उत्तर प्रदेश कंग्रेस कमेटी के मीडिया विभाग के चेयरमैन डॉ सी पी राय ने कहा है कि आज आरएसएस में नम्बर दो का पद रखने वाले दत्तात्रेय हँसबोले ने फिर संविधान के खिलाफ टिप्पणी कर उसे बदलने की मांग किया है । आरएसएस के आदर्श गोलवलकर की सोच गरीब और वंचित विरोधी थी वही आरएसएस की सोच और लक्ष्य है । आरएसएस गैरबराबरी खत्म करने में विश्वास नही करता है चाहे वो वंचित समाज की गैरबराबरी हो या महिला के साथ गैरबराबरी हो । आरएसएस में संविधान बनाने के तत्काल बाद ही इसका विरोध शुरू कर दिया था और ये लोग मनुवाद का संविधान लागू करना चाहते है जबकि इस संविधान ने सभी को एक बराबर इंसान होने का दर्जा दिया ।
डॉ राय ने कहा कि समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष देश होने का अर्थ है कि भारत अपने नागरिकों को सामाजिक-आर्थिक समानता और धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। समाजवाद का लक्ष्य संसाधनों का समान वितरण, सामाजिक कल्याण और आर्थिक असमानता को कम करना है, ताकि गरीब और वंचित वर्गों को अवसर मिलें और आरएसएस को इस भावना से हमेशा से तकलीफ है जबकि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता और सभी धर्मों के प्रति तटस्थ रहता है, जिससे सभी नागरिकों को अपनी आस्था स्वतंत्र रूप से अपनाने का अधिकार मिलता है जबकि आरएसएस प्रारम्भ से ही कुछ धर्मो से घृणा को ही अपना सिद्धांत बनाकर चल रहा है ।
डॉ राय ने कहा कि भारत के संदर्भ में यह व्यवस्था पूर्ण सकारात्मक है, क्योंकि भारत के विविधतापूर्ण समाज में यह एकता को बढ़ावा देती है। समाजवाद ने ग्रामीण विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने में मदद की है, जबकि धर्मनिरपेक्षता ने धार्मिक सौहार्द बनाए रखने में योगदान दिया है।
डॉ राय ने कहा कि ये सिद्धांत भारत की विविधता और समावेशिता को मजबूत करते हैं। संतुलित नीतियों और प्रभावी प्रशासन के साथ, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता भारत को प्रगतिशील और समावेशी राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण हैं।
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