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बुधवार, 2 जुलाई 2025

प्रति व्यक्ति आय


भारत के प्रति व्यक्ति पर कर्ज 2014 के 42 हजार से बढ़ कर 4 लाख 80 हजार हुआ । डॉ सी पी राय 

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के चेयरमैन डॉ सी पी राय ने कहा है  कि 2014 में जब भारत की जनता ने बदलाव की उम्मीद में भाजपा और नरेंद्र मोदी को चुना, तब देश के हर व्यक्ति पर औसतन 42,000 रुपये का कर्ज था। लेकिन आज, 2025 में, आरएसएस के इशारे पर चलने वाली इस भाजपाई सरकार ने अपनी तथाकथित 'आर्थिक नीतियों' के दम पर हर भारतीय को 4.8 लाख रुपये के कर्ज के बोझ तले दबा दिया है। यह 11 गुना वृद्धि नहीं, बल्कि देश की जनता पर थोपा गया एक आर्थिक अत्याचार है। दूसरी ओर, अडानी और अंबानी जैसे चंद पूंजीपतियों की संपत्ति दिन दूनी, रात चौगुनी बढ़ रही है। अरबपतियों और करोड़पतियों की संख्या बढ़ रही है, जबकि गरीब और मध्यम वर्ग कर्ज, महंगाई और बेरोजगारी की चक्की में पिस रहा है। 

डॉ राय ने पूछा है कि यह कैसी तरक्की है, जो देश की 140 करोड़ जनता को तबाह कर रही है और मुट्ठी भर लोगों को अकूत संपत्ति का मालिक बना रही है?यह सरकार और इसका आरएसएस से प्रेरित एजेंडा देश को आर्थिक, सामाजिक और नैतिक रूप से बर्बाद कर रहा है। 
 
डॉ राय ने कहा है कि मोदी सरकार की नीतियां सिर्फ विफल नहीं हुईं, बल्कि ये देश को हर मोर्चे पर दशकों पीछे ले जा रही हैं। बेरोजगारी चरम पर है, महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है, और भ्रष्टाचार ने हर संस्थान को खोखला कर दिया है। आरएसएस और भाजपा का यह गठजोड़ देश की एकता, समृद्धि और सामाजिक सद्भाव को तार-तार कर रहा है। 

डॉ सी पी राय ने कहा है कि मोदी जी की 'अमृतकाल' की हकीकत जनता देख रही है। यह 'अडानीकाल' और 'अंबानीकाल' है, जहां चंद पूंजीपतियों को देश का खजाना सौंप दिया गया है, और आम जनता को कर्ज, गरीबी और निराशा दी जा रही है। 
उत्तर प्रदेश की जनता अब जाग चुकी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा  को मिला झटका इसका सबूत है। 2027 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कार्यकर्ता, गांव-गांव जाकर जनता को इस सच्चाई से अवगत कराएंगे कि यह सरकार सिर्फ पूंजीपतियों की कठपुतली है। 
डॉ राय ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश कांग्रेस की ओर से स्पष्ट कहते हैं इस जनविरोधी, भ्रष्ट और अक्षम सरकार को तत्काल हटाना देश और जनता के हित में है। हम जनता के साथ मिलकर इस आरएसएस-भाजपा गठजोड़ को उखाड़ फेंकेंगे और एक ऐसी सरकार लाएंगे जो गरीब, किसान, मजदूर और मध्यम वर्ग के हितों को सर्वोपरि माने। यह देश नफरत और पूंजीपतियों का गुलाम नहीं बनेगा। हमारा संकल्प है: जनता के लिए, जनता के साथ, और जनता की सरकार!" 

1980 में भाजपा का परास्त।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन 6 अप्रैल, 1980 को नई दिल्ली के कोटला मैदान में आयोजित एक कार्यकर्ता अधिवेशन में हुआ था, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी को पार्टी का प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। इस सम्मेलन में भाजपा ने अपने वैचारिक आधार के रूप में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवदर्शन को अपनाया, साथ ही गांधीवादी समाजवाद और सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता (सर्वधर्मसमभाव) को अपनी नीतियों का हिस्सा बनाया। ये सिद्धांत पार्टी के पंचनिष्ठा के रूप में जाने गए, जिसमें निम्नलिखित शामिल थे:

  1. राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय अखंडता
  2. लोकतंत्र
  3. सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता (सर्वधर्मसमभाव)
  4. गांधीवादी समाजवाद (शोषण-मुक्त समरस समाज की स्थापना के लिए गांधीवादी दृष्टिकोण)
  5. मूल्य आधारित राजनीति
सम्मेलन में पारित प्रस्तावभाजपा के प्रारंभिक सम्मेलन में पारित प्रस्तावों का स्पष्ट और विस्तृत विवरण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों में सीमित है, लेकिन यह निश्चित है कि पार्टी ने अपने गठन के समय गांधीवादी समाजवाद और सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता को अपनाने का संकल्प लिया। इन प्रस्तावों में निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया गया था:
  • आर्थिक नीति: गांधीवादी समाजवाद के तहत सामाजिक-आर्थिक समानता, ग्रामीण विकास, और शोषण-मुक्त समाज की स्थापना पर बल।
  • धर्मनिरपेक्षता: सर्वधर्मसमभाव के सिद्धांत को अपनाते हुए सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और सहिष्णुता।
  • राष्ट्रवाद: राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करने की प्रतिबद्धता।
  • लोकतंत्र: लोकतांत्रिक मूल्यों और पारदर्शी शासन व्यवस्था को बढ़ावा देना।
  • अंत्योदय: समाज के सबसे कमजोर वर्गों के उत्थान पर जोर, जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन से प्रेरित था।
इन प्रस्तावों का उद्देश्य भाजपा को एक ऐसी पार्टी के रूप में स्थापित करना था जो कांग्रेस के विकल्प के रूप में उभरे, और जो राष्ट्रवादी, लोकतांत्रिक, और समावेशी मूल्यों पर आधारित हो।अटल बिहारी वाजपेयी का भाषण1980 के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में गांधीवादी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता को पार्टी की नीतियों का आधार बताया। उन्होंने जोर दिया कि भाजपा एक ऐसी पार्टी होगी जो भारत को एक सशक्त, समृद्ध, और एकजुट राष्ट्र बनाएगी। उनके भाषण के कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार थे:
  • गांधीवादी समाजवाद: वाजपेयी ने कहा कि भाजपा गांधीवादी समाजवाद के सिद्धांतों पर आधारित आर्थिक नीतियों को अपनाएगी, जिसमें ग्रामीण विकास, स्वदेशी, और सामाजिक समानता पर जोर होगा। यह समाजवाद न तो मार्क्सवादी होगा और न ही पूंजीवादी, बल्कि भारतीय मूल्यों पर आधारित होगा।
  • सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता: उन्होंने स्पष्ट किया कि भाजपा का धर्मनिरपेक्षता का मतलब सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और सहिष्णुता है, न कि धर्म को नकारना। यह सर्वधर्मसमभाव के सिद्धांत पर आधारित था।
  • राष्ट्रीय एकता: वाजपेयी ने राष्ट्रीय अखंडता और एकता पर जोर देते हुए कहा कि भारत की विविधता इसकी ताकत है, और भाजपा इस विविधता को एकजुट करने का काम करेगी।
  • लोकतंत्र और मूल्य आधारित राजनीति: उन्होंने कहा कि भाजपा भ्रष्टाचार-मुक्त और मूल्य आधारित राजनीति को बढ़ावा देगी, जो जनता के हितों को सर्वोपरि रखेगी।

रविवार, 29 जून 2025

दत्तात्रेय का बयान

उत्तर प्रदेश कंग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के चेयरमैन डॉ सी पी राय ने कहा है कि आज आरएसएस में नम्बर दो का पद रखने वाले दत्तात्रेय हँसबोले ने फिर संविधान के खिलाफ टिप्पणी कर उसे बदलने की मांग किया है । आरएसएस के आदर्श गोलवलकर की सोच गरीब और वंचित विरोधी थी वही आरएसएस की सोच और लक्ष्य है । आरएसएस गैरबराबरी खत्म करने में विश्वास नही करता है चाहे वो वंचित समाज की गैरबराबरी हो या महिला के साथ गैरबराबरी हो । आरएसएस में संविधान बनाने के तत्काल बाद ही इसका विरोध शुरू कर दिया था और ये लोग मनुवाद का संविधान लागू करना चाहते है जबकि इस संविधान ने सभी को एक बराबर इंसान होने का दर्जा दिया ।
डॉ राय ने कहा कि समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष देश होने का अर्थ है कि भारत अपने नागरिकों को सामाजिक-आर्थिक समानता और धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। समाजवाद का लक्ष्य संसाधनों का समान वितरण, सामाजिक कल्याण और आर्थिक असमानता को कम करना है, ताकि गरीब और वंचित वर्गों को अवसर मिलें और आरएसएस को इस भावना से हमेशा से तकलीफ है जबकि  धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता और सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है, जिससे सभी नागरिकों को अपनी आस्था स्वतंत्र रूप से अपनाने का अधिकार मिलता है जबकि आरएसएस प्रारम्भ से ही कुछ धर्मो से घृणा को ही अपना सिद्धांत बनाकर चल रहा है ।
डॉ राय ने कहा कि भारत के संदर्भ में यह व्यवस्था पूर्ण सकारात्मक है, क्योंकि भारत के विविधतापूर्ण समाज में यह एकता को बढ़ावा देती है। समाजवाद ने ग्रामीण विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने में मदद की है, जबकि धर्मनिरपेक्षता ने धार्मिक सौहार्द बनाए रखने में योगदान दिया है। 

डॉ राय ने कहा कि ये सिद्धांत भारत की विविधता और समावेशिता को मजबूत करते हैं। संतुलित नीतियों और प्रभावी प्रशासन के साथ, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता भारत को प्रगतिशील और समावेशी राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण हैं।

धनकड़ का बयान

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का संविधान की प्रस्तावना में "समाजवाद" और "धर्मनिरपेक्षता" को "नासूर" कहना न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि संविधान और देश की जनता का अपमान है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ सी पी राय ने कहा है कि ये दोनों शब्द 1976 में 42वें संशोधन के जरिए पूरी संवैधानिक प्रक्रिया के साथ संसद और विधान सभाओं के समर्थन के बाद सम्पूर्ण प्रक्रिया के बाद जोड़े गए, जो भारत के सामाजिक न्याय और धार्मिक सद्भाव की नींव हैं। 

डॉ राय ने कहा है कि देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति ऐसा बयान देकर न सिर्फ अपने पद की मर्यादा को तार-तार कर रहा है, बल्कि संविधान की आत्मा पर हमला कर रहा है। यह बयान आरएसएस और भाजपा की उस साजिश का हिस्सा है, जो देश को बांटने और संविधान को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। 

डॉ राय ने पूछा है कि क्या धनखड़ जी को अपने पद की गरिमा का जरा भी खयाल है? अगर नहीं, तो उन्हें एक पल भी इस पद पर रहने का हक नहीं है।

यह पहली बार नहीं है। धनखड़ जी पहले भी अनुच्छेद 142 पर सवाल उठाकर न्यायपालिका को निशाना बना चुके हैं। अब संविधान की प्रस्तावना पर हमला करके वे खुलेआम संवैधानिक मूल्यों को चुनौती दे रहे हैं। यह निंदनीय है। 

कांग्रेस पार्टी मांग करती है कि उपराष्ट्रपति तुरंत माफी मांगें और अपने आचरण पर विचार करें। अगर वे संविधान की शपथ का सम्मान नहीं कर सकते, तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए, क्योंकि देश को उप राष्ट्रपति पद पर बैठे व्यक्ति की  ऐसी हल्की बयानबाजी बर्दाश्त नहीं है ।

डॉ राय ने कहा है कि यह बयान उस समय आया है, जब आरएसएस के दत्तात्रेय होसबाले और भाजपा के नेता भी यही राग अलाप रहे हैं। यह साफ है कि 2014 से अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए भाजपा और उसके सहयोगी जनता का ध्यान बांटने वाले मुद्दे उठा रहे हैं।

आज बेरोजगारी चरम पर है, महंगाई ने कमर तोड़ दी है, किसान और नौजवान हताश हैं, लेकिन सरकार के पास जवाब नहीं है। "अच्छे दिन" का वादा, 2 करोड़ नौकरियां, किसानों की आय दोगुना—सब जुमले साबित हुए। पाकिस्तान के साथ आपरेशन में क्यो सीज़फायर किया गया इसका जवाब नही दे रहे है और देश ने प्रधानमंत्री को अमरीकी राष्ट्रपति के सामने सरेन्डर होतें देखा है तो अब संविधान पर हमला करके ये लोग जनता का ध्यान भटकाना चाहते हैं। लेकिन जनता अब इनके झांसे में नहीं आएगी।

डॉ राय ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी संविधान के मूल्यों समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के साथ मजबूती से खड़ी है। हम उपराष्ट्रपति, सरकार और आरएसएस से पूछते हैं जनता के असल मुद्दों पर आपने क्या किया? बेरोजगारी, महंगाई, और सामाजिक न्याय पर जवाब दीजिए। उत्तर प्रदेश की जनता और देश का हर नागरिक जवाब मांग रहा है। हम डॉ. बी.आर. आंबेडकर के संविधान की रक्षा के लिए हर लड़ाई लड़ेंगे और देश को बांटने की साजिश को नाकाम करेंगे।

गुरुवार, 12 जून 2025

भारत का पर्यटन पीछे क्यो

भारत में प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर की कोई कमी नहीं है। हिमालय की बर्फीली चोटियां, केरल के बैकवाटर, राजस्थान के रेगिस्तानी किले, तमिलनाडु के प्राचीन मंदिर, और ताजमहल जैसे ऐतिहासिक स्थल विश्वभर में अपनी पहचान रखते हैं। इसके बावजूद, भारत का पर्यटन उद्योग कई अन्य देशों की तुलना में पीछे है। विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) के अनुसार, भारत में 2022 में केवल 6.19 मिलियन विदेशी पर्यटक आए, जो वैश्विक पर्यटक आगमन का 0.50% से भी कम है। इस लेख में हम भारत में पर्यटन के पिछड़ने के कारणों, अन्य देशों के पर्यटक आगमन और व्यवसाय की तुलना, और भारत में पर्यटन को बढ़ाने के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारत में पर्यटन पीछे होने के कारण
1. अवसंरचना की कमी
भारत में कई पर्यटन स्थल, विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्र, अपर्याप्त सड़क, रेल, और हवाई कनेक्टिविटी के कारण पहुंच से बाहर हैं। उदाहरण के लिए, मेघालय के चेरापूंजी और मावलिननॉन्ग जैसे स्थानों की प्राकृतिक सुंदरता विश्वस्तरीय है, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए उचित परिवहन सुविधाओं की कमी है।
  • सड़क और परिवहन: कई पर्यटन स्थलों तक पहुंचने वाली सड़कें खराब हैं, और ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय बस या टैक्सी सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं।
  • आवास सुविधाएं: छोटे शहरों और ग्रामीण पर्यटन स्थलों पर अच्छे होटल या रिसॉर्ट की कमी है। पर्यटक लक्जरी और स्वच्छता की तलाश में रहते हैं, जो कई स्थानों पर उपलब्ध नहीं होती।
  • सार्वजनिक सुविधाएं: स्वच्छ शौचालय, पीने का पानी, और उचित साइनेज की कमी पर्यटकों के अनुभव को प्रभावित करती है।
2. सुरक्षा और संरक्षा संबंधी चिंताएं
पर्यटकों, विशेषकर विदेशी और महिला पर्यटकों की सुरक्षा भारत में एक बड़ा मुद्दा है। कुछ क्षेत्रों में छेड़छाड़, चोरी, और ठगी की घटनाएं पर्यटकों के बीच नकारात्मक छवि बनाती हैं।
  • महिला पर्यटकों की सुरक्षा: भारत में कुछ घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत की छवि को नुकसान पहुंचाया है।
  • स्थानीय व्यवहार: पर्यटकों के साथ अनुचित मूल्य वसूली या गाइडों और दुकानदारों का आक्रामक व्यवहार भी अनुभव को खराब करता है।
3. प्रचार-प्रसार की कमी
भारत का "अतुल्य भारत" अभियान प्रभावी है, लेकिन इसकी तुलना में थाईलैंड, सिंगापुर, और दुबई जैसे देश अपने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए आक्रामक डिजिटल और सोशल मीडिया विपणन करते हैं।
  • वैश्विक ब्रांडिंग: भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक विविधता को वैश्विक मंच पर उतनी प्रभावी ढंग से प्रस्तुत नहीं किया जाता।
  • नए गंतव्यों का अभाव: गोवा, केरल, और ताजमहल जैसे स्थल प्रसिद्ध हैं, लेकिन अन्य संभावनापूर्ण स्थानों जैसे लद्दाख, अंडमान, और सुंदरबन को वैश्विक स्तर पर प्रचार की आवश्यकता है।
4. वीजा प्रक्रिया और लागत
हालांकि भारत ने ई-वीजा और वीजा-ऑन-अराइवल जैसी सुविधाएं शुरू की हैं, फिर भी कुछ देशों के लिए वीजा प्रक्रिया जटिल है। इसके विपरीत, थाईलैंड और मलेशिया जैसे देश कई देशों के लिए वीजा-मुक्त प्रवेश की सुविधा देते हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करता है।
  • वीजा शुल्क: कुछ देशों के लिए वीजा शुल्क अधिक है, जो पर्यटकों को हतोत्साहित करता है।
  • प्रक्रिया में देरी: कुछ मामलों में वीजा स्वीकृति में समय लगता है, जो तत्काल यात्रा योजनाओं को प्रभावित करता है।
5. स्वच्छता और पर्यावरणीय मुद्दे
भारत के कई पर्यटन स्थलों पर स्वच्छता की कमी और प्रदूषण पर्यटकों के लिए निराशाजनक है।
  • कचरा प्रबंधन: ताजमहल, वाराणसी के घाट, और गोवा के समुद्र तट जैसे स्थानों पर कचरे का ढेर पर्यटकों की छवि खराब करता है।
  • प्रदूषण: दिल्ली और आगरा जैसे शहरों में वायु प्रदूषण और यमुना नदी जैसे जलस्रोतों का प्रदूषण पर्यटकों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
6. घरेलू पर्यटन की उदासीनता
भारत में घरेलू पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है (2021 में 677 मिलियन), लेकिन कई भारतीय विदेशी गंतव्यों जैसे थाईलैंड, सिंगापुर, और दुबई को प्राथमिकता देते हैं। इसका कारण बेहतर सुविधाएं, सस्ती यात्रा, और आकर्षक पैकेज हैं।
7. उच्च कर और लागत
भारत में पर्यटन से संबंधित सेवाओं पर उच्च कर, जैसे लक्जरी होटलों पर 28% जीएसटी, यात्रा को महंगा बनाता है। इसके विपरीत, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में कर की दरें 10% से कम हैं।
8. महामारी का प्रभाव
कोविड-19 महामारी ने भारत के पर्यटन उद्योग को गहरा झटका दिया। 2019 में भारत में 10.93 मिलियन विदेशी पर्यटक आए थे, जो 2022 में घटकर 6.19 मिलियन रह गए। इससे पर्यटन आय में भी कमी आई।

विश्व के अन्य देशों में पर्यटक आगमन और व्यवसाय
विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) और अन्य स्रोतों के आधार पर, निम्नलिखित प्रमुख देशों में पर्यटक आगमन और आय के आंकड़े हैं (2022-2023, जहां उपलब्ध):
  1. फ्रांस:
    • पर्यटक आगमन: 79.4 मिलियन (2022)
    • आय: ~$66 बिलियन
    • मजबूती: पेरिस का एफिल टावर, लूव्र संग्रहालय, और प्रोवेंस के लैवेंडर खेत जैसे आकर्षण। उत्कृष्ट रेल नेटवर्क और वैश्विक ब्रांडिंग।
  2. स्पेन:
    • पर्यटक आगमन: 71.7 मिलियन
    • आय: ~$73 बिलियन
    • मजबूती: बार्सिलोना, मैड्रिड, और इबीजा जैसे समुद्र तट। सांस्कृतिक उत्सव और यूरोप के भीतर आसान पहुंच।
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका:
    • पर्यटक आगमन: 50.9 मिलियन
    • आय: ~$176 बिलियन
    • मजबूती: न्यूयॉर्क, लास वेगास, और येलोस्टोन जैसे राष्ट्रीय उद्यान। मजबूत विपणन और विविध आकर्षण।
  4. थाईलैंड:
    • पर्यटक आगमन: 11.2 मिलियन (2022)
    • आय: ~$28 बिलियन
    • मजबूती: सस्ती यात्रा, बैंकॉक, फुकेत, और वीजा-मुक्त नीतियां।
  5. मेक्सिको:
    • पर्यटक आगमन: 38.3 मिलियन
    • आय: ~$28 बिलियन
    • मजबूती: कैनकन जैसे रिसॉर्ट, मायन खंडहर, और अमेरिका से निकटता।
  6. भारत:
    • पर्यटक आगमन: 6.19 मिलियन (2022)
    • आय: ~$23.1 बिलियन (2016 के आंकड़े, नवीनतम उपलब्ध नहीं)
    • विश्व हिस्सेदारी: पर्यटक आगमन में 0.50% और आय में 1.30%।
भारत की तुलना में इन देशों की सफलता का कारण उनकी बेहतर अवसंरचना, सरल वीजा नीतियां, और आक्रामक विपणन रणनीतियां हैं।

भारत में पर्यटन व्यवसाय पीछे होने के आर्थिक और सामाजिक कारण
आर्थिक कारण
  • जीडीपी में योगदान: भारत में पर्यटन का जीडीपी में योगदान केवल 4.6% है, जबकि विश्व स्तर पर यह 10% से अधिक है। 2021 में भारत का पर्यटन क्षेत्र ₹13.2 लाख करोड़ का था, जो महामारी-पूर्व स्तर से कम है।
  • निवेश की कमी: पर्यटन क्षेत्र में सरकारी और निजी निवेश सीमित है। बुनियादी ढांचे और प्रचार में अधिक बजट की आवश्यकता है।
  • विदेशी मुद्रा: भारत की पर्यटन आय वैश्विक स्तर पर कम है, क्योंकि प्रति पर्यटक खर्च अन्य देशों की तुलना में कम है।
सामाजिक कारण
  • जागरूकता की कमी: स्थानीय समुदायों में पर्यटन के आर्थिक लाभों के प्रति जागरूकता कम है।
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता: कुछ क्षेत्रों में धार्मिक या सांस्कृतिक संवेदनशीलता के कारण पर्यटकों का स्वागत सीमित होता है।
  • पर्यटकों के प्रति व्यवहार: गाइडों, टैक्सी चालकों, और दुकानदारों द्वारा अनुचित मूल्य वसूली पर्यटकों को हतोत्साहित करती है।

भारत में पर्यटन बढ़ाने के उपाय
1. अवसंरचना विकास
  • परिवहन: ‘उड़ान’ योजना के तहत क्षेत्रीय हवाई अड्डों का विस्तार और सड़क-रेल नेटवर्क में सुधार। पूर्वोत्तर भारत में कनेक्टिविटी बढ़ाना।
  • आवास और सुविधाएं: ग्रामीण और कम विकसित क्षेत्रों में होमस्टे, रिसॉर्ट, और स्वच्छ शौचालय जैसी सुविधाएं विकसित करना।
  • स्मार्ट पर्यटन स्थल: स्वच्छ भारत मिशन के तहत पर्यटन स्थलों पर कचरा प्रबंधन और स्वच्छता पर ध्यान देना।
2. सुरक्षा और संरक्षा
  • पर्यटन पुलिस: प्रमुख पर्यटन स्थलों पर विशेष पर्यटन पुलिस की तैनाती।
  • हेल्पलाइन: ‘अतुल्य भारत हेल्पलाइन’ को और प्रभावी बनाना और 24/7 आपातकालीन सेवाएं प्रदान करना।
3. आक्रामक विपणन
  • डिजिटल प्रचार: सोशल मीडिया, यूट्यूब, और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भारत की विविधता को प्रचारित करना।
  • नए गंतव्यों का प्रचार: अंडमान, लद्दाख, और सुंदरबन जैसे कम खोजे गए स्थानों को वैश्विक मंच पर लाना।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: G20 जैसे आयोजनों का उपयोग पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए।
4. वीजा नीतियों में सुधार
  • ई-वीजा को सरल करना: अधिक देशों को ई-वीजा और वीजा-मुक्त प्रवेश की सुविधा देना।
  • प्रचार: वीजा प्रक्रिया को और पारदर्शी और त्वरित बनाना।
5. सतत पर्यटन
  • इको-टूरिज्म: सुंदरबन, केरल, और हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन को बढ़ावा देना।
  • ग्रामीण पर्यटन: स्थानीय समुदायों को शामिल करके होमस्टे और सांस्कृतिक पर्यटन को प्रोत्साहित करना।
6. स्थानीय समुदायों का सहयोग
  • प्रशिक्षण: स्थानीय लोगों को गाइड, होमस्टे मालिक, और हस्तशिल्प व्यवसाय में प्रशिक्षण देना।
  • जागरूकता: पर्यटन के आर्थिक लाभों के बारे में स्थानीय समुदायों को शिक्षित करना।
7. विशिष्ट पर्यटन उत्पाद
  • धार्मिक पर्यटन: चारधाम यात्रा, बोधगया, और वाराणसी जैसे स्थानों को और विकसित करना।
  • चिकित्सा पर्यटन: आयुर्वेद और योग आधारित पर्यटन को बढ़ावा देना।
  • साहसिक पर्यटन: ऋषिकेश, लद्दाख, और गोवा में ट्रेकिंग, राफ्टिंग, और स्कूबा डाइविंग को प्रोत्साहित करना।
8. कर और नीतिगत सुधार
  • कर में कमी: पर्यटन सेवाओं पर जीएसटी को कम करना।
  • निजी निवेश: पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत पर्यटन स्थलों का विकास।

निष्कर्ष
भारत में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन अवसंरचना, सुरक्षा, और प्रचार में सुधार की आवश्यकता है। फ्रांस, स्पेन, और थाईलैंड जैसे देशों की रणनीतियों से सीख लेते हुए भारत को अपनी नीतियों को और पर्यटक-अनुकूल बनाना होगा। सरकार, निजी क्षेत्र, और स्थानीय समुदायों के सहयोग से भारत अपने पर्यटन उद्योग को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है। इससे न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि रोजगार सृजन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी प्रोत्साहन मिलेगा। भारत को अपनी सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत को वैश्विक मंच पर प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।

बुधवार, 7 मई 2025

जिन्दगी_के_झरोखे_से- वो #राजीव_गांधी_जिन्दाबाद_बोलते_हुए_आये

#जिन्दगी_के_झरोखे_से-
 वो #राजीव_गांधी_जिन्दाबाद_बोलते_हुए_आये 
और #मुलायम_सिंह_जिन्दाबाद_करते_हुये_निकले
---एक ऐसा किस्सा जो न कभी देखा और न सुना होगा --
ये 1993 के विधान सभा चुनाव की बात है ।मैं समाजवादी पार्टी का महामंत्री और प्रवक्ता था ।आगरा मे जातिगत कारणो से पार्टी का कोई बहुत मजबूत आधार नही था पर मेरी अति सक्रियता और सतत संघर्ष से पार्टी कुछ ज्यादा ही नजर आती थी सड़क से समाचारो तक और चूंकि आगरा तीन मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी जुड़ा है और आगरा मंडल ही नही इटावा तक के मीडिया का मुख्य केन्द्र है तथा आरएसएस का भी पच्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्यालय है और इस बड़े क्षेत्र का शिक्षा और चिकत्सा का तथा  बुद्धिजीवियो का भी केन्द्र रहा है और  मुलायम सिंह यादव जी की शिक्षा भी यही से हुई है तो उनकी भी आगरा मे ज्यादा रुचि रही और एक टोटका भी शायद उनके दिमाग मे लगातार रहा कि आगरा मे मैने पार्टी का एक तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा और उसके बाद ही पार्टी की सरकार बन गई जो 2017 से पहले भी हुआ तो आगरा पार्टी की सक्रियता और प्रचार का केन्द्र था ।
चौ चरण सिंह के समय लोक दल को छोड दे जिसमे वो तीन विधान सभा सीट जीत जाते थे वर्ना 1977 से पहले जब पुरानी समाजवादी पार्टी जीतती थी कुछ सीटे, बाह से पहले स्वतंत्र पार्टी और बाद मे लोकदल से रिपुदमन सिंह जीतने लगे तो शहर से बालोजी अग्रवाल सोशलिश्ट पार्टी से जीते थे और 1977 मे भी शहर की तीनो सीट कांग्रेस ही जीत गई थी और बाकी जनता पार्टी जीती थी ।
1993 चुनाव से पूर्व जब मुलायम सिंह यादव के भाई रामगोपल यादव को राज्यसभा के टिकेट दिया गया तो चंद्रशेखर जी से जुड़े विधायको के पार्टी छोड देने के कारण बडा संकट आ गया था उस समय मैने जनता दल से दो वोट मैनेज किये थे बिना एक भी पैसा खर्च किये और बाद मे एतमादपुर के विधायक को पार्टी मे शामिल भी कर लिया ( इस चुनाव का किस्सा अलग से लिखूंगा ) ।  
खैर जो मूल किस्सा है जिसके लिए ये एपिसोड लिख रहा हूँ । 
जैसा मैने प्रारंभ मे ही लिखा की पूरी तरह जाति पर आधारित राजनीती के कारण आगरा मे पार्टी मजबूत नही था और मैंने कुछ छात्रो और नौजवानो को जोड़ कर पार्टी चलाना शुरू किया था और लगातार इस कोशिश मे रहता था की कुछ मजबूत लोगो को जोडू, कुछ लोग जुड़े तो कुछ वादा करते रहे पर एन चुनाव मे धोखा दे गए जिनसे हिसाब भी निपटाया मैने मौका पडने पर ।
विधान सभा चुनाव घोसित हो गया था और सभी टिकेट की जोड़ तोड मे लगे थे और चुनकी काशिराम से समझौता हो गया था जिनकी बसपा भी उस चुनाव से पहले तक केवल 11/12 विधायक की पार्टी होती थी और काशिराम भी हमारे ही अप्रत्यक्ष सहोयोग से 1991मे रद्द हुये इटावा जिले का चुनाव दुबारा होने पर इटावा से ही पहली बार सांसद बने थे । पर दोनो दलो के मिल जाने की चुनाव मजबूत हो गया था और 65/35% के फार्मूले पर टिकेट का वितरण होना था । आगरा कैंट की सीट पर मेरी भी निगाह थी क्योकी इस समझौते के कारण समीकरण जीतने लायक हो गए थे पर संसदीय बोर्ड की बैठक मे अध्यक्ष रामसरन दास जी ने ज्यो ही कहा की इस सीट पर सी पी राय को फाइनल कर दिया जाये इसमे कुछ और सोचने की जरूरत ही नही है तो बैठक मे बस इतने से काम के लिए आये रामगोपाल यादव ने जबरदस्त विरोध किया कि उनकी जाती के कितने वोट है वहाँ की टिकेट दिया जाये और मेरा टिकेट रुकवा कर बैठक से चले गए और बोर्ड ने ये मुद्दा मुलायम सिंह यादव के ऊपर छोड दिया । और बाद मे जो भी हुआ मुलायम सिंह यादव ने मुझसे कहा की चुनाव लड़ेंगे तो आप एक सीट पर फंस जायेंगे और वैसे आप इतनी सारी सीट पर जाते है और आप के भाषण की मांग भी रहती है तो छोड दीजिये चुनाव के बाद आप को मैं दिल्ली भेजूंगा आप वहाँ ज्यादा काम आयेंगे ।मैने विरोध भी किया कि आप ने तो 1989मे भी यही कहा था हरियाणा भवन मे संसदीय बोर्ड की बैठक मे की मेरा चुनाव देखिये और मैं मुख्यमंत्री बन जाऊंगा तो विधायक क्या होता है तो बोले की अब वैसा नही होगा मैं जुबान देता हूँ और मैं मांन गया और लग गया अच्छे प्रत्याशी ढूढने मे ।
#उस_दिन मैं आगरा की कलक्ट्री मे था एतमादपुर से चन्द्र भान मौर्य का परचा दाखिल होना था । तभी देख की कांग्रेस के चार बार के विधायक और कैबिनेट स्तर पर कृषी मंत्री रहे डा कृश्न वीर कौशल काफी लोगो के साथ राजीव गांधी जिन्दाबाद का नारा लगाते कांग्रेस के झंडे के साथ कलक्ट्री मे प्रवेश कर रहे थे ।वो पिछला दो चुनाव हार चुके थे और मुझे अच्छी तरह पता था की इस बार इनका टिकेट कट रहा है और कांग्रेस के दिग्गजो मे से एक को एक और ने किसी तरह पटा लिया है और टिकेट उन्ही को मिलेगा ।
बस मेरा दिमाग चल गया ।मैने डा कौशल को नमस्कार किया और उनके साथ साथ सीढिया चढ़ने लगा क्योकी उनका परचा ऊपर के कक्ष मे दाखिल होना था । मैने उनसे कहा की ये पक्का है की आप को टिकेट नही मिल रहा है बल्की फला को मिल रहा है तो बाद मे नाम वापस लेंगे ।आप चाहे तो मैं आप को टिकेट दे दूंगा । उन्होने बस इतना पूछा की क्या बाद मे बेज्जती तो नही होगी ।मैने कहा की मैने कह दिया तो समझ लीजिये हो गया आप कल मेरे साथ चलिये बी फॉर्म भी दिलवा दूंगा और मुलायम सिंह यादव जी से मिलवा भी दूंगा ।फिर क्या था पुराना परचा जेब मे रख नया तुरंत खरीदा गया और समाजवादी पार्टी के नाम का परचा भरा गया ।
आये तो डा साहब और उनके लोग थे राजीव गांधी का नारा लगाते हुये और कांग्रेस का झन्डा लिए हुये पर जब नीचे उतरे तो वही भीड मुलायम सिंह यादव का नारा लगाते हुये और सपा का झन्डा लिए हुये और पूरी कलक्ट्री तथा मीडिया इस भूतों न भविष्य्ते इस घटना पर हत्प्रभ था , और मेरे बारे मे क्या चर्चाये हुई उसके बाद शहर ,राजनीती और मीडिया मे ये समझा जा सकता है ।
टिकेट की लडाई , चुनाव , मेरी सभाए और मेरे भाषण के कैसेट की बिक्री और प्रदेश भर से उसकी मांग इत्यादि पर अगले एपिसोड मे लिखूंगा ।

सोमवार, 13 जनवरी 2025

अयोध्या_आंदोलन

#जिंदगी_के_झरोखे_से--

#अयोध्या_आंदोलन 

1990 - 25 सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ से अडवाणी जी ने रथयात्रा शुरू कर दिया था ।अडवाणी जी देश के लोकतंत्र की एक राष्ट्रीय पार्टी के दो बड़े नेताओ मे से एक और उसके अध्यक्ष थे जिसकी जिम्मेदारी देश के भविष्य के लिए लड़ने और शैडो गवर्नमेंट बना कर वैकल्पिक विकास का एजेंडा शिक्षा स्वास्थ्य कृषी सुरक्षा इत्यादि होना चाहिये था वो इन मुद्दो के लिए नही बल्की मंदिर बनाने के लिए माहौल बनाने निकला था । उनको 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुचना था पर 23अक्तूबर को उनको लालू यादव ने समस्तीपुर मे गिरफ्तार कर लिया और फिर उनका रथ वाहि थाने मे ही सड़ गया किसी को उसकी याद नही आई ।
काश अडवाणी जी देश की समस्याओ के लिए रथ लेकर निकले होते गरीबी और बेरोजगारी के खिलाफ निकले होते , गांव की बदहाली के खिलाफ निकले होते , अशिक्षा और अभाव मे मौत के खिलाफ निकले होते तो शायद हम जैसे लोग भी साथ हो लेते पर !
कहानी के विस्तार मे नही जाकर मुद्दे पर आता हूँ जिसके लिए आज लिख रहा हूँ 
राम लला हम आयेंगे ,मंदिर वही बनायेंगे 
बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम 
इत्यादि नारे लगवाये जा रहे थे 
आरएसएस और भाजपा तथा विश्व हिन्दू परिसद ने कार सेवा का एलान किया । 21अक्तूबर से ही देश भर से ये सब संगठन मिल कर लोगो को विभिन्न रस्तो से अयोध्या के 100 किलोमीटर के दायरे मे चारो तरफ लाने लगे ।
और अन्ततः 30 अक्तूबर  और फिर 2 नवम्बर  को इस तरह कूच किया जैसे किसी दूसरे देश मे विजय प्राप्त करने क
जा रहे हो ।
अयोध्या मे पूजा और दर्शन होता था उस समय भी पर विवाद अदालत मे था ।
मैं उस वक्त पार्टी का प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता था हम लोगो ने दो प्रस्ताव किया यह कहते हुये की दर्शन और पूजा सबका अधिकार है पर संविधान और कानून से खिलवाड़ सरकार मे बैठा हुआ और उसकी शपथ लिया कोई भी व्यक्ति नही करने देगा और हम भी नही ।
पर हमारे दो प्रस्ताव है --
हम मध्यस्थता करने को तैयार है दोनो पक्ष साथ बैठ जाये और सहमती से तय कर ले क्या होना चाहिये सरकार उसी को मानेगी 
2--यदि सहमती नही बनती है तो फिर एक ही तरीका है की अदालत जो तय करे वो माना जाये ।
कोई तीसरे तरीके को संविधान और कानून से चलने वाले देश मे किसी भी हालत मे नही स्वीकार किया जा सकता है और न किसी हालत मे स्वीकार किया जायेगा ।
तब इन लोगो ने जवाब दिया था जो आज पूरे देश को जानना चाहिये -
कि 
"यह अदालत और कानून नही बल्की हमारी आस्था का सवाल है और इसे हम खुद हल करेंगे "
बड़े नेताओ ने आफ द रिकार्ड यह कहा था की सिर्फ साफ सफाई करेंगे और घोषणा हो चुकी है तो दर्शन कर लौट जायेंगे ।
लाखो की भीड खेतो मे होकर अयोध्या पहुची और रोकने पर पुलिस तथा प्रशसनिक अधिकारियो पर हमलावर हो गई । अधिकारियो ने बहुत समझाने का प्रयास किया की शान्ती से दर्शन करे और वापस चले जाये पर भीड उग्र हो गई जिसके लिए पीछे से सिखा पढा कर लाया गया था ।
भीड गुम्बद पर चढ़ गई और तोड़फोड़ करने लगी 
मजबूरन पुलिस को बल प्रयोग करना पडा और उसमे 16 लोगो की जाने गई जो बहुत अफसोसजनक है क्योकी वो सब इसी देश के नागरिक थे और अपने परिवारो के प्रिय थे । किसी भी हालत मे कभी भी अपने ही नागरिको पर पुलिस की लाठी और गोली चले यह लोकतंत्र के बिल्कुल खिलाफ है और जिम्मेदार राज्य की अवधारणा के भी खिलाफ है । मरने वाले अधिकतर पिछड़े वर्गो के जवान थे ।ये भी सच है की उन मृतको के परिवारो का इन संगठनो और इनकी सरकारो ने फिर कभी हालचाल भी नही पूछा ।
आरएसएस के झूठ तन्त्र ने फैला दिया की हजारो जाने चली गई और सरयू का पानी लाल हो गया और एक खून खौला देने वाला वीडियो भी बना दिया इन लोगो ने 24 घन्ते मे और देश भर मे बांट भी दिया जैसे अन्ना के आन्दोलन मे मिंनटो मे झंडे और मशाले बट जाती थी ,बस आप दोनो को एक साथ रख कर देख्ते जाइए । मैने दिल्ली मे किसी संघी के घर वो वीडियो देखा ,पूरी पिक्चर थी सारे इफेक्ट डाल कर बनायी गई जिसमे लाशे ही लाशे दिखाई गई ,नाली मे खून बहता दिखाया गया , पहले सोमनाथ से लेकर बाबर तक पता नही क्या क्या बताया गया और उसमे एक हेलिकोप्टर उड़ता दिखाया गया था जिसमे बैठे मुलायम सिह यादव को मशीन गन से लोगो पर गोली चलते दिखाया गया था ।
हमने चुनौती दिया की आप मृतको के नाम बताओ ।  ये लोग जो भी नाम बताते हम पूरा सिस्टम लगा कर उनको ढूढ लाते और मीडिया के सामने पेश कर देते । इंनकी सारी लिस्ट और बात फर्जी नकलती गई और अन्त मे वो 16 लोग बचे जो सचमुच मरे थे और उनकी मौत पर हम सबको अफसोस तब भी था और आज भी है ।
पर यह भी उल्लेखनीय है की कल्याण सिंह की भाजपायी सरकार मे जब सरकारी तौर पर फिर लाखो की भीड आई और विवादित ढांचा तोड गया तो उस पर चढे तमाम लोग उसी के नीचे दब गये थे पर सत्ता का नशा और इस विश्व विजय के जोश मे वो बेचारे समचार की सुर्खिया नही बने ।
उसके बाद अयोध्या से ही मार काट लूट शुरू हो गई और यहा तक की खुद भाजपा का अल्पसंख्यक सेल का अध्यक्ष चीखता ही रह गया की मैं तो आप की पार्टी के इस पद पर हूँ, पर ? (इसका ब्योरा उस दिन के हिन्दू के मौके पर मौजूद रिपोर्टर की रिपोर्ट मे मिल जायेगा ।
कैसे लोग आये थे ये धार्मिक काम करने इसी से समझ लीजिये की रुचिरा गुप्ता इनकी भीड मे ही थी तो उसके शरीर से कपडे गायब हो गए और ये देख कर बी बी सी के रिपोर्टर मार्क टूली ने उसे अपना कोट पहनाया और पिटता रहा पर किसी तरह रुचिरा को भीड से निकालने मे कामयाब रहा ।
दंगो मे 2000 से ज्यादा जाने गई ,हजारो करोड़ की सम्पत्ती नष्ट हुई और उठान लिए हुये विकास का पहिया बैठ गया और सालो पीछे चला गया ।
दंगो मे इन लोगो ने क्या किया था आतंक फैलाने को सर्फ इस बात से जान लीजिये की एक टेप बनाया था जी किसी छत पर अचानक काफी तेज आवाज मे चीखता --बचाओओ ओ ,भागो ओ ओ ,आ गए हजारो मुस्लमान ,अरे मार दिया अरे एक और मार दिया भागो ओ ।
और हम लोग जो आगरा के कालेज कैम्प्स मे रहते थे उसके लोग भी अपने हथियार लेकर निकल आये और छपने की जगह ढूढ़ने लगे ,मैने कहा की यहा कहा कोई मुस्लमान है आसपास पर कोई सुनने को तैयार नही था ,आगरा का लाजपत कुन्ज और ऐसी तमाम कालोनी जो मुस्लिम इलाको से 8 से 10 किलोमीटर दूर है लोग रात रात भर पहरा देने लगे ,रास्तो पर बड़े बड़े पत्थर और पुराने टायर रख दिये इत्यादि 
और मुसलमान अपने मुह्ल्लो मे दुबका था की निकले नही की पी ए सी आयेगी और फिर सिर्फ गोलियो की आवाज होगी ।
(दंगो मे क्या क्या हुआ और कौन लोग मरे , किनके साथ क्या क्या हुआ और क्या क्या कर्म करते हुये महान लोग जय श्रीराम के नारे लगते थे और राम का नाम कर बडा कर रहे थे और कौन सी संपत्तियाँ नष्ट हुई इत्यादि तमाम आयोग और जांच कमेटी की रिपोर्ट अब सार्वजनिक है और हो सचमुच देश के वफादार और जिम्मेदार लोग है उनको सब पढ़ना चाहिये और सब जानना चाहिये ।
हर दंगे के बाद भाजपा की सीटे बढती गई ।
और 
इसी बीच विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अडवाणी जी के अभियान के मुकाबले मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू कर दिया ।उनकी सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर जी प्रधान मंत्री बन गए ।
# बीच मे ये भी जान लीजिये की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को भाजपा का समर्थन था और भाजपा के प्रिय जगमोहन कश्मीर के राज्यपाल थे जब कश्मीरी पंडीत कश्मीर छोड कर गए ,पर उस वक्त भाजपा ने न उसे मुड़दा बनाया और न कश्मीरी पण्डितो के सवाल पर उस सरकार से समर्थन ही वापस लिया#
हा तो चंद्रशेखर जी के अटल बिहारी वाजपेयी श्रीमति सिंधिया , भैरोंसिंह शेखावत सहित काफी भाजपा नेताओ से अच्छे सम्बंध थे और उनकी सरकार मे हम लोगो के युवा राजनीती के मित्र सुबोधकांत सहाय गृह मंत्री थे ।
(  मन्दिर सम्बन्धी हिन्दू परिसद और इन लोगो की बैठक और प्रधान मंत्री से मिलकर बात करने की इच्छा पर चंद्रशेखर जी का उनकी बैठक मे श्रीमति सिंधिया के यहा खुद पहुच जाना और फिर उन्होने क्या सुना और क्या कहा तथा फिर मुस्लिम पक्ष से क्या कहा जानने के लिए Chanchal Bhu की वाल खंगालिए थोडा समय निकाल कर )
अन्त मे चंद्रशेखर जी विवाद का एक सर्वसम्मत हाल निकाल ही लिया अपनी दृढता और दूरदर्शिता से जिसपर अंदर सब सहमत थे और वो फौसला करीब ऐसा ही था जो उसके बाद इतनी बर्बादी और दंगो तथा नफरत की खेती के बाद अन्ततः अदालत ने ही दिया # फिर याद रखिये की हमने कहा था की या तो बातचीत से हल कर लो या अदालत को करने दो और तब आस्था के नाम पर अदालत को मानने से इंकार कर दिया था इस जमात ने #
और अपनी सरकार बन जाने पर उसी अदालत को माना भी और दिन रात देश से भी कहते रहे की अदालत को सभी माने मिलजुल कर और पूरे देश ने माना मुसलमान ने भी । पूरा देश शान्त रहा पर यदि अदालत का फौसला इसका उल्टा होता तो क्या होता ,कल्पना से रूह काँप जाती है ।
प्रधान-मंत्री चंद्रशेखर के निवास से विश्व हिन्दू परिसद वाले यह कह कर निकले की थोडी देर मे आपस मे राय कर के आते है और फिर आये ही नही ।
अब पाठक ध्यान से पढे और समझे इस जमात के इरादे की , आदत को , रणनीति को ,इच्छा को , इनके हथकण्डे को , देश के प्रति जिम्मेदारी को , देश के भविष्य को लेकर चिंतन को , चिंता को और इनके देश के लिए सपने ,सिद्धांत और सक्ल्प को । 
( लखनऊ से दिल्ली तक की सत्ता के करीब रह कर , निस्पक्ष रूप से जागृत रह कर जो देखा , जो जाना , जो समझा सब लिख दिया क्योकी जो अब 45 साल के है तब स्कूल मे पढ रहे होंगे और 1990 मे पैदा लोग अब 30 साल के हुये होगे ।देश की 65%आबादी 35 साल के नीचे की है इसका मतलब ये है की उनको जो बताया गया होगा शाखा मे ता सन्घ के प्रचार ने वो उसी को सच मानते है ।इसलिए सभी जागरूक और सच्चे देशभक्तो की जिम्मेदारी है की पूरे देश को सच की तस्वीर दिखाए बड़े पैमाने पर और देश को फसीवद की तरफ जाने से बचाए ।
आज इसिलिए मैने एक पोस्ट मे लिखा था की देश दो पाटो के बीच फंस गया है -एक जो सच है और दूसरा आरएसएस का सच । देखे ईश्वर कैसे बचाता है मेरे देश को ।
जो सच्चे हिन्दू है और सचमुच मे राम कृष्ण और शिव को मानते है और चाहते है की समाज इन तीनो के नाम पर घृणा और दंगे मे न फंसे बल्की इनके जो गुण और ज्ञान आज को और भविष्य को अच्छा बनाते हो और भारत को तथा भारत वासियो को अच्छा बनाते हो उनका प्रसार हो उनकी भी जिम्मेदारी है की देश और समाज को सही धर्म का ज्ञान कराये ,स्वामी विवेकानन्द से लेकर गांधी जी और डा लोहिया तक के धर्म और इन लोगो के बारे मे लिखे का ज्ञान कराने का अभियान चलाये ।
अदालत का फौसला आया , मन्दिर बनेगा , देश मे सब उसके पक्ष मे है पर उसे धार्मिक आयोजन ही रखा जाता और उसमे राजनीती नही की जाती तो भारत बनता 
लेकिन इन लोगो को भारत बनाना ही कब था या है इन्हे तो बस वोट और सरकार बनाना है सब बेच देने के लिए ।

सोमवार, 4 नवंबर 2024

दिनकर जी से मुलाकात

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--
#जी_मैं_मिला_हूँ_राष्ट्रकवि_रामधारी_सिंह_दिनकर_जी_से --

(By Chandra Prakash Rai Sir) 

दिनकर जी को आज देश की चेतना का सलाम ।
वो दिनकर जी जो स्वयं संघर्ष की प्रतिमूर्ती थे ,वो दिनकर जी जिनको नेहरु जी अपना दोस्त कहते थे , वो दिनकर जी जिन्होने कर्ण को बडा बना दिया अपनी कविता मे ,वो दिनकर जी जिन्होने मित्रता के बावजूद भी चीन के सवाल पर नेहरु जी की नही बख्शा ,वो दिनकर जी जो जयप्रकाश के भी प्रेरणाश्रोत बने,वो दिनकर जी जिन्होने कविता के नये नये आयाम स्थापित किये ।
मैं मिला उनसे 1974 में और कई दिन मिलता रहा जब ये आगरा आये थे विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में और कुछ दिनों तक रुके थे यहाँ । 
उनके एक रिश्तेदार आगरा मे ही एक बड़े पद पर थे और उनसे हम लोगो का पारिवारिक सम्बंध था और वो भी ऐसा की ज्यादतर वो ही पति पत्नी मेरे घर आ जाते थे या पिता जी टहलते हुये उनके घर चाले जाते थे । उनके पास अम्बेसडर कार थी तो वो तो घर मे जैसे बैठे हो ,उस जमाने मे लुंगी मे तो वैसे ही आ जाते थे ।
दिनकर जी को आगरा विश्वविद्यालय ने अपने स्वर्ण जयंती वर्ष मे दीक्षांत समारोह संबोधित करने को आमंत्रित किया और वो आये तो अपने उसी रिश्तेदार के घर ही रुके ।उसी बीच जब पता लगा की राष्ट्रकवि शहर मे आ रहे है तो दयालबद के लोगो ने भी अपने यहा उसी समय दीक्षांत समारोह रख लिया और उनको आमंत्रित कर लिया ,और भी कार्यक्रम बन गए और इस तरह वो काफी दिन आगरा मे रुक गए ।
उनके रिश्तेदार मे पिता जी को बताया भी और आमन्त्रित भी किया की मिलने आइएगा ।
पिता जी मुझे भी ले गए मिलने के लिए ।परिचय हुआ और बडी आत्मीयता की बाते हुई ।
क्या शानदार व्यक्तित्व था 6 फुट से लम्बे और व्यक्तित्व मे जबरदस्त प्रभावशाली ।
अगले दिन आगरा विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह था ।पिता जी और हम दोनो गए ।पिता जी को तो प्रोफेसर होने के कारण आगे जगह मिल गई पर मुझे पीछे भीड मे खड़ा होना पडा ।लग रहा था की किसी बड़े नेता की जनसभा है ।क्या वो यही समाज था क्योकी मैने पिता जी के साथ छागला साहब की सभा भी देखा था जो अंग्रेजी मे बोलते थे और कोई हिन्दी मे तर्जुमा करता था पर उन्हे सुनने भी हजारो लोग आये थे इसी आगरा मे ।खैर वो दीक्षांत समारोह अनोखा था क्योकी आमतौर पर दीक्षांत समारोह का मुख्य अतिथि लिखा हुआ भाषण देता है पर दिनकर जी ने इंकार कर दिया था और यूँ ही बोले थे ।मुझे आज भी उनकी माइक पर गूंजती वो भारी सी आवाज भूली नही है और उनके भाषण का प्रारंभ भी । जब मंच की संबोधित करने के बाद उन्होने छात्रो को अधिकारो के लिए  जागरूक करते हुये कृष्ण का प्रकरण सुनाया था 5 गाँव वाला और फिर अपना करीब एक घंटे का उद्बोधन आगे बढाया था । पंडाल के बाहर हजारो लोग थे जिनका विश्वविद्यालय से कोई सम्बंध नही था और वो भीड या तो चुपचाप सुन रही थी या किसी वाक्य पर ताली बजा देती थी ।
मैने अपनी पूरी जिन्दगी मे वैसा दीक्षांत उद्बोधन कभी नही सुना ।
उसी दिन रात को विश्वविद्यालय मे कवि सम्मेलन भी था जिसमे बच्चन ,महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, सोहन लाल द्विवेदी , शिवमंगल सिंह सुमन इत्यादि सभी उस दौर के बड़े कवि थे और वो कार्यक्रम लाइव रेडियो पर प्रसारित हुआ था और करीब पूरी रात चला था वी कवि सम्मेलन ।
दिनकर जी ने पिता को आदेश दिया की यदि कही व्यस्त न हो तो शाम को आ जाया करिये ,फिर करीब रोज ही हम दोनो चले जाते थे ।

मैंने एक टूट फूटी कविता लिख कर दिया था "तुम भी तो दिनकर हो और वह भी तो दिनकर है जो करता प्रकाश धरा और अम्बर मे "उनको और  उस पर हस्ताक्षर कर उन्होंने दी थी अपनी कई पुस्तकें ।

ऐसा लगता है कि कल की ही बात है ।आगरा से ही गए थे वो दक्षिण भारत और फिर काल ने छीन लिया उन्हें ।
राष्ट्र के कलमकार प्रहरी को प्रणाम ।

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

लाटरी बंद करवाया

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

कितने लोगो को पता है की इस #देश से #लाटरी #मैने_खत्म_करवाया ।
पुराने लोग जानते है की एक समय था देश भर मे हर सड़क हर गली और हर बाजार मे लाटरी बहुत बडा व्यवसाय बन गया था । परिवार के परिवार तबाह हो रहे थे ।
उसी दौर मे मुझे कुछ घटनाए पता लगी जिसमे से अभी सिर्फ एक का जिक्र कर दे रहा हूँ -
एक मध्यम वर्ग की महिला भी इसका शिकार हो गयी । हुआ ये की वो घर का समान लेने जाती सब्जी इत्यादि और इस उम्मीद मे लाटरी का टिकेट भी खरीद लेती की शायद घर की हालात कुछ अच्छे हो जाये । उसकी एक बेटी थी शादी को और पति मे घर खर्च काट काट कर कुछ पैसा इकट्ठा किया था ।धीरे धीरे जुवरियो की तरह वो उस पैसे को भी ज्यादा टिकेट खरीद खर्च करने लगी और सब बर्बाद कर बैठी । फिर सब खत्म हो जाने पर परेशान रहने लगी । किसी दुकान पर उसकी किसी औरत से दोस्ती हो गयी थी और जब उसे समस्या पता लगी तो उसने इस महिला को वेश्यावृत्ति मे धकेल दिया । अक्सर ये महिला आत्महत्या करने का सोचती थी इसलिए इसने सारा ब्योरा और अपना गुनाह एक जगह लिख कर रख दिया की उसकी मौत के लिए वो खुद जिम्मेदार है और दूसरे कागज पर अपने पति को सारी बात और अपना माफीनामा । वेश्यावृत्ति के चक्कर मे एक दिन वह जहा पहुची वहा उसके खुद का बेटा और उसके दोस्त थे जिन्होंने दलाल से उसे बुलवाया था और फिर वहा से भाग कर उसने आत्महत्या कर लिया ।
ये और कुछ अन्य दर्दनाक घटनाए जो मैं आत्मकथा मे विस्तार से लिखूंगा जिनमे ना जाने कितने लाख घर और लोग बर्बाद हुये , कितनो ने आत्महत्या कर लिया , मेरे संज्ञान मे आई तो मेरी आत्मा ने धिक्कारा की क्या सिर्फ जिन्दाबाद मुर्दाबाद ही राजनीती है या समाज के असली जहर के खिलाफ लड़ना ।
#अलोक_रंजन जो उत्तर प्रदेश के #मुख्यसचिव से रिटायर हुये है और अभी भी लखनऊ मे है वो मेरे यहा डी एम थे और बाबा हरदेव सिंह ए डी एम सिटी ।भाजपा की कल्याण सिंह की सरकार थी ।
मैं अलोक रंजन से मिला और उनके सामने मैने वो सारी घटनाए रखा और कहा की मैं कम से कम अपने शहर मे तो लाटरी नही बिकने दूंगा । वो बोले की सरकार के बड़े राजस्व का भी सवाल है और कानून व्यव्स्था का भी पर नैतिक रूप से मैं आप की बात का समर्थन करता हूँ । बस एक प्रेस कांफ्रेंस और उसके बाद लाटरी फाडो अभियान की शुरुवात हो गयी ।उस वक्त की मीडिया ऐसी नही थी सारे अखबारो ने रोज बडा कवरेज दिया और मेरा समाचार पूरे देश के एडिशन मे छापा मेरे आग्रह पर की ये देश भर मे अभियान शायद बन जाये ।
और हा #भाजपा पूरी ताकत से इस आन्दोलन के खिलाफ और #लाटरी व्यापार #के_पक्ष_मे_थी ।
बहुत कुछ झेलना पडा , पथराव , झगड़े और एक बड़े माफिया जो अब जेल मे है उनका लाटरी का होल सेल का काम था उनकी धमकी और लालच भी ,जी उस समय मुझे 5 लाख मे खरीदने या गोली खाने का आफर मिला और मेरा वही जवाब की बिकाउ मै हूँ नही और मुझे मार सकना तेरे बस मे नही है और अगर अच्छे काम के लिए मर भी गया तो शायद ये अन्दोलन भी जोर पकड़ ले और कामयाबी मिल जाये वर्ना कम से कम अच्छे काम के लिए मरूँगा ।
देश मे मेरा समचार देख कर अन्य जगहो पर भी लोगो ने छिटपुट अन्दोलन शुरू कर दिया ।
कितना लोकप्रिय था वह मेरा अन्दोलन इससे समझ लीजिये की - नैनीताल मे पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक तय हो गयी और मुझे रिजर्वेशन नही मिला तो सीधे ट्रेन पर पहुच गया ,ट्रेन मे टीटी ने पहचान लिया और बर्थ दे दिया । यही काठगोदाम मे हुआ वहा के स्टेशन मास्टर ने पहचान लिया बैठा कर चाय पिलाया और नैनीताल उनके एक दोस्त जा रहे थे उनके साथ मुझे भेजा और वापसी के रिजर्वेशन का इन्तजाम भी किया । (ऐसा मेरे साथ मुशर्रफ वाले अन्दोलन मे भी हुआ था जब उसके अगले दिन मैं फैजाबाद गया तो बस स्टेशन के पास जो उस बक्त का अच्छा होटल था उसमे किसी ने रुकने का इन्तजाम किया था , मैं काऊंटर पर पहुचा तो आजतक पर मेरा ही समचार चल रहा था ,वहा बैठा मालिक टीवी और मुझे आश्चर्य से देखने लगा ,खैर फिर उसने होटल के बजाय अपने घर का खाना खिलाया और कमरे का पैसा लेने से भी इन्कार कर दिया ) 
थोडे दिन बाद हमारी सरकार बन गयी और #मुलायम_सिंह_यादव जी #मुख्यमंत्री । तब उनके सामने मैने उत्तर प्रदेश में लाटरी खत्म करने का प्रस्ताव किया जिसका एक पूरा विभाग था । 300 या 400 करोड़ लाटरी से प्रदेश को मिलता था उस समय ।पर मेरे अन्दोलन का नैतिक दबाव भी था और मुख्यमंत्री ने भी जरूरी समझा और उत्तर प्रदेश में तत्काल प्रभाव से लाटरी बंद कर दी गयी फिर ऐसा माहौल बना की धीरे धीरे सभी प्रदेशो को लाटरी बंद करनी पडी ।

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

जिंदगी के झरोखे से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

मुलायम सिंह यादव जी से वो आखिरी बातचीत जिसका मुझे आज भी अफसोस है :;

2017 में सत्ता रहते हुए गैरकानूनी( क्योंकि पार्टी अध्यक्ष की अनुमति के बिना सम्मेलन नही बुलाया जा सकता था और अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जी थे ) तरीके से पार्टी का एक सम्मेलन बुलाया गया और उसमे मुलायम सिंह यादव जी को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था तथा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अध्यक्ष बना दिया गया था । मुझे मुलायम सिंह यादव का ये अपमान तथा पार्टी विरोधी कार्य मंजूर नहीं था । भगवती सिंह जी ,अंबिका चौधरी , ओम प्रकाश सिंह , शादाब फातिमा , नारद राय के अलावा पूरी पार्टी और मुलायम सिंह यादव का शिवपाल सिंह यादव को छोड़कर पूरा खानदान सत्ता के साथ यानी अखिलेश यादव के साथ चला गया था । आजम खान साहब जरूर उस सम्मेलन में नही गए थे और लगातार मुलायम सिंह यादव तथा अखिलेश यादव के बीच में पुल बनने की असफल कोशिश किया था ।
उस सम्मेलन में अखिलेश यादव ने बोला था की आने वाले चुनाव में वो सरकार बना लेंगे तथा सरकार और पार्टी दोनो नेता जी को सौप देंगे पर क्या हुआ वो दुनिया ने देखा और सबको याद है । इसके बाद के चुनाव में भाजपा ने इस घटना का अपने लिए इस्तेमाल कर लिया तथा इतिहास के एक व्यक्ति से अखिलेश यादव को जोड़ते हुए नारा दे दिया की " जो न हुआ अपने बाप का वो क्या होगा आप का " और भाजपा ने माहौल अपने पक्ष में कर लिया तथा चुनाव जीत लिया । यद्यपि मैने तो मुलायम सिंह यादव जी  के निष्कासन के दिन ही मुलायम सिंह यादव जी के निर्देश पर उनके दरवाजे पर खड़े देश भर की मीडिया से बात करते हुए कह दिया था कि अखिलेश जी अभी भी भूल सुधार लीजिए वरना इस चुनाव में 50 सीट भी नही मिलेगी तथा आप के माथे पर जो कलंक लगेगा वो लंबे समय तथा पीछा नहीं छोड़ेगा और उस वक्त पार्टी की टूट पर बोलते हुए मैं रो पड़ा था । बाद में काफी लोगो ने बताया कि उस वक्त के मेरे बयान को सुन कर काफी लोग रो पड़े थे ।
पूरे देश का केवल इस घटना पर केंद्रित था और लखनऊ का माहौल बहुत ही गर्म था और यहां तक तनाव बढ़ गया था की अखिलेश समर्थक नौजवानो ने मुलायम सिंह यादव की तस्वीर को पैरो से रौंदा था ।बाकी सब इतिहास में दर्ज है और ये भी दर्ज है की अखिलेश यादव के एक समर्थक ने एक चिट्ठी जारी किया जिसमें मुलायम सिंह यादव जी की पत्नी को कैकेई शब्द से विभूषित किया था।
बाकी सब इतिहास में दर्ज है । इस सारे घटना क्रम के लिए मुलायम सिंह यादव जी ने राम गोपाल यादव जी को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था की अखिलेश राम गोपाल के बहकावे में आ गया ,रामगोपाल इसे कही का नही छोड़ेगा ।
जैसा मैने प्रारंभ में लिखा की मुझे ये अनैतिक काम मंजूर नहीं था इसलिए मैं पूरी ताकत से मुलायम सिंह यादव जी के साथ खड़ा हो गया था और मुलायम सिंह यादव जी का प्रवक्ता बन वो जो कहते रहे वो मैं बोलता रहा । पार्टी के महामंत्री पद और मंत्री दर्जा से मैने स्टीफा दे दिया था । इसके बाद के बाकी घटना क्रम पर अलग एपिसोड लिखूंगा ।
अभी उस दिन तक सीमित करता हूं ।
मुलायम सिंह यादव जी अकेले पड़ गए थे और उनके यहां पार्टी का क्या परिवार का भी कोई नही आता था । बस उनके कुछ गिने चुने पुराने साथी कभी कभी लखनऊ आने पर मिल लिया करते थे । मैने एक नियम बना लिया की लगातार उनसे मिलने जाना है और कुछ समय उनके साथ बिताना है ताकि उन्हें ये नही लगे की कोई उनके साथ नही है ।
मुलायम सिंह यादव जी के निधन के कुछ समय पहले मैं इसी तरह उनसे मिलने गया । जैसा कि हमेशा होता था वो घर के अंदर बुला लेते थे । उस दिन भी उन्होंने अंदर बुला लिया तथा वही पर उनकी पत्नी साधना यादव जी भी बैठी थी । हाल चाल और इधर उधर की कुछ बाते हुई की अचानक उन्होंने मुझसे पूछा की ये रामगोपाल आप के इतने खिलाफ क्यों है ? उसकी खिलाफत के कारण आप का बहुत नुकसान हुआ और साथ ही एस पी सिंह बघेल तथा राम शकल गुजर भी आप के खिलाफ बहुत शिकायते करते और आरोप लगाते जो जो जांच कराने पर सब गलत निकला । मैं आप को राज्य सभा मे रखना चाहता था पर रामगोपाल विरोध कर देता था ।
इसपर मैने पूछा कौन रामगोपाल तो बोले पार्टी का महासचिव है आप नही जानते है । मैने कहा कि पार्टी के महासचिव तो रामजी लाल सुमन भी है जो मेरे पड़ोसी है,और भी कई है क्या उनकी भी आप ऐसे ही सुनते है । पार्टी के उपाध्यक्ष और बहुत बड़े नेता थे जनेश्वर मिश्र क्या उनकी आप ने कभी सुना इन मामलों में ? जहां तक राम गोपाल जी का सवाल है न मैने उनकी भैंस खोला और उनका खेत काट लिया तथा कभी उनके मेरे बीच कोई कहा सुनीं भी नहीं हुई । हा वैचारिक और पसंद न पसंद का अंतर उनके मेरे बीच रहा है ।वो आप के परिवार से जुड़े नही होते तो सिर्फ मास्टर होते । उनकी योग्यता इतनी है की तीस साल से संसद में होने के बावजूद कोई उनका महत्वपूर्ण भाषण किसी को याद नही है , कोई प्राइवेट मेंबर बिल याद नही है और पिछड़ों या  अल्पसंख्यको के सवाल पर या देश के सवाल पर कभी उन्होंने ऐसा कुछ नही किया की कुछ देर तक सदन डिस्टर्ब हो गया हो । आप को ऐसे ही सब पसंद आए राज्य सभा में भेजने को जो गए और कमा धमा कर वापस आ गए कोई नाम भी नही जान पाया पर मेरा देश में नाम होता और संसद में मेरी भूमिका होती जो आप को शायद इसलिए पसंद नहीं है की सत्ता नाराज न हो जाए । जाने दीजिए भाईसाहब अब आप का समय अपनी गलतियों पर अफसोस प्रकट करने का तथा किसी के साथ बुरा किया हो तो उसपर खेद व्यक्त करने का है ऐसी बाते करने का नही और वो भी मुझसे जो जब आप के साथ कोई नही तब भी लगातार आप के साथ बैठा है । जाने दीजिए ।
1989 में मैने आगरा के खेरागढ़ से टिकट मांगा था और मेरा संसदीय बोर्ड में बहुमत था तथा चौ देवीलाल और जॉर्ज फर्नांडीज सहित कई लोग मेरे पक्ष में थे । वो विश्वनाथ प्रताप सिंह की लहर का चुनाव था इसलिए खेरागढ़ में मैं क्या कोई भी चुनाव लड़ता तो जीत जाता वहा के जातिगत समीकरण के कारण पर आप एक अपराधी प्रवृति के व्यक्ति को टिकट देना चाहते थे इसलिए तब आप ने बोर्ड में ये कह दिया था की आप तो देश मे प्रचार के लिए निकलेंगे तो आप का चुनाव मैं देखूंगा और आप के मुख्यमंत्री हो जाने पर एम एल ए क्या होता है सी पी राय उससे ज्यादा बन जाएंगे । सबसे पहले जॉर्ज साहब बाहर आए थे और उन्होंने मुझसे कहा था कि होने वाला सी एम आपको अपना चुनाव इंचार्ज बनाना चाहता है और बोल रहा है की सी एम बनने के बाद सी पी राय एम एल ए से ज्यादा होंगे तो आप उसकी बात मानो। क्या पता वो आप को राज्य सभा में भेज दे या एम एल सी बना कर मंत्री बना दे । फिर भी काफी कोशिश किया था मैंने की आप मान जाए और चुनाव जीत कर मेरा सदन का कैरियर शुरू हो जाए पर आप नही माने थे और सत्ता आने के बाद आप मुझे मिले ही नही । तब मिले जब सरकार जा रही थी । भाई साहब आप मेरे साल लगातार यही तो करते रहे है तो बोले दर्जा तो दिया । मैने कहा की वो तो मैं कभी नही चाहता था आपने  दबाव देकर दो बार ज्वाइन करवाया ये कह कर की अभी ये होने दो चुनाव आते ही राज्य सभा में भेज देंगे । यहां तक कि एक बार तो आप ने अपने घर जहा आप का मेरा परिवार साथ लंच कर रहा था सबके सामने कहा था की इस बार फला फला कारण से आप को अनिल अंबानी तथा जया बच्चन को टिकट देना पड रहा है पर अभी मुझे कोपरेटिव फेडरेशन का अध्यक्ष बनायेंगे तथा अगली बार चाहे एक टिकट हो मुझे ही देंगे ।
ऐसी ही कुछ बाते कहते कहते अचानक मुझे पता नही क्या सूझा कि मैंने बोल दिया की भाई साहब आप के और मेरे बीच 35/36 साल से एक लड़ाई चल रही है । वो बोले की मेरे आप के बीच लड़ाई चल रही है । तब बोले मेरे आप के बीच क्या लड़ाई है ? मेरे मुंह से निकल गया कि मेरी सच्चाई,ईमानदारी और बाफादारी तथा आप का झूठ ,धोखा और दगाबाजी के बीच लड़ाई है ।आप लगातार जीत रहे हो और मैं हार रहा हूं।आप कभी रामगोपाल के कंधे पर रख कर बंदूक चला देते हो तो कभी अमर सिंह का इस्तेमाल कर लेते हो । बेनी प्रसाद वर्मा ने संसद में आप को गाली दिया तो उनको राज्य सभा दे दिया ,अमर सिंह ने आप के खिलाफ कोई कसर नहीं छोड़ा तो उसे दे दिया पर मेरा गुण आप की निगाह में अवगुण ही रहे इसलिए मैने ये लड़ाई बोला ।
इस बात पर वो बहुत अपसेट हो गए तथा बोले : क्या मैं दगाबाज हूं ,क्या में दगाबाज हूं और फिर यही वाक्य जल्दी जल्दी बोलने लगे ।तब साधना जी उठी और दौड़ कर एक प्याली में दो रसगुल्ला रख लाई तथा जबरन उनके मुंह में डालने लगी कि जल्दी खा लीजिए वरना बीमार हो जाएंगे और अभी अस्पताल ले जाना पड़ेगा ।  मैं इस बात से आवाक रह गया तथा अंदर से बहुत दुखी हो गया । मेरा मन मुझे कचोटने लगा की मैने ये क्या कर दिया ।अभी कुछ हो जाएगा तो मैं खुद से निगाह नही मिला पाऊंगा।
वहा सन्नाटा पसर गया । सब चुप । कोई कुछ नही बोला काफी देर तक । फिर करीब 20/25 मिनट बाद साधना जी ने सन्नाटा तोड़ा और बोली की भाईसाहब से क्यों नाराज हो रहे हो । आप ने क्या कर दिया इनके लिए ? इन्होंने क्या क्या किया है वो आप भी बताते रहे और मैं भी जानती हूं । भाभी जी को आप ने बहन माना और राखी बंधवाया पर वो कैंसर से मर गई आप ने क्या किया ? वैसे तो आप लोगो को भी जहाज से भेज कर मेदांता में इलाज करवाते रहे ।
तब मैने कहा भाभी जी जाने दीजिए मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था । मैं अपने शब्दो के लिए माफी चाहता हूं ।इसपर साधना जी फिर नेता जी से बोली की मैने कई बार आपको कहा की राय साहब को सलाहकार बना लो । ये भी कहा था की प्रोफेसर साहब को दिल्ली में अकेले मत रखो राय साहब को भी रखो पर आप ने बात नही माना। बोली की ये जी बुरा वक्त हमे देखने को मिला वो नही होता ।  मैं ये सब सुनकर हतप्रभ था क्योंकि साधना जी से मेरी कोई बात नही होती थी ।
मुलायम सिंह जी तब बोले सी पी राय अखिलेश को मुख्यमंत्री बना कर गलती हो गई । वो मुख्यमंत्री नही बनता तो लीडर बन जाता । अब कोई लीडर नही बन पाएगा ।मैने कहा ये तो आप मुझसे कई बार कह चुके पर बन गया तो बन गया और आपने ही बनाया  । देखो क्या कर बैठा ।अपने मन का हो गया है हमारी बात ही नही मानता । मैने एम एल सी के लिए आप के लिए बोला था की आप लखनऊ में ही रहोगेऔर मंत्री बनवा दूंगा पर हरियाणा का वो क्या नाम है जो यूथ का नेता था , लाठर ,उसक नाम गवर्नर हाउस भेज कर कलकत्ता भाग गया । मैने कहा की अब तो आप साथ है न । तो बोले सी पी राय पेट और मुंह में अंतर होता है ।  बेटा है तो उसे कैसे छोड़ देता , माफ़ कर दिया और मेरी बनाई पार्टी भी तो खत्म नही होने देना था । मैने कहा की क्या आप को याद है की समाजवादी पार्टी कैसे बनीं।तो बोले अब याद है । आप ने ही पहली बार कहा था और फिर जनेश्वर तथा कालीदेव बाबू को लेकर मिले था और पीछे पड़े रहे तन मैने बनाया । आप ने भी बहुत साथ दिया और बहुत मेहनत किया पार्टी के लिए ।
फिर बोले की आप की अखिलेश से मुलाकात हुई । मैने कहा नही , वो आपके साथ गद्दारी नहीं करने वालो को अपना दुश्मन मानते है तो मुझसे क्यों मिलेंगे । भाई साहब अब जो हो गया वो हो गया पर ये नही पता की किसका जीवन ज्यादा है लेकिन जब तक मेरा जीवन है तब तक आप का साथ नही छोडूंगा । इसपर साधना जी बोली की देख लो एक ये भाईसाहब है जो जिंदगी भर साथ निभाने की बात कर रहे है दूसरी तरफ वो लोग है जो हमारे घर का रास्ता ही भूल गए ।
मुलायम सिंह यादव जी पता नही उम्र के कारण या यू ही भावुक हो गए और तब बोले की इस बार राज्य सभा चुनाव आने दो मैं अखिलेश के पास चल कर बैठ जाऊंगा जब तक आप को टिकट नहीं देता । साधना जी बोली की मैं भी साथ चलूंगी । मैने कहा भाईसाहब जाने दीजिए । अब आप के हाथ में कुछ नही है और मेरे लिए ऐसा करेंगे तो आप को फिर बेइज्जत होना पड़ेगा और वो में नही चाहूंगा । इसपर बोले की मैने आप के साथ बहुत गलत किया अब दुनिया से जाने के पहले भूल सुधारूंगा । मैने जाने दीजिए फिर से एक असत्य मत बोलिए तो बोले की असत्य क्यों आप देख लेना इस बार ।
साधना जी ने नौकर को आवाज दी की फला वाली मिठाई ले आओ और चाय ले आओ , पानी भी लेते आना । मिठाई खाकर जो मुलायम सिंह यादव जी जोर देकर तीन मिठाई खिला दिया और चाय पीकर मैं विदा हो ।
अफसोस कि फिर मुलायम सिंह यादव जी नही बल्कि उनकी अंत्येष्ठि में उनकी मिट्टी से ही मुलाकात हुई ।
उन्होंने क्या किया वो उनके साथ गया पर उस दिन अपने बोले गए शब्दो पर जिससे वो आहत हो गए थे मुझे आज तक अफसोस है । 

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

ई टी वी कान्क्लेव जयपुर

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

यह 2013 की तस्वीर है जब मैं जयपुर गया था #etv के कन्क्लेव मे हिस्सा लेने #समाजवादी पार्टी की तरफ से ।कार्यक्रम की अध्यक्षता भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह जी ने किया था तो उद्घाटन उस वक्त विदेश मंत्री और मेरे मित्र सलमान खुर्शीद ने और केन्दीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहमान जी , मोहसिना किदवई, शिया धर्म गुरु क्ल्वे जव्वाद , पूर्व मंत्री शाहनवाज ,  लालू जी की पार्टी से पूर्व मंत्री फातमी जी , साम्यवादी पार्टी से मेरे मित्र अतुल अनजान ,  पुरी की शंकराचार्य , केन्द्रीय मुख्य सूचना आयुक्त पूर्व आई ए एस हबिबुल्ला सहित सभी बडी पार्टियो के बड़े नेता आये (एक मैं ही साधारण कार्यकर्ता था जिसे सीधे etv ने बुलाया था )
विषय था -माइनोरिटि के समक्ष चुनौतिया ।
कार्यक्रम कई उर्दू वाले देशो मे सीधा प्रसारित हुआ था पूरे समय ।
मुझे याद है की उस दिन कार्यक्रम से एक दिन पहले रात 9 बजे तक तीन बार और फिर कार्यक्रम वाले दिन सुबह ही मुलायम सिंह यादव जी का फ़ोन आया की कौन कौन और है इस कार्यक्रम मे ? जब मैने आधिकतर नाम बता दिये तो बोले आप क्या बोलेंगे कुछ तैयार किया है ? मैने कहा की सब आयोग की रिपोर्ट और बहुत कुछ पढ कर आया हूँ पर यदि बाकी लोग मुद्दे पर बोलेंगे तो मैं केवल मुद्दे पर बोलूंगा जो मेरी आदत है पर यदि लोग राजनीती करेंगे तो मेरा भी जवाब पहले राजनीतिक ही होगा और फिर मुद्दा भी । वो हर फ़ोन पर कोई एक नई बात याद दिलाते और मैं आश्वस्त करता की आप चिंता मत करो कल खुद सुन लेना, मैं इनमे से किसी से भी 19 साबित नही हाऊँगा ।
और हुआ भी वही की पहले सलमान खुर्शीद ने  उद्घाटन भाषण किया फिर राजनाथ सिंह ने भी व्यस्तता बता उनके तुरंत बाद भाषण किया कि जाना है और उन दोनो के बाद ही मुझे बुला लिया गया फिर जो मेरा तरीका है वही किया हाल की तालियो के बीच ।
मुलायम सिंह यादव बैठे रहे अपने लखनऊ मे टीवी के सामने मेरा भाषण हो जाने तक ।
उसी दिन मेरे भाषण के बाद क्लार्क जयपुर की लॉबी मे मुनव्वर राना जी से भी गपशप हुई थी ।उसी दिन की यह तस्वीरे  ।

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2023

#चौ_चरण_सिंह के साथ पहली यादगार रैली

#जिंदगी_झरोखे_से

#चौ_चरण_सिंह  के साथ पहली यादगार रैली 
 ---#1977 --लोकसभा का चुनाव प्रचार शुरू हो चुका था ।आपातकाल की कैद में 19 महीने से घुट रही जनता सड़क पर निकल चुकी थी थी ।जनता पार्टी घोषित हो चुकी थी पर अधिकतर नेता जेल में ही थे तो जनता खुद संगठन बन गयी थी । खुद लोग मंच माइक लगा कर जगह जगह सभाओं में बुलाने लगे ।
बड़े नेताओं को सभाएं तो मानो जनता का कुम्भ जुट गया हो ।कोई भी बड़ा से बड़ा मैदान छोटा पड़ने लगा । लाखो लोग खुद मैदान पर पहुचते और आर्थिक सहयोग भी देने को आतुर रहते थे ।
आगरा के रामलीला मैदान भी ऐसी ही कई लाखो वाली सभाओं का गवाह  बना । 
इसी में एक सभा थी जनता पार्टी  के सबसे बड़े जनाधार वाले नेता चौ चरण सिंह की । 
चौ साहब कार से ही पूरा दौरा करते थे । उस दिन कई घण्टे लेट चौ साहब लेट हो गए । जितने वक्ता थे कई कई बार बोल कर थक चुके थे और जनता हिल नही रही थी पर किया क्या जाए ।
मंच पर मैं भी मौजूद था । तभी जनसंघ से जुड़े वरिष्ठ नेता योगेंद्र सिंह चौहान जिनके पुत्र अब आगरा के एत्मादपुर से विधायक है ,की निगाह मुझ पर पड़ी ।  
छात्र नेता के साथ साथ अपनी ओज और व्यंग की कविताओं के लिए मेरा नाम आगरा में तब तो हो चुका था और चौहान साहब मेरी कविताएं सुन चुके थे कुछ कवि सम्मेलन में ।
उन्होंने भगवान शंकर रावत जो बाद में कई बार सांसद बने और उस दिन संचालन कर रहे थे उनके पास जाकर चौ साहब के आने तक मुझे कविताएं सुनाने के लिए बुलाने को कहा ।
मेरा नाम कविता सुनाने को पुकारा गया । लाखो की शोर करती और नारा लगाती भीड़ और 22 साल का मैं ।
मैंने कहा कि आप कविता सुनना चाहते है पंर आज देश को कविता चाहिए तो दिनकर के अंगार की चाहिये । आपातकाल के अंतिम संस्कार के मौके पर मेरे मुह से भी शायद अंगार ही निकलेगा ।
मैंने शुरू किया कि बस कुछ मिनट मेरी बात सुन ले फिर कविता भी सुनाऊंगा  । हा शहीदों के नाम सुनाऊंगा और आपातकाल भी ।
जनता चुप हो गयी ।
और शुरू हुआ भाषण --  
देश के असली मालिको वक्त बेड़िया तोड़ कर आज़ाद हो जाने का है ।सोचो क्या भोगा है पूरे मुल्क ने इन 19 महीनों में । - --- बस पता नही कहा से विचार आया मन मे -- ,
:इस देश मे दो माताएं हुई है । एक हुई थी पन्ना दाई जिसने दुश्मन के सामने अपने बेटे को राजा का बेटा बता दिया और अपने सामने अपने बेटे को कट जाने दिया और राजा के बेटे को बचा लिया क्योकि राजा ही प्रतीक था राज का , संप्रभुता का । 
और एक माता आज है जिसने अपने बेटे के लिए ---वाक्य पूरा किया लोगों ने -पूरी जनता बोली देश के लोगों को कटवा दिया ।
फिर बस शोर और नारे में डूब गया रामलीला मैदान और अगले 20 मिनट मुझे बस खड़े होकर उन नारो में भागीदारी होना पड़ा और उसके बाद पुनः शुरू हुआ भाषण फिर तभी रुका जब चौ चरण सिंह की गाड़ी मंच के बगल में आ गयी और उनके नारो के लिए लोग माइक पर आ गए और मैं चौ साहब के स्वागत के लिए उनकी गाड़ी के पास चला गया ।
( उस दिन की एक घटना पुनः लिखूंगा और चौ साहब के साथ दिल्ली की पहली मुलाकात का ब्यौरा पुनः लिखूंगा )

गुरुवार, 22 जून 2023

मुझे सपने देखने दो ।

मेरी कविता

मुझे सपने देखने दो ।

चलो अब कुछ अच्छा होने के
सपने देखे सुबह होने तक ।
सूरज निकलेगा और ग्रस लेगा 
इस अँधेरे को शाम होने तक ।
फिर शाम आयेगी और 
सूरज गर्त हो जायेगा उसके अन्दर 
यही क्रम जीवन को चलाता रहेगा 
उठाता रहेगा गिराता रहेगा 
हम नियति का सड़क पर पड़ा 
पत्थर बन लोगो की ठोकरों से 
इधर उधर उछलते और गिरते रहेंगे 
कुचलते रहेंगे स्वार्थो के टायर हमें 
जब तक कही जमीन में 
दफन नहीं हो जायेंगे हम ।
फिर भी तब सपने देखना तो 
हमारी नियति भी है और अधिकार भी ।
क्या अब इतने ताकतवर हो गए है 
कुछ लोग की 
वो हमारे सपने भी 
हँमसे छीन लेना चाहते है 
पर पत्थर चाहे बेजान क्यों न हो
कभी ठोकर दे सकता है
तो कभी किसी उछाल से 
घायल भी कर सकता है 
इसलिए मुझ बेजान से भी खेलो मत 
मुझे सपने देखने दो ।
चलो सपने देखे सुबह होने तक ।