असाकाम के बारे में अब उनके कई शिष्य और शिष्याये बहुत कुछ बता रहे है | क्या बाकि भी ऐसे पाखंडियो के आश्रमों से भी ऐसी बातें उठेंगी ? या कौन पहले घंटी बांधे का इन्तजार ? बहुत सी शिष्याओ का संकट ये है की अब घर या समाज में कैसे लौटे ?? मैंने कई दिनों पहले ऐसा लिखा था | ये सब बाबा है या ---- और ये आश्रम है या कसाईखाना ? वाह रे धर्म के प्रचारको और वाह रे ऐसा धर्म | किसी भूखे को खाना मत दो ,किसी को पानी मत दो और अंधे होकर किसी को सब कुछ दे दो |
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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