क्या
कुछ बददिमाग या दिमाग का इस्तेमाल ही नहीं करने वाले या दिमाग केवल विध्वंस
के बारे में इस्तेमाल करने वाले या भावहीन चीख चिल्लाहट करने वाले इस महान
लोकतंत्र के नेता हो जायेंगे ? कुछ चेहरे तो टी वी पर आते ही मन गिजगिजा
जाता है | देश इन्हें कैसे झेलेगा और ये देश का क्या करेंगे ?? क्या भारत
की वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की जरूरत है ??
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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खोज नतीजे
शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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