आगरा आजकल बोल रहा है ,खूब बोल रहा है ,कही किसी अधिकारी के साथ मिल कर हेलमेट बिकवा रहा है ,कही किसी अधिकारी के कहने पर चौराहे चमकाने की बात कर रहा है | पर वर्षों से सांकेतिक रूप से उच्च न्यायलय की खंडपीठ बनाने की मांग करने वाले लोग प्रदेश के बंटवारे की चर्चा होते ही अब ज्यादा मुखर होने लगे है केवल वकील तबका ही नहीं बल्कि कुछ और ;लोग भी बात कर रहे है यानि बोल रहे है | प्रदेश के बटवारे की चर्चा क्या हुयी की कुछ लोग पच्छिम प्रदर्श से अलग ब्रज प्रदेश की मांग पर बोलने लगे ,हरित प्रदेश की चर्चा भी एक वर्ग करता रहा है | पर आगरा बोल रहा है | सोचना ये है की आज तक जो भी नए प्रदेश बने है या किसी क्षेत्र को कुछ भी मिला है तो क्या वो महज रश्म अदायगी से मिला है या उस क्षेत्र के लोगो ने अपना समय दिया ,नुकसान किया और सहा | दल ,जाति और धर्म तथा पेशे से ऊपर उठ कर संघर्ष किया ,खूब संघर्ष किया ,कुर्बानियां भी दीं | नेताओ ने अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर फैसलाकुन संघर्ष किया और अपनी पूरी ताकत झोंक दिया | ये सब चीजें आगरा में कभी भी दिखाई नहीं दी | इसीलिए आगरा ने अंतररास्ट्रीय शहर होते हुए भी खोया तो बहुत पर पाया कुछ नहीं | पर आगरा बोल रहा है ,चलो बोलना तो शुरू किया | शायद संघर्ष करना और हासिल करना भी सीख जाये | शायद ऐसा नेता चुनना सीख जाये जो शहर के लिए कुछ लाने के प्रति सचमुच प्रतिबद्ध हो | जी हाँ आगरा बोल रहा है |
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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खोज नतीजे
शनिवार, 10 दिसंबर 2011
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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