समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
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मंगलवार, 2 जून 2015
कभी नहीं भुलाई जा सकती है ये वाणी ------------ कबीर जिन्दा खड़े है अपने क्रान्तिकारी विचारो के साथ और उस युग की असंभव वैचारिक और सामाजिक क्रांति के साथ हमारे अन्तः में चाहे हम अभी स्वीकारे या कल स्वीकारे पर आइये आज उस फ़कीर को सर झुका कर सलाम करे ----------------- बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लगत अति दूर । कांकर पाथर जोर के मस्जिद लयी बनाय ता चढ़ी मुल्ला बांग दे बहिरा हुआ खुदाय । माला फेरत जग फिरा फिरा न मन का फेर कर का मनका डार दे मन का मनका फेर । ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय औरहु को शीतल करे आपहु शीतल होय । माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोय एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूंगी तोय । गुरु गोविन्द दोवू खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपनो गोविन्द दियो बताय। साई इतना दीजिये जामे कुटुंब समाय मैं भी भूखा न रहूँ साधू न भूखा जाए ।
हा मै हूँ और मेरी तन्हाई मेरे साथ है ,मेरे सपने मेरे साथ है .जिम्मेदारियों का अहसास भी साथ है जो मुझे हारने नहीं देते .अकेलापन ओढ़े हुए मै चल रहा हूँ लगातार की कोई तों मेरी भी मंजिल होगी जहाँ मै रहूँगा और तन्हाई नहीं होगी .चलना ही जिंदगी है .
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