मोदी जी और बीजेपी के जुमलों और नारो की तरह आज का बजट भी छलावा और जुमला ही है और दिशाहीन बजट है ।
दो वर्ष से कुछ बड़े पूंजीपतियो की तिजोरी भरने वाली सरकार ने किसानो और मध्य वर्ग को जुमला देकर उस पाप से मुक्ति चाहा है ।
ये सरकार अभी तय ही नहीं कर पायी है की वह देश की अर्थ व्यवस्था को किस दिशा में ले जाना चाहती है ।
दो साल में विदेश व्यापार करीब 18 % घट गया तो कृषि उत्पादन वृद्धि जो पिछली सरकार में 4.1% रहती थी वो 1/2 % हो गयी है और इन्ही का आर्थिक सर्वे बता रहा है की किसान की आमदनी 20 हजार रुपया प्रति वर्ष है यानी करीब 1600 रुपया महीना उसे पाँच से में दोगुना करने का वादा किया गया है पर आधा प्रतिशत वृद्धि के ये दावा केवल छलावा है ।
गामीण सड़को के लिए 4000 करोड़ रखा गया है ।इतने कम पैसे से क्या होगा ।
दूसरी तरफ शिक्षा और स्वस्थ्य इत्यादि के बजट से कटौती जारी है ।
मनरेगा इत्यादि में भी बढ़ोतरी मामूली है ।
आयकर के छूट के अपने पुराने वादे से सरकार फिर पीछे हट कर वादाखिलाफी कर गयी है ।
जो छूट स्वाभाविक तौर पर जनता को मिलनी चाहिए थी और जिन पर विपक्ष में रहने पर बीजेपी हमलावर रहती थी वो जनता को नहीं देकर भी धोखा ही दे रही है जैसे पेट्रोलियम और जिंस के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार घटने पर भी जनता को उसका लाभ नहीं दिया जा रहा है ।
ये बजट बस छलावा है ।
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