#जिन्दगी_के_झरोखे_से--
#जी_मैं_मिला_हूँ_राष्ट्रकवि_रामधारी_सिंह_दिनकर_जी_से --
(By Chandra Prakash Rai Sir)
दिनकर जी को आज देश की चेतना का सलाम ।
वो दिनकर जी जो स्वयं संघर्ष की प्रतिमूर्ती थे ,वो दिनकर जी जिनको नेहरु जी अपना दोस्त कहते थे , वो दिनकर जी जिन्होने कर्ण को बडा बना दिया अपनी कविता मे ,वो दिनकर जी जिन्होने मित्रता के बावजूद भी चीन के सवाल पर नेहरु जी की नही बख्शा ,वो दिनकर जी जो जयप्रकाश के भी प्रेरणाश्रोत बने,वो दिनकर जी जिन्होने कविता के नये नये आयाम स्थापित किये ।
मैं मिला उनसे 1974 में और कई दिन मिलता रहा जब ये आगरा आये थे विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में और कुछ दिनों तक रुके थे यहाँ ।
उनके एक रिश्तेदार आगरा मे ही एक बड़े पद पर थे और उनसे हम लोगो का पारिवारिक सम्बंध था और वो भी ऐसा की ज्यादतर वो ही पति पत्नी मेरे घर आ जाते थे या पिता जी टहलते हुये उनके घर चाले जाते थे । उनके पास अम्बेसडर कार थी तो वो तो घर मे जैसे बैठे हो ,उस जमाने मे लुंगी मे तो वैसे ही आ जाते थे ।
दिनकर जी को आगरा विश्वविद्यालय ने अपने स्वर्ण जयंती वर्ष मे दीक्षांत समारोह संबोधित करने को आमंत्रित किया और वो आये तो अपने उसी रिश्तेदार के घर ही रुके ।उसी बीच जब पता लगा की राष्ट्रकवि शहर मे आ रहे है तो दयालबद के लोगो ने भी अपने यहा उसी समय दीक्षांत समारोह रख लिया और उनको आमंत्रित कर लिया ,और भी कार्यक्रम बन गए और इस तरह वो काफी दिन आगरा मे रुक गए ।
उनके रिश्तेदार मे पिता जी को बताया भी और आमन्त्रित भी किया की मिलने आइएगा ।
पिता जी मुझे भी ले गए मिलने के लिए ।परिचय हुआ और बडी आत्मीयता की बाते हुई ।
क्या शानदार व्यक्तित्व था 6 फुट से लम्बे और व्यक्तित्व मे जबरदस्त प्रभावशाली ।
अगले दिन आगरा विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह था ।पिता जी और हम दोनो गए ।पिता जी को तो प्रोफेसर होने के कारण आगे जगह मिल गई पर मुझे पीछे भीड मे खड़ा होना पडा ।लग रहा था की किसी बड़े नेता की जनसभा है ।क्या वो यही समाज था क्योकी मैने पिता जी के साथ छागला साहब की सभा भी देखा था जो अंग्रेजी मे बोलते थे और कोई हिन्दी मे तर्जुमा करता था पर उन्हे सुनने भी हजारो लोग आये थे इसी आगरा मे ।खैर वो दीक्षांत समारोह अनोखा था क्योकी आमतौर पर दीक्षांत समारोह का मुख्य अतिथि लिखा हुआ भाषण देता है पर दिनकर जी ने इंकार कर दिया था और यूँ ही बोले थे ।मुझे आज भी उनकी माइक पर गूंजती वो भारी सी आवाज भूली नही है और उनके भाषण का प्रारंभ भी । जब मंच की संबोधित करने के बाद उन्होने छात्रो को अधिकारो के लिए जागरूक करते हुये कृष्ण का प्रकरण सुनाया था 5 गाँव वाला और फिर अपना करीब एक घंटे का उद्बोधन आगे बढाया था । पंडाल के बाहर हजारो लोग थे जिनका विश्वविद्यालय से कोई सम्बंध नही था और वो भीड या तो चुपचाप सुन रही थी या किसी वाक्य पर ताली बजा देती थी ।
मैने अपनी पूरी जिन्दगी मे वैसा दीक्षांत उद्बोधन कभी नही सुना ।
उसी दिन रात को विश्वविद्यालय मे कवि सम्मेलन भी था जिसमे बच्चन ,महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, सोहन लाल द्विवेदी , शिवमंगल सिंह सुमन इत्यादि सभी उस दौर के बड़े कवि थे और वो कार्यक्रम लाइव रेडियो पर प्रसारित हुआ था और करीब पूरी रात चला था वी कवि सम्मेलन ।
दिनकर जी ने पिता को आदेश दिया की यदि कही व्यस्त न हो तो शाम को आ जाया करिये ,फिर करीब रोज ही हम दोनो चले जाते थे ।
मैंने एक टूट फूटी कविता लिख कर दिया था "तुम भी तो दिनकर हो और वह भी तो दिनकर है जो करता प्रकाश धरा और अम्बर मे "उनको और उस पर हस्ताक्षर कर उन्होंने दी थी अपनी कई पुस्तकें ।
ऐसा लगता है कि कल की ही बात है ।आगरा से ही गए थे वो दक्षिण भारत और फिर काल ने छीन लिया उन्हें ।
राष्ट्र के कलमकार प्रहरी को प्रणाम ।
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