कोई राजनीती बदलने की बात करता हो और रामलीला मैदान में सब फैसले करने तथा
सब कानून बनाने की बात करता हो जनता से पूछ कर और मुख्यमंत्री बन जाये तो
उसके मुह से साल कमीना जैसा शब्द और वो भी अपने क्षेत्रो में प्रतिष्ठित
व्यक्तियों के लिए क्या जनता को मंजूर हो सकते है ??
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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शनिवार, 25 अप्रैल 2015

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