मामा मामा आरे आवा पारे आवा ,रेल भवन के द्वारे आवा ,, चांदी की कटोरिया में दूध भात लेले आवा ,, भांजे के मुह में घुट । कुछ ऐसा ही गाकर माँ गाँव में खिलाती पिलाती थी । कुछ गलत हो तो सही कर दे । पर अजीब समय बदला है ;;; मेरी कोई बहन ही नहीं तो भांजा कहा से आया ? अच्छा बहन तो है पर उनके कोई बेटा ही नहीं । हाँ याद आया भांजा तो है पर उससे कोई सम्बन्ध ही नहीं है । अच्छा सम्बन्ध है ? तो मुझे नहीं सजा उसे दो । आरे आवा पारे आवा ,रेल भवन के द्वारे आवा आ आ आ आ आ ,घुट घुट घुट ,,, न न न न ।
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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खोज नतीजे
रविवार, 5 मई 2013
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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