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मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

बहुत चिंतित हूँ कि क्या होगा भारत के लोकतंत्र का । जिस विचारधारा का भारत की आज़ादी की लड़ाई से कोई सम्बंध नहीं , जिनकी लोकतंत्र ,इंसान की आज़ादी और संविधान में आस्था नहीं वो जुमलों और अफ़वाह के दम पर लगातार मज़बूत होते जा रहे है और दूसरी तरफ़ अन्य राजनीतिक ताकते या तो व्यक्तिगत का शिकार हो या परिवार वाद का शिकार हो और नितांत निजी स्वार्थों में लिप्त हो सीमित दायरों  में क़ैद होती जा रही है या सीमित सोच में क़ैद है या अपने इन्हीं कारणों से अयोग्यता ,अदूरदर्शिता और अल्पज्ञानता  के बोझ तले दम तोड़ रही है और भविष्य का न तो चिंतन है उनके पास न ही वैकल्पिक संघर्ष का माद्दा ही ।
राष्ट्रीय आंदोलन से निकली कांग्रेस भी पहले ही अहंकार तले छिननभिन्न होती दिख रही  है और लगातार उसके स्तम्भ गिरते जा रहे है । जबरन अयोग्य नेतृत्व को थोपने की कोशिश और नितांत असुरक्षित लोगों का उसी को सुरक्षा कवच की तरह प्रयोग आत्मघाती बनता जा रहा है । दशकों से कांग्रेसी रहे लोग उसे छोड़ते जा रहे है और उन्हें सत्ता में बैठे  लोग लोग तो लपक ले रहे है पर कांग्रेस को कोई चिंता नहीं । कश्मीर से कन्यकुमारी तक , बंगाल से लेकर पंजाब तक और सुदूर पूर्व से लेकर गुजरात तक मजबूर मजबूर कांग्रेसियों को भगाया गया है कंफ्यूसिया कांग्रेसियों द्वारा ।
ऐसा लगता है की शतरंज के खिलाड़ी की कहानी दोहरायी जा रही है कांग्रेस में भी और बाक़ी कुछ अन्य वैसे ही नेताओं के यहाँ जिनकी आत्मप्रशंसा और सनक देश के प्रति कर्तव्यों पर भारी पड़ रही है ।
कुछ दिन पहले ही कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस छोड़ और आज पता चला की गिरधर गोमांग भी सत्ता दल में है तो मैं हिल गया । कुछ और नामो के बारे में सुन रहा हूँ ।
पूर्व में ममता बनर्जी हो या मुफ़्ती मोहम्मद सईद या शरद पवार पूरे देश में अनगिनत लोगों को कांग्रेस ने खोया जो ख़ुद को साबित कर बड़े नेता सिद्ध हुए और उनके प्रदेश में उन्हें भगाने वाले बौने साबित हुए ।
पर लगता है की किसी आत्मचिंतन की ज़रूरत हीं नहीं समझती है कांग्रेस और आज़ादी के लिए तथा उसके बाद देश के लिए क़ुरबानी देने वाले अब देश ,लोकतंत्र , संविधान और आज़ादी की क़ुरबानी करने पर उतारू है ।
यही हालत अन्य नौजवान नेताओं की भी दिख रही है जो देश के पैमाने पर खड़े हो सकते थे ख़ुद भी और खड़ा कर सकते थे विकल्प भी लेकिन अयोग्यता या हीन भावना और प्रारम्भ में ही बुराइयों का शिकार होकर एक अंधेरे रास्ते पर चल पड़े है ।
समझ नहीं आता क्या होगा मेरे देश का ? क्या इसी सब को देखने के लिए लाखों लोगों ने क़ुरबानी दिया था ?
मन बेचैन है । क्या कोई बदलाव आएगा ? क्या कोई रास्ता निकलेगा ? क्या कोई विकल्प बनेगा ? 

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