कब तक ,आखिर कब तक बम फटते रहेंगे ? गोलियां चलती रहेंगी ? लोग बिना जाने की उसे किसने मारा और क्यों मारा ? मरते रहेंगे !बिना मुकाबला किये .बिना हिनुस्तानी दिलेरी दिखाए !बिना एक के बदले सौ दुश्मन को मारे ? आखिर कब तक पडोसी जमीन से हिंदुस्तान के लोगो का खून बहाया जाता रहेगा ? कब हम हमला कर सकेंगे आतंकवादी अड्डों पर और केवल आतंक की खेती करने वालों को ही नहीं बल्कि बाकि दुनिया को भी बता सकेंगे की अब और नहीं ,अब हम घुस घुस कर मारेंगे और आतंकवाद की खेती करने वालों को ख़त्म करने तक नहीं छोड़ेंगे | आखिर कब कोई इंदिरा गाँधी जैसा फैसला लेगा ?
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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खोज नतीजे
बुधवार, 7 सितंबर 2011
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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