कुछ लोग नौकरी में रहते हुए पानी पी पी कर राजनीती और नेताओ को गली देते है
तथा सारी समस्यावो की जिम्मेदारी उन पर डाल देते है वही लोग तब बहुत
हास्यास्पद नजर आते हैं जब नौकरी जाते ही घुटने के बल रेंग कर नेता बनने आ
जाते है और राजनीती तथा पार्टी का गुणगान करते है |
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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गुरुवार, 22 जनवरी 2015

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