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रविवार, 23 जुलाई 2017

कौन उबरेगा मेरे शहर को इस श्राप से इन्तजार है आगरा को भी और मुझे भी |

कुछ लोग श्रापित होते है जैसे मैं वैसे ही लगता है की कुछ समाज ,देश और कुछ शहर भी श्रापित होते है | उसी में एक शहर है आगरा यानि मेरा शहर इतना ज्यादा श्रापित की कुछ भी कर लो इसका श्राप मिटता ही नहीं है | सालो हो गए पानी के लिए तरसते हुए ,एक अदद हवाई अड्डे के लिए तरसते ,किसी कारखाने के लिए तरसते ,तो कभी पासपोर्ट ऑफिस और कभी हाई कोर्ट के लिए लड़ते पर क्या करे श्राप आड़े आ जाता है |
वो श्राप ही शायद कारन है की आगरा के द्वारा बनाये गए सभी प्रतिनिधि को बढ़ाते और फलते फूलते जाते है पर आगरा सूखता जाता है |
श्राप जो है
कौन उबरेगा मेरे शहर को इस श्राप से
इन्तजार है आगरा को भी और मुझे भी | 

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