गरीबी और बेरोजगारी विमर्श की कुछ लेखन धाराएँ भी जन्म लेंगी क्या ? जाति धर्म से अलग ? मानवीय असमानता भी तो एक विषय है और सबसे बड़े विषय किसान और मजदूर की तरफ लेखको और कवियों का ध्यान कभी फैशंवश ही जाता है | क्या ये भी महत्वपूर्ण विमर्श बन सकते है ? या ये सब बिकाऊ माल नहीं है और इन्हें क्रेता नहीं मिलेंगे और इनाम भी नहीं मिलेगा ??
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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रविवार, 20 अक्टूबर 2013
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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