणजी की अगवानी करने बाहर आयी ।
हम लोग अंदर गये और एक भव्य ड्राइंग रूम जो अच्छी तरह सज़ा था मे बैठ गये जहा पानी आया । नेता जी ने मेनका गांधी से मेरा परिचय करवाया नाम बता कर बोले की ये हमारे परिवार के है और बहुत क्रांतिकारी युवा नेता है ,आने वाले समय मे मेरा नाम रोशन करेंगे (जो मैं नही कर सका क्योकी उतनी हिम्मत नही जुटा पाया और उतना त्यागी नही हो पाया ) । फिर टेबल पर आने का आग्रह हुआ । ड़ाइनिँग टेबल पर कटे हुये फल , अंकुरित चना इत्यादि , पाराठे दही , लस्सी , कुछ मिठाईयाँ , जलेबी ,ब्रेड जैम इत्यादि बहुत कुछ लगा था और आया जा रहा था । राज नारायणजी पूरे मन से नाश्ता करने लगे ।मैने भी नाश्ते मे इतनी चीजे पहली बार देखा था पर संकोच मे थोडा थोडा सब लिया और खाने लग गया ।
तभी मेनका गांधी राजनीतिक बाते और कार्य योजना पर बाते करने लगी । वहा तक तो ठीक था पर अचानक एं टी रामाराव और बहुगुणा जी के बारे मे भद्दी कुछ बाते कह कर भद्दी गलिया देने लगी और फिर उनकी भाषा सतही स्तर पर उतर गयी
और वो भी क्रांतिकारी नेता राज नारायणजी के सामने जो मेरे लिये बर्दाश्त करना मुश्किल था क्योकी राज नारायणजी मेरे आदर्श भी थे और पारिवारिक बुजुर्ग भी ।
मेरा गुस्सा बढ रहा था पर नेता जी ने भांप कर मुझे चुपचाप नाश्ता करने का इशारा किया । मेनका गांधी के घर से वापसी के लिये हम लोग गाडी मे बैठ गये जहा मेनका गांधी और उनकी मा ने विदा किया ।
गाडी मे बैठते ही मैने कहा की आप ने मेनका को डाँटा क्यो नही वो इतनी छोटी और आप के सामने बेलिहाज ऐसी गालिया दे रही थी इतने बड़े लोगो को ।
राज नारायणजी बोले की मेरा ध्यान नाश्ते मे था जिसके लिये उन्होने मुझे बुलाया था और आप का ध्यान उनकी बातो मे ।
जिस काम के लिये कही गये वही करना चाहिए ।
नाश्ता तो बहुत अच्छा था ।
मैने तो कोई गाली नही सुना ।
वाह लोकबंधु राज नारायणजी ( सुभाषचंद्र बोस के बाद और अजादी के बाद आचार्य नरेंद्र द्वारा दिये नाम के अनुसार असली "नेताजी "।
ये मेरे लिये एक शिक्षा थी ।